उलझन - भाग - 10 Ratna Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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उलझन - भाग - 10

गोविंद के विवाह के बाद निर्मला भी अपने भाई और भाभी से मिलना चाह रही थी। वह केवल सभी मेहमानों और अपने माता पिता के गाँव वापस लौटने का इंतज़ार कर रही थी। जैसे ही उसे पता चला कि सब लोग अपने-अपने घर लौट चुके हैं, वह तुरंत ही गोविंद से मिलने उसके घर आ गई।

गोविंद ने निर्मला को देखते ही उसे गले से लगाते हुए कहा, “जीजी तुम्हारे बिना मेरी शादी तो हो गई लेकिन रौनक ना आ पाई।”

निर्मला ने उसके माथे का चुंबन लेते हुए कहा, “क्या करूं गोविंद हालात ही ऐसे हो गए थे लेकिन थोड़ी तबीयत ठीक होते ही आ गई ना, तुझसे मिलने।”

“जीजी, जीजा जी नहीं आए?”

“वह किसी ज़रूरी काम से बाहर गए हैं, 2-4 दिन में वापस आ जाएंगे। चल तेरी पत्नी से तो मिला …”

गोविंद ने आवाज़ लगाई, “बुलबुल …”

बुलबुल भी आकर निर्मला से मिली।

निर्मला ने उसे गले से लगाते हुए कहा, मेरी भाभी तो बहुत सुंदर हैं।

बुलबुल ने कहा, “जीजी आप भी तो कितनी प्यारी हैं, गोविंद जितनी तारीफ़ करते थे उससे कहीं ज़्यादा।”

अब तक प्रतीक अपने दौरे से वापस लौट चुका था। आते ही उसे पता चला कि बुलबुल की तो शादी हो चुकी है और वह इस समय पुणे में है। यह ख़बर सुनते ही प्रतीक का दिलों दिमाग़ उसके काबू से बाहर हो गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। यह सब कैसे हो गया यह जानने के लिए वह बुलबुल से मिलना चाह रहा था। और इसलिए वह तुरंत ही मुंबई से पुणे आ गया। पुणे आकर वह सीधे बुलबुल के घर पहुँच गया और बेल बजाई।

उस समय गोविंद अपने ऑफिस गया था और निर्मला घर में सो रही थी।

बेल बजते ही बुलबुल ने दरवाज़ा खोला। प्रतीक को देखते ही उसके हाथ से मोबाइल ज़मीन पर गिर गया। मोबाइल उठाकर हैरान होते हुए उसने प्रतीक की तरफ़ देखा।

आवेश में आकर प्रतीक ने सीधे बुलबुल के गाल पर एक तमाचा रसीद करते हुए कहा, “धोखेबाज है तू।”

शोर की आवाज़ सुनकर निर्मला ड्राइंग रूम में आने लगी। आते-आते जब वह आवाज़ उसके कानों से टकराई तो उसके क़दम वहीं रुक गए। अरे! यह तो प्रतीक की आवाज़ है। वह दूसरे कमरे में चुपचाप खड़ी होकर सुनने लगी। 'धोखेबाज है तू' यह तो निर्मला ने सुन ही लिया था। उसने धीरे से झांक कर देखा तो सामने उसका पति प्रतीक उसे खड़ा नज़र आया। निर्मला के पैरों तले से ज़मीन खिसक गई।

तभी बुलबुल ने कहा, “यहाँ क्यों आए हो? चले जाओ यहाँ से, मेरी शादी हो चुकी है।”

“शादी हो चुकी है … वादा तो तूने मुझे किया था फिर यह क्या …?”

“चुप हो जाओ प्रतीक, मैं गलती कर रही थी।”

“तुम्हारी पत्नी का जीवन बर्बाद करके मैं कहाँ सुख से रह सकती थी। मुझे मेरी गलती का एहसास मेरे मम्मी और पापा ने करवा दिया है। जाओ प्रतीक कोई सुन लेगा, चले जाओ यहाँ से,” कहते हुए बुलबुल ने उसे धक्का दे दिया।

“मैं अभी भी तैयार हूँ बुलबुल, चलो मेरे साथ।”

बुलबुल ने कहा, “मैं ऐसी गलती कभी नहीं करूंगी प्रतीक। तुम अपनी पत्नी को धोखा दे रहे हो, तुम्हें भी ऐसा नहीं करना चाहिए।”

तब जाते-जाते प्रतीक ने कहा, “कैसे भूलेगी बुलबुल तू वह रातें जो तूने मेरे साथ बिताई हैं। तू भी तो धोखा ही दे रही है ना? जा रहा हूँ मैं पर तुझे कभी माफ़ नहीं करूंगा।”

प्रतीक तो उल्टे पाँव अपना दुख अपने साथ लेकर चला गया। लेकिन निर्मला को ऐसा झटका लगा कि उसके पति की प्रेमिका, उसके भाई की पत्नी बन चुकी है। वह जल्दी से अपने कमरे में चली गई।

बुलबुल ने दरवाज़ा बंद किया और देखा कि आस-पास निर्मला दीदी तो नहीं हैं। निर्मला उसे आसपास कहीं दिखाई नहीं दी तो उसने सोचा इसका मतलब उन्होंने उसकी और प्रतीक की बातें नहीं सुनीं। यह सोचते हुए उसने एक गहरी सांस ली और अपने कमरे में चली गई।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः