पिकनिक - 2 Kamini Trivedi द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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पिकनिक - 2


अंकित से मेरी बात आज पहली बार हुई वो भी कॉपी पर लिख कर हमने बात की । मैने उसकी आवाज़ नहीं सुनी थी । और कभी बात करने की जरूरत भी नहीं पड़ी ।
कॉपी पर हम बात कर लिया करते थे लेकिन पता नहीं क्यों मै उससे बात करने में कतराती थी और वह भी शायद थोड़ा घबराता होगा । इसलिए हमारी रूबरू बात नहीं होती थी । एक दिन मै अंजलि के साथ खड़ी थी तब आकर उसने अंजलि से कुछ नोट्स के बारे में बात की थी तब मैंने उसकी आवाज़ सुनी । बहुत सुरीली आवाज़ थी उसकी । वो सच में इतना धीरे बोलता था कि अंजलि से उसने क्या कहा ये बात समझने में मुझे ५ मिनट लग गए ।

फिर कभी कभी उसकी आवाज़ सुनाई देने लगी पता नहीं इतने दिन उसकी आवाज़ मैंने क्यों नहीं सुनीं या शायद सुनी हो पर ध्यान ना दिया हो और अब ध्यान जाने लगा हो।

देखते ही देखते पिकनिक का दिन भी आ गया। सुबह ६ बजे हमे निकलना था । मेरी मां ने मुझे ४ बजे से ही उठा दिया था । मै नहा कर तैयार होकर ५:३० बजने का इंतज़ार करने लगी । लेकिन वो समय ऐसे गुजर रहा था जैसे सदियों से मै किसी के लिए इंतज़ार कर रही हूं।
आखिर ५:३० भी बज गए मेरा इंतज़ार ख़तम हुआ । पिताजी मुझे छोड़ने स्कूल तक आए और मेरी टीचर जी से मेरा खयाल रखने की हिदायत देकर मुझे संभल के रहने का कहकर चले गए ।सभी बच्चे एक एक करके आने लगे। पर वो अब तक नहीं आया था। अंजलि भी आ गई ज्यादातर बच्चे आकर अपनी अपनी सीट संभाल कर बैठ गए । मैने तीन वाली सीट रोकी और खिड़की के पास वाली जगह रोक कर मै और अंजलि बैठ गए। मेरा दिल अब बेचैन हो गया था क्या वो नहीं आने वाला है।
६:१५ पर बस चल दी। मै अब उम्मीद छोड़ चुकी थी । मैंने अंजलि से कहा, "तूने तो कहा था कि अंकित भी पिकनिक पर आ रहा है। पर वो तो आया नहीं।"
"यार मुझे पता नहीं शायद उसे कोई प्राब्लम हो गई होगी। "
मै उदास हो गई और मुंह फुलाकर खिड़की से बाहर देखने लगी । घर पर इतनी लड़ाई करके पिकनिक पर आने का फायदा ही क्या हुआ । मेरा सारा उत्साह ख़तम हो गया। थोड़ी देर बाद कुछ ५ मिनट के लिए बस कहीं रुकी लेकिन मैने ध्यान नहीं दिया मै खिड़की के बाहर ही देखे जा रही थी ।
तभी मेरे कंधे पर किसी ने हाथ रखा ।
"अंजलि मुझे परेशान मत कर यार"
अंजलि ने कहा, "पर तुझे हुआ क्या है?"
मुझे अंजलि की आवाज़ थोड़ा दूर से आती हुई प्रतीत हुई लेकिन मैने अब भी उसकी तरफ नहीं देखा ।
फिर से उसने हाथ से मेरे कंधे को दो बार दबाया।
"क्या है अंजलि" कहकर जब मै पलटी तो मेरे और अंजलि के बीच में अंकित बैठा था । वह डर गया था कि कहीं गुस्से में मै उसे मार ना दूं। उसने अपने दोनो हाथ अपने गाल पर रखे । वह इतना मासूम लग रहा था कि मेरा दिल पिघल गया मै मुस्कुराने लगी । मेरा सारा गुस्सा उसे देख कर गायब हो गया था।

अंजलि भी मुस्कुरा कर मेरी तरफ देख कर बोली, "अब क्या हुआ मूड खराब था ना तेरा।"
मैंने उसे आंखे दिखाकर चुप रहने का इशारा किया। वह चुप तो हो गई लेकिन मुस्कुराए जा रही थी ।

"तुम स्कूल तो नहीं आए थे ना तो फिर?"
"दरअसल पिताजी ने स्कूल में फोन करके कह दिया था कि मुझे रास्ते में से ले ले । मेरा घर इसी रास्ते पर पड़ता है तो स्कूल जाकर धक्का खाने से क्या मतलब ।"
"ओह"
"क्यों,,,? तुम मेरा इंतज़ार कर रही थी?"
"नहीं,, नहीं तो" कहकर मैंने फिर से मुंह खिड़की कि तरफ घुमा लिया था । पर अब चेहरे पर मुस्कुराहट थी।
मैंने उसे खिड़की कि तरफ बैठने को कहा । उसने पूछा क्यों तो मैंने नहीं बताया कहा कि वो चाहे तो बैठ सकता है । असल में मुझे उसका अंजलि के पास बैठना अच्छा नहीं लग रहा था। मै चाहती थी वो बस मेरे पास बैठे।
कुछ देर में वो खिड़की की तरफ आ गया अब मैं अंजलि और उसके बीच में थी और मुझे अब अच्छा महसूस हो रहा था।
"जलकुकड़ी" अंजलि ने मेरी चाल समझ ली थी वह हंसते हुए बोली।
"चुप कर,, वरना तेरा मुंह नोच लूंगी" मैंने उसे कहा।
"हां मैं भूल गई थी तू सिर्फ जल कुकड़ी नहीं जंगली बिल्ली भी है " धीमे धीमे हम दोनों बात कर रहे थे और इतना कहकर अंजलि हंसने लगी ।
मैने उसकी कमर पर चिमटी काटी तो वह सिसक कर चुप हो गई।
हमारे बीच हुई बाते अंकित ने नहीं सुनी थी या शायद सून ली हो पर अनजान बन रहा था।

वो सफ़र मेरी जिंदगी का सबसे खूबसूरत और रोमांचक सफ़र था । पहली बात तो पहली बार मै अकेले कहीं जा रही थी और दूसरी बात कि वो मेरे पास बैठा था । कई बार बस के झटको की वजह से मै उससे टकरा जाती थी । या फिर उसके हाथो को मेरे हाथ छू लेते थे । शुरू में दो तीन बार ऐसा होने पर हमारी नज़रे टकराई और हम दोनों ने एक दूसरे को सॉरी भी कहा। लेकिन फिर तो जैसे उसकी आदत हो गई । नज़रे मिलती तो हम मुस्कुरा देते ।
पढ़ाई और जीवन को लेकर हमारी कुछ बाते भी हुई । और फिर आ गया पिकनिक स्पॉट।

सभी वहां उतरे। मैं ,अंजलि , अंकित और रमन हम चार लोगो ने अपना ग्रुप ही बना लिया था। क्योंकि हम बड़े थे तो टीचर्स ने हमें थोड़ी सी आज़ादी दे दी । आज़ादी इस बात की कि हम लोग जिस पार्क गए थे वहां की सारी राइड्स खुद कर ले और पार्क में घूम ले परन्तु हर दो घंटे में हमे टीचर जी से आकर मिलना होगा । इसका अर्थ ये था कि हम ज्यादा दूर कहीं जा नहीं सकते थे । पार्क से बाहर जाने की कोई अनुमति नहीं थी। इसलिए हम सब पार्क में घूमने लगे।

पार्क बहुत खूबसूरत था। अंदर ही ज़ू भी था । रमन और अंजलि एक दूसरे को पसंद करते थे और जैसे उन लोगो को तो साथ वक़्त बिताने का मौका मिल गया था वो हाथ में हाथ डाले आगे निकल गए । मै अंकित के साथ पीछे रह गई। अंजलि और रमन को हाथ पकड़ कर जाते देख अंकित ने मेरी और देखा मै थोड़ा असहज हो गई । वह मुस्कुराया और कहा, "चलो हम भी पार्क देख लेते है" कहकर वो आगे चलने लगा मैं उसके पीछे पीछे,,, एक पुल के करीब हम पहुंचे वह पूरा हरियाली से भरा हुआ खुबसुरत सा पुल था । ऐसा लग रहा था जैसे हम जंगल पहुंच गए हो । पुल झूलता हुआ था मुझे डर लग रहा था। टीचर जी ने सारे बच्चो को हिदायत दी कि संभाल कर जाना और दो घंटे बाद यही मिलो फिर हम दूसरी जगह चलेंगे।
मुझे उस पुल पर जाने से डर लगने लगा । एक एक करके लगभग सभी बच्चे उस पुल को पार कर रहे थे । बस मै डर रही थी । टीचर जी आगे जा चुके थे । अंजलि भी रमन के साथ चली गई थी सब उस पार जाकर घूम रहे थे और मै अब भी वही खड़ी थी । अंकित मेरे नजदीक आकर बोला "चलो मै हूं ना ,, डरो मत" इतना कहकर उसने अपना हाथ बढ़ाया। मैंने डरते हुए कहा ," मुझसे नहीं होगा अंकित कहीं और चलते है प्लीज़"
"सर का ध्यान सभी बच्चो पर है मानसी इस तरह हम दोनों का कहीं और जाना उन्हें सही नहीं लगेगा"
उसकी बात में दम था। मैंने डरते हुए उसका हाथ थाम लिया ।
उसने कहा," सिर्फ मेरी आंखो में या मेरे चेहरे को देखना नीचे मत देखना ।"
मैंने उसकी आंखो मै देखा ओर फिर से जैसे कहीं खो सी गई ।
अब वह मुझे जैसे चला रहा था मै बिना डरे वैसे चल रही थी ।हम उस पार पहुंच गए लेकिन मैने ना उसका हाथ छोड़ा ना ही उससे आंखे हटाई। उसने मुझे आवाज़ दी, "मानसी,,मानसी हम आ गए।"
मै एकदम से होश में आई," अरे वाह पता भी नहीं चला" कहकर मै खुश हो कर आगे बढ़ने लगी । वह मुस्कुरा कर पीछे पीछे आने लगा। आगे बहुत ही हरियाली थी । घने पेड़ और खूबसूरत सी जगह । सभी आगे बड़ चुके थे बस मै और वो ही पीछे रह गए थे । थोड़ा आगे जाकर मुझे फिर से डर लगने लगा घने पेड़ों की वजह से वहां कुछ अंधेरा सा लगने लगा था और वहीं एक गुफा भी थी । हमारे आगे एक दो बच्चे थे वो गुफा में घुस गए थे। बस मै और अंकित बाहर खड़े थे ।
"तुम बहुत डरती हो यार"
"मै नहीं डरती"
"तो चलो अंदर"
"कोई जानवर हुआ तो"
"जंगली बिल्ली के आगे किसकी चली है भला" उसने कहा।
"ओह तुमने मेरी और अंजलि की बाते सुनी"
"हां मै सिर्फ बोलता धीरे हूं लेकिन सुनाई मुझे औरो से ज्यादा देता है "
मुझे शर्म आने लगी।
उसने आगे आकर मेरा हाथ पकड़ कर गुफा में ले जाते हुए कहा।
" यहां अगर सर ने हमें आज़ादी से छोड़ा है मतलब यहां कोई खतरा नहीं है तो बिना चिंता और डर के घूमो "
उसका हाथ पकड़ना अब मुझे बहुत अच्छा लगने लगा।
उसने मुझसे कहा," मानसी कुछ कहूं तुम गुस्सा तो नहीं करोगी ना?"
मैंने ना में सिर हिला दिया।
"जब तुम्हे पहली बार देखा था तबसे तुम्हे बहुत पसंद करता हूं मैं। और ये भी जानता हूं कि तुम्हे भी मै तबसे ही पसंद हूं"
"तुमसे ऐसा किसने कहा?"
"तुम्हारी आंखो ने "
"मै जब पहली बार स्कूल आया तब तुम्हे डांट पड़ी थी मेरी वजह से। मै जानता हूं मै वजह क्यों था?"
मै शर्मा गई । वह मुस्कुराने लगा।
"मानसी , अंकित जल्दी आओ यहां" अंजलि की आवाज़ कानो में पड़ी । बात करते करते हमने गुफा भी पार कर ली थी । हम अंजलि और रमन के पास गए ।उसका हाथ थामने के बाद मुझे किसी चीज का डर नहीं होता था।

मै बहुत खुश थी । अंजलि ने मुझसे धीरे से कहा,"तुझे उसके साथ अकेला इसलिए छोड़ा था कि तू उसे अपने दिल की बात कर सके। की या नहीं?"
"पागल है क्या चुप कर" मैंने उसे झिड़कते हुए कहा।
हम चारों ने साथ बहुत अच्छा समय बिताया मैंने बहुत सारी राइड्स भी की उसके साथ अब उसका मेरा हाथ पकड़ना मुझे अच्छा लग रहा था । पूरा दिन साथ में बीत गया रात को रुकने कि व्यवस्था जहां की गई थी वहां हम गए । अगले दिन एक म्यूजियम देखने जाना था। लड़को के ठहरने की व्यवस्था अलग थी लड़कियों कि अलग । पूरा दिन उसके साथ घूमने के बाद अब उससे अलग होना मुझे अच्छा नहीं लग रहा था किन्तु अब अलग तो होना ही था। मै और अंजलि बाकी की लड़कियों के साथ सोने चले गए और वो लड़को और रमन के साथ ।

क्या होगा कहानी में जानेंगे अगले भाग में । ,,