संत कृपा नंदलाल मणि त्रिपाठी द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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संत कृपा





मेरठ सैनिक छावनी में सूबेदार मिलन मुखर्जी की नियुक्ति थी मिलन मुखर्जी को किसी भी प्रकार के खतनाक सांप पकड़ने में महारत हासिल था।

मेरठ छवनी के कमांडिंग ऑफिसर थे विल्सन जो सूबेदार मिलन मुखर्जी कि बहुत इज़्ज़त करते थे ।

कमांडिंग ऑफिसर विल्सन की पत्नी मैडम मारिया बहुत ही शौम्य एव दयालु मिलनसार महिला थी ।


दो दिन के लिए कमांडिंग आफिसर विल्सन को ऑफिस के कार्य से सेना के उच्च अधिकारियों के बुलाहट पर चेन्नई चले गये उनके जाने के बाद मारिया अकेले ही बंगले में थी और कुछ गार्ड क्वार्टर सेरमेंट थे खना खा कर मारिया सोई ही थी कि पूरे बंगले में अजीब सी आवाज आने लगी जो रुक रुक कर निरंतर आ रही थी रात को मैडम मारिया ने सभी क्वार्टर सरमेंट्स को एव गार्ड को आवाज कहां से आ रही है पता करने के लिए लगा दिया क्योकि उनकि नीद में खलल पड़ रही थी ।

सभी क्वार्टर सेरमेंट एव गार्ड इसी निष्कर्ष पर पहुंचे की यह किसी विचित्र सांप की आवाज है जो अपने प्राकृतिक वातावरण से बिछड़ कर आ गया है किसी तरह मैडम मारिया ने रात बिताई और सुबह होते ही उन्होंने मिलन मुखर्जी को बुलाया और बंगले के आस पास किसी बिचित्र सांप के होने की बात बताई और उसे पकडने का अनुरोध किया ।

मिलन मुखर्जी ने कुछ देर प्रायास करने के बाद सांप पकड़ लिया और उसे कपड़े की थैली में बंद कर दिया दो दिन बाद कमांडिंग आफिसर विल्सन लौट कर आये पत्नी मारिया ने उन्हें दो दिनों के हालात और मिलन मुखर्जी के सांप पकड़ने कि बात बताई विल्सन को सांप देखने की जिज्ञासा हुई उन्होंने मिलन मुखर्जी को थैली में बंद सांप को लेकर आने के लिए आदेशित किया ।

मिलन मुखर्जी तुरंत हाजिर होकर थैली से सांप निकाल कर कमांडिंग ऑफिसर विल्सन को दिखाने लगे लगभग पौन फुट का अत्यंत जहरीला नीला सांप देखकर विल्सन हतप्रद रह गए जब सांप मिलन मुखर्जी विल्सन को दिखा कर थैली में रखने लगें तभी सांप ने उन्हें डस लिया और पलक झपकते ही मिलन मुखर्जी काल कलवित हो ।

गए मेरठ छवनी के सभी चिकित्सको ने मिलन मुखर्जी को बचाने का प्रायास किया किंतु निरर्थक साबित हुआ तब अंत मे चिकित्सको द्वारा मिलन मुखर्जी का मृत्यु प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया।
मिलन मुखर्जी के अंतिम संस्कार की तैयारी शुरू हो गयी उनके परिवार में कोलाहल एव अफरा तफरी का माहौल था तभी एक संत जिसे घटना की जानकारी किसी ने दे रखी थी पहुंचे और मृत मिलन मुखर्जी को जीवीत करने के लिए मेरठ कैंटोमेंट बोर्ड के चिकित्सकों को चुनौती देने लगे।

चिकित्सको को बहुत आश्चर्य हुआ कि मृत व्यक्ति को कैसे जीवित किया जा सकता है यह बात विल्सन को भी नही समझ मे आ रही थी चिकित्सको के हठ को नजर अंदाज करते हुए विल्सन ने संत को मिलन मुखर्जी कि चिकित्सा करने के लिए अनुरोध किया एव संत से पूछा आप क्यो मृत मिलन कि चिकित्सा करना चाहते है संत रमन्ना ने बड़ी विनम्रता से बताया कि वह हिमालय के दुर्गम पहाड़ियों पर निवास करते है और मैदानी क्षेत्र में नही आते उनके गुरु अनन्य का आदेश था कि मैं कुरुक्षेत्र कि मिट्टी लेकर आऊ उन्हें अपने किसी शोध अनुष्ठान के लिए आवश्यक है ।

मैं अपने उद्देश्य कि तरफ जा ही रहा था कि किसी ने मुझे सर्प दंश से मृत्यु कि बात बताई मेरी अन्तरात्मा ने आदेशित किया कि मैं अपनी जानकारी के अनुसार मृत व्यक्ति को जीवित करने का प्रयास करूं ।

विल्सन ने संत रमन्ना को अपनी चिकित्सा शुरू करने का अनुरोध किया संत रमन्ना ने विल्सन से अनुरोध किया कि मृत मिलन के शरीर को पानी में रखा जाय और उन्होंने मिलन के शरीर पर लेप बनाकर लगा दिया।

विल्सन के आदेश पर मिलन के मृत शरीर को तालाब के बहते जल में निगरानी के मध्य रखा गया एक सप्ताह बाद संत रमन्ना ने मिलन के मृत शरीर को पानी से निकलवाया और चिकित्सा शुरू किया।

तीन दिन के कठिन प्रयास एव इलाज के बाद मिलन के मृत शरीर मे संवेदना की सक्रियता दिखने लगी पूरी मेरठ सैन्य छावनी ही नही समूचा प्रशासन एव आस पास कि जनता संत रमन्ना के प्रयास परिणाम को देख रही थी लगभग पन्द्रह दिनों के कठिन इलाज के उपरांत मिलन मुखर्जी चिरनिद्रा से जाग उठे ।

चिकित्सको को यह नही समझ मे आ रहा था कि वास्तव में मिलन मुखर्जी का जीवित होना कोई चमत्कार है या चिकित्सीय सफलता चिकित्सकों ने एव तत्कालीन प्रबुद्ध जन समुदाय से संत रमन्ना से मिलन कि चिकित्सा के संदर्भ में जानने की बहुत कोशिश किया ।

संत रमन्ना यही कहते रहे कि यह अनुमति हमे नही है की हम किसी को भी इस जानकारी को बता सके गुरु का आदेश है।

लगभग इक्कीस दिनों के प्रवास में संत रमन्ना ने मेरठ छावनी में कुछ नही खाया सिर्फ हरे पत्ते एव जल पीने के आतिरिक उन्हें इक्कीस दिनों के प्रवास में किसी ने भी नित्य कर्म करते एव स्नान करते नही देखा वह सदैव ही तरो ताज़ा ही दिखते थे ।

मिलन के जीवित होने के बाद विल्सन एव मेरठ शहर के धनवान संभ्रांत लोंगो ने बहुत धन दौलत देने के लिए अनुनय विनय किया किंतु संत रमन्ना ने बड़ी सादगी से हाथ जोड़कर क्षमा मांगते अस्वीकार कर दिया ।

जाने से पूर्व उन्होंने जन समुदाय एव छावनी के सैनिकों अधिकारियों कर्मचारियों का बड़ी शालीनता से इक्कीस दिनों के प्रवास एव सम्मान के लिए आभार व्यक्त किया और विल्सन से उस सर्फ को उपहार स्वरूप मांगा जिसके डसने से मिलन मुखर्जी कि मृत्यु हुई थी ।

विल्सन ने उत्सुकता बस पूछा महोदय आप वह सर्प क्यो मांग रहे है?
, जो इतना जहरीला है कि जिसे डस ले वह पलक भी नही झपका सकता और मृत्यु के गोद मे चला जाता है संत अनन्य ने कहा महोदय वह नीला सांप कही से भटक कर यहॉ आ गया था तभी वह चिल्लाने लगा जिसके कारण आपकी पत्नी मारिया के नीद में बाधा आयी और यह घटना घटी वह सर्प हम लोंगो के परिवार का प्रमुख अंग एव भगवान विष्णु के शयन का आसन नाग वंशज है उंसे साथ ले जाना मेरा परम पुनीत कर्तव्य है क्योकि वह तो छिर सागर या सागर कि गहराईयों या हिमाचल में ही प्रवास करता है जहां मेरे हमारे सभी के परमात्मा रहते है और हाँ मेरे जाने के बाद भविष्य में कभी भी मेरठ के जिन भागो से मैं गुजरूँगा उस सर्प के साथ पूरी सृष्टि तक किसी भी प्राणि कि सर्फ दंश से मृत्यु नही होगी ।

विल्सन के आदेश से पोटली में बंद सर्प को संत अनन्य को सौंप दिया गया संत अनन्य ने सर्प को पोटली से निकला और अपने दाहिने हाथ की कलाई में लपेट लिया सर्प भी ऐसे लिपट गया जैसे वर्षो से दोनों कि मित्रता हो संत अनन्य सबसे विदा लेकर जाने लगे सभी एक टक उन्हें निहारते रहे कब सबकी दृष्टि से ओझल हो गए किसी को पता नही।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।