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कड़क सिंह फिल्म रिव्यू

मुझे ओटीटी की सबसे अच्छी बात यह लगती है की यहां अच्छी फिल्में और सिरीज़ आप कभी भी देख सकते हैं, अपने समय पर और अपनी गति से फॉरवर्ड रिवाइंड करके देख सकते हैं। कड़क सिंह अच्छी है पर इसे देखने और समझने की गति आपको पसंद करनी होगी। आज kl कहानियों का अकाल पड़ा है ऐसा सुनने को मिलता है पर ऐसा नहीं है और ना ही फिल्म बनाने वाले कम प्रतिभाशाली हैं। बस उन्हें आवश्यकता है एक अवसर की और एक बुद्धिमान दर्शक की। वैसे आज कल फिल्में बुद्धि की मांग नहीं करतीं पर कड़क सिंह एक मर्यादित तार्किक प्रेक्षकों के लिए है।

कहानी शुरू होती है एक व्यक्ति से जो अस्पताल में है और वह अपनी यादाश्त गुमा चुका है। उसकी बेटी जिसे वह नहीं पहचान पाता, वह उसे अपना पुराना जीवन याद दिलाने की कोशिश कर रही है।

अब आगे जाकर आता है पहला ट्विस्ट।

कहानी में एक वित्तीय ठगी मतलब फाइनेंशियल फ्रॉड दिखाया गया है। उसकी छानबीन के लिए एक डिपार्टमेंट दिखाया गया है जिसका नाम है डिपार्टमेंट ऑफ फाइनेंशियल क्राइम । वास्तव में ऐसा कोई डिपार्टमेंट नहीं होता पर भारत में एनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट और सीबीआई जैसे डिपार्टमेंट इस प्रकार के जुर्म पर छानबीन करते हैं। फिल्म में ए के श्रीवास्तव मतलब पंकज त्रिपाठी उस डिपार्टमेंट के सीनियर ऑफिसर हैं।

अब आता है दूसरा ट्विस्ट।

ए के अस्पताल में अपने डिपार्टमेंट में से केवल अपने बॉस को पहचानते हैं और अन्य किसी व्यक्ति को वे नहीं पहचान पाते। डॉक्टर का कहना है की अब ए के की यादाश्त वापस लाना मुश्किल है।उनके डिपार्टमेंट का मानना है की उन्होंने आत्महत्या का प्रयत्न किया था और उनकी बेटी का मानना है की यह उनकी हत्या का प्रयास था।

एक एक करके बेटी, प्रेमिका, जूनियर अफसर और सीनियर अफसर अपने अपने तरीके से, अपनी अपनी कहानी बताकर ए के की यादाश्त वापस लाने का प्रयत्न करते हैं और ए के उन सभी को सुनकर अपनी कहानी याद करने की कोशिश करते हैं। वहां बेटी अपने पिता को ठीक करने के लिए बहुत ही खतरनाक काम करने के लिए भी तैयार रहती है।

अब और कहानी कह दूंगा तो आप फिल्म नहीं देखेंगे। फिल्म आप देख लें। इस फिल्म को देखने के लिए धीरज की आवश्यकता है और साथ ही इसे थोड़ा थोड़ा ब्रेक लेकर ओटीटी पर देखने से इसका नशा धीरे धीरे आपके दिमाग पर अपना असर दिखाएगा। जल्दबाजी में यह फिल्म बोरिंग और बनावटी लगेगी पर एक गति से देखी जाए तो दिलचस्प लग सकती है।

कहानी को मर्यादित बजट पर बनाया गया है अन्यथा बहुत बड़ी स्टार कास्ट रख कर इसे जोरों शोरों से प्रस्तुत किया जाता। वैसे पंकज त्रिपाठी ने अपनी भूमिका को पूरा न्याय दिया है। उनके भाग्य की सफलता उन्हें ओटीटी आने से ही मिली है अन्यथा इस प्रकार के रोल अनुपम खेर, परेश रावल या फिर अक्षय कुमार जैसे अदाकार ले जाते रहे हैं । बढ़ी सिनेमा ने मनोज वाजपाई जैसी प्रतिभा को भी कहां न्याय दिया था।

फिल्म में अभिनय की दृष्टि से पंकज त्रिपाठी के अलावा अन्य कलाकारों ने अच्छा साथ निभाया। संजना सांघी बनी थीं साक्षी, ए के की बेटी। यह लड़की दिल बेचारा फिल्म से प्रचलित हुई। जया अहसान बनीं थीं नोयोना, ए के की प्रेमिका। ये बांग्लादेशी एक्ट्रेस हैं। पार्वती थिरु वाथू बनी थिंक नर्स । वे मलयाली एक्ट्रेस हैं। उनका बहुत ही सटीक स्क्रीन प्रेजेंस रहा। परेश पाहुजा बने थे अर्जुन, ए के के जूनियर ऑफिसर, इनका किरदार भी बहुत ही अच्छा था। परेश पहले टाइगर जिंदा है और ऑपरेशन वेलेंटाइन में काम कर चुके हैं।

फिल्म की अहम खूबी है की अंत तक यह पता लगाना कठिन था की आखिर कौन है गुनहगार जो ए के मरना चाहता था या फिर यह आत्महत्या का ही प्रयास था? आखिर धोनी की तरह पंकज त्रिपाठी ने अंत तक स्ट्राइक अपने पास ही रखा।

आप समय निकाल कर इस फिल्म को देखें, जी फाइव ओटीटी पर उपलब्ध है।

आपको यह रिव्यू कैसा लगा, अवश्य सूचित करें।

– महेंद्र शर्मा

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