पथरीले कंटीले रास्ते - 7 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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पथरीले कंटीले रास्ते - 7

पथरीले कंटीले रास्ते 

 

 

 

बग्गा सिंह घर तो जैसे तैसे पहुँच गया पर उसका सारा ध्यान रविंद्र में ही लगा था । हालांकि पुलिस की उसके साथ पूरी हमदर्दी थी पर घर तो घर होता है न और रविंद्र दो दिन से घर से दूर था । रोटी भी पता नहीं उसने खाई या नहीं । थाने में कैसे रात में सोया होगा । जमानत ही हो जाय तो इससे आगे का अगला कुछ  सोचा जाय । हालांकि वकीलों ने पूरा होंसला दिया है कि रविंद्र को कम से कम सजा होगी । नहीं भी हो सकती । बरी भी हो सकता है । वह सब तो पहली पेशी पर ही पता चलेगा कि सामने वाला कितनी तैयारी से आता है । कौन कौन से गवाह खङे करता है । उसी के आधार पर रविंद्र का केस तैयार किया जायेगा । वैसे केस में ज्यादा कुछ है नहीं ।

बग्गा सिंह ने वकील के हाथ थाम लिये थे – वकील साब अब तो आपका ही सहारा है । आप ही रविंद्र को छुङवा सकते हो । पूरा जोर लगा दो । बच्चे की जिंदगी का सवाल है । इसे जेल हो गयी तो हम तो वैसे ही जीते जी मर जाएंगे । घर का बङा बेटा है जी । बाकी दो छोटे भी इसी से सीखेंगे । ऊपर से गोती , नाती , रिश्तेदार सौ तरह की बातें बनाएंगे । दस तरह के दूषण लगाएंगे । हम कैसे मुँह दिखाएंगे बिरादरी में । वकील चुपचाप उसका प्रलाप सुनता रहा था । फाईल के पेज इतनी देर तक उलटता पलटता रहा ।  फिर सिर उठाकर बग्गा सिंह को देखा और उसका कंधा थपथपा कर बाहर चला गया ।

अब बग्गा सिंह के पास वहाँ रुकने का कोई कारण नहीं था सो वह भी बस अड्डे की ओर चल पङा । सौभाग्य से बस अड्डे पर लगी हुई थी और चलने को तैयार थी । यात्रियों से ठसाठस भरी बस में उसे पायदान पर ही बङी मुश्किल से खङे होने लायक जगह मिली थी । वह जैसे तैसे बस में घुसा और वहीं एक पैर पर ही खङा हो गया । इस अवस्था और बेआरामी में खङे होकर भी उसने परमात्मा का शुक्र किया था । अगर उसे बस का इंतजार करने के लिए बस स्टैंड पर रुकना पङता तो न जाने कितने जान पहचान वालों से सामना होता और उन सबके फालतू के सवालों के जवाब देने पङते । अब यहाँ बस में तो आदमी के सिर और कंधों पर आदमी सवार है । सांस लेने लायक जगह भी नहीं है तो कोई किसी को देख नहीं पा रहा है । वह गरदन झुकाये चुपचाप खङा रहा ।

आधे घंटे बाद बस रामपुरा रुकी तो वह फटाफट बस से उतर कर पैदल ही रास्ते पर चल दिया । दस मिनट बाद वह अपने घर की घंटी बजा रहा था । उम्मीद के मुताबिक दरवाजा उसकी पत्नि ने ही खोला  । पति को देखते ही उसके मन में सुबह से रोकी उत्सुकता फट पङी – क्या हुआ जी । पुलिस वाले क्या कहते हैं । कैसा है हमारा बेटा ? वकील से मिले थे ?

 वह क्या बोला ?

 अपना रविंद्र कब तक बाहर आ जाएगा ?  

कब छोङेंगे उसे ?  वह एक ही सांस में सारे सवाल पूछ गयी ।

बग्गा सिंह का भी सुबह से रोका गुस्सा फट पङा ।

घर में घुसा नहीं कि तेरा बोलना शुरु । क्या बङबङ किये जा रही है । यह तो तुझ से हुआ नहीं कि सुबह से धक्के खा के बंदा घर आया है । कोई पानी का गिलास ही पकङा दे या चाय पानी ही पिला दे । जब देखो फालतू की बकबक बकबक ।

पति की डांट खाकर रानी रुआंसी हो गयी । सुबह से जगह जगह धक्के खाये होंगे । थके होंगे । परेशान भी होंगे पर मैं पूछू तो किससे ।

दुपट्टे के सिरे से आँखें पोंछती हुई वह रसोई में गयी और थोङा सा गुङ और गिलास में पानी लेकर लौटी ।

पत्नि की हालत देखकर बग्गा सिंह को अपने व्यवहार पर ग्लानि हुई । इस बेचारी का क्या कुसूर । यह भी तो सुबह से रविंद्र के घर लौटने का इंतजार कर रही है ।

उसने हाथ पकङ कर उसे अपने पास बैठा लिया – हाँ भागवान , मैं थानेदार से मिला था । रविंद्र ठीक है । वकील से भी मिल कर आया हूँ । वह कह तो रहा है कि रविंद्र को छुङवा लेगा । आगे देखो क्या होता है ।

वाहेगुरु भली करेगा । हमने कभी किसी का बुरा नहीं किया । किसी कीङी को भी अपनी जान में तकलीफ नहीं होने दी । न बच्चों को ही किसी से फालतू में उलझने की सीख दी । आज तक तो वे किसी से लङे झगङे नहीं फिर पता नहीं यह भाना कैसे बीत गया ।

कोई न जो होना था वह तो हो गया । अब तो यह सोचना है कि आगे हम क्या कर सकते हैं । रविंद्र को बाहर कैसे लाया जाय । चल अब कुछ खिला दे । कल फिर शहर जाकर देखता हूँ क्या कर सकते हैं ।

रानी अपने घुटनों पर हाथ रख उठी और थाली में दो रोटियाँ  , दाल की कटोरी ले आई ।

बग्गा सिंह धीरे धीरे रोटियाँ तोङने लगा ।

अचानक उसने पूछा -  बच्चों ने रोटी खा ली क्या ?

आहो , अभी थोङी देर पहले ही खिलाई है ।

तो तू अपनी थाली भी ले आ ।

आप खाओ , मेरा अभी मन नहीं है । थोङी देर में खा लूँगी ।

थोङी देर को क्या मुहुर्त निकलवाएगी पांधे से । मन तो मेरा भी नहीं कर रहा पर खाएंगे नहीं तो भाग दौङ कैसे करेंगे । चल ला थाली ।

रानी अपनी थाली में एक फुल्का और दाल ले आई । और वहीं चारपाई के पायताने बैठ कर खाने लगी । बग्गा सिंह ने रोटी खत्म की तो वह खाली बरतन लेकर नल पर बैठ बरतन मलने लगी । उसकी आँखों से लगातार आँसू बहते रहे पर उसने उन्हें रोकने का कोई प्रयत्न नहीं किया । काफी देर रो चुकने के बाद उसने अपने चेहरे पर नल से पानी लेकर छींटे मारे । थालियाँ और कटोरियाँ धोकर रसोई में ले जाकर टोकरे में रखी । दूध संभालकर वह भीतर कमरे में आई । तब तक छिंदर ने मंजे टेढे कर उन पर दरियाँ बिछा दी थी ।

बग्गा सिंह खेस ओढ कर लेट गया था । वह भी अपने मंजे पर टेढी हो गयी । सप्तऋषियों की मंजी बिल्कुल सिर पर आ गयी थी । उसने ध्रुव तारे को देखा । एकदम शांत , निर्मल और स्थिर । परमात्मा मेरे रविंद्र को भी इस ध्रुवतारे की तरह  शांत और स्थिर बनाए । इस मुसीबत का सामना करने की शक्ति बख्शे । उसने मन ही मन इन तारों को प्रणाम किया । सोचते सोचते  उसकी आँख लग गयी और वह गहरी नींद के साये पहुँच गयी ।

 

बाकी फिर ...