Meri Adhuri si Kahaani - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

मेरी अधूरी सी कहानी - 1

एक अयोग्य लेखक की कलम से।।




मुंबई।।

सुबह का समय है। सूरज धीरे धीरे बाहर आ रहा है और पूरी मुंबई में अपना प्रकाश फैला रहा है।

इधर मुंबई में एक बहुत ही बड़ी आलीशान और ऊंची सी शानदार बिल्डिंग के सामने के पार्किंग एरिया में एक ब्लैक मर्सिडीज आकर रुकती है और इस गाड़ी में से एक बेहद ही हैंडसम लड़का बाहर निकलता है जिसका नाम प्रीतम खुराना है । प्रीतम खुराना उम्र सिर्फ तेईस साल, गहरी नीली आंखें, बॉडी किसी पहलवान की तरह, हाइट लगभग छ इंच, गोरा रंग लेकिन आंखों में कुछ है शायद दर्द, नफरत, आग या फिर कुछ और। प्रीतम जो की मुंबई का बेताज बादशाह है। ड्रग स्मगलिंग, किडनैपिंग, हथियारों की तस्करी से लेकर सुपारी लेकर काम करवाने तक ऐसा कोई भी काम नहीं है जो प्रीतम नहीं करता है या फिर नहीं करवाता है।

प्रीतम बिना इधर उधर नज़र दौड़ाए नीचे ग्राउंड फ्लोर पर बने एक कमरे में तेजी से घुस जाता है। कमरे में तीन चार आदमी खड़े हैं। एक और एक बूढ़ा सा व्यक्ति चेयर लेकर बैठा है और किसी फाइल के पन्नों को लगातार पलटे जा रहा है। प्रीतम सभी आदमियों के चेहरों की और नजर दौड़ाता है और फिर चुपचाप एक चेयर पर बैठकर अपनी सिगरेट सुलगा उसके कश भरने लगता है। प्रीतम के बिलकुल सामने एक पचास वर्षीय आदमी सूरज शर्मा बैठा है। प्रीतम की दाईं और उसका राइट हैंड सुधीर खड़ा है जो की प्रीतम के लिए जान तक देने को तैयार रहता है तो उसकी बाईं ओर उसका लेफ्ट हैंड निशांत खड़ा है।

सूरज शर्मा एक लंबी सांस भरकर चेहरे पर एक मुस्कुराहट लाते हुए प्रीतम की और देखकर बोलता है- " मुझे ये देखकर बहुत खुशी हुई मिस्टर प्रीतम खुराना की तुम सिर्फ मेरे एक कॉल करने पर मेरी मदद के लिए जहां पर भागे भागे चले आए।"

प्रीतम सिगरेट को अपने जूते से कुचलते हुए बोला - " मैं जहां पर कोई बकवास सुनने के लिए नहीं आया हूं। इसलिए चुपचाप काम की बात बोलो वरना अभी जहां से नौ दो ग्यारह हो जाओ।"

सूरज शर्मा हंसते हुए - " प्रीतम खुराना तुम्हारी बात करने के इसी एटीट्यूड का इसी अदा और अंदाज जा तो मैं दीवाना हूं। सिर्फ काम की ही बात करते हो।"

प्रीतम गुस्से से - " मैं जहां पर अपनी तारीफ सुनने के लिए नहीं आया हूं सूरज शर्मा। जो काम है वो चुपचाप बोल वरना पिस्तौल निकाल अभी गोली तेरे बेजे में घुसा दूंगा। तुझे पता भी नहीं चलेगा की कब तेरी कब्र तैयार हो जाएगी और उस पर चढ़ाने के लिए फूल भी।"

इतने में प्रीतम की बगल में खड़ा सुधीर बोला - " अबे ओ बूढ़े तुझे मैने कितनी बार समझाया था ना की प्रीतम भाई के सामने सिर्फ काम की बात बोलने का। अब चुपचाप काम बोलने का नहीं तो जहां से कल्टी मारने का।"

सूरज शर्मा कुछ डरते हुए एक फाइल उठाता है और प्रीतम खुराना के आगे फेंकते हुए बोलता है - " ये एक जमीन के कागजात हैं।"

प्रीतम खुराना सूरज शर्मा की बात पूरी होने से पहले ही विच में फाइल को घूरते हुए गुस्से में बोल पड़ता है- " तो साले बूढ़े मैं क्या तुझे कोई पटवारी दिखता हूं या फिर कोई जमीनी अफसर जो ये कागज तूं मुझे दिखा रहा है। निशांत गन निकाल कर गोली इसके बेजे में घुसा दे। साला बूढ़ा फालतू में मेरा टाइम खराब कर रहा है।"

सूरज शर्मा गिड़गिड़ाते हुए - " प्लीज प्रीतम एक बार मेरी बात तो सुन लो। प्लीज। मेरी मदद सिर्फ तुम ही कर सकते हो।"

प्रीतम अपनी गर्दन एक और टेढ़ी करते हुए - " तो तूं चुपचाप अपनी बात बोल साले फालतू बकवास क्यों कर रहा है वे?"

सूरज शर्मा एक लंबी सांस भरते हुए जोर देकर बोलता है- " हां।। ये कागजात मेरी जमीन के हैं मेरी। पूरी बीस हेक्टेयर जमीन है वो लेकिन किसी बिला नाम के गुंडे ने मेरी उस जमीन पर कब्जा कर लिया है। प्रीतम प्लीज मेरी मदद करो।"

प्रीतम वो फाइल उठाकर सुधीर के हाथ में थमाते हुए - " चेक कर ये बूढ़ा सच बोल रहा है क्या?"

सुधीर कुछ पन्नों को पलटता है और फिर फाइल को प्रीतम के आगे रखते हुए बोलता है " बॉस ये बूढ़ा सच बोल रहा है वो सारी जमीन इसी की है और उस बिला नाम के आदमी ने इसकी जमीन पर कब्जा करके नकली कागजात बनवा लिए हैं।"

सूरज शर्मा - " प्लीज प्रीतम मुझे मेरी जमीन वापिस दिलवा दो प्लीज। एक तुम ही हो जो की ये काम कर सकते हो।"

प्रीतम बिना किसी हाव भाव के - " काम हो जाएगा लेकिन बदले में हमें क्या मिलेगा ?"

सूरज शर्मा - " दस लाख, बीस लाख, पचास लाख। जितने चाहो उतने पैसे ले लेना लेकिन प्लीज मेरी मदद कर दो। मुझे वो मेरी जमीन वापिस दिलवा दो।"

प्रीतम अपनी गर्दन एक और टेढ़ी करके उस पर अपना हाथ फेरते हुए - " ठीक है। डील मंजूर है। तेरा काम हो जायेगा।"

सूरज शर्मा - " लेकिन कब तक।"

प्रीतम खड़ा होकर आंखो पर ब्लैक चश्मा लगाते हुए " टाइम और डे मैं तय करूंगा तुम नहीं। जब काम हो जायेगा तब तुम्हें पता चल जाएगा। और हां सुधीर और निशांत मुझे इस बिला की पूरी कुंडली चाहिए। जब हाथ लग जाए तो कॉल कर देना।"

इतना कहकर प्रीतम तेजी से वहां से निकल जाता है।

इधर एक और ग्राउंड के साइड में एक छोटा सा चाय का ढाबा है। ग्राउंड में कुछ बच्चें क्रिकेट खेल रहे हैं। प्रीतम गाड़ी रोककर ढाबे में जाता है और एक चेयर पर बैठकर एक कप चाय मंगा लेता है। प्रीतम चेयर पर पीछे की और सर टीकाकर कुछ देर के लिए अपनी आंखें बंद कर लेता है तभी उसके कानों में आवाज आती है " बेटा चाय।"

प्रीतम अपनी आंखें खोलता है तो धीरू काका चाय का कप प्रीतम के सामने रखकर चला जाता है। प्रीतम चाय का कप उठाता है और चाय का कश भरते हुए ग्राउंड में क्रिकेट खेल रहे बच्चों पर अपनी नज़र दौड़ाता है लेकिन उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं आता क्योंकि इन बच्चों को जहां पर क्रिकेट खेलते हुए वो अक्सर देखा करता था लेकिन तभी उसकी नज़र बैटिंग कर रही एक लड़की पर जाती है जिसे देखकर प्रीतम के चेहरे के हाव भाव बदल से जाते हैं और एक हल्की सी मुस्कुराहट उसके चेहरे को घेर लेती है।

बैटिंग कर रही लड़की बेहद ही खूबसूरत थी। उम्र लगभग बाइस साल, गहरी काली आंखें, सफेद जिस्म, मुलायम तव्चा, गहरे सुरख लाल होंठ, होठ के नीचे एक छोटा सा काला तिल जो उस लड़की की खूबसूरती में चार चांद लगा रहा था। उस लड़की ने इस वक्त ब्लैक जींस और ब्लैक शर्ट पहन रखी थी जिसमे उसका गोरा बदन बेहद ही खूबसूरत नजर आ रहा था। उसके गोल्डन से कलर के बाल खुले हुए थे जो उसके चेहरे पर बार बार आ रहे थे और वो लड़की अपने हाथ से बालों को पीछे कर रही थी। उसके बाल उसकी कमर से भी नीचे जा रहे थे। लेकिन इस वक्त उस लड़की को जो सबसे ज्यादा खूबसूरत बना रही थी वो थी बच्चों के साथ उसकी मस्ती और उसकी मुस्कुराहट। जब वो लड़की मुस्कुराती थी तो उसकी सफेद मुलायम गालों में डिंपल पड़ने लग जाते थे जिसे देखकर प्रीतम के चेहरे पर भी एक फीकी से मुस्कुराहट आ गई थी। प्रीतम चाय पीते हुए एक टक उस लड़की की और देखे जा रहा था।

इतने में एक लड़के ने बॉल डाली और उस लड़की ने डाउन द ग्राउंड एक लंबा छका जड़ दिया। ये देखकर प्रीतम की भी आईब्रो ऊपर को हो गई क्योंकि सामने बाउंड्री सच में बहुत बड़ी थी। प्रीतम के मुंह से अचानक ही निकल गया - " वेरी स्ट्रॉन्ग गर्ल।"

इतने में कुछ बच्चे जोर से चिला उठे " हम जीत गए , हम जीत गए, दीदी ने हमें जीता दिया। हम जीत गए। हूरा हूर हूर।"

उस वक्त बस यही एक आवाज प्रीतम के कानों में बार बार गूंज रही थी।

तभी वो लड़की उसी ढाबे की और कदम बढ़ाते हुए मुस्कुराकर बोली " चलो बच्चो अब एक एक कप चाय पीकर जीत की खुशी बनाई जाए।"

" चलो दीदी।" सब बच्चे एक साथ बोलते हुए उस लड़की के साथ ढाबे पर आ गए।

अब वो लड़की प्रीतम के बिलकुल सामने खड़ी थी लेकिन उस लड़की का ध्यान प्रीतम पर नहीं था।

" काका अपने हाथों की अदरक वाली चाय तो पीला दीजिए।" लड़की एक चेयर पर बैठते हुए बोली।

धीरू काका - " अभी लाया गुडिया।"

इतना सुनकर सब बच्चे उस लड़की के चारों ओर घेरा डालकर बैठ गए।

उस लड़की की पीठ प्रीतम की तरफ थी। प्रीतम पीछे से उसी लड़की को गौर से देखें जा रहा था।

इतने में धीरू काका ने उन सभी को चाय लाकर दी।

धीरू काका चाय के कप मेज पर रखते हुए - " गुडिया तुम बहुत नेकदिल लड़की हो जो बच्चों से इतना प्यार करती जो वरना आज की इस दुनिया में तो किसी के पास टाइम ही नहीं है। गुडिया भगवान तुम्हारी हमेशा मदद करता रहे।"

इतना कहकर धीरू काका ढाबे के अंदर चला गया। उस लड़की के चेहरे पर अब भी मुस्कुराहट थी जो प्रीतम को लगातार अपनी और खींच रही थी।

सभी ने चाय पी। उस लड़की ने धीरू काका को पैसे दिए और सभी बच्चों को "गुड बाय कल फिर खेलेंगे। " इतना कहते हुए चली गई लेकिन उस लड़की का ध्यान अभी तक प्रीतम पर गया ही नहीं था। सब बच्चे फिर से जाकर खेलने लगे। वो लड़की अब धीरे धीरे प्रीतम की आंखों से ओझल हो गई। आर्यन ने कप मेज पर रखा और एक लंबी सांस भरी। तभी धीरू काका वहां पर आ गया।

प्रीतम दस रुपए का नोट काका के हाथ में थमाते हुए पूछा " काका वो लड़की कौन थी जो अभी जहां से गई है।"

धीरू काका नोट पकड़ते हुए " प्रिया नाम है उस गुडिया का। और कुछ तो उसके बारे में मालूम नहीं लेकिन हां एक दो दिनों से रोज बच्चों के साथ खेलने आती है। बड़ा प्यार है उसे बच्चों से। बड़ी प्यारी बच्ची है। लेकिन बेटा तुम उसके बारे में क्यों पूछ रहे हो।"

प्रीतम एक और अपनी गर्दन टेढ़ी करते हुए " कुछ नहीं बस यूंही।"

धीरू काका के ढाबे के अंदर चले जाने के बाद प्रीतम मुस्कुराते हुए अपने आप से बोल पड़ा " प्रिया वेरी नाइस नेम।"

प्रीतम अभी भी ढाबे में बैठा किसी गहरी सोच में डूबा हुआ था तभी उसका फोन बज उठा।

प्रीतम फोन कान से लगाते हुए बोला - " बोलो सुधीर उस बिल्ला के बारे में क्या पता चला है?"

सुधीर - " प्रीतम भाई फॉर्म हाउस में आ जाओ। उस बिला की कुछ डिटेल्स निकाली है।"

प्रीतम ने " अभी आ रहा हूं।" कहते हुए कॉल कट कर दिया और तेजी से अपनी गाड़ी लेकर वहां से निकल गया।

इधर बेकरी की एक शॉप में प्रिया प्रवेश करती है। अंदर एक लड़की जिसका नाम पिंकी है उम्र में लगभग वो भी बाइस तेईस साल की है किसी काम में लगी हुई थी।

पिंकी प्रिया की और देखते हुए - " यार प्रिया तूं कहां रह गई थी। तुझे मालूम है ना कि हम रोज नौ बजे बेकरी खोल लेते हैं और आज देख तो सही दस बजने वाले हैं।"

प्रिया अंदर उसके पास जाते हुए - " अरे यार तूं इतना हाई फाई क्यों हो रही है। मैं तो बस बच्चों के साथ खेलने लग गई थी। अच्छा अब ये बात केक का कोई ऑर्डर आया है क्या?"

पिंकी - " हूं एक ऑर्डर आया है।"

प्रिया - " मैं केक तैयार करती हूं और हां तूं वो मावा केक वाला पार्सल तैयार कर। कितना काम पड़ा है अभी।"

बातें करते हुए वे दोनों काम पर लग जाती हैं।

इधर एक बड़े से फार्म हाउस के आगे प्रीतम गाड़ी के ब्रेक लगाता है और बिना इधर उधर देखे सीधे ही फार्म हाउस के अंदर चला जाता है। अंदर प्रीतम के ही कुछ आदमी खड़े और बैठे थे। प्रीतम एक और चेयर पर अपनी एक टांग के ऊपर दूसरी टांग रखकर बैठ गया और चुपचाप सिगरेट जलाकर उसके कश भरने लगा।

सुधीर एक फाइल के पेज पलटते हुए बोला " भाई ये बिला बहुत पहुंचा हुआ आदमी है। इसका काम है लोगों को ब्लैकमेल करना , किडनैपिंग करना , उनकी जमीनें हड़पना और वगैरा वगैरा। "

प्रीतम अपनी गर्दन टेढ़ी करके उस पर अपना हाथ फेरते हुए - " इस वक्त ये बिला कहां मिलेगा? उठा लाओ साले को।"

सुधीर - " बॉस इस वक्त ये लखनेउ में है।"

प्रीतम खड़ा होते हुए - " इसे मुंबई बुलाओ और अगर ये मना करे तो इससे कहना की इसे इसके बाप प्रीतम खुराना ने याद किया है। साला भागा भागा चला आएगा मेरे पास।"

सुधीर - " जी बॉस आप फिक्र मत कीजिए। कल सुबह तक ये मुंबई में होगा।"

प्रीतम एक लंबी सांस भरते हुए - " दिल्ली के काम की क्या खबर है?"

निशांत सोफे पर से खड़ा होते हुए - " रियान भाई वहां पर सिचुएशन हैंडल कर रहे हैं।"

प्रीतम वहां से जाते हुए - " उससे कहो की जल्दी से जल्दी दुश्मनों को अमर करे ( मार डाले) वरना बेवजह ही मुझे दिल्ली जाना पड़ेगा और वहां पर खून की नदियां बहेंगी।"

इतना कहकर प्रीतम तेजी से वहां से निकल गया।

प्रीतम गाड़ी लेकर अपने घर की और जा रहा था। रास्ते में ट्रैफिक जाम था। प्रीतम गाड़ी रोककर अपने सर हाथ रखकर अपना सर खिड़की से लगा लिया। दूसरी और लेफ्ट साइड में एक बाइस तेईस साल की लड़की सड़क क्रॉस करने की कोशिश कर रही थी लेकिन रोड लबालब भरी हुई थी। वो लड़की अपना एक पैर सड़क पर आगे बढ़ाती और दूसरी और से कोई कार आ जाती तो वो लड़की फिर से अपना पैर पीछे कर लेती। वो लड़की लगातार अपनी नजरें इधर उधर दौड़ाते हुए सड़क क्रॉस करने की कोशिश कर रही थी लेकिन इतना ज्यादा ट्रैफिक होने के कारण उसकी सारी कोशिशें नाकाम हो रही थी।

प्रीतम एकटक बिना किसी भाव के उस लड़की की और देख रहा था। वो लड़की अभी भी रोड क्रॉस करने की कोशिश कर रही थी।

प्रीतम एक लंबी सांस भरकर अपनी नज़र दूसरी और करते हुए अपने आप से धीरे से बोला " बेचारी लड़की। अब करे भी तो करे क्या? आगे कुआं पीछे खाई।"

इतने में प्रीतम के कानों में किसी लड़की के चिलाने कि आवाज आई।

प्रीतम ने तेजी से उस और देखा तो उस लड़की को एक कार ने टक्कर मार दी थी। प्रीतम तेजी से गाड़ी से बाहर निकला और भागकर उस लड़की के पास गया जो सड़क के किनारे गिरी पड़ी थी। उसके सर और कंधे पर चोट लगी थी। सर पत्थर से टकरा जाने के कारण शायद वो बेहोश हो गई थी।

जिस कार ने टक्कर मारी थी वो तेजी से वहां से निकल गई। वो नीले रंग की मिनी कार थी और कोई आदमी उस कार को चला रहा था जिसका चेहरा प्रीतम को दिखाई दे गया था। प्रीतम उस कार की और देखते हुए बोला " अगर आज इस लड़की को बचाना नहीं होता तो इस कारवाले की तो मैं गर्दन काट डालता।"

प्रीतम ने उस लकड़ी की और देखा जो के गोरे से रंग की काफी खूबसूरत लड़की थी जिसे देखकर प्रीतम को अपनी चाचा की लड़की यानी अपनी बहन नेहा की याद आ गई थी। प्रीतम ने तेजी से उस लड़की को अपनी बांहों मैं उठाया और उसे हॉस्पिटल ले जाकर एडमिट करा दिया।

प्रीतम हॉस्पिटल में बालकनी में खड़ा सिगरेट के कश भर रहा था तभी डॉक्टर उसके पास आते हुए बोला " देखिए मिस्टर खुराना। चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। लड़की अब सेफ है। उसे कुछ ही देर में होश आ जायेगा। आप इन पेपर्स पर साइन कर दीजिए।"

इतना कहकर उस डॉक्टर ने कुछ पेपर्स प्रीतम की और बढ़ा दिए। प्रीतम ने पेपर्स पर साइन किए और डॉक्टर को पैसे दे दिए।

डॉक्टर वहां से चला गया। प्रीतम ने अंदर कमरे में जाकर देखा तो वो लड़की अभी भी बेहोश पड़ी थी।

प्रीतम चेयर लेकर उसके पास बैठ गया और उसके होश में आने का इंतजार करने लगा।

लगभग पंद्रह मिनट बाद लड़की धीरे धीरे करके होश में आई और इधर उधर देखते हुए बैठ गई।

प्रीतम एक लंबी सांस भरते हुए बोला - " अब तबियत कैसी है तुम्हारी?"

लड़की धीरे से धीमी आवाज में बोली - " मैं ...मैं ठीक हूं। लेकिन मैं जहां कैसे आई? आप कौन हैं सर?"

प्रीतम गंभीर होकर - " सर मत कहो मुझे। किसी कार ने टक्कर मार दी थी तुम्हे। वो कार वाला कार लेकर वहां से भाग गया। बस वो एक बार मेरे हाथ लग जाए फिर मैं उसे उसकी गलती की सजा दूंगा। उस कार को और उस कार चलाने वाले को तो मैं अब पहचान ही लूंगा।"

लड़की - " लेकिन आप ....आप हैं कौन?"

प्रीतम - " प्रीतम खुराना। अपना भाई ही समझ लो।"

ये सुनकर लड़की के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।

प्रीतम - " अच्छा अब ये बताओ क्या नाम है तुम्हारा और क्या काम करती हो?"

लड़की - " मेरा नाम मोनिका है। मैं एसके मैनेजमेंट कंपनी में काम करती हूं।"

प्रीतम अपना मोबाइल निकालते हुए- " तुम्हारे परिवार वालों में किसी के मोबाइल नंबर मुझे दो मैं उन्हें इनफॉर्म कर देता हूं।"

मोनिका - " मैं अपने ननिहाल में रहती हूं। मेरी जिंदगी में सिर्फ एक नाना ही हैं जो मेरे अपने हैं।"

प्रीतम एकटक लड़की की और देखते हुए - " और माता पिता?"

मोनिका अपना सर झुकाकर मायूस होते हुए - " मुझे मेरे नाना ने ही पाल पोसकर बढ़ा किया है। मेरे माता पिता तो मेरे बचपन में ही......।"

प्रीतम बात पूरी होने से पहले ही मोनिका के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला " समझ सकता हूं तुम्हारी तकलीफ। मेरी कहानी भी कुछ ऐसी ही है। अच्छा अब अपने नाना के मोबाइल नंबर बताओ? मैं उन्हें इनफॉर्म कर देता हूं। वो बेवजह ही तुम्हारी फिक्र कर रहें होंगे।"

मोनिका ने अपने नाना के मोबाइल नंबर प्रीतम को बताए। प्रीतम उसके नाना को कॉल लगाते हुए मोनिका की और देखकर बोला " तुम अभी रेस्ट करो फिर मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूंगा।"

मोनिका ने चुपचाप हां में सिर हिला दिया और बाहर बाहर निकलकर कॉरिडोर में चला गया और मोनिका के नाना को कॉल करने लगा और उनके कॉल रिसीव करने का इंतजार करने लग गया।।






प्रीतम कॉल रिसीव होते ही बोला " सुनिए, क्या आप मोनिका के नाना जी बोल रहे हैं?"

सामने से मोनिका के नाना की आवाज आई - " हां मैं तो मोनिका का नाना ही बोल रहा हूं लेकिन तुम कौन हो?"

प्रीतम एक लंबी सांस भरते हुए - " देखिए अंकल जी मोनिका का एक्सीडेंट हो गया है। उसके सर में हल्की सी चोट आई है। लेकिन फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं है। अब वो ठीक है।"

नाना हड़बड़ाहट में - " लेकिन ये सब कब हुआ? कैसे हुआ? इस वक्त मोनिका कहां है? मैं अभी आता हूं।"

प्रीतम सर्द आवाज में- " देखिए अंकल आपको फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं है। मोनिका इस वक्त हॉस्पिटल में है। वो पूरी तरह से ठीक है। मैं उसे घर छोड़ दूंगा। आप प्लीज रिलैक्स हो जाइए। आपको जहां आने की कोई जरूरत नहीं है। इस वक्त मैं हूं मोनिका के पास। प्लीज डोंट वरी।"

नाना - " लेकिन बेटा तुम कौन हो?"

प्रीतम - " जब आपसे मिलूंगा तब आपको पता चल जायेगा। आप अभी आराम कीजिए। मैं मोनिका को आपके पास छोड़ दूंगा।"

इतना कहकर प्रीतम ने कॉल कट कर दिया और सीढ़ियां उतरते हुए तेजी से नीचे चला गया।

मोनिका आराम से पलंग पर लेटी हुई थी की तभी प्रीतम चाय के दो कप लेकर वहां पर आया। प्रीतम की

और देखकर मोनिका बिस्तर बैठ गई।

प्रीतम मोनिका के पास चेयर पर बैठ गया और चाय का कप उसके हाथ में थमाते हुए बोला " लो चाय पी लो। आराम मिलेगा।"

मोनिका ने चुपचाप चाय का कप पकड़ लिया।

मोनिका कुछ साहस सा जुटाते हुए बोली " थैंक्स सर मेरी मदद करने के लिए।"

प्रीतम हैरानी से मोनिका की और देखते हुए " मैने कहा ना की मुझे सर मत कहो। तुम एक बार में कही गई बात को समझती नहीं हो।"

मोनिका अपनी नजरें नीचे करते हुए - " सॉरी भईया।"

प्रीतम चाय का कश भरते हुए मुस्कुराकर - " वैसे एक बात कहूं तुम्हारे मुंह से ये भईया शब्द बहुत अच्छा लगता है। अच्छा अब ये बताओ की तुम्हारे परिवार में और कोई भी नहीं है?"

मोनिका मायूस होते हुए बोली " नाना के अलावा और कोई भी नहीं है। नाना भी कैंसर के मरीज है।"

ये सुनकर प्रीतम ने अपनी आंखें बंद कर ली और एक लंबी सांस भरी।

प्रीतम मोनिका की और देखते हुए - " डोंट वरी। मैं तुम्हारे साथ हूं।"

मोनिका - " थैंक्स भईया मेरी मदद करने के लिए।"

प्रीतम - " इसमें थैंक्स बोलने की क्या बात है। अगर मेरी जगह और कोई होता तो वो भी शायद यही करता।"

मोनिका ने कोई जवाब नहीं दिया और चाय पीने लगी। वे दोनों कई देर तक खामोश रहे।

मोनिका चाय पीकर कप मेज पर रखते हुए बोली " भईया आपकी फैमिली में कौन कौन है?"

प्रीतम अपना सर ऊंचा करते हुए - "एक छोटा भाई है मीनू। पढ़ाई कर रहा है।"

मोनिका - " कॉलेज में?"

प्रीतम - " अरे नहीं नहीं। अभी तो स्कूल में ही है। पता नहीं शायद नाइंथ में या टेंथ में है।"

मोनिका हैरानी से - " आपका भाई आपके साथ नहीं रहता क्या?"

प्रीतम - " मीनू मेरे साथ ही रहता है क्यों?"

मोनिका - " नहीं मतलब। आपको अपने भाई के बारे में मालूम ही नहीं है की वो किस क्लास में पढ़ता है।"

प्रीतम फीकी सी हंसी में - " उस शरारती पर मैंने कभी ध्यान ही नहीं दिया। अब बस वो कॉल करने ही वाला है। दुनिया का सबसे शरारती लड़का है वो। एक बड़ी बहन है मेरी साक्षी दी। अभी दिल्ली में है पढ़ाई पूरी कर रही है। बहन ही नहीं मेरे लिए मेरी मां जैसी है। एक दिन मिलाऊंगा तुम्हें अपनी बहन से।"

इतने में प्रीतम खड़ा होते हुए बोला " चलो मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ देता हूं।"

मोनिका खड़ी होते हुए बोली " मैं... मैं किसी रिक्शा से चली जाऊंगी।"

प्रीतम कुछ गुस्से से - " मैने कहा ना मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ देता हूं। अपना भाई समझो मुझे कोई दुश्मन नहीं हूं तुम्हारा। तुम्हे सिर्फ घर छोड़ रहा हूं कोई खा थोड़े ही रहा हूं। अब चले।"

मोनिका ने चुपचाप हां में सिर हिला दिया और फिर वे दोनों सीढ़ियां उतरते हुए नीचे आ गए।

प्रीतम ने नीचे कुछ पेपर्स पर साइन किए और फिर वे दोनों प्रीतम की गाड़ी से वहां से निकल पड़े।

प्रीतम गाड़ी को चला रहा था और मोनिका उसकी बगल वाली सीट पर चुपचाप बैठी थी।

मोनिका आगे सड़क पर इशारा करते हुए बोली- " जहां से राइट में दूसरा घर है।"

प्रीतम गाड़ी को राइट में घुमाते हुए एक बंगले के आगे गाड़ी रोकते हुए बोला " वैसे तुम्हारे नाना क्या काम करते हैं?"

मोनिका खिड़की खोलते हुए - " नाना बीमार रहते हैं। मैं ही हूं कमाने वाली। हां लेकिन नाना की दो दुकानें किराए पर चलती हैं।"

प्रीतम एक कार्ड निकालकर मोनिका के हाथ में देते हुए बोला " अगर कभी भी पैसों की जरूरत हो या फिर कोई भी काम हो तो बस मुझे एक कॉल कर देना। मेरे मोबाइल नंबर हैं इसमें।ओके।"

मोनिका ने गाड़ी से बाहर निकलते हुए चुपचाप हां में सिर हिला दिया।

मोनिका को कुछ याद आया और वो प्रीतम की और देखते हुए बोली - " भईया मेरे नाना जी से नहीं मिलोगे।"

प्रीतम अपनी कलाई घड़ी में नजर दौड़ाते हुए - " लेकिन....।"

मोनिका बीच में ही - " प्लीज भईया। अब आप जहां तक हो आ हो गए है। प्लीज प्लीज आ जाइए ना।"

प्रीतम गाड़ी से बाहर निकलते हुए - " ठीक है चलो।"

इतना कहते ही मोनिका प्रीतम का हाथ पकड़कर उसे अपने घर ले गई।

अंदर एक और सोफे पर मोनिका का नाना रघुबंस बैठा हुआ था जो किसी गहरी चिंता में डूबा हुआ था।

मोनिका को देखकर नाना की जान में जान आ गई। मोनिका भागकर नाना के गले से लिपट गई।

नाना उसे अपने सीने से चिपकाते हुए - " कहां थी मेरी गुड़िया? पता है की मुझे कितनी फिक्र हो रही थी तुम्हारी?"

मोनिका - " मैं बिलकुल ठीक हूं नाना। आप इनसे मिलिए ये है प्रीतम खुराना। जिन्होंने मेरी जान बचाई।"

प्रीतम नाना के चरण छूते हुए - " नमस्ते अंकल।"

नाना उसे आशीर्वाद देते हुए - " अरे खुश रहो बेटा। मैं तो तुम्हारा आभारी हूं जो तुमने मोनिका की जान बचाई। जाओ मोनिका कोई चाय बाय पिलाओ इसे।"

प्रीतम - " नहीं नहीं अंकल जी। मैं बस घर जा रहा हूं।"

मोनिका - " अरे भैया ये क्या बात हुई? आपको आज अपनी बहन के हाथ की चाय तो पीनी ही पड़ेगी।"

प्रीतम सोफे पर बैठते हुए - " चलो ठीक है।"

मोनिका अंदर किचन में चली गई और चाय बनाने लगी।

नाना प्रीतम के सामने सोफे पर बैठते हुए - " लेकिन बेटा एक्सीडेंट हुआ कैसे था?"

प्रीतम - " कुछ नहीं अंकल बस वो मोनिका सड़क क्रॉस कर रही थी और कोई कारवाला इसे टक्कर मार कर भाग गया। मैं वहीं पर था तो इसे हॉस्पिटल ले गया।"

नाना - " शुक्रिया बेटा। पता नहीं मैं तुम्हारा कर्ज कैसे चुका पाऊंगा।"

प्रीतम - " अरे नहीं अंकल जी इसमें कर्ज की क्या बात है? ये तो मेरा फर्ज था।"

कुछ ही देर में मोनिका चाय बनाकर ले आई। सबने चाय पी और फिर गुड नाईट बोलकर प्रीतम वहां से निकल गया।

इधर एक अच्छे बड़े बंगले के आगे एक नीले से रंग की कार आकर रूकी और उसमें से बाहर निकला धीरज मलिक, मुंबई का काफी मशहूर बिजनेसमैन। धीरज सीधे ही घर के अंदर चला गया और इधर उधर नजर दौड़ाते लगा। इतने में किचन में से धीरज के पत्नी सुनाली मलिक निकलकर आई।

धीरज डाइनिंग टेबल पर बैठकर " हमारी दोनों बिटिया अभी तक आई नहीं क्या?"

सुनाली दीवार घड़ी पर नजर दौड़ाते हुए - " नौ बजे बेकरी बंद कर देती हैं। बस आने ही वाली है।"

धीरज अपना सर खुजाते हुए - " ऑफिस का काम इतना बढ़ गया है की मैं तो सोच रहा था की बेकरी की शॉप को किसी को किराए पर दे दे और प्रिया और पिंकी ऑफिस के काम में कुछ हाथ बटा दें। लेकिन अभी देखते हैं क्या होगा?"

सुनाली - " आपकी ही मर्जी है। जैसे करना हो कर लीजिए।"

धीरज अपने सर पर हाथ रखते हुए - " आज तो मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। समझ ही नहीं आ रहा है की मुझसे क्या हो गया था? ऑफिस के काम में मेरा तो सारा दिमाग खराब हो गया है। मुझे तो अभी भी समझ में नहीं आ रहा है की मुझसे क्या हुआ था क्या नहीं? ये सच है या सपना।"

सुनाली हैरानी से - " लेकिन हुआ क्या?क्या गलती हो गई आपसे?"

धीरज - " आज एक लड़की मेरी कार के आगे आ गई थी। उसके सर पर चोट लगी थी और फिर वो सड़क के किनारे बेहोश होकर गिर गई थी। वो लड़की हमारी कंपनी में ही काम करती है मोनिका नाम है उसका। अनाथ है बेचारी। अपने नाना के साथ रहती है। नाना भी कैंसर का मरीज है देखो कब तक साथ देगा। बहुत मेहनती लड़की है वो लेकिन आज मेरी कार के आगे बेहोश हो गई थी।"

सुनाली - " उसे हॉस्पिटल ले जाना था। इसमें क्या बात है? ऐसे छोटे मोटे एक्सीडेंटो का होना तो मुंबई में आम बात है।"

धीरज - " अरे वही तो गलती कर दी ना। सामने पुलिस वाले खड़े थे। मेरे पास लाइसेंस भी नहीं था। मैं डर गया था और वहां से कार लेकर भाग गया। ऊपर से मेरा सारा दिमाग खराब हो चुका है।"

सुनाली आंखें बड़ी करते हुए - " उस लड़की को वहीं छोड़ दिया।"

धीरज जोर से चिलाते हुए- " हां। मैं डर गया था। लेकिन बाद में जब मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ तो मैं यू टर्न लेकर वापिस वहां गया था लेकिन वो लड़की वहां थी ही नहीं। इसलिए मैं वापिस आ गया। मुझे तो समझ में नहीं आ रहा की क्या हुआ है और क्या नहीं?"

सुनाली - " हो सकता है वो लड़की वहां से चली गई हो या उसे कोई उठाकर ले गया हो। आप बेफिक्र रहिए। वो लड़की सेफ होगी। वैसे भी वो आपके ऑफिस में ही काम करती है सॉरी बोल देना। इसमें टेंशन लेने की क्या बात है? ऐसी घटनाएं होना तो आम बात है।"

धीरज ने एक लंबी सांस भरते हुए हां में सिर हिला दिया।

इतने में दरवाजे के पास से आवाज आई " कौनसी लड़की अंकल और कौनसी घटनाएं?"

धीरज और सुनाली ने तेजी से दरवाजे की और देखा तो वहां पर पिंकी और प्रिया खड़ी थी।

प्रिया अंदर आते हुए " आंटी किस लड़की की बात कर रहे हैं आप?"

धीरज हड़बड़ाते हुए - " कुछ नहीं गुडिया कोई ऑफिस में लड़की थी। आज वो सीढ़ियों से गिर गई थी। बस उसी की बात कर रहे थे?"

पिंकी - " अब वो लड़की कैसी है डैड?"

धीरज - " अब वो ठीक है। अब जल्दी से उस बात को छोड़ो और खाना खाओ। मुझे तो बड़ी भूख लगी है।"

प्रिया - " लेकिन अंकल ये मयंक कहां गायब हो गया?"

इतने में अंदर से चौदह पंद्रह साल का एक लड़का मयंक भागता हुआ बाहर आया और बोला " मैं जहां हूं दीदी। अब जल्दी से खाना खाते हैं। मेरे पेट में तो चूहे दौड़ रहे हैं।"

पिंकी - " अरे मेरे भाई आजा। और वैसे भी आज तो तेरी फेवरेट सब्जी बनाई है मोम ने पता गोभी।"

मयंक चेयर पर बैठते हुए - " ये हुई ना बात। अब आएगा खाना खाने में मजा।"

सभी ने डिनर किया और फिर वे सोने चले गए।

इधर प्रीतम ने एक बहुत ही बड़े आलीशान घर के आगे अपनी गाड़ी रोकी और तेजी से घर के अंदर चला गया।

अंदर एक और सोफे पर उसका छोटा भाई मीनू कानों में इयरफोन डालकर मजे से आंखें बंद करके लेटा हुआ था। प्रीतम उसके पास जाते हुए अपने आप से बोला" देखो तो सही ये नबाब साहब कैसे मजे से लेटा पड़ा है। इसे तो अभी बताता हूं।"

प्रीतम उसके कान के पास एक जोरदार ताली मारते हुए जोर से बोला " हूरा हूर। भूत आ गया। एक टांग वाला भूत आया है कच्छी निक्कर पहन कर।"

ये सुनकर मीनू अचानक से खड़ा हो गया और डरते हुए हड़बड़ाहट में बोला " कौन है? कहां है? क्या हुआ?"

प्रीतम उसके आगे चुटकी बजाते हुए - " आई एम हेयर।"

मीनू सोफे पर बैठकर एक लंबी सांस भरते हुए - " भईया आप कभी नहीं सुधरेंगे। इस तरह भला कोई डराता है क्या? मैं तो बुरी तरह डर गया। मेरा दिल देखिए कितनी जोर जोर से धक धक कर रहा है।"

प्रीतम उसके पास बैठते हुए " अच्छा बच्चू। मैं भी तो देखूं की तेरा दिल कितनी जोर से धड़क रहा है।"

इतना कहकर प्रीतम ने मीनू की छाती पर दाईं और हाथ रख दिया और फिर जोर से बोला " छोटू यार तेरा तो दिल धड़क ही नहीं रहा।"

मीनू प्रीतम का हाथ पकड़कर बाएं और रखते हुए " अरे भईया दिल बाईं और होता है दाई और नहीं।"

प्रीतम हंसते हुए - " ओह अच्छा अच्छा।"

प्रीतम अपना हाथ हटाते हुए - " हूं । दिल तो वाकई तेजी से धड़क रहा है।"

मीनू - " और नहीं तो क्या?"

प्रीतम - " अच्छा अब ये बता डिनर रेडी है।"

मीनू सोफे पर लेटते हुए - " शोभा आंटी खान तैयार करके चली गई है।"

प्रीतम खड़ा होकर अपने कमरे की और जाते हुए " मैं अभी नहाकर आता हूं फिर हम दोनों भाई मिलकर डिनर करेंगे।"

इतना कहकर प्रीतम तेजी से अपने कमरे में घुस गया।

प्रीतम नहाकर आया और फिर अपने बालों पर कंघी करते हुए बालकनी में खड़ा होकर सिगरेट के कश भरने लगा।

प्रीतम आसमान में चांद की और देखकर " प्रिया। कुछ तो बात है उस लड़की मैं। जब भी आंखें बंद करता हूं उसका चेहरा सामने आ जाता है।"

प्रीतम ने एक सिगरेट पी और फिर नीचे आ गया।

मीनू डाइनिंग टेबल पर बैठकर मजे से खाना खा रहा था। प्रीतम उसके सामने बैठते हुए " इंतजार नहीं कर सकता था क्या?"

मीनू - " भईया आप तो नहाने में ही दो घंटे लगा देते हैं। मेरे पेट में तो चूहे दौड़ रहे थे इसलिए खुद को रोक नहीं सका।"

प्रीतम दाल वाला बर्तन उठाकर एक लंबी सांस भरते हुए - " वाहो क्या खुशबू है?"

इतना कहकर वे दोनों भाई खाना खाने लगे।

मीनू खाना खाते हुए बोला " भईया आज विकास चाचू ने मुझे कॉल किया था?"

ये सुनते ही प्रीतम गुस्से से खड़ा होते हुए बोला " मीनू तुझे कितनी बार समझाया है की मेरे सामने उस मनहूस विकास अंकल का नाम भी मत लिया कर। मुझे नफरत है उस इंसान से और उसके पूरे खूनी खानदान से।"

मीनू - " लेकिन भईया चाचा चाची और उनके परिवार के सभी लोग आपसे बहुत प्यार करते हैं। वो सिर्फ आपके बारे में ही पूछ रहे थे।"

प्रीतम गुस्से से मेज पर हाथ मारते हुए - " उन जालिमों ने मुझसे मेरे माता पिता को छीना है। आज के बाद में मेरे सामने उस खानदान के किसी सख्स का नाम भी मत लेना और उनके सभी मोबाइल नंबर डिलीट कर दो। समझे।"

प्रीतम ने डिनर बीच में ही छोड़ दिया और गुस्से से तेजी में सीढ़ियां चढ़ते हुए अपने कमरे में चला गया।

मीनू धड़ाम से चेयर पर बैठ गया और अपने सर पर हाथ रखते हुए बोला " पता नहीं ये सबकुछ कब सही होगा? अपने सगे चाचा चाची को भी भईया गलत समझते हैं।"

प्रीतम अपने कमरे में गया और ड्रिंक की बोतल निकालकर एक ही बार में सारी ड्रिंक खत्म कर दी। प्रीतम कुछ देर तक बालकनी में खड़ा रहा और फिर सोने के लिए चला गया।

मीनू ने भी डिनर किया और फिर सोने चला गया।।।।

सतनाम वाहेगुरु।।





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