(22)
( अंतिम भाग )
“ आज कैसी बातें कर रही है बेटा ? यहाँ तो है ही तेरा घर लेकिन अभी वहाँ पर है तो उसे ही अपना घर समझ और रुचि आंटी को अपनी माँ क्योंकि मैं तो वहां पर हूं नहीं, फिर तू देखना कि तुझे वहाँ अपने घर से ज्यादा अच्छा लगेगा । तेरा दिल भी लगा रहेगा और तू परेशान भी नहीं होगी।“
“ मम्मी यह सब बेकार की बातें छोड़ो । मुझे घर की और आप सब की बहुत याद आ रही है । पता नहीं अब हम कैसे अपने घर तक पहुंचेंगे ? कब हम मम्मी आप से और पापा से मिल पाएंगे ? कितनी ख्वाहिश है मेरी कि मैं यहां पर अपना घर बना कर आप लोगों को अपने पास बुला लूंगी । अपने साथ ही रखूंगी और हम सब पहले की तरह मिलजुल कर एक साथ रहेंगे । लेकिन इस लॉक डाउन ने सारा किया धरा चौपट कर दिया । मैंने जो सोचा था वह कुछ भी नहीं हुआ मम्मी।”
“अरे बेटा ।“
“मुझे आपके पास घर आना है, मुझे पापा से मिलना है। मुझे भी आप लोग के साथ ही रहना है । भाई अभी तक तो कभी नहीं आते । अब कैसे आ गए हैं ?”
एक साथ कई सारे सवाल और बातें उसने मम्मी से कह दी ।
“बेटा यह लोग आ गए तो सही ही तो हुआ न । पापा इस लॉकडाउन में कैसे बाहर का सब कुछ देख पाते कर पाते ? अब तेरा भाई आ गया है तो वह ही घर के राशन पानी, दूध, फल, सब्जी आदि सब चीजों का ध्यान रख रहा है घर संभाल रहा है और भाभी ने अब हमें और घर व चौके को अच्छे से संभाल लिया है । मुझे कोई परेशानी नहीं है बेटा, मैं अब बस यही चाहती हूँ तू जहाँ भी रहे, हमेशा सुखी रहे । अच्छी जगह जाये, पर मुझे पता है, तू रुचि के घर में बहुत ज्यादा सुखी होगी बल्कि अकेले रहने से लाख गुना ज्यादा सुखी और तू जो बनना चाहती है न, वह तो बन ही गई है। तेरी और भी सारी ख्वाहिशें ईश्वर पूरी करेगा और लॉकडाउन खुलते ही तेरा भाई तुझे लेने के लिए वहां चला आयेगा, तू बिलकुल फिक्र न कर ।“ मम्मी ने उसे प्यार से समझाते हुए कहा।
कहीं रुचि आंटी ने मम्मी को वही सब बातें दोहरा तो नहीं दी, जो बचपन में वह मम्मी के साथ बैठकर किया करती । शायद उन्होंने ऐसा ही किया होगा, मुझे लगता है उन्होंने जरूर यह सब बातें कहीं होंगी तभी तो मम्मी पापा एकदम से बेफिक्र होकर बैठ गए हैं लेकिन नहीं उसे नहीं करनी है किसी से यूं ही शादी, वह तो अपनी पसंद से शादी करेगी जहां उसका दिल गवाही देगा । जहां उसके विचार मिलेंगे । जब कोई उसके दिल को छुयेगा, उसके मन को छुयेगा और जो उसकी भावनाओं को समझेगा वही पर शादी करेगी । ऐसे किसी से थोडे ही ना कर लेगी शादी । अगर मम्मी ने बचपन में शादी तय कर भी दी तो वह इस शादी को बिल्कुल नहीं मानेगी, न ही हाँ करेगी ।
अब तो कोई सहारा नहीं बचा । मम्मी और रुचि आंटी लगता है एक हो गए हैं । अब उसे पापा से ही बात करनी होगी शायद पापा ही कोई रास्ता निकाल दें, शायद पापा उसे किसी तरह से यहां से घर ले जाए ? वह कितनी मजबूर हो गई है । अभी तक तो कभी उसके सामने ऐसी कोई मजबूरी आई ही नहीं है, हमेशा कदम दर कदम आगे ही बढ़ती चली जा रही है । अब उसे कोई परवाह नहीं है, कोई फिक्र नहीं है, बस एक ही चिंता रहती है कि किसी तरह से वह अच्छे से कुछ बन जाए और अपने मम्मी-पापा को हमेशा अपने साथ रखें और कभी भी उनको अपने से दूर न जाने दे, लेकिन वह भूल गई है कि वह एक लड़की है और आज भी हमारे समाज में एक लड़की को पराया धन ही समझा जाता है । जो भाई कभी उन्हें देखने नहीं आता, कभी उनसे ढंग से बात नहीं करता और अब वही उनका अपना है और वो अब पराई हो गयी है । अपनी जरूरत पड़ने पर घर आ गया तो अब मम्मी पापा इतने खुश हो गए हैं, उन्हें लग रहा है कि वह उनका सपोर्ट करने के लिए आया है उन्होंने एक बार यह नहीं सोचा कि वह अपनी जरूरत से वापस चला आया है ना कि मम्मी पापा को सपोर्ट करने के लिए आया है।
जरूर कोई ना कोई बात रहीं होगी, सब समझती हूँ आखिर अपने मम्मी पापा की बेटी हूं किसी और की बेटी नहीं हो सकती, कभी नहीं हो सकती । मैं पराई नहीं हूँ मुझे अपने मम्मी पापा के साथ ही रहना है और उन्हें अपने साथ रखना है लेकिन यहाँ से कैसे निकल कर जाएगी ? इस लॉकडाउन में कबीर यहाँ पर एक आखिरी सहारा था अब तो वो भी चला गया, आज जब वो यहाँ नहीं है तब उसकी अहमियत का पता चली। हम तमाम उम्र यूं ही निकाल देते हैं और रिश्तों की परवाह नहीं करते लेकिन जब वो दूर चले जाते हैं तब अहसास होता है कि उस रिश्ते की जीवन में क्या अहमियत है ।
उसे समझ नहीं आता है कि एक लड़की इतनी कमजोर क्यों होती है ? क्यों नहीं वो सब कुछ कर सकती है ? जैसे एक लड़का कर सकता है । वह भी सब कुछ करेगी, वहां से किसी तरह से निकल जाएगी और अपने मम्मी पापा के पास पहुंच जाएगी फिर वही रहेगी और वापस आने पर उन लोगों को यही पर अपने साथ रखेंगी। परेशानियाँ आती है तो भी क्या हुआ ? परेशानियाँ हमें अनुभव देती हैं और अपने अनुभवों से ही हम मजबूत बनते हैं। वह हिम्मत से काम लेगी और लड़को की जैसे बनकर दिखा देगी बल्कि उनसे भी कई गुना अच्छा बनकर दिखा देगी । उसने ना जाने कितने ही विचार अपने मन में बना डाले थे कि किस तरह से वो अपने घर जाएगी । आज तो मम्मी ने जल्दी से फोन काट दिया, क्या हो गया है मम्मी को ? पहले तो मम्मी बहुत बात करती मुझसे, उनसे फोन पर कभी बात करने में जरा सी भी देर हो जाती तो उनका उधर से फोन आ जाता। कभी कभी तो फोन न कर पाने पर मुझसे कितना नाराज हो जाती हैं और फिर एक एक बात बता देती, शहर की, मोहल्ले की, गली के पास पड़ोस वालों की और रिश्तेदारी की हर एक बात बता देती, तभी मम्मी को सुकून मिलता, अब ऐसा क्या हो गया कि मम्मी ने दो बातें की और फोन रख दिया उसे अपने पापा से बात करनी होगी।
“मानसी बेटा .......।” रुचि आंटी की आवाज आई।
“जी आंटी जी ...... तभी फोन की घंटी बज उठी .... अरे कबीर का नंबर ..... हाँ कबीर कहाँ पहुंचे तुम।“
“तुम तक।“
“क्या मतलब ?”
“हाँ मानसी, मैं तेरी बिल्डिंग के नीचे खड़ा हूँ, बस एक झूठ बोलना पड़ा मुझे तुम तक आने के लिए ...।”
“क्या तुम सच कह रहे हो कबीर ?”
“हाँ बिलकुल ।“
“तुम वहीं रुको मैं आती हूँ तुम्हारे पास, जैसे सब पैदल ही घर की तरफ निकल रहे हैं न, वैसे ही हम भी चलेंगे ।“
“उसकी जरूरत नहीं पड़ेगी मानसी, आज से ही फ्लाइट चलना शुरू हुआ है और मैंने दो टिकिट बुक कर दिये हैं .....”
ओहह कबीर! तुम कितने अच्छे हो उसने मन ही मन कहा । उसका जी चाहा अभी जाकर कबीर के गले से लग जाये । यही है मेरा प्यार, हाँ मेरा सच्चा प्यार, जो आपके मन की बात को बिना कहे समझ जाए और वो सब ख़ुशी देने को हर पल तैयार रहे, वो ही तो होता है सच्चा इन्सान और सबसे प्यारा भी ।
“आंटी आज मेरी दो घंटे के बाद फ्लाइट है और मुझे अभी निकलना होगा ..”
“क्या कह रही हो तुम ....उनकी आँखों में अचरज उभर आया, मानों उसे अपनी बेटी बनाने के उनके ख्वाब टूट रहे हो ...”
“जी आंटी जी, कल जैसे ही इंटरनेट पर देखा कि फ्लाइट के टिकिट बुक होने शुरू हो गए हैं वैसे ही एकदम से मेरे फ्रेंड ने मेरा टिकिट बुक कर लिया ।”
“तुम्हें बाहर के हालात पता हैं न, लोग पैदल ही अपने घरों की तरफ जा रहे हैं, सड़कें भरी हुई हैं । टीवी पर दिखा रहे हैं कि आधे रास्ते में कोई भूख से तो कोई बीमारी से दम तोड़ रहा है।कितनी तकलीफ और परेशानी उठा रहे हैं लोग,”
“हाँ इसलिए ही उसने फ्लाइट बुक कर ली किसी तरह चार घंटे निकल ही जाएँगे ।”
मानसी ने अपना बैग उठाया और आँटी के पास आ गयी । हालांकि उसके बैग में कुछ ज्यादा सामान नहीं है, बस लैपटॉप और दो चार कपड़े ही हैं । “
“अच्छा आंटी अब मैं चलूँ ?”
“इतनी जल्दी बेटा ? मुझे पहले ही बता देती ।”
“हाँ आँटी अभी निकलना होगा और मुझे भी अभी ही उसने बताया इसलिए मैं आपको नहीं बता पायी ।“
“हमेशा मेरे साथ काम में हाथ बटाती रहती तुम, हम तुझे बहुत मिस करेंगे बेटा ।“ उनकी आँखें झलक पड़ी ।
“मुझे भी बहुत अच्छा लगा, हम फिर जल्दी से मिलेंगे लेकिन आज तो मुझे जाना ही होगा क्योंकि मेरी फ्लाइट का टिकट है।“ मानसी की इस बात से आंटी का चेहरा बिल्कुल उतर गया है, उन्हें तो लगा होगा कि शायद अब मानसी उनकी ही हो गई है ना जाने उनके मन में ऐसे विचार कैसे आ गए कि वह एक आज के जमाने में किसी भी लड़की को बिना उसकी पसंद जाने उसे अपनी बहू बनाने को तैयार हो गई और उनका लड़का वह भी तो पसंद नहीं करेगा इन सब चीजों को क्योंकि वह भी तो आज के जमाने का ही है न और अब ऐसा होता ही कब है। अब तो जिसे जो पसंद है जिससे मन मिल जाए, उसी के साथ विवाह करना अच्छा लगता है, मन को एक सकूँ सा रहता है ।
एयरपोर्ट तक कैसे जाओगी ? कैब बुक करो या फिर मैं किसी से छुडवा देती हूँ ।
नहीं ऑंटी जी परेशां होने की कोई जरुरत ही नहीं है मेरा दोस्त नीचे रोड पर खड़ा है ।
ओह्ह्ह ! कोई लड़का है ?
जी हमारे शहर का ही है और मेरे घर के पास ही रहता है । मानसी को यह सब बातें क्लियर करते हुए बड़ा बुरा लग रहा है लेकिन अगर नहीं बताएगी तो वे न जाने क्या क्या सोचती रहेंगी लेकिन मुझे क्या फर्क पड़ता है अगर वे कुछ भी सोचती हैं तो सोचने दो । मानसी ने अपना सर झटका और उनके पैर छूकर निकलने लगी तो रुचि आँटी कहा एक मिनट रुक जाओ बेटा और वे अन्दर कमरे में चली गयी फिर आकर उसको एक मिठाई का डिब्बा, 500 रुपये, और गणपती की मूर्ति उसको देते हुए कहा कि यह गणपती मेरा आशीष है इसे संभाल कर अपने पास रखना। साथ ही खाने के लिए कुछ सैंडविच उसको पैक कर के रख दिए हैं, नमकीन बिस्किट के पैकेट का एक अलग से बैग बनाकर उसको पकड़ाते हुए बोली, “बेटा रास्ते में भूख तो लगेगी न क्योंकि फ्लाइट में अभी खाना नहीं मिलेगा अगर साथ में कुछ होगा तो उसे आराम से खा तो लोगी,”। उसने आंटी के फिर से पैर छुए तो उन्होने अपने गले से लगा लिया और सुबकते हुए बोली, “मैंने ईश्वर से हमेशा एक बेटी मांगी, पर ईश्वर ने मुझे दो बेटे दिये लेकिन तुमने यहाँ आकर मेरी उस कमी को पूरा किया है अपना ख्याल रखना बेटी ।” वे उदास हो गयी हैं और अब उनकी आँखें छलक पड़ी हैं । मानसी भी खुद को रोक नहीं पाई और वो भी रो पड़ी ।
“वहां से निकल कर बाहर आई तो देखा कबीर खड़ा हुआ उसका इंतजार कर रहा है।“ जी चाहा दौड़ कर जाये और उसे कसकर अपने गले से लगा ले । बस यही है उसका और वो भी सिर्फ कबीर की ही है। उसने उसके मन को छुआ और जो मन को छू ले वो ही तन मन का हकदार हो जाता है । कितना कुछ कहना था उसे कबीर से लेकिन वो खामोशी की चादर लपेटे कबीर की बाइक पर बैठ गयी है ।
“क्या हुआ मानसी, बड़ी उदास लग रही हो सब ठीक तो है न?”
“हाँ, कबीर अब सब ठीक है।“
“बस दो घंटे बाद की फ्लाइट है वहाँ पहुँचना भी जल्दी था, बहुत तेज बाइक चला कर निकलना होगा, तभी एयरपोर्ट पर समय से पहुँच पाएंगे।“
“हाँ कबीर।” यह कहते हुए मानसी ने कबीर को हल्के से पकड़ लिया और मुस्कुरा दी। यही होता है प्यार, जो मन की बात को समझे और बिन कहे परवाह करे अपना हक जताते हुए ।
उसने देखा रोड पर बहुत ज्यादा भीड़ है, जैसा टीबी में दिखाया जा रहा ठीक वैसे ही लोग पैदल अपने घर की तरफ जा रहे हैं । बच्चे बूढ़े जवान सब सड़क पर आ गए हैं । सभी को अपने घर, अपने गाँव और अपनों के पास जाने की बेचैनी है, समय ही ऐसा है कि अपनों से दूर नहीं रहा जा सकता । मानसी भी अपने घर, अपने शहर और अपनों के बीच जाने को बेचैन है । आंटी सच ही कह रही लेकिन वो इस भीड़ का हिस्सा तो बिलकुल भी नहीं है, उसे लगा मानों उसके पंख आ गए हैं । शायद उसकी वो हर मन्नत अब पूरी होने वाली है, जो उसने आजतक मन ही मन मांगी है ।
समाप्त
सीमा असीम सक्सेना,