और उसने - 8 Seema Saxena द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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और उसने - 8

(8)

“ हाँ अलका अपना यह शहर दुनिया का सबसे प्यारा शहर है क्योंकि यहाँ पर तू रहती है वैसे आज लग रहा है अंधेरी रात है तभी चंद्रमा कहीं दिखाई नहीं दे रहा है और चांदनी भी गायब है ।“

“हाँ यार, तभी तो इतने सारे तारे साफ दिख रहे हैं और इतने अच्छे से चमक रहे हैं।”

“काली अंधेरी रात में चमकते हुए तारों में इतनी रोशनी हो रही है कि अगर स्ट्रीट लाइट भी बंद हो जाए ना, तो भी खूब रोशनी रहेगी ।“

“हाहा पागल है तू मानसी ।“ अल्का ज़ोर से हँसती हुई बोली ।

“तू टार्च लेकर आई है ?”

“नहीं, मम्मी हमेशा अपने साथ रखती हैं । मम्मी की फोल्डिंग पर रखी हुई है अगर कोई दिक्कत होगी तो वहां से उठा कर ले आएंगे ।”

“तेरी मम्मी तो तेरी छत पर है और हम दोनों इधर इस छत पर ।“

“तो क्या हुआ दोनों छतें पास में ही तो है, एक दुसरे से जुडी हुई ।“

“हाँ वो तो है । वे दोनों बहुत देर तक आपस में यूँ ही बातें करते रहे और बातें करते करते ही सो गए ।”

अचानक से मानसी की आँख खुल गयी तो उसने देखा कि अलका का भाई भी वहां पर आकर सोया हुआ है ।

अरे यह यहां पर कैसे आ गया, वो उससे वैसे तो बहुत बडे हैं लेकिन जब कभी वह उसकी तरफ देखते हैं तो उनके देखने का ढंग थोड़ा अलग सा लगता है, पता नहीं कैसे भाव होते हैं उनकी आंखों में ? अलग सी लगती हैं उनकी आँखें न जाने क्या छुपा हुआ लगता है । जिसे देखकर वह अंदर से कभी-कभी सहम भी जाती है और आज वह उसके पास आकर सो गये । उसको डर भी लगा रहा था और घबराहट भी हो रही थी फिर भी उसने अपनी आंखें बंद कर ली क्योंकि भाई तो एक तरफ करवट लेकर सो रहा था और उसने दूसरी तरफ को करवट ले ली जिधर अल्का लेटी थी और आंखें बंद करके सोने की कोशिश की और मन ही मन गायत्री मन्त्र का पाठ करने लगी ।

मानसी कब सोई उसे पता ही नहीं चला लेकिन जब सुबह आंख खुली तो देखा अलका का भाई वहाँ पर नहीं था, अलका उसके पास में ही सो रही थी । थोड़ी थोड़ी सी रोशनी होने लगी थी, वैसे अभी सुबह नहीं हुई थी अंधेरा सा था लेकिन चिड़ियों की चहचहानें की वजह से उसकी आंख खुल गई थी, वैसे भी छत पर सोने पर ऐसा ही होता है कि थोड़ा जल्दी आंख खुलती है जब थोड़ा सा अंधेरा सा होता है या थोड़ा थोड़ा दिन निकलने लगता है तभी आंख खुल जाती है, अक्सर ऐसा ही होता है । मानसी ने अल्का को उठाया और कहा, अब मैं नीचे जा रही हूं, तू भी उठ जा । अलका उठी, उसने चटाई समेटी और मानसी अपना तकिया चादर लेकर नीचे आ गई देखा पापा और मम्मी दोनों जग गए हैं और चाय पी रहे हैं । वह अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर लेट कर सो गई । रात भर वैसे भी वो सही से नहीं सो पाई थी क्योंकि कभी छत पर सोती नहीं है और जिस दिन छत पर सो जाए तो फिर उस रात नींद पूरी होती नहीं है इसलिए कमरे में आते ही सो गई । थोड़ी देर के बाद मम्मी ने उसे उठाते हुए कहा, “मानसी अब तू उठकर अपने आर्टिकल की तैयारी कर ले फिर दिन में कोई ना कोई अड़चन लग जाती है और तेरा सारा काम रुक जाता है ।“

“हाँ मम्मी, मुझे तैयारी करनी है, कल रात भी नहीं कर पाई थी।” मानसी ने उठते हुए कहा।

“तो उठ न बेटा, मैं तेरे लिए चाय लेकर आती हूँ ।” मम्मी ने मानसी से कहा तो मानसी ने मना करते हुए कहा, “रहने दो मम्मी मैं बना लूँगी, आप मंदिर चली जाईए।”

“बेटा आज मुझे मंदिर नहीं जाना है ।“

“क्यों मम्मी ? आज तो संडे है मैं घर में सब काम देख लूंगी ।“

“नहीं नहीं बेटा, पापा की तबीयत सही नहीं है तो मैं नहीं जा रही हूँ।“

और सुनो मैं चाहती हूं कि तू अपना आर्टिकल तैयार कर ले ।“

“जी मम्मी, मैं अभी उठ रही हूँ । मैं आर्टिकल भी तैयार करती हूँ ।“ मानसी उठी उसने बेड की चादर सही की और सिर्फ पानी से कुल्ला करके अपनी किताबें कॉपी लेकर बैठ गई । उसने सोचा पेस्ट नहाते समय कर लेगी । तब तक मम्मी चाय और बिस्किट लेकर आ गई । मानसी बेटा पहले बिस्किट खा कर चाय पी लो फिर अपने काम करो ।

नहीं मम्मी मैं सुबह सुबह बिस्किट नहीं खाऊंगी । अभी मैंने पेस्ट भी नहीं करा है ।

तो फिर तुम खाली चाय पिओगी? पता है न कि खाली चाय नहीं पीते हैं । एक बिस्किट तो खा ले ।

“नहीं मम्मा, प्लीज, मेरा बिल्कुल मन नहीं है । मैं बिस्किट नहीं खाऊंगी ।“ नींद पूरी न होने से उसे मन ठीक नहीं लग रहा था ।

मम्मी ने जबरदस्ती करके एक बिस्किट खाने को दे दिया । मानसी चाय भी पीती जा रही थी और अपने आर्टिकल को भी रिवाइज करती जा रही थी । जहां पर थोड़ा बहुत गलत लग रहा था उसे भी सही करती जा रही थी । उसको अच्छे से तैयार करके और थोड़ा बड़ा करके फिर उसे बार-बार लिख लिख कर, बोल बोल कर याद करना था । बार बार लिखने से और अच्छे से याद हो जायेगा क्योंकि कोई भी चीज अगर हम बोल बोलकर लिखते हैं तो बहुत अच्छे से तैयार हो जाती है और वह अच्छे से लय में भी आती है, कहीं कोई रुकावट महसूस नहीं होती है । मानसी ने भी ऐसा ही किया, वह बोल बोल कर और पेंसिल से लिख लिखकर याद करती जा रही थी । उसने एक घंटे के अंदर ही पूरा आर्टिकल याद कर लिया । अब उसको इसे खड़े होकर अच्छे से बोलना था और थोड़े फेशियल एक्सप्रेशन भी देने थे । जैसे हाथों के, आंखों के, चेहरे के हाव भाव आदि । उसने वह सब भी करना शुरु कर दिया । अभी कुछ ही देर हुई थी कि मम्मी कि आवाज आई, बेटा मानसी, अब तुम उठो और जाओ, नहा धो कर तैयार हो जाओ फिर बाकी का बचा काम बाद में कर लेना क्योंकि अभी तो कंपटीशन के करीब 8, 10 दिन है तब तक देखना बहुत अच्छे से तैयार हो जायेगा ।

“जी मम्मी मैं अभी आ रही हूँ ।”

“हाँ बेटा,नाश्ता बन गया है ।”

“ठीक है आती हूँ ।”

“देखना तुम सबसे अच्छे अंको के साथ कंपटीशन जीत जाओगी । फर्स्ट प्राइज पर तुम्हारा नाम ही लिखा होगा।”

“हाँ मम्मी, मैं यही तो चाहती हूँ। आपका और पापा का आशीर्वाद हमेशा हमारे ऊपर बना रहे। आपका विश्वास है ना मुझ पर तो मैं जरूर फर्स्ट प्राइज़ लेकर ही आऊँगी ।”

“बेटा मुझे पता है ।” मम्मी की सकारात्मक बातों से मानसी के मन में एक कॉन्फिडेंस आ गया था । उसने जल्दी से सब समेटा और नहा धोकर तैयार होकर पापा के पास जाकर बैठ गयी। “और पापा, अब बताओ तबीयत कैसी है ?”

“बेटा अब मैं बिल्कुल ठीक हूँ । मानसी बेटा यह तेरी वजह से ही एक दिन में सब सही हो गया ।“

“एक दिन में नहीं बल्कि एक डोज़ में कहिए आप सही हो गए ।“ मानसी मुसकुराई।

“बेटा जब तुम सब लोग इतना प्यार और ख्याल रखने वाले हो और हमारा डॉक्टर इतना अच्छा है तो 1 दिन में क्या हमें तो सिर्फ एक डोज़ में ही सही होना था न।” पापा भी मुस्कुराये।

“चलो पापा यह अच्छा हुआ कि आप एक डोज़ में ही सही हो गए हैं लेकिन अभी कम से कम दो दिन आराम करो।” और सुनो पापा आप सारा क्रेडिट मुझे ही मत दो, अलका की मम्मी, अलका के भाई और अलका ने भी तो आपकी बीमारी में थोड़ी सी हेल्प की है । उनके खाने से आपको एनर्जी मिली और आप सही हुए । मानसी ने बड़े जोर से हँसते हुए यह बात अपने पापा से कही थी ।

“मानसी बेटा तू यह बात भी सच कह रही है । अल्का की मम्मी ने बड़ा अच्छा खाना बनाया था । तेरी मम्मी भी अच्छा खाना बनाती है लेकिन उस खाने में स्वाद ही थोड़ा अलग था ।” वह चिढ़ाने के अंदाज में मम्मी की तरफ देखते हुए बोले।

“पापा ऐसी बातें मत करो, मम्मी सुन रही है । देख लो मम्मी के चेहरे की हालत।”

“अरे बेटा कोई बात नहीं है । मम्मी कुछ नहीं कहेंगी । मुझे पता है तेरी मम्मी भी बहुत अच्छा खाना बनाती है लेकिन वह तो मैं मजाक कर रहा था । यार तेरी मम्मी के हाथ का तो मैं रोज ही खाता हूँ । अल्का की मम्मी तो कभी कभी बना कर देती है तो उनकी तो तारीफ करनी ही चाहिए।”

“हाँ पापा आप यह बात भी सही कह रहे हो।“

“चलो पापा अब नाश्ता कर लो फिर आप अपनी आज की दवाई भी खा लो । फिर आज शाम तक तो आप बिल्कुल फिट हो जाओ, लेकिन आपको काम पर नहीं जाना है । अभी आपको आराम करना ज्यादा जरूरी है । तो आप मुझे बताओ, आप काम पर जाओगे कि घर में आराम करोगे ?” मानसी पापा को उनकी माँ की तरह धमकाते हुए बोली।

“बेटा जो तू कहेगी मैं वही करूंगा । बस अब तो एक ही ख़्वाहिश बची है कि तेरी जल्दी से पढ़ाई पूरी हो जाये । हाँ पर शादी जल्दी नहीं करूंगा अपनी लाडो का।“ पापा ने स्नेह से मानसी की तरफ देखते हुए कहा ।

“लेकिन आप दीदी को भी तो खूब पढ़ा रहे हो? वह भी तो पढ़ रही है ।”

“बेटा उनको सरकार से स्कॉलरशिप मिल रही है, आगे पढ़ने के लिए, लेकिन मैं तुझे उनसे भी ज्यादा पढ़ा लिखा लूंगा, उससे भी बड़ा बना आदमी बनाऊँगा ।”

“ठीक है पापा, मैं खूब पढ़ूँगी लिखूंगी और आपका नाम जरूर रोशन करूंगी ।“

मम्मी ने किचन से आवाज लगाते हुए कहा, “मानसी आज क्या केवल बातें कर करके ही पेट भरना है ? क्या आज कुछ नाश्ते में खाना नहीं है ?”

“नहीं नहीं मम्मी ऐसा नहीं हैं, अब बातें बंद, मैं आ रही हूँ, बस पापा को थोडा समझा रही थी न ।”

“ठीक है अब तो आ जाओ बेटा, आज मैंने नाश्ते में हलवा और नमक अजवाइन की पूड़ियाँ बनाई है । तुझे और तेरे पापा दोनों को बहुत पसंद है ना ? ले जाओ आकर।”

“जी मम्मी, मानसी उठी और पापा के लिए नाश्ता ले कर आ गई।”

“मानसी तेरी मम्मी के हाथों में तो जादू है जादू, उनके खाने में जो स्वाद है ना सच में किसी के खाने में भी नहीं होता है । भले ही वह कितना भी अच्छा खाना हो लेकिन तेरी मम्मी जैसा खाना दुनिया में कोई नहीं बनाता ।” मानसी के पापा ने पूरी खाते हुए कहा।

“अच्छा पापा, अगर आपको मम्मी के हाथ का खाना अच्छा लगता है तो फिर अभी बैठकर आप अलका की मम्मी के खाने की इतनी तारीफ क्यों कर रहे थे ?”

“अरे वह तो तेरी मम्मी को छेड़ने की वजह से कर रहा था । देख रहा था कि वह इस बात पर क्या रिएक्शन देती है ?” पापा मुसकुराते हुए बोले ।

“पापा आप भी न कभी नहीं सुधर सकते, अब तो मम्मी को परेशान करना छोड़ दो और मम्मी की हेल्प करना शुरू कर दो ?”

“अरे मानसी तेरा नाश्ता कहाँ है और मम्मी को भी बुला लो । क्या वो किचिन में काम ही करती रहेगी ?”

“हाँ पापा मैं अपनी और मम्मी की प्लेट लेकर आती हूँ और उन्हें बुलाकर भी लाती हूँ लेकिन आप उनको चिढ़ाएंगे नहीं ।“मानसी ने उनको ऊँगली दिखाते हुए बोला ।

“ठीक है बाबा, मैं कुछ नहीं कहूँगा एक दम से मुंह बंद रखूँगा, देखो ऐसे। पापा ने मुंह में हवा भरकर बंद करते हुए कहा ।“

मानसी उनका मुंह देखकर ज़ोर से हंस पड़ी ।

“मेरी बेटी बहुत प्यारी है, अब तुम दोनों जल्दी से नाश्ता करो, नहीं तो मैं फिर से बोलना शुरू कर दूँगा ।” पापा ने धमकाया ।

“हाहाहा, पापा आप भी न बच्चों की तरह से हरकतें करते हो ।“ यह कहते हुए मानसी मम्मी के साथ नाश्ता करने बैठ गयी ।

पापा की तबीयत सही होने से घर का माहौल थोड़ा अच्छा हो गया था । घर में अच्छा लग रहा था । मम्मी घर के काम करने में लगी हुई थी और मानसी पापा के पास बैठी उनसे बातें कर रही थी पापा कितने प्यारे लग रहे थे । जब वे हंसते हैं तो कितने अच्छे लगते हैं । भगवान जी उनको कभी दुख मत देना क्योंकि जब उनको कोई तकलीफ होती है ना, तो मानसी को बहुत ज्यादा तकलीफ होती है । उसे याद आया ज़ब वह छोटी सी थी और कभी तबीयत खराब हो जाती थी तो पापा रात को अपने पास सुलाते थे और रात भर कभी पैर कभी सिर दबाते रहते थे । पापा उसे कहानी भी सुनाते थे, एक शेर वाली कहानी.. एक बकरी वाली कहानी बकरी के चार बच्चे थे, आले वाले चेउ मेउ, । आज पापा की तबीयत खराब है तो.छोटी छोटी बातें याद आ रही थी । वे आराम कर रहे हैं अब पापा की उम्र हो गई है तो अच्छा नहीं लगता कि वह काम पर जाएं या फिर कुछ भी काम करें । मानसी जल्दी से बड़ी हो जा तो फिर कम से कम तू घर तो संभाल लेगी मानसी ने खुद को ही एक बार कहा और बोली, “अच्छा पापा अब मैं जाऊं ? मैं अपना काम कर लेती हूं जल्दी से आर्टिकल और याद कर लेते हैं।”

“पता नहीं और कितना करेगी, मुझे कुछ समझ नहीं आता?”

“पापा मुझे इतना पता है कि मैं जल्दी से बड़ी हो जाऊं फिर मैं आप सब की खूब सेवा करूंगी । आपको कभी कोई काम नहीं करने दूंगी । जो भी काम होगा वह नौकर करेगा मैं आपके हर काम के लिए एक एक नौकर लगा दूँगी । आप और मम्मी बस आराम करना।”

“हाँ हाँ बेटा, तू ऐसा ही करना । अच्छा अब तू जा कर अपना काम कर ले।”

मानसी अपने कमरे में आ गई उसे लगा कि अगर वह जल्दी से बड़ी हो जाये तो सब कुछ सही हो जायेगा। अभी वह छोटी है कुछ नहीं कर सकती क्योंकि पैसे कमाने के लिए पढना लिखना और बड़ा होना जरुरी है, वो मन ही मन यह गाना गुनगुनाने लगी “मेरे बचपन तू जा, जा जवानी ले आ।”

जब हम बचपन में होते हैं तो कितनी जल्दी होती है बड़े होने की । अक्सर ऐसा ही होता है, जब हम छोटे होते हैं तो बड़ा होना चाहते हैं और जब बड़े हो जाते हैं तो हमें बचपन याद आता है । मम्मी और पापा दोनों ही अपने बचपन की कितनी बातें बताते रहते हैं । वैसे छोटे लोगों को सबका प्यार और दुलार मिलता है, वह बहुत लकी है क्योंकि वह सबसे छोटी है । वह कितनी भी बड़ी हो जाए, तब भी सबसे छोटी ही रहेगी और सबका लाड प्यार उसे यूं ही मिलता रहेगा ।

क्रमशः...