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गरीब की बेटी

गरीब की बेटी
पड़ोस वाले‌ शर्मा जी कि बहु दहेज मे कितना कुछ लेकर आई है और एक तुम हो जो अपने घर से खाली हाथ लिए हमारे पल्ले पड़ गयी " -प्रतीक की माँ ताने कसते हुए अपनी बहु से कहती है"।

मगर माँ जी आपको हमारे घर की हालत का तो पता है ना मेरे पिताजी बहुत गरीब है और फिर आपने और बाबूजी ने भी तो यही कहा था के आपको मेरे सिवा कुछ नही चाहिए । आपने ही कहा था कि लड़की हम दो जोड़ी कपडो़ मे ही ले जाएँगे - " विनिता अपनी सास से कहती है"।

विनिता एक गरीब किसान की बेटी है जिसकी शादी अभी दो महीने पहले ही पास के गांव के जमीनदार रामप्रसाद के‌ लड़के प्रतीक से हुई। प्रतीक बीए तक पढा़ है। जबकि विनिता अपने घर के खराब हालातो के कारण बारहवीं तक ही पढ़ पाई। मगर विनिता मे संसकारो का समावेश प्रतीक और उसके परिवार से कहीं अधिक था। जमीनदार के घर से जब विनिता के लिए रिशते की बात आई तो उसके माता पिता की खुशियो का ठिकाना नही रहा। उन्हें लगा कि उनकी बेटी के तो भाग खुल गए । शादी से पहले ऊँची ऊँची बाते करने वाले जमीनदार परिवार की असलियत का पता विनिता को शादी के बाद चला जब उसकी सास ससुर उसे दहेज के लिए परेशान करने लगे।
जब विनिता ने इसके बारे मे प्रतीक से कहा तो प्रतीक कहता है- " तो इसमे गलत बात क्या है माँ बाबूजी ठिक ही तो कहते है अगर हमने कुछ नही मांगा तो इसका ये मतलब नही के तुम्हारे पिताजी कुछ नही देंगे। उन्हें कम से कम हमारी इज्जत का तो ख्याल रखना चाहिए था। हम गांव के बहुत बड़े जमीनदार है"।

अपने पति का बदला हुआ चहरा देखकर विनिता सारी बाते चिट्ठी के जरिए अपने पिता को बताती है और उन्हें मिलने को कहती है। विनिता के पिता जब उससे मिलने उसके ससुराल जाते है तो विनिता के सास ससुर और उसका पति विनिता के पिता की बेज्जती करते है । विनिता के पिता उनसे कहते है कि वो कुछ भी करके उनकी सारी माँगे पूरी कर देंगे चाहे इसके लिए उन्हे कर्ज उठाना पडे़। विनिता अपने पिता से ऐसा करने से मना करती है। मगर उसके ससुराल वालो के सामने उसकी एक ना चली।

दिन गुजरते रहे और विनिता के ससुराल वालो का उसे प्रताड़ित करना और भी बढ़ता गया अब बात मार पीट पर आ चुकी थी। एक दिन जब विनिता को उसके गाँव मे रहने वाला मुहँबोला भाई मिला तो उसने बताया कि उसके पिता अपना घर बेचने की बात कर रहे थे तो उसके पैरो के नीचे से जमीन निकल गई। उसने एक चिट्ठी लिखी और अपने मुहँबोले भाई को दी और कहा यह चिट्ठी मेरे पिता को दे देना।
चिट्ठी जब उसके पिता के पास पहुँची तो उसने आन्नद ( विनिता का मुहँबोला भाई) को चिट्ठी पढ़ने को कहा।
आन्नद चिट्ठी पढ़नी शुरू करता है-
कर्ज से ना कंधे झुके, ना सर झुके शर्म से बाबुल तेरी बेटी तो अर्थी पर निकली है अपने घर से

नरेश बोकण गुर्जर

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