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भयग्रस्त

भयग्रस्त 

डर 

 


 

लेखक:-अंकित भास्कर

 

 

 


“हैलो…हाँ..... कौन बोल रहा है?”
उसके मोबाइल के सफ़ेद स्क्रीन पर एक अनजान नंबर से आनेवाली कॉल को रिसीव करते हुए 'वो' बोली। 
"तुम्हारी माँ की तबीयत बहुत ख़राब है। तुम्हें तुरंत अस्पताल आना होगा।"
"हा...! आप कोण बात कर रहे हो...? माँ कहाँ है.......? क्या हुआ उन्हें...?"
सामने वाले की बात सुनकर 'वो' आश्चर्य से पूछने लगी..
"देखो, तुम्हारी माँ के पास बहुत कम समय बचा है। डॉक्टर अभी बता कर गए हैं। मैं पता भेज रहा हु। तुम जल्दी आओ।"
"लेकिन........"
                         बात करते-करते उसके हाथ में रखे मोबाइलकी चल रही कॉल कट गयी।  सामने वाले की बात सुनकर वह पास की दीवार का सहारा लेकर लगभग बैठ ही गयी.. उसके हाथ में रखा मोबाइल निचे फर्श पर गिर गया। सामने एक अनजान शख्स कह रहा था कि उसकी मां की हालत खराब हो गई है.. आंखों से आंसू रुके नहीं रुक रहे थे। दरअसल वह एक अजनबी शहर में अपने 12 बाय 8 के कमरे में अकेली रहती थी। घर की आर्थिक परीस्थिति के कारण वह कॉलेज के साथ-साथ छोटी-मोटी नौकरी भी करती थी। एक अनजान शहर के साथ-साथ अनजान जगह में, एक अनजान कमरे में अकेले रहना उसके लिए बहुत नया था। घर में सिर्फ वो और उसकी मां दोनों ही रहते थे। कॉलेज का पहला महीना होने के कारण वह अपनी माँ को साथ नहीं ला सकी। अपनी माँ की ऐसी हालत सुनकर उससे रहके भी रहा नहीं जा रहा था।अपने कमरे के एक कोने में उसका रोना-फुटफुटाना शुरू हो गया। कुछ ही पलों में उसके मोबाइल के नोटिफिकेशन ट्यून ने उसका ध्यान खींच लिया। तब जाकर उसे होश आया। सफ़ेद दीवार वाले पूरे कमरे में सफ़ेद बल्ब की रोशनी में वह कमरा और भी गहरा लग रहा था। कमरे के एक तरफ एक लकड़ी की अलमारी, एक छोटा सा बिस्तर, और बिस्तर के बगल में रखे टेबल पर प्लास्टिक के कटोरे में फल, फल के बगल में चमकता हुआ एक प्योर स्टेनलेस स्टील का चाकू रखा था। जो बल्ब की तेज रोशनी में चमक रहा था। लेकिन उसे इस बात का कोई ध्यान नहीं था। उसे ध्यान था तो सिर्फ अपने मोबाइल पर आई हुयी उस खबर पर.... उसने जल्दी से अपने मोबाइल में आये हुए उस मैसेज को पढ़ा और अपनी दोस्त को कॉल किया। तीन रिंग के बाद सामने से एक आवाज आई।

"हैलो..हाँ बोलो.... क्या हुआ इस समय फोन क्यों किया..? सब सो रहे हैं। समय देखा है? काफी रात हो गई है। इस समय क्या हुआ?"
"अरे, मुझे फोन आया की मेरी मां की तबीयत ठीक नहीं है। क्या तु मेरे घर आ सकती हो..? मुझे समझ नहीं आ रहा हैं की क्या करू.. तू प्लीज़ आजा ना..."
"क्या....थोड़ा अच्छे से बताओ ना क्या हुआ तो...?"
"तू प्लीज़ जल्दी आजा ना मुझे थोड़ा डर लगने लगा हैं।"
"डर और तुझे... तुझे कब से डर लगने लगा....?"
मजाकभरी आवाज को जवाब देते हुए सामने से बोलने लगीं..
"तू प्लीज़ जल्दी आ मुझे सच में डर लगने लगा हैं।"
"हम्म... ठीक है घर से निकलते समय कॉल करती हु ठीक है...।"
                           इतनी बात करने के बाद वह चल रही कॉल कट गयी। अब उसकी नजरें पूरे कमरे में घूमने लगीं.. उसके मन में एक गुमनाम डर ने अपना घर बना लिया था। डर.....डर कैसा , ये उसकी भी समझ से परे था। अचानक से कमरे में लगा हुआ बल्ब खड़खड़ाहट की आवाज के साथ जोर से फूट गया। तभी जगमगाते हुए उस कमरे में गहरा अँधेरा फैल गया। सब कुछ शांत हो गया था। लेकिन उस भयानक सन्नाटे में, आगे बढ़ने वाली अपनी दिल की धड़कन को वह स्पष्ट रूप से सुन पा रही थी। उसके डर से उसका पूरा गला सुख गया था। इसी कारन वह पानी पीने के लिए रसोई की तरफ मूडकर जाने लगी। कमरे में बहुत अँधेरा होने के कारण उसने बाजु में रखे लकड़ी के टेबल पर रखी माचिस की तीली जलाई...वैसे वह सामने का दृश्य देखकर दो कदम पीछे ही हट गयी। सामने का दृश्य देखकर उसका दील जोर-जोर से धड़कने लगा। एक काली इंसानी परछाई उसके सामने आकर अंधेरे में कहीं गायब हो गई। उसके हाथ में जलती हुए तीली की हलकी पीली नारंगी रोशनी में वह इंसानी परछाई स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही थी। माचिस की तीली के हल्के रोशनी में उसकी डरावनी आँखें और भी गहरी लग रही थीं। वह दृश्य देख कर वह दो कदम पीछे ही हट गयी। तभी बाहर से किसी ने कमरे की घंटी बजाई. ऐसे में उसका डर और भी जोर पकड़ने लगा। तभी घंटी एक बार फिर बजी... अब वह धीरे-धीरे कमरे के दरवाजे की और चलने लगी। वह पूरी डर चुकी थी। उसने डरते-डरते धीरे से दरवाज़ा खोला। आगे देखा तो उसकी सहेली वहा आ गयी थी। उसे देखते ही 'उसने' उसे गले ही लगा लिया। गले से लगकर वह जोर-जोर से रोने लगी। 
"क्या हुआ..? तुम इतनी डरी हुयी क्यों हो...?"
"वो मां....।"
जोर-जोर से रोते हुए वह अपना हाल उसे बता रही थी।उसको पकड़ कर उसकी सहेली उसके साथ उसके कमरे में आयी। 'सिमा' का गला सुख गया था। इसीलिए वह अपनी सहेली का हाथ छोड़कर रसोई में चली गई। पानी का एक घूंट पीकर पीछे मुड़कर देखा तो उसकी सहेली कहीं नजर नहीं आ रही थी। उसको ढूंढ़ते हुए वो दरवाजे की और जाने लगी लेकिन तभी उसके पास रखे मोबाइल की घंटी बजी। मोबाइल फोन को देखकर उसने कॉल रिसीव किया और सामने से आवाज आने लगी..
"हैलो.. मैं रितिका बोल रही हूं... मैं लगभग दो घंटे से फोन कर रही हूं, कहा हो तुम...?"

                                    सामने से आती आवाज से वह पूरी तरह सहम गयी थी। उसकी भयभीत नजरे थोडी देर पहले आयी अपनी सहेली को खोज रही थीं। वह कहीं नजर नहीं आ रही थी। लेकिन उसकी वही दोस्त रितिका उसके सामने आयी उस कॉल पर बहुत गुस्से में बात कर रही थी। आगे से आने वाली उसकी आवाज को सुनकर वह जैसे मानो और परेशान हो गयी। मन मे जिस डर ने अपना घर बनाया था अब वही डर उसके चेहरे से झलकने लगा था। बिना कुछ कहे उसके हाथ में मौजूद मोबाइल फोन नीचे फर्श पर गिर गया। तभी उस कमरे की खुली खिड़की से एक ठंडी हवा का झोंका उसे छू गया। हवा के झोंके के साथ-साथ कमरे में जल रही मोमबत्ती की पीली नारंगी रोशनी कम होते-होते बुझ गई और कमरे में एक बार फिर अंधेरा छा गया। जो हो रहा था वह उसकी समझ से परे था। कमरे मे फैले अंधेरे से क्या करे क्या नही उसे कुछ भी समझ नही आ रहा था। वैसे ठंड हवा का झोंका खिड़की के दरवाजे से जोर-जोर से टकराने लगा। खिड़की के बाहर मोहक चांदनी रात में एक चमगादड़ अपने पंख फड़फड़ा रहा था और अपनी चोंच से जोर-जोर से चिल्ला ने की कोशिश कर रहा था। उसके वो पंखों का फड़फड़ाहट और उसकी चोंच से निकाली हुयी वह भयानक चिख उस भयानक शांत वातावरण में उसे दिल का दौरा देने के लिए काफी थी, और एक ही पल में वह चमगादड़ उसके सामने से अपने पंख फड़फड़ाकर निकल गया। तभी उसके कमरे का दरवाजा कोई जोर-जोर से खटखटाने लगा.... वो एकदम से चौंक गई। फिर उसके शरीर मे एक डर की रफ्तार दौड़ गई। डर के मारे शरीर से चेहरे पर पसीना आने लगा। कमरे के दरवाजे पर दस्तक जारी थी...। वह दरवाजे की ओर बढ़ी.... दो कदम आगे बढ़ी ही थी... और तभी सब कुछ एकदम शांत हो गया.... सब कुछ...... जोर से खिड़की पर टकराने वाला खिडकी के दरवाजेका ज़ोर-ज़ोर से खिड़की पर टकराना, उस डरावने चमगादड़ के पंख का फड़फड़ाना, उसकी चोंच से निकलती वह भयानक चीख, दरवाज़े पर ज़ोर-ज़ोर से खटखटाना.....सब कुछ......आवाज थी तो बस उसकी बढ़ती हुई दिल के धडकन की.....। उस डर से लग रहा था कि जैसे मानो दिल जोर-जोरसे धडकते हुए शरीर से बाहर निकल रहा हो। उसके दिमाग में बहुत सारे सवाल चल रहे थे... उसकी आँखें गहिरे अँधेरे कमरे में चारो तरफ घूम रही थीं। अँधेरा गहरा होने के कारण वह उस गहरे अँधेरे में सफ़ेद मोमबत्ती कि खोज करणे लगी। आख़िरकार जैसे-तैसे मोमबत्ती मिल ही गई। उसने मोमबत्ती हाथ में लेकर जल्दी से मोमबत्ती के पास रखी माचिस की तीली को जल्दी-जल्दी मे जलाया।  जलाते समय वह बहुत डर गयी थी और उसके हाथ डर कि वजह से काप रहे थे। तिली जलते ही सफेद मोमबत्ती की फिकी पीली नारंगी रोशनी गहरे अंधेरे को चीरते हुए पूरे कमरे में फैल गई। उसने मोमबत्ती हाथ में ली और साइड के टेबल पर रख दी। तंभी फिर एक बार दरवाजे पर दस्तक हुई... अब उसके शरीर में बची-खुची ताकत भी खतम हो गयी। आश्चर्य से पीछे मुड़कर देखा और आगे का दृश्य देखकर वहीं बेहोश हो गयी……लेकिन दरवाजे पर आनेवाले वह दस्तक जारी ही रही..…….

 


दुसरे दिन 

 


"देखो, आपको मुझे बताना हि होगा कि उनके साथ क्या हुआ है नही तो मुझे उनकी मानसिक स्थिति जाननी पडेगी।"
                  सामने रखी फाइलो में अलग-अलग कागजों को छांटते हुए बूढ़ा इन्सान अपने सामने बैठी एक युवती से अपने मरीज के बारे में पूरी जानकारी ले रहा था।
"डॉक्टर.. उसके बारे मे मुझे ज्यादा कुछ तो नही पता लेकिन कुछ दिनो पहले उसकी मां एक कार दुर्घटना में भगवान के पास चली गईं। उस घटना के बाद वह पूरी तरह से सहेम गईं। घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब होने के कारण उसके रिश्तेदारों ने भी उसका साथ छोड़ दिया। लेकिन उसकी मानी हुयी छोटी बहन को वह पसंद नहीं थी। पाठशाला की सबसे होशियार और प्रतिभाशाली लड़की होने के कारण वहां के शिक्षकों ने उसे शहर के कॉलेज में भर्ती करा दिया। लेकिन उसको अपनी मां से बहुत लगाव था। उसे उसकी माँ की बहुत याद आती थी। अपनी मां की यादों को भुलाने के लिए उसने शहर में एक छोटी सी नौकरी करना सुरु कर दी। पिछले 2 महीने से सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन कल रात करीब 1.30 बजे उसने मुझे फोन किया और.. ......"
                    बोलते हुए उसने २ मिन सांस ली। वह कुछ आगे बोले तभी बाहर से किसी ने अंदर आने की इजाजत मांगी, डॉक्टर ने भी अपनी गर्दन हिलाकर उसे अंदर आने को कहा और एक युवक डॉक्टर के सामने टेबल पर एक फाइल रखकर चला गया।
"ओह्ह सो सॉरी , आप प्लिज बोलते राहिये ।"
"डॉक्टर.... कल रात करीब 1:30 बजे मुझे फोन आया और उसने मुझे अपने घरमें बुलाया। बात करते समय वह थोड़ा अजिब सा महसूस कर रही थी। मानो जैसे वह बहुत डर गयी हो। मैं उसे लगभग 2 घंटे तक फोन करती रही लेकिन उसका फोन ही नहीं लग रहा था। आखिरकार उसका फोन लगा लेकिन उसने सामने कुछ बात करणे के पहले ही वह कॉल कट गई। तब ना रेहके भी मुझे उसकी चिंता हो रही थी। आखिरकार वहा क्या हुआ ये देखनेके के लिये मैं उसके घरमें गई , कमरे की घंटी बजाई लेकिन वह काम नहीं कर रहा थी। आवाज भी लगायीं। दरवाजे पर दस्तक भी दी लेकिन वह कुछ जवाब ही नहीं दे रही थी और तब मुझे उसके दरवाजे का हैंडल तोड़ना पड़ा। अंदर देखा तो वो बेहोष पडी थी। उसके हाथ के पास फर्श पर एक तेज़ धार वाला चाकू पडा था, उसके बाद मुझे कुछ समझने के पेहले मैंने एम्बुलेंस को बुलाया और उसे यहाँ ले आई।
"हम्म... देखिए उन्होंने आत्महत्या करने की कोशिश की है... और आपके बताने के अनुमान के अनुसार से उसको कोई मानसिक तनाव भी नहीं दिख रहा है।"
                मरीज की हालत ठीक ना रहने का डॉक्टर का कारण सुनकर वह थोड़ा रोते हुए बोली।
"डॉक्टर प्लिज उसे जल्दी से ठीक कर दो, वह मेरी अकेली सहेली है।"
तभी बाहर से अस्पताल मे काम करनेवाली एक नर्स डॉक्टर के केबिन की ओर दौड़ते हुए आई।
"सर, बेड नंबर 46 के मरीज की हालत बहुत खराब हो गई है।"
                वैसे डॉक्टर और वह नर्स केबिन के बाहर निकले। वैसे वह भी बाहर आ गई। दरवाज़े के बाहर लगे हल्के सफ़ेद शीशे के अंदर नजर डाली और कुछ समय में डॉक्टर कमरे से बाहर आये। 
"I Am Sorry, हमने अपनी पूरी कोशिश की लेकिन आपकी दोस्त सीमा को हम नही बचा पाये। लेकिन उसके खून में हमें नशा और कुछ मानसिक तनाव की दवाइया बहुत ज्यादा मात्रा में मिलीं हैं । जिसे खाने से एक सामान्य व्यक्ति को ऐसा महसूस हो सकता है कि वह मानसिक तनाव में है या फिर अपने आस-पास किसी के होणे का अहसांस होने लगता हैं। यह तब होने लगता है जब उस दवा की शुरुआत हुयी हो और धीरे-धीरे वह दवा उस व्यक्ति के जीवन के साथ खिलवाड़ करने लगती है और अंततः वह व्यक्ति आत्महत्या, मर्डर, मारहाण आदि से अपनी जान गंवा देता है... ये भी वैसी ही case दिख रही हैं। लेकिन आपके बेताने के अनुमान से सीमा कुछ नशा और दवाईया नही लेती थी। हान ऐसा हो शकता हैं की उनको किसीने दी होगी।"
             बोलते-बोलते डॉक्टर अपने केबिन कि और चले गये। रितिका रोते हुए सिमा के कमरे की ओर आई। उसके पास जाकर उसके बिस्तर पर बैठते हुए बोली...

"मुझे माफ करना.... लेकिन मै तुम्हे बचा नही पाई दीदी... "

            और एक प्यारी सी मुस्कान के साथ अस्पताल से बाहर जाणे लगी। लेकिन सीमा का बेजान हुआ शरीर अपनी डरावनी नजरों से रितिका को ही देखे जा रहा था..... 

 

 

 

 


समाप्त 

कहानी के सारे copywrite सब लेखक के पास सीमित हैं।

यह कहाणी (भयभीत By Ankit Bhaskar) ये कहाणी से अनुवादित (भाषांतरित) कि गयी हैं।

कहाणी कैसी लगी और कहाणी मे कुछ बताना हो तो हमे जरूर बतायें।

कुछ अलग तारिके से कहाणी लिखने का प्रयास करेंगे कहाणी को आपका प्यार दे और ज्यादा कुछ ना बोलते हुए आप कहाणी कहाणी का आनंद उठाये।

संपर्क-7767883042      ई-मेल-bhaskarankit157@gmail.com 

 

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