बारिश, चाय और तुम - भाग 4 सिद्धार्थ रंजन श्रीवास्तव द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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बारिश, चाय और तुम - भाग 4

"मथुरा, मैं मथुरा में रहता हूँ। कल रात की ट्रेन है मेरी।" आकर्ष ने जवाब दिया

"मथुरा? अरे वाह। मैं भी आगरा की रहने वाली हूँ, मतलब हम पहले वहाँ रहते थे पर अब दिल्ली में ही रहते हैं। लेकिन मम्मी और पापा अभी भी ज्यादा तर समय आगरा में ही गुजारते हैं। पापा का बिज़नेस दिल्ली और आगरा दोनों जगह है और उन्हें दिल्ली ज्यादा पसंद नहीं है।" निलांजना एक साँस में बोलती गयी

"अच्छा, ये तो बड़ी अच्छी बात है।" आकर्ष ने कहा

"क्या अच्छी बात है? तुम्हे कल रात को जाना है और मिलने का समय नहीं है तुम्हारे पास? ऐसा क्या काम करने वाले हो कल?" निलांजना ने गुस्सा दिखाते हुए कहा

"अरे नहीं ऐसी बात नहीं है।" आकर्ष ने कहा

"मैं कभी किसी लड़की के साथ चाय पे नहीं गया।" आकर्ष ने सकुचाते हुए कहा

"ओह्हो.. शर्मा रहे हो, चाय पे चलने को बोल रहीं हूँ डेट पे नहीं। नहीं जाना तो कोई बात नहीं। Bye." निलांजना ने गुस्से में हेलमेट पहना और बाइक स्टार्ट कर दी

"अरे नहीं नहीं सुनो तो।" आकर्ष ने कहते हुए निलांजना का हाथ पकड़ लिया ताकि वो बाइक आगे ना बढ़ा दे

"अभी तक चाय पे जाने को भी तैयार नहीं थे और अब हाथ भी पकड़ लिया।" निलांजना ने शरारत भरी नज़रो से देखा

आकर्ष हड़बड़ा कर हाथ छोड़ देता है और एक कदम पीछे हट जाता है।

निलांजना ज़ोर से हँस पड़ती है।

"कहो क्यूँ रोका मुझे?" झूठा गुस्सा दिखाते हुए निलांजना ने पूछा

"चाय पीने चलोगी कल मेरे साथ?" आकर्ष ने हिम्मत करके पूछा

"इतनी देर से मैं क्या फ़ारसी बोल रहीं हूँ।" निलांजना ने सिर पर हाथ मरते हुए बोला

"मेरा मतलब कहाँ मिलोगी, कहाँ चलेंगे चाय पीने? मुझे दिल्ली के बारे में ज्यादा नहीं पता।" आकर्ष ने अपनी उलझन बताई

"हाँ तो ऐसे कहो, नॉएडा में एक जगह जानती हूँ जहाँ बहुत अच्छी चाय मिलती है। वहाँ हम थोड़ी देर बैठ कर बात भी कर सकते है।" कुछ रुक कर निलांजना ने फिर बोलना शुरू किया, "तुम यहाँ से मेट्रो से सेक्टर 16 आ जाना, मैं वहीँ से तुम्हे पिक कर लुंगी फिर साथ में चलेंगे।" निलांजना ने आगे का प्रोग्राम बताया

"ओके, लेकिन तुमसे कोऑर्डिनेट कैसे करूँगा?" आकर्ष ने पूछा

"नंबर सेव कर लो मेरा 9838......" निलांजना ने अपना नंबर बताया और उसके चेहरे पर एक मीठी सी मुस्कान थी।

"See you tomorrow." निलांजना ने आकर्ष से विदा लिया

निलांजना के जाने के बाद आकर्ष ऊपर युग के रूम पे आ जाता है। कमरे की दूसरी चाभी उसके पास थी इसलिए उसे घर में आने में कोई दिक्कत नहीं थी, उसने ऑनलाइन खाने का आर्डर किया और फिर फ्रेश होने चला गया क्यूंकि बारिश में भीगने से और पानी में गिरने से कपड़े भी ख़राब हो चुके थे।

शाम को जब युग आया तो आकर्ष ने उसे सारी घटना सुनाई।

"बहुत सही भाई, आते ही प्यार हो गया और यहाँ मैं 3 साल से जॉब कर रहा हूँ किसी ने एक बार पलट कर देखा भी नहीं। लेकिन एक बात ध्यान रखना आकर्ष दिल्ली की लड़कियां बहुत तेज़ होती है। तुम्हारा काट भी देंगी और पता भी नहीं चलेगा।" युग ने चिंता जाहिर करते हुए कहा

"अरे भाई ऐसा कुछ नहीं है, प्यार व्यार कुछ नहीं है। बस कल चाय पीने जाना है साथ और कुछ नहीं।" आकर्ष ने समझाते हुए कहा

"मेरा काम तुझे आगाह करना था, आगे तुम जानों।" युग ने हाथ खड़े करते हुए कहा

आकर्ष सिर्फ मुस्कुरा कर रह गया।

रात को खाना खाने के बाद युग और आकर्ष सोने चले जाते हैं। लेकिन आकर्ष को आज नींद नहीं आ रही थी, उसके आँखों के सामने बार बार निलांजना का खूबसूरत चेहरा आ रहा था। उसके आँखों से नींद जैसे नदारद थी, उसे इंतज़ार था तो सुबह होने का। एक खूबसूरत सुबह जो शायद उसके जिंदगी की सबसे खूबसूरत सुबह होने वाली थी।

सुबह आकर्ष की आँख खुली तो घड़ी में 10 बज चुके थे।

"अरे बाप रे 10 बज गए और मैं अभी तक सो रहा था।" आकर्ष ने हड़बड़ा कर उठते हुए कहा

उसने फ़ोन उठाया और कुछ सोचते हुए एक नम्बर डायल कर दिया।

"Hello."

"Hello, निलांजना जी।" आकर्ष ने डरते हुए पूछा

"हाँजी बोल रहीं हूँ, कहिये?" निलांजना ने जवाब दिया

"मैं आकर्ष बोल रहा हूँ, पहचाना?" आकर्ष ने कहा

"आकर्ष? कौन आकर्ष? मेरा नम्बर आपको किसने दिया? और किस लिए फ़ोन किया है आपने?" निलांजना ने थोड़े कड़क लहज़े में पूछा

"वो मैं.. शायद कोई गलत नम्बर लग गया।" आकर्ष यह सुन कर सकपका सा गया।

गलती भी थी आकर्ष की, जब निलांजना ने अपना नम्बर दिया था तो उसने उसी समय कॉल करके कन्फर्म भी तो नहीं किया था।

कहीं किसी और का नम्बर तो नहीं दे दिया निलांजना ने? कहीं मेरे साथ मज़ाक तो नहीं किया था कल? आकर्ष इन्ही सवालों में खो गया

"बोलिये मिस्टर? फ़ोन क्यूँ किया मुझे?" निलांजना ने फिर सवाल किया

"सॉरी।" आकर्ष के मुँह से सिर्फ इतना ही निकल सका और वो फ़ोन कट करने ही वाला था

"यस, यू शुड बी सॉरी।" इतना कह कर निलांजना हॅसने लगी,

"अब टाइम मिला है तुम्हे फ़ोन करने का? कब से वेट कर रही थी? मुझे तो लगा साहब को कोई इंटरेस्ट ही नहीं है।" निलांजना ने आगे कहा

"अरे यार तुमने तो डरा ही दिया।" आकर्ष की जान में कुछ जान आयी, "ऐसी बात नहीं है।" आकर्ष ने आगे कहा

"फिर कैसी बात है?" निलांजना ने फिर सवाल किया

"रात को देर से आँख लगी इसलिए सुबह आँख नहीं खुली।" आकर्ष ने जवाब दिया

"ओह्ह्ह.. गर्लफ्रेंड?" निलांजना ने शरारती अंदाज़ में पूछा

"नहीं नहीं.. गर्लफ्रेंड नहीं है कोई।" आकर्ष ऐसे हड़बड़ा गया जैसे निलांजना अभी उसे चरित्र प्रमाणपत्र जारी करने वाली हो

"ओके इतना घबरा क्यूँ रहे हो?" निलांजना ने फिर सवाल किया

"नहीं कुछ नहीं। कब मिलना है?" आकर्ष ने बात काटते हुए सवाल किया

"जब साहब तैयार होकर आ जाएँ, हम तो सुबह से तैयार हुए बैठे है।" इतना कहकर निलंजाना हॅसने लगती है

"रियली सॉरी, 1 घंटे में मैं सेक्टर 16 पर मिलता हूँ।" आकर्ष ने घड़ी पर नज़र डालते हुए कहा

"इट्स ओके, सी यू देन।" निलांजना ने कह कर फ़ोन कट कर दिया

आकर्ष फटाफट बेड से उठा और 20 मिनट में बिलकुल रेडी हो गया। वहाँ से ऑटो करके सीधा अक्षरधाम मेट्रो पहुँचा और वहीं से नॉएडा सेक्टर 16 का टोकन लेकर मेट्रो पर सवार हो गया। वहाँ से सेक्टर 16 पहुँचने में 10 मिनट का समय ही लगा, स्टेशन से बाहर आकर उसने निलांजना को फिर फ़ोन किया।



To be continued.....