पथरीले कंटीले रास्ते - 8 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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पथरीले कंटीले रास्ते - 8

पथरीले कंटीले रास्ते 

 

8

 

 

इसके अगले दो दिन बग्गा सिंह के भाग दौङ में ही बीते । वह कभी गाँव के सिरमौर लोगों से मिलने जाता , उनके पैर पकङता । कभी थाने में रविंद्र से मिलने जाता । वहाँ पुलिस वालों की मिन्नत तरला करता कि रविंद्र का पूरा ध्यान रखें । उसे कोई तकलीफ न होने पाए । फिर वकीलों से मिलता कि उसके बेटे को सजा से छुङा लें । बरी हो जाय बेटा । इसके लिए अपनी तीन किल्ले पुश्तैनी जमीन बेच देगा वह । जमीन का क्या है , फिर बन जाएगी । न भी बनी तो सारी दुनिया क्या जमीनों वाली है । जैसे बाकी लोग रहते हैं वैसे वह भी रह लेंगे । मेहनत मजदूरी करते हैं । थोङी ज्यादा कर लेंगे । दाल रोटी खाते हैं , अचार के साथ गुजारा कर लेंगे । वकील एक एक सवाल करते जाते , जितना वह जानता था बताता जाता । वकील तसल्ली देते । घबराओ मत , सब ठीक हो जाएगा । गयी रात घर आता तो रानी की सवालिया आँखें उसे परेशान करती । वह जानना चाहती कि आज पूरा दिन की भाग दौङ का क्या परिणाम हुआ पर बग्गा सिंह के पास कुछ बताने लायक हो तो बताए न । वह अपने ही घर में मुँह चुराता हुआ घूमता । रोटी परस दी जाती तो फटाफट दो निवाले जैसे तैसे निगलता और खेस में सिर घुसाके लेटा रहता ।

आखिर तीन दिन बीत गये। सुबह जब वह कचहरी जाने के लिए तैयार हो रहा था तो रानी भी नहा धोकर तैयार खङी थी ।

मैं भी तेरे साथ चलूँगी । मुझे चीटू से मिलना है । उसे देखे चार दिन हो गये हैं । एक बार देख लूँगी तो तसल्ली हो जाएगी ।

बग्गा सिंह उसे ले जाना तो नहीं चाहता था पर बहस करने का समय नहीं था । अगर रानी को समझाने बैठता तो कम से कम आधा घंटा तो बरबाद होना ही था । ऊपर से अगर वह रोने लग जाती तो ... । आगे सोचने की बग्गा सिंह की हिम्मत नहीं हुई ।

चल भागवान , तू भी चल । मिल ले बेटे से ।

वह थैला उठाकर पैर में जूती फँसाते हुए बाहर चल पङा । रानी ने दोनों लङकों को कई हिदायतें दी और लपक कर वह भी सङक पर आ गयी । बस लेकर वह सीधे कचहरी पहुँचे और वकील से मिले । वकील फाइलों में उलझा हुआ था । उसने उचटती नजर इस दम्पत्ति पर डाली । सिर की जुम्बिश से इनकी सत श्री अकाल का जवाब दिया और दोबारा अपनी फाइल पढने में व्यस्त हो गया । बग्गा सिंह कुछ देर वकील और उसकी व्यस्तता को देखता रहा फिर उठकर वकील के केबिन से बाहर आ गया । कचहरी में पूरी चहलपहल थी । लोग जगह जगह झुंड बनाकर बातें कर रहे थे । हजारों नहीं तो कई सैकङों लोग तो अवश्य रहे होंगे । सब अपने में मस्त या अपनी अपनी समस्याओं में घिरे हुए लोग । 

उसने जज के चैंबर में झांका । जज साहब अभी आए नहीं थे । चपरासी या सफाई कर्मचारी अंदर कुर्सियों पर कपङा मार रहे थे । वह कुछ देर उन्हें वहाँ काम करते हुए देखता रहा फिर बाहर लान के कोने में कुकुरमुत्ते की तरह उगे चाय के खोखे की ओर चल पङा । चाय के खोखे पर भी इस समय पूरी भीङ थी । लोग चाय के साथ मठरी , पैटी लेकर चुसिकियाँ लेने में मगन थे । कुछ लङके लङकियाँ ठंडे की बोतले लेकर पी रहे थे । भीङ के समुंदर में कूदने की बग्गा सिंह की हिम्मत न हुई । वह उल्टे पैर वकील के कैबिन की ओर लौटा । वहाँ उसकी पत्नी बेचैनी से उसका इंतजार कर रही थी ।

कुछ कहने के लिए कहना उसे जरूरी लगा ।

मैं देखने गया था जज साहब आ गये है या नहीं । अभी तो पुलिसवाले भी नहीं आये ।

आप चाय पिओगे – वकील ने पूछा और जवाब का इंजतार किये बिना तीन कप चाय मंगवा ली ।

चाय का घूंट भरते हुए दोनों पति पत्नी को लग रहा था कि जैसे उन्होंने कई दशकों बाद चाय का स्वाद चखा है । उन्हें इस चाय की सख्त जरूरत थी ।

उन्हें इस तरह चाय के घूँट भरते देख वकील अपनी मूछों में मुस्करा दिया ।

बस थोङी देर और इंतजार करना पङेगा । फिर आपका बेटा आ जाएगा । जज साहब ग्यारह बजे सीट पर आते हैं । आपका केस दूसरे नम्बर पर लगा है ।

ठीक है वकील साहब ।

तब तक हजार रुपया निकालो । कुछ अस्टाम निकलवा कर लाने हैं ।

बग्गा सिंह ने चुपचाप जेब से हजार रुपये निकाल कर वकील को पकङा दिये । वकील पैसे मिलते ही अपनी फाइल बगल में दबा कर बाहर चला गया ।       

करीब दस मिनट बाद वह हांफते हुए भीतर आया –

सरदार साब पुलिस वाले आपके लङके को ले आये हैं । जज साब भी आ गये हैं । अब कुछ ही देर में आवाज पङेगी ।

और वह एक और फाइल बगल में दबाकर बाहर लपका । पीछे पीछे रानी और बग्गा सिंह लगभग भागते हुए चल पङे । सामने ही पुलिस के सिपाहियों से घिरा रविंद्र खङा था । उसका चेहरा कुम्हलाया हुआ था । हाथों में हथकङियाँ लगी थी जिसकी जंजीर एक सिपाही ने थाम रखी थी । बेटे को यूँ पशुओं की तरह जंजीर से बंधा देख कर रानी और बग्गा सिंह के कालजे में हूक सी उठी । क्या ये दिन भी देखना नसीब में था । क्या इसी दिन के लिए उन्होंने पाल पोस कर बच्चे को बङा किया था । रानी रविंद्र को गले लगाने के लिए लपकी तो सिपाही ने उसे बुरी तरह से डांट दिया – क्या करती हो बीबी जी । अभी जज साब की पुकार होने वाली है । आप एक तरफ होकर बैठो ।

फूट फूटकर रोती रानी को सहारा देकर बग्गा सिंह एक ओर ले गया ।

भलिए लोके , सबर कर । पुलिस का मामला है । यहाँ तो उनके हिसाब से ही चलना पङेगा न । हौंसला कर । सब ठीक हो जाएगा ।

मुझे बेटे से मिलना है – सुबकती रानी से बोला न गया ।

मिल लेना । अभी तो उसकी पेशी  है । बाद में मिलेंगे ।

रानी ने दुपट्टे के छोर से आँसू पोंछे और एक कोने में जाकर बैठ गयी । रोने का तो मन बग्गा सिंह का भी बहुत कर रहा है । भीतर बहुत कुछ घुमङ रहा है । पर वह मरद है न । तो कैसे वह यहाँ रो सकता है । अपने उमङते आँसुओं को उसने यत्नपूर्वक अपने गले में ही दबा रखा है । वह रानी के पास से हटकर वहाँ पहुँच गया जहाँ अहलकार लोगों को पुकार रहा था ।    

पहला केस किसी दहेज हत्या का मामला था । गवाहों और सबूतों को पेश करते हुए दो तीन घंटे लग गये होंगे । तब जाकर इस केस की बारी आई । पुलिस ने नलके की हत्थी हत्या में प्रयुक्त हथियार के तौर पर पेश की जिसे जमा कर लिया गया । बाकी कोई सबूत या गवाह ऩ पुलिस पेश कर सकी , न वकील । जज ने दोनों को सबूत और गवाह पेश करने के लिए डेढ महीने का समय दिया । अगली तारीख पङी बारह अप्रैल । तब तक विचाराधीन कैदी को जेल भेज देने का हुक्म दिया गया । पुलिस सिपाहियों ने  रविंद्र को अपनी जीप में बैठाया तो रानी दौङती हुई जीप के सामने आकर खङी हो गयी । शायद सिपाहियों को रानी पर तरस आ गया था कि उन्होंने जीप को ब्रेक लगा दिये । रानी ने रविंद्र का हाथ अपने हाथ में ले लिया । दोनों कितनी देर इसी तरह एक दूसरे का हाथ थामे रहे। कहने सुनने के लिए कितना कुछ था दोनों के पास पर लब जैसे सिल गये थे । अचानक एक हिचकोला लेकर जीप चल पङी और धीरे धीरे कचहरी के फाटक के पास पहुँच गयी । रविंद्र ने पुकार कर कहा – अपना ध्यान रखना बीजी और जीप आँखों से ओझल हो गयी ।

 

बाकी फिर ...