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आख़री बात

कभी कभी तो मुझे लगता था कि माँ के बारें मे वह सब अल्फाज़ झूठ ही होते हैं जो किताबों मे लिखे होते हैँ।। जो लोग अक्सर सोशल मीडिया पर वाइब्स् बना कर डालते हैँ।। माँ ऐसी होती है।। माँ वैसी होती है।। मेरी माँ मे तो आज तक मेने वह ऐसा कोई गुण नहीं देखा था जो मेने सुना और पढ़ा था।

पापा तो बचपन मे ही चल बसे थे इसलिए बाप का अक़्स क्या होता है यह तो मुझे मालूम ही नहीं था लेकिन एक माँ थी वह भी गोया बस नाम की माँ थीं।। जिनके साथ रहकर कभी लगा ही नहीं कि मेरे पास भी माँ है।। उस औरत को तो दौलत से इतना प्यार था कि मेरे और छोटी बहन की के पास बैठना उसे बोझ लगता था।।

बस ऑफिस और मीटिंग्स मे ही उनकी तवज्जोह थी और उसी तरह ज़िंदगी गुज़र रही थी।।

काश मेरे पास भी वैसी माँ होती।। मेरे साथ खाना खाती..मुझसे बातें करती..मै भी अपना कुछ शेयर करती लेकिन अब तो मेरा भी जी उनकी मौजूदगी से उचाट हो गया था। मै भी अब ज़्यादातर लेपटॉप पर फेशन डिज़ाइनिंग करती … सोशल मीडिया पर रहने लगी थी।। अब मुझे उनके होने से कोफ्त होती थी। अब मुझे भी तब अच्छा लगता जब वह घर से बाहर होती।

मै बीस साल की थी और रुमाना मेरी बहन अठारह साल की हो चुकी थी। रुमाना भी माँ की छवि से अंजान थी और उसे मेने ही हमेशा अपने साथ रखा था लेकिन अब वह बहुत अजीब सी रहने लगी थी। मेरे साथ भी कम बैठती बस अपने दोस्तों के साथ बाहर् जाना और घूमना।। वह अक्सर लेट नाईट वापस आती थी।

माँ या तो ऊस वक्त सो चुकी होती या फिर खुद भी किसी मीटिंग की वजह से बिज़ी होती मगर बकरे की माँ कब तक खेर मनाती।।?

आज माँ शाम से ही घर मे थी। मेने रुमाना को कई बार कॉल्स की मगर वह जानबूझ कर फोन नहीं उठाती थी।। रात को वह वापस आई और उस वक्त नशे मे धुत्त थी। मै भी इस वक़्त उसे इस तरह नशे मे देखकर हैरान रह गई। अब वह अलग कमरें मे रहती थी और रात मे मुझे भी नहीं पता होता था वह किस हाल मे वापस आ रही है??

माँ का तो उसे देख कर बी पी हाई हो गया।।

"यह क्या हालत बना रखी है तुमने अपनी?" माँ ने उसे रोका तो वह उन्हें नज़र अंदाज़ करती अपने कमरे मे जाने लगी थी मगर माँ ने उसे झटके से रोका तो उसने भी झटक दिया।


"तुम कौन हो? मुझसे यह पूछने वाली? यह मेरी लाइफ है और मै इसकी इम्पोर्टेन्स जानती हुं।अपने काम से काम रखो" रूमाना ने बेहद रुखाई से कहा और कमरें मे चली गई।उसके अलावा भी उसने आज सब कह दिया था जो उन्होंने बचपन से हमारे साथ किया था।। दोनो मे जमकर लड़ाई हुई थी।।माँ की आँखों मे ऐसी हैरानी थी जैसे उन्होंने कयामत आते देख ली हो। उनके सामने यह भेद पहली बार खुला था शायद कि उनके बच्चे उनसे बात भी करना पसंद नहीं करते।। मै भी एक तरफ हाथ बांधे खड़ी थी। आज रूमाना ने कुछ ही लफ्ज़ो मे वह कह डाला था जो मै नहीं कह सकी थी।


"यह क्या हो गया? मै तो तुम्हारे भरोसे ओर उसे छोड़ती थी। यह किस रास्ते चली गई वह? मुझे झटकती है वह। मुझे कहती है मेने ख्याल नहीं रखा?" माँ सदमे मे बोलती वहीं एक चेयर पर बैठ गई थी।

"अरे अगर मेने ख्याल नहीं रखा होता तो मेरे पेट मे ही मार दिया होता तुम्हारे दादिहाल वालों ने तुम्हें दोनों को। दो बेटिया होने पर जो लोग मुझे आग में जला रहे थे मै भागी थी वहां से अपनी बच्चियों को लेकर। दिन रात काम करती रही। ना अपनों नींद देखी ना दिन का चैन देखा बस देखा तो तुम दोनो का फ्यूचर। मेरी बेटियों को कभी यह ना लगे कि उनकी मां उनका बाप नहीं बन सकी। अमेरिका से शॉपिंग.. यह वाला लेपटॉप.. वह वाला मोबाइल.. यह वाली वॉच.. तुम जसलिए खरीदती हो क्योंकि मै दिन रात मेहनत करती हुं। महंगे क्लब मे जहाँ से ये ड्रिंक करके आई है वहां मेरा कमाया हुआ पेसा भर कर धुत्त होकर आई है वरना इसको धक्के मार कर निकाल् देंगे वह लोग।" वह रो रही थी। मै खामोश खड़ी थी।

"दिल करता था कि मै भी तुम लोगो के साथ बैठबकर नाश्ता करु.. खाना खाऊ..लेकिन मेरे पास वक़्त ही नहीं था। अपना दिल अपने जिस्म की क़ब्र मे दबाए दुनिया मे जी रही थी वक तुम दोनों की खातिर।। अब नहीं जीना मुझे।और तुम? तुमसे तो मेने कहा था कि उसका ख्याल रखना यह ख्याल रखा उसका तुमने?" वह अब भीगी आँखों से मुझे ग़ुस्से के साथ देख रही थी। मै उन्हें क्या बताती कि जो कुछ आज रूमाना ने कहा है वह सब तो मेने ही उसके दिमाग़ मे डाला है।। मेने ही उसे हर वक्त बताया था कि मा हमसे कोई प्यार नहीं करती।। उन्हें पैसे से प्यार है लेकिन मेने यहाँ नहीं सोचा था कि पैसे जो प्यार था वह भी मेरे और रूमाना के लिए था।

जिसने हम दोनो की खातिर अपना घर छोड़ दिया और जो हमारे लिए दुनिया से लड़ गई थी उसे यह मेने क्या समझ किया था।। मेने सोचा ही नहीं कि लोगों के पास एक पापा और एक मम्मा होते हैँ हमारे पास दोंनो रूप एक ही इंसान के अंदर थे। तो कहीं ना कहीं चूक होना लाज़मी थी। कोई एक से दो किरदार कैसे निभा सकता है मगर मेरी मा निभा रही थी।। हमें अच्छी ज़िंदगी देने के लिए वह मां कम बाप ज़्यादा बन गई थी ताकि हमारी एक भी ख्वाहिश अधूरी ना रहे। मै शर्मिदा थी।।जल्दी से उनकी तरफ बढ़ी मगर अचानक से झटका खाकर गिर गई। शायद मुझे ज़ोरदार चक्कर आया था। नहीं मगर.ऐसा नहीं था।।

मा भी हवन्नक सी उठकर इधर उधर देख रही थी।। घर की हर चीज़ हिल रही थी। जैसे कोई उसे धक्का लगा रहा हो।


"मा।" मै चीखी थी।। शायद जल्ज़ला आया था।। शायद नहीं हां जल्ज़ला आया था। जैसे अचानक सारा माहौल ही बदल गया था।।

दीवारो से रेत सा गिरने की आवाज़े आ रही थी। ज़लज़ला बहुत ज़्यादा तेज़ था। घर मे रखे फलावर पॉट.. और बाक़ी सजावटी सामान इधर से उधर लुढ़क रहा था और ऊस जल्ज़ले की बहुत ही अजीब सी आवाज़ थी। पहले तो लगा था कि शायद रुक जायेगा लेकिन जब उसकी रफ्तार बढ़ती चली गई थी तो मेरे हलक से दहशतनाक चीखें निकलने लगी थीं।। रूमाना का भी गोया सारा नशा उतर गया था। मै जैसे अंधी सी हो गई थी मगर फिर भी टटोल टटोल कर सब महसूस कर रही थी।


दीवारो मे दरारें पड़ रही थीं।। पुरा घर जैसे गिरने वाला था।। इतनी ज़ोर से तो स्विंग भी नही हिलता था। नफासत से शा सारा सामान बेआसरा होकर बिखर रहा था। सिर ऐसा लगा रहा था बस अब किसी तरफ बेजान बर्तन की तरह लुढ़क जाएगा। सिर्फ हमारे घर मे ही नही बल्कि बाहर बिल्डिंग को सड़क से भी लोगों के चीखने चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी।।

ऐसे में बस मां थी जो हड़बड़ाती और दहशत मे भी घर की चाबी लेकर दरवाज़े की तरफ भाग रही थी।। उसने मेरा हाथ पकड़ा हुआ था और मेने रुमाना का। हम सब ज़िद्ँगी के आख़री कोने पर खड़े थे कब किसका पेर नीचे खिसक जाए कुछ नहीं पता था।।


खिड़की से अपने सामने वाली बड़ी सी बिल्डिंग गिरते देख कर रूमाना और मै ख़ौफ़ और सदमे से पागल हो गये थे।। जैसे हम दोनो छोटी छोटी बच्चिया थी और अपनी मां के अंदर अपनी ज़िद्ँगी के कोई पल या कोई ऐसी बात को ढूढ़ने की कोशिश कर रहे थे कि मां एक वार कह दे यह महज़ एक कहानी है। जैसे परियो की कहानी होती है यह कयामत की कहानी है।मगर यह झूठ नहीं थी।। कयामत भी झूठ नहीं थी और यह सब कुछ भी किसी कयामत जैसे ही था।।


"बस।। मै हुं ना।।" मां ने जल्दी जल्दी दरवाज़ा खोला।।

बाहर महज़ धूल दिखाई दे रही थी।। लोगों की मौत का दहशतनाक शौर था बस जो उस गहरी रेत की धुंध मे महसूस हो रहा था।।।कौन किधर भाग रहा था कुछ नही पता था बस इतना पता था कि भागना है।


"जल्दी से निकलो दोनों।।" ज़ीनो मे भी बहुत तेज़ी से दरारे पड़ती जा रही थीं।। घरों के टूटने की आवाज़े कान चीरे दे रही थी।।

मै और रुमाना आगे आगे भाग रहे थे हमारे साथ और भी बिल्डिंग के लोग बाहर भागने की कोशिश कर रहे थे। जाने हमें ऐसा क्यों लग रहा था कि घर से निकलेंगे तो बच जाएंगे जबकी बाहर की ईमारते भी लगातार गिर रही थीं।

ज़मीन का गी दिमाग ठिकाने पर नहीं था तो वह कैसे खुद की गोद मे किसी को संभालती??

ज़ीना बुरी तरह अजीब आवाज़ के साथ किसी बोसिदा पुराने कपड़े की तरह चिरता चला गया था।

मां ने सबसे पहले हम दोनो को दूसरी तरफ धकेल दिया था और खुद उस तरफ रह गई।

"मां।।जल्दी आओ" मै बुरी तरह चीखी।।

मां कोशिश कर रही थी मगर उन्होंने जब देखा कि अब बहुत मुश्किल है उनका कूद पाना और बीच मे गेप बढ़ता जा रहा है तो उन्होंने हम दोनों की तरफ देखा।

वह जैसे उनका आख़री बार था हम दोनो को देखना।


"मै तुम दोनों से बहुत प्यार करती हुं। मुझे मुआफ कर देना" उसका रेत की गहरी परतो से ढका चेहरा भी ऐसा था कि मै और रुमाना बुरी तरह तड़प उठे।। उस वक़्त दिल मे ऐसी आग थी कि काश हम दोनों उसी मे सुलग कर मर जाते।

गेप गहरा होते होते बाक़ी जगह भी टूटने लगी थी।


"एक दिन मेने तुम दोनो को बचाया था ताकि तुम अपनी ज़िंदगी जी पाओ। मै तुम्हें जीते हुए देखना चाहती हु। जाओ यहाँ से। तुम्हें मेरी क़सम।" यह बात मां की आखरी बात थी।।

हां मुझे आज भी याद थी। जब इस बात को दस सल गुज़र गये थे। वह ज़लज़ला हमारी ज़िंदगी को पूरी तरह बदल गया। मै और रुमाना पूरे तीन मलबे मे दबे रहे।। मा को अपनी आँखों से मरते देखा। उनको शायद हमसे पहले निकाल किया गया था और लावारिस कर दिया गया था।

आज हम दोनों के पास अच्छी जॉब है।। हस्बेंड है.. बच्चे है।

बच्चे?? हाँ आज हम जानते है कि मां हमसे कितना प्यार करती थी क्योंकि आज हम भी अपने बच्चो से इतनी मोहब्बत करते है कि दुनिया की सारी अच्छी चीज़े उन्हें तोहफ़े मे दे दे मगर फिर भी चूक जाते हैं लेकिन मेरी मां कभी नहीं चूकी थी।। उसने अपनी ज़िंदगी को हमारे लिए सब तरफ से पैक कर लिया था। अपने लिए कभी कोई खशी नही मांगी और हमने उसे समझा ही नही। मा बाप की क़ीमत उनके जाने के बाद ही क्यों समझ आती है? उस जल्ज़ले मे लाखो लोग बेघर और तबाह हो गये थे मगर सबसे बड़ा खसारा मेरा हुआ।

मां जाते जाते कह गई कि वह हमसे प्यार करती थी लेकिन मै उसे कभी नहीं बता पाई कि मै उससे कितना प्यार करती थी और मुझे उसकी कितनी ज़रूरत थी?

मां बाप चाहे पास हो या दूर मगर् अपनी औलाद को हमेशा अपने दिल मे बसा कर रखते है। वह कहे या नहीं कहें लेकिन उनके लिए सबसे ज़्यादा मायने रखते हैं हम लोग।। जिन्हें उन्होंने पाला होता है।। काश यह सब उनके सामने समझ आ जाता।। वह हमारे पास नहीं आती थी हम तो उनके पास जा सकते थे।। वह थकी हुई आती थी। उनका सिर दबा सकते थे.. उनके पैरों पर मसाज कर सकते थे।। वह भी तो बचपन मे हमारे सारे काम करती थी मगर नहीं।। हम सब कुछ सिर्फ अपने मा बाप से एक्स पेक्ट करते हैँ क्योंकि उन्होंने हमे जन्म दिया लेकिन हम कभी यह क्यों नहीं सोचते कि हमें भी उनका ख्याल रखना चाहिए जिन्होंने हमें जन्म दिया।।

मां भी कभी सोचती होगी कि किसी दिन हम दोनो उसे सरप्राइज़ दे दे उसका बर्थडे प्लान करके। कभी तो खाने के लिए उसका वेट करते शायद अगली बार से वह वक़्त से आने लगती क्योंकि खुद भूखी रह सकती थी मगर हम भूखे ना रहे।। कितने काश थे जो आज तक मेरे सीने मे टूटे हुए शीशो की तरह घुसे हुए हैँ और मै चाह कर भी उन्हें निकाल नहीं पाती हु।।

मां की वह आख़री बात आज भी मुझे सोने नहीं देती काश मै भी पलट मे उसे कह सकती कि मुझे भी तुमसे प्यार है लेकिन वक़्त ने मौक़ा नही दिया और जब मौक़ा था तो मेने वक़्त नहीं लिया।

एक बार उनसे मांग कर देख सकती थी।।


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फरहा खान

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