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सुबह की धूप - समीक्षा

सुबह कि धूप -


शिक्षक समाज निर्माण कि धुरी होता है वह समय का साक्ष्य बनकर एव धैर्य धीर रहकर राष्ट्र के निर्माण में अपनी सर्वांगीण भूमिकाओं का निर्वहन करता है शिक्षक के अंतर्मन में वह सभी अवयव आयाम अध्याय हिलोरे लेते तूफान कि वेग से स्वंय कि अभिव्यक्ति एव प्रस्तुति करण के लिए आतुर बैचन रहते है ।शिक्षक के अंतर्मन कि अभिव्यक्ति राजनीति में होती है तब चाणक्य का अभिनंदन करते हुए समाज समय एक नए समाज एव एकात्म राष्ट्र के चन्द्रगुप्त का अभिनंदन करता है शिक्षक जब समाज को सात्विक आचरण कि अंतर्चेतना का सामयिक साक्ष्य बन नेतृव करता है तो वह सर्वपल्ली के रूप में विख्यात होता है ।शिक्षक मूल रूप से युग युवा उत्कर्ष अर्जुन देता है जो नीति नियत के नारायण के ही नेतृत्व में सकारात्मक परिवर्तन का वर्तमान बनकर स्वर्णिम प्रेरक इतिहास कि रचना करता है।सन्दीप कुमार सचेत शिक्षक कि उसी परंपरा का परम सत्य वर्तमान है जिनकी काव्य अभिव्यक्ति #सुबह कि धूप# मानवीय सरोकार कि संवेदनाओं समय परिस्थिति परिवेश के प्रति संकल्प का प्रतिबिंब है। विचलित होते मर्म धर्म मर्यादाओं से विरत होते सांस्कार संस्कृति से विमुख अभिलाषाओं कि मृगमरीचिका के रेगिस्तान में संसय में भगते दौड़ते एव असमंजस के अमर्यादित पराक्रम को दिशा दशा देती काव्य संग्रह है# सुबह कि धूप#

दिग दिगन्तर है तू से शुभारंभ करती जीवन कि चैतन्य सत्ता के जीवंत के प्रभा प्रभात का आवाहन करती मुस्कुराहट तक प्रभा प्रभात पराक्रम का शिखर दिवस एव उपलब्धियों के विश्लेषण कि संध्या कि सम्पूर्णता के छियालीस काव्य भावाभिव्यक्ति हृदय कि गहराईयो के शब्द स्वर हृदय स्पंदित करते बोध का अभिव्यक्ति अभिनन्दन है# सुबह कि धूप#

#इस उपवन पर मैंने देखा
जीवन का संगीत अनोखा
खोया था जो कोलाहल में
मैंने पाया उसको इस उपवन में।।#

वास्तविकता में मौलिक मूल्यों की अभिव्यकि का साहस शब्द ही नही है बल्कि यथार्थ के अस्तिस्त्व का अभिनंद है।

#आह भी न निकली न चीख सका कोई घुट -घुटकर सांसे और धड़कन धमने सी लगी #।

उड़ गए पंक्षी सभी ,तोड़ गए जंजीर प्रेम कि लूट गया सिंचित राग वन विराग हुआ अकेला वागवान आज।
सत्य संदर्भ भाव प्रसंग अनंतता कि गहराई लिए सच्चाई कि व्यवहारिकता का पथ प्रकाश है #सुबह कि धूप#।

शब्दो का सटीक संयोजन अभिव्यक्ति का ईश्वरीय संवेदना वेदना के प्राणि प्रकृति भाव का उजियार है# सुबह कि धूप# व्याकरण शब्दो के चयन एव सयोजन कि महारत कि महिमा कि अभिव्यक्ति है #सुबह कि धूप#
सारांश एव निष्कर्ष यही है कि सर्वश्रेष्ठ भवाभिव्यक्ति सर्वोत्तम शब्द चयन संयोजन एव संवेदना का स्वर शब्द है काव्य संग्रह #सुबह कि धूप#
मर्यादा संतुलन संवेदना का सारगर्भित समन्वय है सुबह की धुप शरीर मे प्रवाहित रक्त कण लालिमा जीवन की स्फूर्ति ऊर्जा का बोध तो प्रचंड वेग के पराक्रम का मध्यान्ह के उत्साह उमंग उत्साह का संचार करती तो अवसान कि लालिमा स्मरण कि धन्य धरोहरों की पूंजी एव जीवन पराक्रम परिणाम का बोध कराती है सुबह कि धूप भावना के जीवंत जनमेजय के आवरण को समाप्त करती साहस शक्ति का संचार करती संसय से बाहर निकालती उद्वेलित मन मस्तिष्क को शौम्य शीतला प्रदान करती काव्य धारा है सुबह कि धूप कवि कि अपनी भवनात्मक उद्देश्य के प्रेषण में सफल प्रस्तुति है सुबह कि धूप त्रुटि हीन एव वैचारिक बोध है सुबह कि धूप।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।

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