आदि- बन्धु
विराज भगवान विरसा मुंडा आदिवासी समाज के अभिमान के रूप में जाने जाते है ।
भगवान विरसा मुंडा के जन्म दिवस को आदिवासी आदि बन्धु दिवस के रूप में मनाने का निर्णय आदिवासी कल्याण सहकारी समिति एव आदिवासी कल्याण परिषद कि सहमति मनाया जायेगा।
विराज का कोई उद्देश्य भारत की गौरवशाली परम्परा के अंतर्गत समभाव से आदिवासी समाज के विकास के जागृति एव जागरण करना ही था ना कि भारत के अक़्क्षुण सामाजिक विरासत के एकात्म भाव के साथ भेद भाव करना ।
स्प्ष्ट था आदिवासी समाज स्वंय को अपनी परम्पराओ के साथ विकास की सच्चाई को स्वीकार करने के लिए मानसिक तौर पर तैयार नही था कभी उनको लगता कि विकास से उनकी परम्परागत जीवन शैली को नकारना ही होगा।
यही कारण था कि बदलते समय समाज की सच्चाई को स्वीकार करने में आदिवासी समाज कदम नही बढ़ा पा रहा था इसी मिथक को विराज तोड़ना चाहते थे ।
वह स्वय एक सैन्य अधिकारी रहे थे और शांति काल हो या युद्ध काल दोनों ही स्थितियों में उन्होंने देश के लिए खून बहाया था इसीलिए वह चाहते थे कि आदिवासी समाज को उन्ही की प्रेरणा से जागरूक एव प्रेरित किया जाय।
विरसा मुंडा के जन्म दिवस पर उन्होंने अदीबंधू कार्यक्रम का आयोजन किया जो दिल्ली ओंकारेश्वर एव महाकाल में प्रस्तवित कर रखा था ।
विरसा मुंडा के देश प्रेम एव बलिदान के संदर्भ में विराज ने एक प्रबुद्ध जनों की व्यख्यान माला का आयोजन किया विषय था- विरसा मुंडा की वर्तमान समय मे आदिवासी समाज एव भारतीय समाज मे प्रासंगिकता जन्म दिवस तो मनाए जाते है जीवित इंसानों के बड़े धूम धाम से वास्तविकता यह होती है कि प्रत्येक जन्म दिन पर इंसान की उम्र एक वर्ष कम हो जाती है और वह मृत्यु से निर्भय होकर उत्साह उमंग से जन्म दिन मनाता है। जन्म दिन वर्तमान में सुविधा सम्पन्न समाज के लिए एक नए उत्सव का स्थान ले चुका है।
लेकिन मरणोपरांत समाज सिर्फ उसी व्यक्ति का जन्मदिन मनाता है जिसने अपने जीवनकाल में विद्यमान चुनौतियों को समाप्त करने के लिए संघर्ष किया हो और समाज कि प्रेरणा का नया मार्ग निर्धारित किया हो ।
विरसा मुंडा के सन्दर्भ में देखा जाय तो विल्कुल सत्य है क्योंकि वर्तमान समय मे आदिवासी समाज विकास शिक्षा एव मूल सुविधाओं का पूरी तौर पर लभानवित नहीं हो पा रहा है तो गुलामी के दौर में तो और भी भयावह दौर में रहा होगा।
आदिवासी समाज का सामान्य जीवन भी बहुत कठिन रहा होगा ऐसे में एक नौजवान जिसके पास ना तो कोई सहयोग की पृष्ठ भूमि थी ना ही ना ही जीवन की मौलिक आवश्यकताओं के लिए संसाधन ऐसे में विरसा मुंडा द्वारा गुलामी के विरुद्ध संघर्ष करना अपने आप मे बहुत प्रासंगिक एव महत्वपूर्ण हो जाता है जो आदिवासी ही नही बल्कि सम्पूर्ण युवा समाज की चेतना को झकझोरने के लिए पर्याप्त प्रेरक ऊर्जा प्रदान करता है ।
विपरीत परिस्थितियों में आदिवासी समाज को एकत्र करना जो जीवन के अस्तित्व के लिए पल प्रहर लड़ते थे को राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए संगठित करना अपने आप मे विरसा मुंडा के नेतृत्व क्षमता को स्प्ष्ट करता है जन्म दिन जब विरसा मुंडा जैसे महान बलिदानी देश भक्त का मनाया जाता है तब जीवित इंसान से अलग हर जन्म दिन पर एक नए सोच विचार के ऐतिहासिक व्यक्तित्व का जन्म होता है ।
जो समकालीन समाज को अपने जीवन काल मे किये गए कार्यो के सापेक्ष विद्यमान आत्मीय बोध का सांचार करता है।
महात्मा गांधी हो या सरदार वल्लभ भाई पटेल या नेता जी सुभाष चंद्र बोस जो आज नही है मगर जीवन काल जो संक्षिप्त वर्षो के लिए था में अपने धर्म कर्म कर्तव्यबोध दायित्व बोध से अपने हर जन्म दिन पर नई ऊर्जा उत्साह चेतना जागृति के संदेश के साथ जन्म लेते है और देश काल परिस्थितियों को अपने उपस्थित होने का एहसास कराते रहते है।
इसी संदर्भ में विरसा मुंडा एक आदर्श नौवजवान के कर्तव्य दायित्व बोध का अविस्मरणीय जन्म का नाम है अभाव कमजोरी नही बल्कि शक्ति का स्रोत है विरसा ने अपने जीवन औऱ बलिदान से प्रमाणित किया।
विराज ने विरसा मुंडा के जन्म दिवस पर पूरे देश के आदिवासी नौजवानों का आवाहन किया कि पराक्रम के लिए आवश्यक नही की आपको ललकारा जाय तभी आप आगे बढ़े आवश्यक है कि आप प्राप्त पल प्रहर को ही उपलब्धियों में परिवर्तित करने के लिए सकल्पित हो ।
महा पुरुषों के जन्म दिन मनाने की अवधारणा ही यही है इसीलिये जीवन काल मे मनाए जाने वाले जन्म दिन उस सत्य को भूलने का छलावा है जिससे आम इंसान को खुशी मिलती है ।
जन्म दिन विशेषकर महापुरुषों के उनके स्वंय के जीवन मे किये गए महत्वपूर्ण योगदान के सापेक्ष उनके वर्तमान में उनके जन्म दिन का महत्व होना चाहिये ना कि सिर्फ उनको वर्ष में एक दिन फूल मालाएं समर्पित कर फिर उन्हें उनके अगले जन्म दिवस पर ही याद किया जाना चाहिए जो समाज मे प्रचलित परम्परा है साथ ही साथ महापुरुषों को जाती ज़माज में विभक्त कर उनके जन्म जीवन एव शरीर त्याग निर्वाण का देश के योगदान में परिहास नही करना चाहिए ।
महापुरुष राष्ट्र एव समाज के कल्याणार्थ ही जन्म जीवन को समर्पित करता है महापुरुष समाज विशेष के लिए अभिमान हो सकता है जिसमें उसने जन्म लिया हो किंतु होता है वह सम्पूर्ण समाज राष्ट्र के लिए आदरणीय अनुकरणीय एवं अविस्मरणीय।
हम भगवान विरसा मुंडा के जन्म दिन को सबसे अलग अंदाज में मनाएंगे विराज के विचार से सभी सहमत थे लेकिन सभी के मन मे उत्कंठा इस बात की थी कि वह विशेष तरीका क्या होगा जिसे विराज ने सोच रखा है।
विराज ने भगवान विरसा मुंडा के जन्म दिन को आदिबन्धु दिवस के रूप में मनाने की रूप रेखा प्रस्तुत किया जिसमें एक अजीब तरीके की योजना प्रस्तुत की विराज ने कहा आदिवासियों के बीच तो सिर्फ आपस मे अपनी परम्पराओ को लेकर विवाद होते है लेकिन गांवो में निवास करने वाले हमारे भाई बंधुओं में छोटी छोटी बात को लेकर विवाद होते है जो कचहरियों और कोर्ट में चले जाते है जिसके कारण गांव के गरीबो की कमाई कोर्ट कचहरियों में व्यर्थ व्यय होने लगती है ।
इस वर्ष भगवान विरसा मुंडा के जन्म दिवस के आदिबन्धु दिवस के एक सप्ताह पूर्व जितने भी गांवो में सम्भव होगा पहुँच पाना पहुंचकर ऐसे विवादों को जो न्यायालय में वर्षो से चल रहे है उनसे सम्बंधित पक्षो से बार्ता कर एक सर्वमान्य सर्वसम्मति सर्वसम्मान से समझौते कराएंगे।
हम लोंगो का यह प्रायास समुद्र से एक लोटे जल निकालने जैसा ही होगा लेकिन शुरुआत तो होगी सम्भव है इसका प्रभाव समाज पर पड़े और बेवजह के विवादों में गरीब ग्रामीणों के मेहनत की कमाई का हिस्सा कोर्ट कचहरियों में व्यय ना होकर उनके बच्चों की शिक्षा एव उनके पारिवरिक उत्थान पर व्यय हो सके क्योंकि करोड़ो विवाद देश के न्यायालयो में विचाराधीन है ।
जिसमे लाखो ऐसे है चालीस से पचास प्रतिशत ऐसे विवाद है जिनका समाधान मिल बैठकर निकाला जा सकता है लेकिन इस पूरे योजना में यदि कोई सहयोग अपेक्षित है तो वह देश की जनपद न्यायालयों से उच्च न्यायालयों से जिनके सहयोग के बिना भगवान विरसा मुंडा के जन्म दिवस को आदिबन्धु के रूप मनाकर राष्ट्र एव समाज को सकारात्मक संदेश नही दिया जा सकता ।
अत देव जोशी जी त्रिलोचन महाराज सतानंद जी सनातन दीक्षित एव मैं स्वय देश के महामहिम राष्ट्रपति एव सर्वोच्च न्ययालय के मुख्य न्यायाधीश से मिलकर इस योजना की रूप रेखा प्रस्तुत कर उनसे आदिबन्धु भगवान विरसा मुंडा के जन्म दिवस के कार्यक्रम में सहयोग मांगेंगे जिससे कि जिन विवादों में समन्धित पक्षो को हम लोग सहमति के लिए राजी करेंगे उन् विवादों पर न्यायालय द्वारा अपनी सहमति प्राप्त हो सके।
देवजोशी ,विराज ,सतानंद,सनातन दीक्षित, आशीष,एव दीना महाराज सभी दिल्ली गए और देश के महामहिम और सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने मिलने का समय मांगा बहुत मेहनत मसक्कत के बाद समय मिल सका आसान नही होता राष्ट्र के माननीयों से मिल पाना क्योकि बहुत से ऐसे घटक है जो मर्यादित आचरण के उच्च परम्पराओं के उच्चपदस्थ व्यक्तित्वों पर लागू होते है साथ ही साथ सुरक्षा भी प्रमुख कारण होता है ।
सबसे पहले मुख्य न्यायाधीश के समक्ष अपनी आदि बन्धु योजना जो भगवान विरसा मुंडा के जन्म दिवस पर प्रस्तवित थी को विराज ने मुख्य न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किया जिसे बड़े ध्यान से सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश महोदय ने सुना फिर देव जोशी ने मुख्य न्यायाधीश महोदय से बताया कि हम लोग कुछ हज़ार या सौ विवाद को सहमति से समाप्त करने में सफलता पा लिया तो एक तो पूरे देश मे एक सकारात्मक संदेश का सांचार होगा और बेहतर बातावरण के निर्माण की शुरुआत होगी ।
सनातन दीक्षित जी ने मुख्य न्यायाधीश को बताया कि महोदय गरीब बहुत मेहनत से मेहनत मजदूरी करके पैसा कमाता है यदि हम लोंगो के प्रायास से उसके एक दिन या कुछ दिन की भी कमाई न्यायालय के विवाद में बेवजह जाने से बच गयी तो अप्रत्यक्ष बहुत बड़ा पुण्य होगा।
आशीष ने मुख्य न्यायधीश महोदय से निवेदन किया कि हम लोंगो को जिस क्षेत्र में जाना होगा उन क्षेत्रों के उन विवादों की सूची यदि आसानी से मिल जाये जो आई पी सी ,सी पी सी एव राजस्व के गम्भीर विवाद ना हो और न्ययालय पर बोझ एव गरीबो पर बोझ हो तो हम लोगों का कार्य सुगम होगा।
मुख्य न्यायाधीश महोदय ने सिर्फ एक सुझाव दिया और कहा आप लोंगो की योजनाओं में नगरीय क्षेत्र सम्मिलित नही है जहाँ बेवजह विवादो का बोझ है अतः आप लोग मोहल्ले अनुसार भी योजना के क्रियान्वयन को सम्मिलित करे जिससे कि आदि बन्धु योजना भगवान विरसा मुंडा के राष्ट्र के लिये बलिदान के सापेक्ष अधिक प्रभवी और संदेश परक बन सके मुख्य न्यायाधीश के सुझावों को सम्मिलित करने साथ मुख्य न्यायाधीश महोदय ने आश्वासन दिया मैं आपके प्रस्तवो पर कानूनी रूप से विचार करने के बाद उचित कार्यवाही अवश्य करूँगा जो आप लोंगो के लिए सहयोग की दृष्टिकोण से होगा।
विराज,देवजोशी ,सतानंद ,
आशीष ,त्रिलोचन महाराज पुनः देश के महामहिम से मिलने का इंतजार करने के लिए दिल्ली में रुके रहे ।
आखिर वह दिन आ ही गया जब महामहिम राष्ट्रपति महोदय ने मिलने का समय दिया था देव जोशी,विराज,आशीष ,सतानंद त्रिलोचन जी आदि सभी लोग महामहिम से मिलने गए इस बार योजना को देव जोशी ने विस्तार से महामहिम के समक्ष प्रस्तुत किया और विराज ने उसके पड़ने वाले प्रभाव को वर्णित किया आशीष ने उसके आर्थिक पहलुओं पर एव त्रिलोचन जी ने उसके राष्ट्रव्यपी प्रभाव को निरूपित किया तो सता नन्द जी ने भगवान विरसा मुंडा के जीवन मूल्यों उनके त्याग एव योजना की सामाजिकता को निरूपित किया सनातन दीक्षित जी ने राष्ट्रव्यपी प्रभाव की सकारात्मकता को निरूपित किया ।
महामहिम ने सभी की बातों को गौर से सुना और निर्धारित समय से बहुत अधिक समय दिया एवं आश्वासन दिया कि सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से बात करके वह सार्थक निर्देश देंगे।
आदिबन्धु योजना की क्रियान्वयन समिति देव जोशी जी,सनातन दीक्षित जी ,आशीष,सतानंद,आदि वापस लौट आये विराज तो दिल्लीः में ही रहते थे ।
सनातन दीक्षित ओंकारेश्वर आकर सौ महत्पूर्ण लोंगो को एकत्र किया जिसमें युवा अनुभवी ,वकील,समाज सेवी आदि सभी सम्मिलित थे और बीस समूहों का गठन किया और आदिबन्धु योजना को किस प्रकार क्रियान्वित करना है उस पर चर्चा किया।
उज्जैन लौटकर देव जोशी जी एव त्रिलोचन महाराज जी ने सतानंद की देख रेख में महादेव परिवार महाकाल युवा समूह एव उज्जैन के गणमान्य नागरिकों कानूनविदों एव को सम्मिलित कर पचास समूहों का गठन किया और आदिबन्धु कार्यक्रम के क्रियान्वयन को रूप रेखा प्रस्तुत कर निर्देश दिए ।
अब इंतज़ार था महामहिम एव मुख्य न्यायाधीश महोदय के निर्देशों का भगवान विरसा मुंडा के जन्मदिन आने में सिर्फ एक माह ही शेष था विराज को सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एव महामहिम के कार्यालय से एक साथ पत्र प्राप हुये जिसमें आदि वन्धु योजना में कार्यकरने वाले लोंगो समूहों के सदस्यों का विवरण मांगा गया था जिससे कि उन्हें उनके कार्य क्षेत्र के अनुसार लंबित विवादों की सूची प्रदान की जा सके ।
विराज को तो जैसे मांगी मुराद मिल गयी उन्होंने स्वय की देख रेख में बनाई गई पचास समूहों उज्जैन के पचास समूहों एव ओंकारेश्वर के बीस समूहों के सदस्यों एव कार्य क्षेत्रो की सूची जिसमे गांव मुहल्ले सम्मिलित थे जिनके विवादों को सहमति के आधार पर सुलझाने की योजना आदिबन्धु भगवान विरसा मुंडा के जन्मदिन के अवसर पर प्रस्तवित थी गांवो जनपद अनुसार एव मोहल्लों की सूची एव उनसे सम्बंधित समूहों में कार्य करने वाली सूची सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को प्रेषित कर दिया ।
मुख्य न्यायाधीश ने एक निर्देश जनपद न्यायालयों को उच्च न्यायालयों के द्वारा जारी कर दिया जिसमें जिसमें आदिबन्धु योजना में कार्य करने वाले समूहों के सदस्यों के विवरण एव उन गांवों मोहल्ले के विवरण सम्मिलित थे जहाँ के आवश्यक विवादों को सहमति के आधार पर हल करने थे आदिबन्धु कार्यक्रम के अंतर्गत ओंकारेश्वर के बीस समूहों को उनके कार्य के लिये तीन हज़ार देव जोशी जी के महाकाल के आस पास के क्षेत्र के लिये पचास समूहों के लिए पांच हज़ार एव हरियाणा दिल्ली के विराज के समूहों के लिए आठ हजार विवाद जो न्यायालयों में लंबित थे कि सूची गांव एव मोहल्ले वार प्राप्त हो गयी ।
आदि बन्धु कार्यक्रम सिर्फ भगवान विरसा मुंडा के जन्म दिन से सप्ताह पूर्व प्रारंभ होकर जन्म दिन को समाप्त होना था।
धीरे धीरे विरसा मुंडा के जन्म दिन से एक सप्ताह पूर्व आदिबन्धु कार्यक्रम का दिन आ गया ।
पचास समूह देव जोशी जी की देख रेख में उज्जैन एव महाकाल के शहरी एव ग्रामीण क्षेत्रो में एव ओंकारेश्वर के बीस समूह जनपद के बिभन्न गांवों एव शहरी क्षेत्रों में सनातन दीक्षित जी के देख रेख में एव दिल्ली हरियाणा के दिल्ली से लगे गांवो एव शहरी क्षेत्रों में आदिबन्धु योजना के क्रियान्वयन के लिए जोर शोर से लग गए।
जब आदिबन्धु योजना के क्रियान्वयन की प्रस्तुति विराज द्वारा रखी गयी और देश के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश एव महामहिम से मुलाक़ात के बाद भगवान विरसा मुंडा के जन्म दिवस पर अयोजित कार्यक्रम की जानकारी आम जन को हुई तो अजीबो गरीब प्रतिक्रियाएं आने लगी कुछ लोग बेमतलब का फितूर कहते कुछ लोग सनकी सोच की उपज कहते आदि आदि तरह तरह की बाते सुनने को मिली ।
बिना ध्यान दिए सभी अपने अपने कार्यो को जिम्मेदारी एव ईमानदारी से अंजाम तक पहुँचने में प्राण पण से लगे हुए थे एक सप्ताह का समय बीतते देरी नही लगी ।
ओंकारेश्वर ने पूरे तीन हज़ार विवादित मामले में सहमति के आधार पर सर्व मान्य हल निकाल दिया ।
देव जोशी की देख रेख में सतानंद के समूहों ने भी सभी पांच हज़ार विवादों में सर्वमान्य हल निकाला।
विराज की तो अपनी ही प्रस्तुत योजना आदिबन्धु थी वह कैसे पीछे रह सकते थे अतः विराज ने दिल्ली हरियाणा के आस पास के गांवों मोहल्लों के विवादित आठ हजार विवादों का निस्तारण करवाया।
सतानंद ने उज्जैन एव आस पास के पांच हज़ार एव सनातन दीक्षित जी ने ओंकारेश्वर के आस पास के तीन हज़ार विवादों का हल कराकर आदि बन्धु कार्यक्रम के अंतर्गत कुल पन्द्रह हज़ार विवादों का निस्तारण हुआ।
भगवान विरसा मुंडा के जन्म दिन के दिन दिल्ली में एक समारोह विराज ने ही आयोजित किया जिसमें सनातन दीक्षित ओंकारेश्वर से देव जोशी ,त्रिलोचन महाराज ,सतानंद, आशीष आदि उज्जैन से एकत्र हुए।
देव जोशी ने अपने संबोधन में कहा-
विराज जी की आदिबन्धु योजना एक प्रयोग था जो दो महत्वपूर्ण तथ्यों पर आधारित सोच का सार्थक नजरिया था एक तो गरीब एव मध्यवर्गीय लोग बेवजह छोटी छोटी बातों को अपने सम्मान से जोड़ कर विवादों में स्वयं को फ़सा लेते है या फंस जाते है और न्ययालय के साथ साथ अन्य जगहों के चक्कर काटते है और पैसा समय दोनों की बर्बादी करते है जिन पंद्रह हजार विवादों का हल आदिबन्धु योजना के अंतर्गत निकला है उनके पक्षो का समय अब अपने सार्थक कार्यो में लगेगा एव समरस वातावरण की ऊर्जा का उत्साह उनके जीवन मे होगा निश्चित रूप से विरसा मुंडा के बलिदान के मकसद का एक महत्वपूर्ण पहलू है जो उनके जन्म जीवन की सकारात्मकता के संदेश संचारित करेगा।
सनातन दीक्षित जी ने अपने सम्बोधन में कहा-
महापुरुष जिनके द्वारा अपने जीवन काल मे समाज एव राष्ट्र के बेहतर भविष्य के लिए जो कार्य अपने जीवन काल मे किये जाते है उनके बाद कि पीढ़ी की नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वह उनके मौलिक मुल्यों का सत्कार कर उनके जन्मदिन को उनकी आत्मिक उपस्थिति के बोध से अभिमानित करे आदिबन्धु के अंतर्गत सर्वसम्मति से निपटाए गए विवाद विरसा मुंडा के जीवन उद्देश्यों की वास्तविकता का वर्तमान समय मे सार्थक परीक्षण है जन्म दिन महापुरुषों के इसी अंदाज में मनाए जाने चाहिये।
आशीष ने अपने सम्बोधन में कहा-
पन्द्रह हज़ार विवादों पर होने वाले अपव्यय विवाद पक्षो के परिवार एव बच्चों के विकास पर व्यय होगा जो लगभग पंद्रह से बीस लाख वार्षिक है विरसा मुंडा जी के जन्म दिवस पर यह धनराशि जो मेहनत से कमाई जा रही थी के अपव्यय को समाप्त किया है और सम्बंधित पक्षो को विरसा मुंडा जी के जन्म दिवस पर सौगात के रूप में जिस पर उनका हक है दिया है हम लोंगो ने सिर्फ मानसिकता बदलने का कार्य किया है निश्चित रूप से विरसा जी के जन्म दिन कि सार्थकता का प्रमाण है आदिबन्धु का सफल क्रियान्वयन।
अंत मे विराज ने अपने सम्बोधन में कहा-
हमने विरसा मुंडा के जन्म दिवस पर आदिबन्धु कार्यक्रम को सफल बनाकर इसलिये मनाया ताकि वर्तमान समय मे एक सार्थक संदेश संचारित हो सके विशेषकर उन लोंगो के लिए जो सार्वजनिक जीवन मे सामाजिक एव राजनीतिक क्षेत्रो में कार्य कर रहे है यदि कोई विवाद उनके कार्यक्षेत्र में होता है तो उसे सर्वसम्मति से समाधान की तरफ ले जाये ना कि किसी पक्ष विशेष के प्रभाव या सम्बंध के कारण पक्ष पात करे निश्चित रूप से यह कार्य कठिन है लेकिन समाज राष्ट्र के हित में है ।
साथ ही साथ पंद्रह हजार विवादों का बोझ देश के न्यायलयों से कम हुआ यह भी आदिबन्धु कार्यक्रम का प्रशासन एव न्याय व्यवस्था को अप्रत्यक्ष सहयोग है।
महापुरुषों का जन्म दिन जो भौतिक शरीर से दुनिया मे नही है उनके जन्म जीवन के कार्यो बलिदानों के सापेक्ष ही मनाया जाना चाहिए हम सभी का उद्देश्य भगवान विरसा मुंडा के जन्म दिन को इस प्रकार विशेष तरह से मनाने का भी यही था जो पूर्ण हुआ सभी के सहयोग से ।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखुर उत्तर प्रदेश।।