ममता वैसे भी श्याम से नफरत करने लगी थी,लेकिन जिस दिन श्याम ने ममता को मारा था तो उस दिन से ममता के मन में श्याम के प्रति नफरत और भी ज्यादा बढ़ गई और उस नफरत ने बदले का रुप ले लिया, फिर एक दिन ममता उस सेठ के बेटे के साथ घर से भाग गई,ममता के घर से भागने पर पूरे गाँव में उसकी बहुत बदनामी हुई और गाँव के लोग इस बात के लिए श्याम पर उँगली उठाते हुए कहने लगे कि श्याम तो नामर्द निकला जो अपनी बीवी को ठीक से नहीं रख पाया,वो इतनी सुन्दर और गुणी थी,अगर ये उसको ठीक से रखता तो वो कभी भी उस सेठ के बेटे के चक्कर में आकर घर से ना भागती.....
गाँव वालों के ताने और उलाहनें सुन सुनकर श्याम थक चुका था और एक दिन जब रघुवीर स्कूल से घर लौटा तो उसका पिता घर में फाँसी के फंदे पर झूलता हुआ मिला,पुलिस आई और उसने श्याम की लाश की शिनाख्त करके उसे आत्महत्या करार देकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया,इसके बाद श्याम की लाश का गाँववालों ने अन्तिम संस्कार कर दिया,अब इधर छः साल का रघुवीर बिल्कुल अकेला हो गया था, इसलिए उस पर तरस खाकर स्कूल के मास्टर साहब ने उसे अपने घर पर रख लिया,अब रघुवीर मास्टर साहब के घर पर पलने लगा,मास्टर साहब के घर पर उनकी पत्नी नहीं थी,किसी बिमारी के कारण उनका स्वर्गवास हो चुका था,उनकी केवल एक ही बेटी थी जो रघुवीर की हमउम्र थी,उसका नाम मैथिली था,दोनों बच्चे साथ साथ बड़े होने लगे,तभी एक दिन खबर आई कि रघुवीर की माँ भी मर चुकी है....
उसने सेठ के बेटे की हत्या कर दी थी क्योंकि वो किसी और महिला के चक्कर में आ गया था और फिर खुद भी जहर खाकर मर गई,लेकिन उस बात को सुनकर रघुवीर को कोई भी दुख नहीं हुआ,क्योंकि वो अपनी माँ से नफरत करने लगा था,उसे लगता था कि उसकी माँ के घर से भागने के ही कारण उसके पिता ने आत्महत्या की थी,अब रघुवीर अठारह साल का हो चुका था और बारहवीं के इम्तिहान दे चुका था फिर उसने एक दिन मैथिली से कहा कि वो उसे चाहता है,ये सुनकर मैथिली आगबबूला हो उठी क्योंकि वो रघुवीर से ऐसी आशा नहीं रखती थी और उसने ये बात अपने पिता से बता दी,जब ये बात मैथिली के पिता ने सुनी तो उन्होंने रघुवीर को घर से निकाल दिया और उससे बोले कि...
" अब इस गाँव में नज़र आया तो तेरी खैरियत नहीं,नमकहराम! जिस थाली में खाया उसी में छेद कर दिया,चला जा मेरी आँखों के सामने से,आखिर तूने अपनी औकात दिखा ही दी,बहुत बड़ी गलती कर दी मैंने तुझे अपने घर में आसरा देकर"
मास्टर साहब ने जब रघुवीर को घर से निकाल दिया तो अब रघुवीर के पास रहने का कोई ठिकाना नहीं रह गया था,इसलिए वो गाँव से बाहर नदी के किनारे एक बरगद के पेड़ के नीचे रहने लगा,उस नदी के पास श्मशानघाट भी था और लोग कहते थे कि उस श्मशानघाट में अघोरियों का वास था,जो जलती हुई लाशों का माँस खाया करते थे,उन अघोरियों को मानव माँस खाने में कोई आपत्ति नहीं थी,पता नहीं कैंसे रघुवीर का भी उन अघोरियों के साथ उठना बैठना हो गया,अब जब उस का उठना बैठना उन अघोरियों के साथ होने लगा तो उसने लोगों से डरना छोड़ दिया,अब लोग उससे डरने लगे थे,क्योंकि लोगों को ये डर था कि रघुवीर उन अघोरियों के साथ मिलकर तंत्र मंत्र की विद्या सीख रहा है,इसलिए वो किसी पर भी टोना टोटका कर सकता है....
इसी दौरान मैथिली का प्यार गाँव के किसी चरवाहे के बेटे के साथ हो गया और जब ये बात मास्टर साहब को पता चली तो उन्होंने मैथिली को हिदायत दी कि वो उस लड़के से मिलना जुलना छोड़ दे,पिता के कहने पर मैथिली ने उस लड़के से मिलना जुलना छोड़ तो दिया लेकिन एक दिन वो उस लड़के के साथ घर से कहीं भाग गई और इस बात से मास्टर जी बहुत आहत हुए,फिर एक रोज़ वो अपने घर में मरे हुए पाए गए,कुछ पता नहीं चला कि उनकी हत्या कैंसे हुई क्योंकि पुलिस को बिना बताएँ ही गाँववालों ने उनका अन्तिम संस्कार कर दिया, गाँववाले नहीं चाहते थे कि पुलिस यहाँ आकर जाँच पड़ताल करें क्योंकि मैथिली के घर से भाग जाने पर उनकी बहुत बदनामी हो चुकी थी,पुलिस आती तो मैथिली के बारें में भी पूछताछ करती जिससे बात और बढ़ सकती थी,इसलिए सबने मास्टर साहब का जल्द से जल्द अन्तिम संस्कार करने में ही भलाई समझी...
और उसी रात से रघुवीर भी गाँव से गायब हो गया,फिर वो गाँव में कभी नहीं दिखा,ना ही उसकी पोटली उस बरगद के पेड़ से लटकी हुई पाई गई इसलिए गाँववालों को उस पर शक़ हो गया कि हो ना हो मास्टर साहब का खून रघुवीर ही करके भाग गया है,क्योंकि उनका खून करने की वजह भी रघुवीर के पास थी,घर से निकाले जाने पर वो मन ही मन में मास्टर साहब के प्रति दुश्मनी पाल बैठा और इसलिए उसने मास्टरसाहब का खून कर दिया ,फिर कहानी सुनाते सुनाते वो बुजुर्ग चुप हो गए,तब इन्सपेक्टर धरमवीर ने उनसे पूछा....
"इसके बाद मैथिली उस चरवाहे के बेटे के साथ कभी गाँव लौटी या नहीं"
तब वे बुजुर्ग बोले...
"जी! नहीं साहब! फिर वो दोनों कभी गाँव नहीं लौटे,ना जाने कहाँ चले गए",
"क्या उस लड़के के पिता अभी जिन्दा हैं जिसके साथ मैथिली भागी थी" इन्सपेक्टर धरमवीर ने पूछा...
"जी! जिन्दा है वो और हर घड़ी अपने बेटे को याद करता रहता है",वे बुजुर्ग बोले....
"कहाँ रहते हैं वो? क्या आप मुझे उनसे मिलवा सकते हैं",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"जी! वो अभागा मैं ही हूँ,मैंने अपने बेटे को खोजने की बहुत कोशिश की लेकिन वो मुझे कहीं नहीं मिला", वे बुजुर्ग बोले...
"नाम क्या है आपका",इन्सपेक्टर धरमवीर ने पूछा...
"जी! रामआसरे नाम है मेरा",वे बुजुर्ग बोले...
"कभी आपके बेटे की कोई चिट्टी भी नहीं आई",इन्सपेक्टर धरमवीर ने पूछा...
"जी! नहीं! ना उसकी कोई चिट्ठी आई और ना ही मैथिली की अपने पिता के नाम कोई चिट्ठी आई,ना ही कोई टेलीफोन आया,मैं तो डाकघर जाकर भी पता करता रहता हूँ,इस बात को पन्द्रह साल बीत चुके हैं", रामआसरे बोला....
"ओह....बहुत बहुत धन्यवाद आपका",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"धन्यवाद काहे का साहब! मैंने इसलिए आपको सबकुछ बताया कि शायद मेरे बेटे और मैथिली की कोई खैर खबर मिल जाएँ",रामआसरे बोला...
"ठीक है,ये पुलिसस्टेशन का फोन नंबर है,अगर आपको रघुवीर इस गाँव में दिखे तो मुझे फौरन खबर कर दीजिएगा",
"जी! साहब!"रामआसरे बोला...
और फिर इन्सपेक्टर धरमवीर उस गाँव से वापस लौट आए....
क्रमशः....
सरोज वर्मा...