पथरीले कंटीले रास्ते - 6 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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पथरीले कंटीले रास्ते - 6

पथरीले कंटीेले रास्ते 

 

6

 

 

केस तो शीशे की तरह साफ था । अपराध के बारे में ज्यादा पूछताछ की कोई गुंजाइश न थी फिर भी पुलिस रिमांड तीन दिन की मिल गयी थी तो कोर्ट की पेशी के बाद रविंद्र को एक बार फिर से थाने में ले आया गया । उसे लाकअप में छोङ सिपाही चाय पानी पीने इधर उधर हो गये थे । थानेदार थोङी देर अपनी कुर्सी पर बैठकर कुछ कागज वगैरह देखता रहा फिर अपने घर चला गया । रविंद्र अपनी उस 6 * 8 की कोठरी में जमीन पर बैठकर अपनी स्थिति पर विचार करने लगा । आज उसका इस थाने में दूसरा दिन था ।  फर्क सिर्फ इतना था कि पहली बार वह स्वयं अपना अपराध कबूल करने थाने आया था और आज कोर्ट में जज साहब के हुक्म से उसे यहाँ लाया गया था । यहाँ उसे तीन दिन और रहना पङेगा । उसके बाद जो नसीब में लिखा होगा, वहीं होगा । उसे बदलने की क्षमता किसी में नहीं । अगर होती तो अमीर धन और शक्ति के जोर पर हर सुख अपने और अपनों के लिए हासिल कर लेते । सारे सुख, सारी सुविधाएँ अपनी मुट्ठी में दबा कर बैठ जाते ।  किसी गरीब तक सुख की एक झलक तक न आ पाती ।

सृष्टा ने कितनी खूबसूरत दुनिया बनाई है । सबके लिए इस धरती पर जगह है । सबके लिए भोजन की व्यवस्था कर रखी है । पेङों पर अपनेआप फूल और फल लगते हैं । खेतों में अपने आप फसलें उगती और पकती हैं । नदियों , दरियाओं में सदा पानी बहता है । हवा में कितनी आक्सीजन भर रखी है उस परमात्मा ने । हवा पानी धरती , आकाश सब कुदरत की देन है और सब को बिना किसी भेदभाव के एक बराबर मिलती है । जिसको जितनी जरुरत हो , ले ले । कोई कीमत नहीं । सब बेमिसाल । सब बेहिसाब । सब बेशकीमती ।  सबसे बढकर नींद का वरदान दिया है उसने । कितना भी कष्ट छाया हो । नींद आ ही जाती है और नींद के आँचल तले जाते ही आदमी सारी चिंताओं से मुक्त होकर निश्चित हो जाता है । सोचते सोचते उसकी आँखें मुंदने लगी और वह थोङी ही देर में सो गया ।

पता नहीं नींद उसे कितनी देर अपने आगोश में लिए रहती , सामने की दीवार में बनी खुली खिङकी से धूप उसके चेहरे पर पङने लगी थी । कुछ देर वह उसी तरह अलसाया सा लेटा रहा । बाहर थाने में सिपाहियों की हलचल शुरु हो गयी तो उसे लेटे रहना मुश्किल हो गया । एक सिपाही ने उसकी बैरक का दरवाजा खोला तो वह बाहर निकला । ओस में भीगे पत्ते व फूल बङे मासूम और खूबसूरत लग रहे थे । थोङा फ्रैश होकर वह फिर कोठरी में आ गया ।

थोङी देर में ही थानेदार थाने में आ गया था इसका पता उसे बुलाने आये सिपाही से लगा – चलो तुम्हें साब बुला रहे हैं ।

जी जनाब । वह तुरंत उठ खङा हुआ ।

चलिए ।  वह थानेदार के सामने पेश किया गया ।

सुन वह हत्थी कहाँ होगी जिससे तूने उस लङके को चोट मारी थी ।

वहीं होगी जनाब ।

और कोई तेरे साथ था उस दिन ?

कोई नहीं था जनाब ।

किसी ने तुझे हत्थी फेंकते य़ा लङते हुए देखा था ?

पता नहीं सर । वैसे वह बस अड्डा हमेशा भीङ भाङ वाला रहता है । सौ पचास लोग तो ऐवें ही इधर उधर  खङे रहते हैं । कई दुकानें हैं वहाँ ।

चल चलते हैं । हत्थी ढूँढ कर ले आते हैं ।

लङका थानेदार के पीछे पीछे चल पङा । जीप में बैठकर वे करीब बीस पच्चीस मिनट में रामपुरा के बस अड्डे पर पहुँच गये । पुलिस की गाङी देखते ही सब लोग अति व्यस्त होने या कम से कम दिखने के प्रयास में जुट गये ।

रविंद्र के हथकङी लगी थी तो वह भी संकोच से भर उठा । इस बस अड्डे और इसके आसपास के इलाके में उसका बचपन बीता था और आज वह अपराधी  की तरह यहाँ लाया गया था ।

थानेदार ने अपने सिपाहियों के साथ बस अड्डे का मुआयना किया । दो चार लोगों से पूछताछ की पर कोई घटना के बारे में जानकारी देने को तैयार ही नहीं हुआ । सबका कहना था कि कल वे यहाँ नहीं थे । उन्होंने तो उङती हुई खबर ही सुनी है , वे इस वारदात के बारे में कुछ नहीं जानते । जिस दुकानदार की दुकान से हत्थी बरामद हुई , उसका भी कहना था कि उस समय उसकी दुकान पर बहुत से ग्राहक बैठे थे और वह उनका सौदा निकाल कर दे रहा था इसलिए उसने कुछ नहीं देखा , न सुना ।

थानेदार ने सोचा कि थोङी देर बाद वह खुद अकेले आकर सबूत इकट्ठे करेगा । अभी हत्या का औजार लेकर लौट जाना ही ठीक है । उसने संकेत किया ।

संकेत पाते ही ड्राइवर ने जीप थाने की ओर मोङ ली । थाने पहुँच कर थानेदार ने रविंद्र से पूछा – तुझे कम्प्यूटर चलाना आता है ।

जी सर । थोङा बहुत ।

तो ले ये सात केस हैं । इनकी ऐंटरी करनी है । पहले वाले केस इसमें दर्ज हैं । उन्हें देख ले और इन सातों केसों को दर्ज करदे ।

जी सर ।

रविंद्र ने कम्प्यूटर खोला और केस दर्ज करने लगा । वह सिर झुकाये काम करता रहा । आखिर काम खत्म हुआ तो उसने दीवार घङी की ओर देखा । घङी सवा चार बजा रही थी । काम में उसे पता ही नहीं चला कि पाँच छ घंटे कैसे बीत गये । उसने एक भरपूर अंगङाई ली और थकावट दूर कर ताजा होने की कोशिश की । तभी उसे बापू की आवाज सुनाई दी । बाहर बापू अपने दोस्त बलराज के साथ सिपाही से बातें कर रहे थे । वह बाहर आया और अपने बापू के पैर छुए । बग्गा सिंह ने बेटे को छाती से लगा लिया । इन तीस घेटे में ही दोनों बाप बेटा बेहद कमजोर लगने लगे थे ।

बेटा तू घबराना मत . हम शहर का सबसे अच्छा वकील कर रहे हैं । उसका कहना है कि वह तुझे कुछ नहीं होने देगा । तू छूट जाएगा ।

उन्हें यूँ खुले में बाते  करते देखकर सिपाहियों को चिंता हुई कि कहीं साहब ने यह देख लिया तो वे क्या जवाब देंगे । वे रविंद्र को बैरक में ले जाने लगे ।

साब जी बच्चे के लिए रोटी लेकर आये थे । ये तो खा लेने दो । सर जी रहम करो । इसकी माँ ने बना के भेजी है ।

ठीक है , लाओ दो । दे देते हैं । अंदर कोठरी में खा लेगा । अब तुम लोग जाओ ।

सर जी कल मिलने आ सकते है  क्या

नहीं कल नहीं । परसों कचहरी में पेश करेंगे । अपना वकील करलो । वहाँ कचहरी में मिल लेना ।

जी सर जी ।

कंधे पर रखे परने से आँखें पौंछते हुए बग्गा सिंह को सहारा देकर बलराज थाने से बाहर ले आया । भारी कदमों से चलते हुए वे मुख्य सङक पर आ गये । सामने से एक प्राइवेट बस आ रही थी । उन्होंने हाथ दिखाया तो बस रुक गयी । वे दोनों बस में सवार हो गये । बस चल पङी । रास्ते भर दोनों में से कोई नहीं बोला । कहने सुनने को कुछ बचा ही नहीं था । जब तक रविंद्र घर नहीं आ जाता , तब तक चैन कैसे आएगा । परसों कोर्ट में न जाने क्या होगा । कोर्ट कचहरी का कोई सिर पैर नहीं होता । अचानक केस किधर चल पङे , कुछ नहीं कहा जा सकता । हे ईश्वर भली करना । मेरे बच्चे की रक्षा करना । उसके हाथ अपने आप जुङ गए ष