और उसने - 9 Seema Saxena द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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और उसने - 9

(9)

मानसी ने अपना आर्टिकल खोला और उसे रिवाइज करना शुरू कर दिया हालांकि उसे बहुत अच्छे से याद हो गया है लेकिन उसे तो जैसे बिल्कुल धुन सवार हो गई थी कि इसे बहुत अच्छे से तैयार करना है, फिर सुनाना है कि कोई भी कुछ भी कमी ना निकाल पाए । अभी वह पढ़ ही रही थी कि थोड़ी देर के बाद उसे अलका की आवाज सुनाई दी । इस अलका को भी चैन नहीं है, थोड़ी देर अपने घर में नहीं रह सकती क्या हमेशा उसके पीछे ही लगी रहेगी ? चैन से बैठे, अपने घर का काम करें, ऐसे तो वह घर का सारा काम ही करती है, झाड़ू पोछा भी वही करती है, अपनी मम्मी की हर काम में हेल्प भी करती है । अपनी मम्मी के साथ खाना भी बनाती है, उनके साथ कपड़े धुलवाती है । जो भी घर के काम होते हैं उन सब में अलका पूरी हेल्प करती है। मानसी ने सोचा।

“ चाचा जी अब आपकी तबीयत कैसी है ?” अल्का के बोलने से उसका ध्यान भंग हुआ ।

“अब तो मैं बिल्कुल ठीक हूं बेटा, तुम्हारी और बाकी तेरी मम्मी और तेरे भाई के द्वारा जो इतनी अच्छी कल सेवा हुई थी ना, उसने मुझे बिल्कुल चंगा कर दिया है।“

“अरे चाचा जी, यह तो इतनी सी बात थी हम लोग तो हमेशा आपके साथ हैं। आप कभी परेशान ना होना । चाचा जी मानसी किधर है ?”

“ मानसी तो अपने कमरे में है।“

“हां मुझे भी पता है कि वह कमरे में ही होगी, उसे धुन सवार हो गई है। वैसे भी उसे एक धुन सवार हो जाती है तो सवार हो ही गई समझ लो। जब तक मानसी पूरी तरीके से एक एक अक्षर को घोल कर पी नहीं जाएगी, तब तक वो उसका पीछा छोडने वाली नहीं है । ऐसे ही वह हर सब्जेक्ट में करती है । उसका बस चले तो वह मैथ को भी घोलकर पी जाए लेकिन मैथ पर उसका कोई बस नहीं चलता है। वो घबरा जाती है कि मैं मैथ में तो थोड़ी सी सही होती । जब मैथ का पीरियड आता है तो वह कहीं ना कहीं, इधर-उधर छिपने की कोशिश करती है क्योंकि उसके मन में मैथ का हौआ बैठा हुआ है। वैसे भी मैथ की जो मैडम है ना, वे बहुत डांट लगाती हैं कान पकड़ कर क्लास से बाहर कर देती हैं फिर खड़े रहो पूरा पीरियड कान पकड़ कर क्लास के सामने, तब मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता है।”

“हाँ वो कहती तो है कि उसे मैथ से बहुत डर लगता है लेकिन यह सब नहीं बताया। मैं सोच रहा था कि मैथ की कोचिंग करा देता हूँ।“

“हाँ चाचा जी मैं भी सोच रही थी कि मैं इंग्लिश, मैथ और संस्कृत की कोचिंग करने का।“

“लेकिन बेटा संस्कृत कहां कठिन है, अभी तो तुम लोग आठवीं क्लास में पढ़ते हो, इसमें तो इंग्लिश की ट्यूशन भी जरूरी नहीं है उसके लिए थोड़ा सा टाइम है, नवीं क्लास में जरुर से टयूशन ले लेना। वैसे तुम लोगों को घर में भी कोई समझाने वाला नहीं है। अरे हाँ तुम तो अपने सनी भाई से पढ़ लिया करो।”

“चाचा जी यह बात आपने बिल्कुल सही कही है, मैं भी ऐसा ही सोच रही कि मैं और मानसी दोनों मिलकर भैया से मैथ पढ़ लिया करेंगे, जब वह शाम को ऑफिस से आते हैं तब हम दोनों को पढ़ा दिया करेंगे।”

इतनी देर से मानसी, अलका और अपने पापा की बातें सुन रही है। उसने सोचा, कि यह पागल अलका सीधे उस के कमरे में ही आयेगी फिर घंटों बैठकर वह फालतू की बातें करनी शुरू कर देगी । उसने सोचा कि वह बाहर आ जाये लेकिन वह बाहर निकलती उससे पहले ही अलका उसके पास बेड पर आकर बैठ गई ।

“चल यार, आज कहीं बाहर चलते हैं। आज संडे के दिन भी तुझे पढ़ाई से फुर्सत नहीं है और कितना पढ़ेगी?”

यह तो तुम रात को भी यही कह रही कि कल सुबह संडे है तो कल कर लेना, आज संडे है तो तुझे आज भी मुसीबत आ रही है । तू रहने ही दे अलका और मुझे अपना काम करने दे।

“हां बाबा कर ले तू अपना काम और बन जा कलेक्टर । मैं क्या करूँ मुझे तो भैया पढ़ाई से बहुत डर लगता है।”

“तू अभी चाचा मतलब मेरे पापा से क्या बातें कर रही ?”

“कुछ नहीं बस ऐसे ही कह रही कि हम दोनों भैया से मैथ करना सीख लेंगे।”

“अब क्या सीख लेंगे ? सीधे नाइंथ क्लास में कोचिंग लेना शुरू कर लेंगे, अभी तो एक साल ऐसे ही खींच लेते हैं।”

“ठीक है जैसा तुझे सही लगे मैं तो भैया से पढ़ लूँगी नहीं तो इसी क्लास में अगले साल भी पढ्ना पड़ेगा।“अलका हंसी । मानसी सुन तुझे एक बात बताऊं ? अलका बड़ी गहरी मुस्कान से मुस्कुराती हुई उसकी तरफ देखती हुई बोली।

“ हां तू बता ऐसी कौन सी बात हो गई जो इतना मुस्कुरा रही है?” मानसी थोड़ा इरिटेट हुई।

“बड़ी, बहुत बड़ी बात है, मुझे तो आज ही पता चला कि देख जब लड़कियां थोड़ा बड़ी हो जाती है ना, जैसे 12 या 13 साल की तो उनको कुछ होता है।”

“क्या होता है ?” मानसी ने चौंकते हुए पूछा।

“उनको हर महीने एक ही डेट पर कुछ होता है?”

“अच्छा ऐसा क्या होता है?”

“तुझे कैसे समझाऊं, मैं तुझे नहीं समझा पाऊंगी लेकिन मैं बाद में तुझे बताऊंगी जरूर कि क्या होता है ?”

“ अब तो तू आज ही बता दे, बता और अभी बता, वरना मैं दिन रात यही सोचती रहूँगी और मेरे दिमाग में यही सब चलता रहेगा ।“

“देख जब लड़कियां बड़ी हो जाती हैं न तो उन्हें हर महीने पीरियड होता है।“

“कैसा पीरियड ? अगर तुमने मुझे अभी सब खुलकर नहीं बताया तो मैं उसी को सोचती रहूंगी और जो मेरा आर्टिकल बिल्कुल ठप होके रह जाएगा ।“

“हाँ मैं बताती हूं जब लड़कियां बड़ी हो जाती है ना, तो उनके अंदर एक ऐसी कोई शक्ति पैदा हो जाती है कि वह बच्चे पैदा करने लायक हो जाती हैं । यह सौभाग्य भगवान ने हमें यानीं लड़कियों को ही दिया है कि हम दुनिया को आगे बढ़ा सकें ।“

“अच्छा ऐसा होता है लेकिन फिर मुझे कभी बड़ा नहीं होना है, मैं ऐसे ही ठीक हूँ।“

“ यह हम लोगों के हाथ में थोड़े ही न होता है, यह तो एक शारीरिक प्रक्रिया है।“

“अच्छा लेकिन तुझे किसने बताया यह सब ?”

“देख मानसी मुझे भी आज ही पता चला है एक्चुअली मेरे साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ तो मैंने मम्मी को बताया फिर मम्मी ने यह सब कुछ मुझे समझाया और तू तो जानती ही है कि कोई बात जो मुझे पता चले और मैं तुझे अगर नहीं बताऊंगी तो मेरा खाना हजम नहीं होगा । पता है तुझे अब मेरी मम्मी ने कहा है कि मुझे 5 दिन तक घर में अकेले रहना होगा, चटाई पर लेटना बैठना होगा, न किसी से बोलना चालना और अलग से एक थाली में खाना दिया जाएगा और पता है ना हम लोगों में बहुत मनाया जाता है । मैं घर से बाहर नहीं निकल पाऊँगी इसीलिए मैं अभी आ गई कि बस जल्दी से बता कर घर जा रही हूं फिर मैं 5 दिन तक तुझसे मिलने नहीं आ पाऊंगी, मैं घर में ही रहूंगी स्कूल भी नहीं जाऊँगी । सुनो मानसी तुम भी मेरे घर मत आना।“

“ ऐसा क्यों करते हैं ?”

“यह तो मुझे भी नहीं पता लेकिन जो जो बातें मम्मी ने मुझे बतायी वह सब मैंने तुझे बता दी हैं, चल अब मैं अपने घर जा रही हूं वरना मेरी मम्मी यहाँ बुलाने आ जायेंगी और मेरी डांट पड़ेगी ।“

“लेकिन मुझे तो अभी ऐसा कुछ नहीं हुआ ?” मानसी ने बड़े अचंभे के साथ कहा।

“तुझे भी हो जाएगा, तू मुझ से पूरे दो साल छोटी है ना, हम लोग एक साथ पढ़ते हैं लेकिन तू मुझ से बहुत छोटी है और मैं तुझसे बड़ी हूं तो इसलिए मुझे पहले यह सब हुआ होगा । वैसे मम्मी कह रही थी कि किसी को 12 साल की उम्र में भी होना शुरू हो जाता है और किसी को 16 साल की उम्र तक भी नहीं होता है अभी तो मैं 14 साल की हूं ना, और तू अभी सिर्फ 12 साल की है ।“

“मुझे भी फिर ऐसा ही होगा, तुझे कोई तकलीफ तो नहीं हो रही है न अलका ?” यह सब जानकार मानसी घबराहट के अहसास से भर गयी।

“हाँ तुझे भी होगा लेकिन अभी एक-दो साल के बाद 14: 15 साल की उम्र में। मुझे लगता है तू टेंथ भी पास कर लेगी तब तेरा कुछ होगा । हाँ मुझे पेट में बहुत दर्द हो रहा है, अब मैं जा रही हूँ।”उसने अपने पेट को कसकर पकड़ते हुए कहा !

“नहीं अब तो तूने मेरा दिमाग खराब कर दिया, पहले मुझे यह बता कि क्यों ऐसे हर महीने होगा, फिर क्यों 5 दिन अलग रहना पड़ेगा, खाना भी अलग से खाना पड़ेगा, ऐसा हम लड़कियों के साथ ही क्यों होता है, क्यों उन्हें यह दर्द सहना पड़ता है?” मानसी के मन में अनेक सवाल पैदा हो गए हैं।

“बहन बहुत दर्द हो रहा है मम्मी कह रही थी थोड़ा अजवाइन, हींग और काला नमक गरम पानी से खा लो, शायद वे गरम पानी करके रख भी गयी होंगी । मैं अभी जा रही हूँ।“ मानसी ने देखा अल्का का चेहरा दर्द से पीला पड़ गया है ।

अलका तो चली गयी लेकिन मानसी का दिमाग परेशान हो गया है । अलका क्यों बता गई है उसे यह सब बातें ? अब उसके मन में डर बैठ गया है कि यह क्या होता है ? कैसे होता है ? क्यों होता है ? सारी परेशानियां लड़कियों को ही क्यों होती हैं? सारे दर्द सहना, चुप रहना, कुछ ना कहना, न जाने कितने प्रकार की बंदिशें और यह भी सब भी, न जाने क्या क्या उसके शरीर में होगा ?पूरा दिन वह यही सब सोचती रही जब रात को घर का काम कर रही है तब भी अलका की बातों को सोच कर उसी उधेड़बुन में लग रही । अब न जाने क्या क्या होगा । उसके साथ भी ऐसा ही होगा ? क्यों होगा ऐसा? यह होगा, वह होगा, वो पता नहीं क्या-क्या बातें सोचने लगी।

उसका मन हुआ एक बार मम्मी से जाकर बात करें लेकिन फिर सोचा मम्मी बेकार में डांट लगाएंगी कि तू कहां से नई-नई बातें सीख कर आती है फिर मुझे आकर कहती है ? अब कहां से मिलेगा मेरी इन सारी बातों का जवाब? बिलकुल पागल है अल्का कोई जरूरी तो नहीं कि मुझे हर बात बताई जाये । वो हमेशा ही ऐसा ही तो करती है और यह बात तो मैं मम्मी से भी नहीं कह पा रही हूँ । जब मेरा नंबर आता तो मुझे खुद से ही सब पता चल जाता, वो अभी से मुझे बेकार की टेंशन दे गयी ।

काफी देर तक यही बात सोचते रहने के बाद उसने फिर अपना सर झटका और खुद से ही बोली, जो भी होगा, होने दो, बाद में सब देखा जायेगा, अभी से आगे के बारे में क्या सोचना ? वैसे कहते भी तो हैं कि हमेशा अपने वर्तमान को ही जीना अच्छा रहता है, कल क्या होगा उसे कल पर ही छोड़ देना चाहिए । जिसके बारे में हमें खुद ही नहीं पता उसके लिए आज क्यों परेशान होना ?

“अरे मानसी तू क्या बड़बड़ा रही है ? रोटियाँ सिक गयी या अभी तक नहीं बनी हैं? मम्मी ने आवाज लगायी ?”

“हाँ मम्मी, बस दो रोटियाँ और सेंकनी हैं।”

खाना खाने के बाद मानसी ने फिर से बोल बोल के रटटा लगाते हुए एक्शन और एक्सप्रेशन के साथ, भाव भंगिमा के साथ अपने आर्टिकल को बोलना शुरु कर दिया ।

संडे का दिन इतना छोटा सा होता है कि पता ही नहीं चलता कि कब दिन निकल गया ? उठने में देर हो जाती है फिर नहाते धोते नाश्ता करते हुए 12:00 बज जाते हैं फिर थोड़ी देर कुछ काम करो, पढ़ाई लिखाई करो, तभी दिन का खाना खाने का टाइम हो जाता है । दोपहर में थोड़ी देर आराम करो फिर शाम की चाय और टीवी देखो लेकिन आज तो टीवी देखने का भी टाइम ही नहीं मिला । रात का खाना खाते खाते 10 बजते हैं । सच में संडे का पूरा दिन यूं ही बेकार ही निकल जाता है सिर्फ नाम की छुट्टी का दिन होता है । मानसी ने सोचा ।

पापा मम्मी से भी आज बात नहीं हो पायी, मेरे पापा कितने अच्छे हैं ? मेरी हर बात मानते हैं ? जो मैं कहती हूँ वही करते हैं और कभी-कभी तो इतने अच्छे से हंसते बोलते रहते हैं कि उनसे बात करके मन का सारा दुख दूर हो जाता है । मम्मी से भी ज्यादा प्यारे है मेरे पापा, ना कभी डांटते हैं, ना कभी कुछ कहते हैं । पापा भी नहीं जानते कि मैं उनको कितना प्यार करती हूँ । मम्मी भी बहुत प्यारी हैं लेकिन पापा थोड़ा अलग हैं। मम्मी तो कभी कोई काम करने ही नहीं देंती और ना ही कभी कुछ काम करने को कहती हैं ।“बेटा मैं कर लूंगी हर काम को, तू जा बस पढ़ाई लिखाई कर” बस यही कहती रहती हैं।

मम्मी आप अभी कर लो घर के सारे काम, देखना मैं एक दिन आप लोगों के लिए आगे पीछे नौकर लगा दूंगी, कभी कोई कष्ट नहीं होने दूंगी, सारे काम वे लोग करेंगे, आप बस आराम करोगी, मम्मी देखना आपको तो मैं रानी बना कर रखूंगी क्योंकि आपका नाम तो रानी है लेकिन रानी जैसे कोई सुख या खुशी आपको अभी तक नहीं मिले हैं।

कहते भी हैं ना कि सारे दिन एक से नहीं होते हैं? दुख जायेगा तो सुख आयेगा और सुख जायेगा तो दुख आएगा, दुख के जाते ही सुख, सुख के जाते ही दुख आ जाता है दोनों कभी एक साथ नहीं रहते हैं और न ही कोई एक हमेशा रहता है । अगर हम अभी दुखी हैं तो सोचो दुख भी हमारा सच्चा मित्र है क्योंकि अपनों की, परायो की, जान पहचान कराने का दुख सबसे अच्छा माध्यम है फिर दुख में दुख कैसा?दुःख न होता तो सुख का भी भला कोई अहसास होता ?

आज मम्मी ने लंच में दाल चावल और सब्जियां डालकर खूब बढ़िया सी बेज बिरयानी बनाई थी, मम्मी कितना अच्छा खाना बनाती हैं । उसके साथ में पापा के हाथ की बनी लहसन और टमाटर की चटनी बहुत अच्छी लगती है । वह पापा ही बनाते हैं, खूब सारी लाल मिर्च, टमाटर, लहसुन और थोड़ा सा नीबू का रस डालकर। आज तो पापा की तबीयत सही नहीं है लेकिन उनको पता है कि मानसी को बिना चटनी के बिरयानी अच्छी नहीं लगेगी तो उठ कर बनाने लगे जबकि उसने तो आज बिना चटनी के ही खाने का मन बना लिया ।

“लव यू पापा” उसने मन ही मन कहा और मुस्कुरा दी ।

चलो अब सो जाती हूँ, कल सुबह स्कूल भी जाना है और उसने अपनी किताबें समेट कर रख दी और सोने के लिए बिस्तर पर लेट गयी ।

क्रमशः...