31 मार्च - वो दिन - 1 Amar Dayma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

31 मार्च - वो दिन - 1

अध्याय -1

मै रोज की तरहां घंटी लगने पर ही स्कूल के लिए कमरे से निकलता था क्योकि मेरा कमरा स्कूल के बिल्कुल सामने ही था, उस दिन मै निकला और रोज़ की तरहां ही दौड़कर स्कूल की दुसरी मंजिल पर बैंग रखकर वापस निचे प्रार्थना सभा में आना था।(हमारी कक्षा दुसरी मंजिल पर लगती थी)
उस दिन को मेरी जिंदगी का ऐतिहासिक दिन बनना था यह मेरे को तनिक भी ज्ञात नहीं था।
मै दौड कर जैसे ही एक हाथ से सिढ्ढीयो की रेलिंग को पकड़ कर दो-दो, तीन -तीन सिढ्ढया चढ रहा था, मेरी नजरें दौड़ने के कारण निचे पांवों की तरफ़ थी अचानक मेरी किसी मलमल के गद्दे जैसी किसी चीज से टक्कर हुए, मैंने देखा कि मेरी टक्कर से कोई गिर गया है और अचानक ऊपर देखने से मै भी फिसल कर गिर गया।
मुझे एक पल तो ऐसा लगा कि मेरी वजह से किसी माली के बगीचे का फुल मुरझा गया है
मैंने देखा कि वो स्कूल की सबसे सुंदर कन्या है जिसकी एक झलक के लिए सारी स्कूल के भंवरे आगे पीछे फिरते रहते थे
वह किसी से पेंसिल भी मांग लेती थी तो वह लड़का अपने दोस्तों को खूशी के मारे पेटिज की पार्टी देता था
उस परी का नाम था राधिका
राधिका से पहली बार मेरा आमना-सामना सिढ्ढीयो पर टक्कर के रूप में ही हुआ था
मुझे एक पल ऐसा लगा कि कोई स्वर्ग लोक की अप्सरा मेरे शरीर से टकरा गई है और उसके कोमल शरीर का मेरे को ऐसा अनुभव हुआ जैसे कोई फूल की अर्द खिली कली मेरे से टकरा गई हो
मै ख्यालो की दुनिया से बाहर आते ही तुरंत दूर हटा, वो बिना कुछ बोले ही प्रार्थना स्थल पर निचे चली गई।
मै अपनी कक्षा में बैंग रखकर प्रार्थना सभा की तरफ़ आने लगा तो मुझे महसूस हुआ कि मेरे पांव जम गये है मैं स्टूल पर बैठ गया मेरा सारा शरीर पसीने से भीग गया था, मेरी हार्ट बीट 72 से 144 हो चुकी थी, मेरी हिम्मत कक्ष से निकल कर, निचे प्रार्थना सभा तक जाने की नहीं हो रही थी मुझे डर था कि राधिका किसी को इस अनचाही टक्कर के बारे में बोल ना दे।
दबते, छिपते मैंने 20 दिन निकाल दिए।
एक दिन जैसे ही मै रोज की तरहां बैंग रखने कक्षा में गया तो वहां पर मेरे को राधिका मिली, उसने कहा कि अमर आप मेरे से क्यों छुपते फिर रहे हो, मैं आती हूं तो आप रास्ता बदल लेते हो इंटरवेल में, मै कक्षा में बैठी रहती हू तो आप निचे चले जाते हो और मै निचे आती हूं तो आप ऊपर कक्षा में चले जाते हो,
मैंने कहा राधिका मेरे को माफ कर दो, मै गलती से आप पर गिर गया था, मै जल्दी बाजी में सिढ्ढिया चढ रहा था और मेरी नज़र निचे थी इस कारण मै आपसे टकरा गया, मुझे माफ कर दो राधिका मै ऐसी ग़लती फिर से नहीं करूंगा
राधिका, आप चाहो तो मेरे को कोई भी सजा दे सकती हो पर सर से मत बोलना।
राधिका ने कहा कि ठीक है तो, अभी आपके केस की फाइल लंबित है और मै आपको कभी भी सजा सुना सकती हू
जैसे एक आरोपी जज के सामने गर्दन हीलाता है वैसे मैंने हा मे गर्दन हीला दी
वो निचे प्रार्थना सभा में चली गई।...