पावागढ़ मंदिर - भाग 2 Neelam Kulshreshtha द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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पावागढ़ मंदिर - भाग 2

एपीसोड --2

अजमेर के मेयो कॉलेज में पढ़े कर्ण ग्रोवर को ग्यारह वर्ष की उम्र से कार्ड बोर्ड के घर बनाने का शौक था। मुम्बई में अपने पिता की फ़र्म में ना काम करके उन्होंने वडोदरा में आर्किटेक्चर की डिग्री स्वर्ण पदक लेकर प्राप्त की। व इसी शहर में बस गए।अपनी फ़र्म स्थापित कर्ण ग्रोवर एशोसिएट्स करके अनेक विशाल कलात्मक बंगले बनाकर इस शहर को दिए।

श्री कर्ण ग्रोवर को तैराकी का शौक था। उन दिनों पुरातत्त्व विभाग के अध्यक्ष श्री आर. एन. मेहता विश्वविद्यालय के स्वीमिंगपुल के इंचार्ज थे। वे ग्रोवर से बेहद प्रभावित थे. गुजरात की मध्यकालीन युग [पंद्रहवीं व सोलहवीं शताब्दी] की राजधानी पावागढ़ चांपानेर, वडोदरा से ४७ किलोमीटर दूर थी। सन १९६९ में श्री मेहता कर्ण जी को उसे दिखाने ले गए व प्रेरणा दी, " एक आर्कीटेक्ट सुन्दर मकान बनाये और करोड़ों रूपये कमाए ये बड़ी बात नहीं है. बड़ी बात ये होगी कि तुम चाम्पानेर के जीर्णोद्धार की ज़िम्मेदारी लो। " ये जीर्णोद्धार कैसे करना है ये बात कर्ण जी के दिमाग में स्पष्ट नहीं हो पा रही थी लेकिन एन जी ओ 'हेरिटेज ट्रस्ट 'के गठन के बाद ये यूनेस्को से इस सम्बन्ध में निरंतर पत्र व्यवहार करते रहे.

भारत में रचे गए इस इतिहास का हेरिटेज ट्रस्ट द्वारा किये गए जश्न में मैं भी शामिल हुई थी। तब पता लगा था यू एन ओ में दस्तक देने का प्रयास इतना आसान नहीं था। ट्रस्ट ने कुछ वर्षों तक लगातार चांपानेर में आमंत्रित अतिथियों के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करके जैसे मल्लिका साराभाई का नृत्य या कोई नृत्य नाटिका करके ये बात प्रमाणित की कि यहां वहां फैले किले व आस पास की ऐतहासिक इमारतों को सरंक्षण की ज़रुरत है. गुजरात में रहने वाला हर बुद्धिजीवी गांधीजी के विचारों में और रंग जाता है कि समाज का कोई भी लाभ सबसे पहले समाज के निचले दर्ज़े पर रहने वाले अंतिम व्यक्ति तक पहुंचना चाहिए। इसलिए ये ट्रस्ट कोई भी शो बाहर वालों को दिखाने से एक दिन पहले आस पास के गाँवों को आमंत्रित करके दिखाता था। इनके प्रयास से एक बड़ी सफ़लता हासिल हो ही गई।

वड़ोदरा में रहते हुए अनेक अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त व्यक्तित्व वाले लोगों से मिलकर मेरा अपना अनुभव रहा है कि ऐसे लोगों की एक अलग समर्पित निष्ठा होती है व उससे भी ऊपर एक जीवन दर्शन होता है जो कि दुनियाँ की महान हस्तियों के विचारों से प्रभावित होकर बनता है.कर्ण जी बतातें हैं, ''सदियों पहले सुकरात ने इमारतों की ख़ूबसूरती के बारे में कहा था कि जो इमारतें बेदिली से बनाई जातीं हैं वे ख़ामोश होती हैं, जो कुछ रूचि से बनाई जातीं हैं वे बोलतीं हैं और जो दिल से, कलात्मकता से और दिमाग़ से बनाई जातीं हैं, वे गातीं हैं. मेरी आस्था ऐसी ही गाती हुई इमारतों पर है. यूरोप से आयातित शब्द 'ग्रीन बिल्डिंग 'सुनने को मिलता है तो मैं कहना चाहूंगा कि प्राचीन काल में ही भारत के महाराजाओं ने ऐसी सुविधापूर्ण, पर्यावरण को संतुलित करती हुई इमारतें बनवाईं थीं कि लगता था कि वे गा रहीं हैं। तभी लोग इन्हें देखने जाते हैं। इनकी सबसे ख़ास बात ये है कि इन पर मौसम का बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। ये आज के आधुनिक मकानों से अधिक ठंडी व आरामदायक हैं। प्रमाण स्वरूप ताजमहल को लिया जा सकता है। सैकड़ों सालों से मौसम जिसका बाल बांका भी नहीं कर सका था। ये बात और है कि औद्योगीकरण उस पर बुरा प्रभाव डाल रहा है। जैसलमेर की प्राचीन इमारतों में पत्थर की जाली का बहुत इस्तमाल है। होता ये है कि गरम हवा छोटी गोलाकार जाली से बाहर निकलती है तो दवाब के कारण ठंडी होकर अंदर जाती है। आजकल के मकान इस तरह बनवाने चाहिए कि मकान के अन्दर आने से पहले हवा ठंडी हो जाए। ये ठंडी होकर जब एयरकंडीशनर में जाएगी तो बिजली कम खर्च होगी। "

इसी बात को ध्यान में रखते हुए हैदराबाद के सोहराबजी ग्रीन बिज़नेस सेंटर की इमारत की ऊर्जा आपूर्ति का २० प्रतिशत सौर ऊर्जा से किया गया है। इसमें 'विंड टावर्स 'व'स्क्रीन वाल्स 'बनाई गईं हैं, जिन्हें पानी की सप्लाई से ठंडा रक्खा जाता है। सारे बिज़नेस सेंटर का प्रदूषित पानी एक स्थान पर जमा किया जाता है। इस गंदे पानी का टोएफ़ा घास द्वारा 'रुट ज़ोन ट्रीटमेंट'करके यानि शुद्ध करके इमारत से बाहर भेज जाता है।"

गुजरात के नवसारी में इनकी बनाई कीनडियम डायमंड फ़ैक्ट्री को यू एस -जी एस बी अवॉर्ड दुनियाँ की ग्रीनेस्ट फ़ैक्ट्री होने के लिए सन २००८ में मिला था।

डॉ.अब्दुल कलाम जी ने इन्हें राष्ट्रीय पर्यायवरण अकेडमी का परमेनन्ट ऑनररी फ़ेलो नियुक्त किया था।

अमेरिका के राष्ट्रपति श्री बिल क्लिंटन ने न्यूयॉर्क विशेष रूप से निजी तौर पर क्लिंटन ग्लोबल इनिशिएटिव में बोलने के लिए आमंत्रित किया था।

ऐरा फ़ेम अवार्ड 'बेस्ट आर्कीटेक्ट ऑफ़ द ईयर 'पुरस्कार सन २०१३ में सुन्दर व कलात्मक घर बनाने के लिए।

मीडिआ -जिसमे प्रिंट मीडिआ व इलेक्ट्रॉनिक मीडिआ दोनों शामिल हैं व अन्य अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय पुरस्कारों की संख्या गिनाना संभव नहीं है लेकिन अलग अलग सामारोह में लोग इन्हें 'ग्रीन गुरु ', 'मैन ऑफ़ टेस्ट', 'करिश्माई क्रूसेडर 'या इक्कीसवीं सदी के पांच सौ भविष्यद्रष्टा में से एक 'बताते हैं, जिनमें दलाई लामा व बिल क्लिंटन शामिल हैं।

इनके ड्रेसिंग सेन्स को देख लोग कहने से नहीं चूकते कि ये भारत के सबसे अधिक पचास स्टाइलिश पुरुषों में से एक हैं.जिनमे अमिताभ बच्चन भी शामिल हैं।

जब कोई एशियाई दुनियाँ फ़तह करता है तो उससे पहले चोट भी उतनी गहरी खाता है। हुआ ये था कि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू व जमशेद जी गॉडरेज यहां एक 'ग्रीन बिल्डिंग' बनाना चाहते थे इसलिए ग्रोवर जी को आमंत्रित किया गया था।

वे बतातें हैं, "बिल क्लिन्टन के आमंत्रण पर मैं वाशिंगटन गया था। वहां के एक अधिकारी ने 'ग्रीन बिल्डिंग' का परिचय तो दिया लेकिन उसके गोरे चेहरे के व्यंग से लग रहा था कि वह कह रहा हो कि तुम भूरी चमड़ीवाले क्या समझोगे कि 'ग्रीन बिल्डिंग 'क्या होतीं हैं ?उन्हें बनाना तो दूर की बात है। बस तब मैंने अपने आप से एक वायदा किया कि मैं भारत में भारतीय वास्तुशिल्प कला का उपयोग करके दुनियाँ की सर्वश्रेष्ठ ग्रीन बिल्डिंग बनाकर दिखाऊंगा। जिससे दुनियाँ को पता लगे कि भारत में युगों पहले से 'ग्रीन बिल्डिंग्स 'बनीं जातीं थीं। मैं निकोलस हंफी की बात पर विश्वास करता हूँ कि प्रकृति के बीच में जाकर उसकी संरचना व उससे मानव सम्बन्ध को समझना चाहिए।वहां से लौटकर जब भी कोई आर्कीटेक्ट ड्राइंग बोर्ड पर डिज़ाइन बनाता है तो बनावटी चीज़ें पीछे छूटती चली जातीं हैं। घर प्राकृतिक सुंदरता से तालमेल बना कर बनता है। "

बड़ौदा उर्फ़ वड़ोदरा उर्फ़ संस्कार नगरी की मेरे लिए वह सन २००४ की अविस्मरणीय मकर संक्रांति जब शहर के सुप्रसिद्ध आर्कीटेक्ट श्री कर्ण ग्रोवर ने शहर के कलाकारों व बुद्धिजीवियों को अपने वीडिओ क्लिप शो 'खिसकोली उवाच' मे आमंत्रित किया था क्योंकि उन्हें सन २००४ में सोहराबजी ग्रीन बिज़नेस सेंटर को पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से दुनिया की सर्वश्रेष्ठ इमारत घोषित करते हुए उन्हें प्लेटिनम पुरस्कार से पुरस्कृत किया था। विशेष बात ये थी कि दुनिया के वे पहले आर्कीटेक्ट थे जिन्हें ये पुरस्कार मिला था।अद्भुत था उस अँधेरे सभागृह का वातावरण, जब वीडिओ क्लिप शो नए ही आरम्भ हुई थे।

लोग दम साधे कर्ण जी को सुन रहे थे। जिनका कहने का आशय ये था, "जब छोटे आकार वाली खिसकोली यानि कि गिलहरी भी अपना घर अक्सर पहाड़ी की दक्षिणपूर्वी ढलान पर, आस पास पास पानी व हरियाली देखकर बनाती है तो मनुष्य को भी सोच समझकर अपना घर बनाना चाहिए।वह कभी भी चट्टानों के पास घर नहीं बनाती जहां सांप जैसे दुश्मनों के निकलने का खतरा हो। "

उन्होंने भारत के किले, महल की तस्वीरें स्क्रीन पर डालनी आरम्भ कीं व बताया, "मैं दुनियाँ की सर्वश्रेष्ठ बिल्डिंग इसलिए बना पाया क्योंकि मैंने सोचना आरम्भ किया कि हमारी प्राचीन इमारतों का वास्तुशिल्प क्या है जो आज तक बहुत मज़बूती से खड़ी हुई हैं । ईरान के बुद्धिजीवी जमाल-ए -अहमद ने कहा है कि पूर्वी एशियाई देश बिना सोचे समझे पश्चिम का जहरीलापन अपनाये जा रहे हैं अर्थात वहां के कृत्रिम व मध्यम दर्ज़े के वास्तुशिल्प को अपनाये जा रहे हैं। इस बात का मनन करना होगा कि जब हमारा वास्तुशिल्प इतना समृद्ध है तो हम खोखले पश्चिमी वास्तुशिल्प की तरफ़ क्यों भागें ?"

चांपानेर इस जीर्णोद्धार के बाद आज यहां के जंगल में खुदाई के बाद ३९ ऐतहासिक इमारतों व एक वृहद आर्किओलॉजीकल पार्क का दर्शनीय स्थल बन चुका है जिसमे मुस्लिम, जैन व हिन्दू स्थापत्य देखते ही बनता है।

ये मोदी विज़न है कि पावागढ़ के मंदिर के ऊपर से मजार हटाकर उसका सुंदर पुनर्निमाण करवाया है।18जून 2022को मोदी जी ने मंदिर पर पताका फहराकर इस नये मंदिर का उद्घाटन किया था।

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श्रीमती नीलम कुलश्रेष्ठ

e-mail –kneeli@rediffmail.com