संविधान शिल्पी - बाबा साहब
1-जन्म बचपन एवं शिक्षा -
बाबा साहब भीम राव अंबेडकर भारतीय इतिहास के ऐसे विराट व्यक्तित्व जिनके बिना ना तो वर्तमान भारत कल्पनीय है ना ही भारत कि स्वतंत्रता के बाद भारत के इतिहास की कल्पना सम्भव है कोई भी राजनीतिक उदय हो या शक्ति हो बाबा साहब भीम राव अंबेडकर जी के बिना अपूर्ण लगती है एव लगभग अप्रासांगिग दिखती है महात्मा गांधी एव बाबा साहब भीम राव अंबेडकर के सिंद्धान्तों को ही हर राजनीतिक शक्ति अपने नैतिकता का आचरण संस्कृति मानती है और भारतीय जन मानस को यह विश्वास दिलाने का प्रयत्न करती है कि वह बाबा साहब एव महात्मा गांधी के दिखाए मार्ग पर ही चलती है वर्तमान परिवेश में बाबा साहब कि सोच विचार एव उसके आचरण कि वैधता सत्यता को समझने के लिए बाबा साहब के जीवन यात्रा के विषय मे समझना आवश्यक है ।बाबा साहब भीम राव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल सन 1891 में महू सैन्य छवनी मध्य प्रदेश में हुआ था बचपन मे उन्हें भीमराव राम जी अंबेडकर उनके माता पिता ने दिया ।बाबा साहब राम जी मालो जी सकपाल एव भीमा बाई के 14 वी संतान थे जो कबीर पंथ को मानने वाला मराठी मूल के थे एव महाराष्ट्र के आंबड़वे गांव के निवासी थे जिनका सामाजिक पहचान हिन्दू महार जाती से था जो अच्छूत मानी जाती थी।भीम राव अंबेडकर के पूर्वज लंबे समय से ईस्ट इंडिया कम्पनी कि सेना में कार्यरत थे उनके पिता भी राम जी सकपाल भारतीय सेना के महू छावनी में सूबेदार पद पर सेवारत थे ।अछूत जाती महार से सम्बंधित होने के कारण बचपन मे भीम को सामाजिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ा ।विद्यालयी शिक्षा के दौरान भीम राव को छुआ छूत के कारण अनेकों कठिनाईयो का सामना करना पड़ा नवम्बर 1900 में पिता सकपाल ने भीमराव का नाम सतारा गवर्नमेंट हाई स्कूल में लिखा दिया वहाँ भीम राव का नाम भिवा राम जी अंबेडवेकर दर्ज कराया एव उप नाम सकपाल कि जगह अंबेवेडकर लिखवाया था जो आंबड़वे गांव से संबंधित था बाद में देवरुखे ब्राह्मण शिक्षक कृष्णा केशव आम्बेडर जो बाबा साहब से विशेष लगाव रखते थे आबेवेदकर हटा कर अंबेडकर उप नाम जोड़ दिया ।राम जी सकपाल सपरिवार मुम्बई चले आये एव 1906 में 15 वर्ष कि आयु में नौ वर्ष कि लड़की रमा बाई से बाबा साहब का विवाह कर दिया तब बाबा साहब कक्षा 5 में अध्ययन कर रहे थे।
आंबेडकर सतारा नगर के राजवाड़ा चौक के शासकीय हाई स्कूल जो अब प्रताप सिंह हाई स्कूल है 7 नवम्बर 1900 में अंग्रेजी कि पहली कक्षा में दाखिला लिया जहां वह भिवा नाम से जाने जाते थे जब भिवा ने अंग्रेजी से चौथी कक्षा उत्तीर्ण किया तब भिवा की सफलता पर अछूतों में इस असामान्य उपलब्धि के लिए सार्वजनिक समारोह मनाया एव उनके पारिवारिक मित्र एव लेखक दादा केलुस्कर द्वारा स्वलिखित किताब बुद्ध कि जीवनी उन्हें भेंट दी गयी जिसके अध्ययन से बाबा साहब के मन मस्तिष्क पर बुद्ध दर्शन का गहरा प्रभाव पड़ा ।1897 आंबेडकर का परिवार मुंबई आ गया जहां एल्फिंस्टोन रोड स्थित शासकीय स्कूल से आगे की शिक्षा शुरू की 1907 में मेट्रिक कि परीक्षा पास किया 1912 बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र एव राजनीति शास्त्र विषयो के साथ कला से स्नातक किया एव बड़ौदा राज्य सरकार के साथ कार्य करने लगे ।2 फरवरी 1913 को पिता कि मृत्यु हो गयी ।1913 में ही 22 वर्ष कि आयु में आंबेडकर सयुक्त राज्य अमेरिका चले गए जहां न्यूयार्क स्थित कोलाम्बिया विश्वविद्यालय में स्नाकोत्तर शिक्षा के अवसर प्रदान करने के लिए तीन वर्ष की अवधि हेतु 11.50 डॉलर प्रतिमाह बड़ौदा के सियाजी राव गायकवाड़ द्वारा छात्र बृत्ति प्रदान की गई अमेरिका में लिविंगस्टन हाल में पारसी मित्र नवल भातेना के साथ बस गए 1915 में उन्होंने अर्थ शास्त्र प्रमुख विषय के साथ एम ए की परीक्षा पास किया जिसमें अर्थ शाश्त्र प्रमुख विषय के साथ समाज शास्त्र इतिहास दर्शन शास्त्र एव मानव विज्ञान अन्य विषय थे उन्होंने एम ए में प्राचीन भारतीय वाणिज्यिक विषय पर शोध कार्य किया आंबेडकर जान डेवी और लोकतंत्र पर उनके कार्य से प्रभावित थे।1916 में दूसरे विषय भारत का राष्ट्रीय लाभांश -एक ऐतिहासिक एव विश्लेषणात्मक अध्ययन पूर्ण किया और दूसरा कला स्नातकोत्तर पूर्ण किया 1916 में ही तीसरे शोध कार्य ब्रिटिश भारत मे प्रांतीय वित्त विकास के लिए अर्थ शास्त्र में पी एच डी 1927 में प्राप्त किया ।9 मई को मॉनव वैज्ञानिक एलेक्जेंडर गोल्डेनवेइजर द्वारा आयोजित सेमिनार में भारत मे जातियां एव उनकी प्रणाली उतपत्ति एव विकास नामक शोध पत्र प्रस्तुत किया जो उनकी प्रथम प्रकाशित शोध पत्र था तीन वर्ष के लिए प्राप्त बड़ौदा राज्य की छात्र बृत्ति दो वर्ष अमेरिका में पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद 1916 में लंदन चले गए जहां ग्रेज इन बैरिस्टर कोर्स में विधि अध्ययन के लिए प्रवेश लिया साथ ही साथ लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में भी प्रवेश लिया अर्थशास्त्र के डॉक्टरेट के लिए थीसिस पर कार्य शुरू किया 1917 में विवश होकर अध्ययन अस्थाई रूप से बीच मे ही छोड़कर भारत लौटाना पडा कारण था बड़ौदा राज्य द्वारा दी जाने वाली छात्र बृत्ति का समाप्त होना लौटते समय उनके पुस्तक संग्रह को अलग जहाज से भेजा गया जिसे जर्मन पनडुब्बी के टारपीडो द्वारा डुबो दिया गया यह प्रथम विश्व युद्ध का काल था उन्हें चार साल के लिए अपने थीसिस के लिए लंदन लौटने कि अनुमति मिली बड़ौदा राज्य के सेना सचिव के रूप में कार्य करते हुए अपने जीवन अचानक फिर से आये भेद भाव भीम राव आंबेडकर निराश हो गए और अपनी नौकरी छोड़ ट्यूटर एव लेखाकार के रूप में कार्य करने लगे साथ ही साथ परामर्श व्यवसाय भी शुरू किया जो उनकी सामाजिक स्थिति के कारण विफल रहा ।अंग्रेज मित्र एव मुंबई के पूर्व राज्यपाल लार्ड सिडनेम के कारण उन्हें सिडनेम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स में राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर के रूप में नौकरी मिल गयी 1920 में कोल्हापुर के शाहू महाराज अपने पारसी मित्र के सहयोग एव निजी बचत से पुनः लंदन जाने में सफल हो गए 1921 में विज्ञान में स्नातकोत्तर पूर्ण किया जिसके लिए दीसेंट्रलाजेशन ऑफ इम्पीरियल फाइनेंस इन ब्रिटिश इंडिया (ब्रिटिश भारत मे शाही अर्थ व्यवस्था का प्रांतीय विकेंद्रीकरण )खोज ग्रंथ प्रस्तुत किया 1922 में उन्होंने ग्रेज इन ने बैरिस्टर एट लाज डिग्री प्रदान की गई 1923 में उन्होंने अर्थशास्त्र में दी एस सी किया जिसमें उनका विषय था दी प्रॉब्लम ऑफ रूपी इट्स ओरिजनल एन्ड सॉल्यूशन शिक्षा के बाद लंदन से लौटते समय वह तीन महीनों के लिए जर्मनी रुके उन्हें तीसरी और चौथी डाक्टरेट्स एल एल दी कोलाम्बिया विश्वद्यालय 1952 दी लिट उस्मानिया विश्विद्यालय 1953 सम्माननित उपाधियां मिली।
2-बाबा साहेब आम्बेडकर का सामाजिक न्याय संघर्ष ----
बाबा साहब का जन्म हिन्दू महार जाती के मालो जी सकपाल एव भीमा बाई के 14 वे पुत्र के रूप में हुआ था महार जाति दलित समुदाय से आता है अतः बाबा साहब ने भारतीय समाज की कुरीति छुआ छूत जैसे अभिशाप को बचपन से देखा एव महशुस किया था जिसे वे गुलामी से भी बदतर मानते थे जिसे उन्हें जीवन के कदम कदम पर सामना करना पड़ा बाबा साहब बड़ौदा रियासत का आर्थिक सहयोग अपने शिक्षा के दौरान प्राप्त किया था अतः उनकी बाध्यता बड़ौदा रियासत कि सेवा के लिए थी उन्हें महाराजा गायकवाड़ का सैन्य सचिव नियुक्त किया गया था लेकिन
जातिगत भेदभाव के कारण कुछ ही दिनों बाद महाराजा की नौकरी छोड़ दी जिसे बाबा साहब ने अपनी आत्म कथा वेटिंग फ़ॉर वीजा में वर्णित किया है।फिर उन्होंने जीविका साधन खोजने के पुनः प्रयास शुरू किया और निजी लेखाकार एव शिक्षक के रूप में कार्य किया साथ ही साथ निवेश परामर्श की स्थापना किया लेकिन बाबा साहब के ये सारे प्रयास व्यर्थ विफल सावित हुये जब उनके अछूत होने का पता चलाता 1918 में मुंबई सिडनहम कालेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स में राजनीतिक अर्थ शास्त्र के प्रोफेसर बने औऱ छात्रों के साथ सफल रहे लेकिन अन्य प्रोफेसर उनको अछूत मानकर स्वीकार नही किया ।भारत सरकार अधिनियम 1919 साउठबरो समिति के समक्ष भारत के एक प्रमुख विद्वान के तौर पर आंबेडकर को आमंत्रित किया सुनवाई के दौरान आंबेडकर ने दलितों और अन्य धार्मिक समुदायों के लिए पृथक निर्वाचिका एव आरक्षण कि देने कि वकालत की ।1920 से उन्होंने साप्ताहिक मूक नायक का प्रकाशन शुरू किया जो शीघ्र ही पाठकों में लोकप्रिय हो गया तब आम्बेडकर ने प्रयोग के तौर पर रूढ़ वादी हिन्दू राजनेताओं व जातीय भेदभाव से लड़ने के प्रति भारतीय राजनैतिक समुदाय की अनिक्षा के आलोचना के लिए किया दलित वर्ग के सम्मेलन के दौरान दिए गए भाषण कोल्हापुर राज्य के स्थानीय शासक शाहू चतुर्थ को बहुत प्रभावित किया जिनका आम्बेडकर के साथ भोजन करना रूढ़िवादी समाज मे हलचल मचा गया।बॉम्बे उच्च न्यायलय में वकालत के दौरान बाबा साहब ने अछूतों की शिक्षा को बढ़ावा देने एव उन्हें ऊपर उठाने के प्रयास किये ।उनका पहला संगठित प्रायास केंद्रीय संस्थान बहिष्कृत हितकारिणी सभा कि स्थापना किया जिसका उद्देश्य शिक्षा सामाजिक आर्थिक सुधार को बढ़ावा देना था साथ ही साथ अवसादग्रस्त वहिष्कृत वर्गों के रूप में संदर्भित वहिष्कार का कल्याण करना था ।दलित अधिकारों कि रक्षा के लिए मूक नायक बहिष्कृत भारत,समता, प्रबुद्ध ,भारत एव जनता जैसी पांच पत्रिकाएं निकाली । 1925 में बम्बई प्रेसीडेंसी समिति में सभी यूरोपिय सदस्यों वाले साइमन कमीशन में काम करने के लिए नियुक्त किया गया इस आयोग के विरोध में भारत मे विरोध प्रदर्शन हुए इसकी रिपोर्ट को अधिकतर भारतीयों ने अनदेखा कर ध्यान नही दिया ।आम्बेडकर ने अलग से सुधारो के लिए सिफारिश लिखकर भेजी द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध के दौरान 1 जनवरी 1818 को हुई कोरेगांव कि लड़ाई के दौरान मारे गए महार सैनिक के सम्मान आम्बेडकर ने 1 जनवरी 1927 को कोरे गांव स्मारक जय स्तम्भ में समारोह आयोजित किया जहां महार समुदाय से सम्बंधित सैनिकों के नाम शिलालेखों पर खुदवाए गए तथा कोरे गांव को दलित स्वाभिमान का प्रतीक बनाया गया। 1927 में डॉ आंबेडकर ने छुआछूत के विरुद्ध आंदोलन आरम्भ किया सार्वजनिक आंदोलनों सत्याग्रहों जलुसो द्वारा पेयजल के सार्वजनिक संसाधन समाज के सभी वर्गों के लिए खुलवाने के साथ ही उन्होंने अच्छूतो को मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने का संघर्ष किया महाड शहर अछूत समुदाय को नगर चौदार जलाशय से पानी लेने अधिकार दिलाने के लिये संघर्ष किया ।1927 के अंत मे आम्बेडकर ने जाति भेद भाव छुआछूत को वैचारिक रूप से न्याय संगत बनाने के लिए मनुस्मृति कि निंदा की एव औपचारिक रूप से प्राचीन पाठ कि प्रतियां जलाई 25 दिसम्बर 1927 को हज़ारों अनुयायियों के नेतृत्व में 25 दिसम्बर को मनुस्मृति दहन दिवस के रूप में अंबेडकर वादियों एक हिन्दू दलितों द्वारा मनाया गया ।1930 काला राम मंदिर सत्याग्रह आरंभ किया इस सत्याग्रह में लग्भग 15000 स्वंयसेवक एकत्र हुए जिससे नासिक कि सबसे बड़ी प्रतिक्रियाएं हुई जुलूस का नेतृत्व सैनिक बैंड ने किया।
3-दलित संघर्ष एव पूना पैक्ट --
भीम राव आम्बेडकर तत्कालीन समय मे सबसे बड़ी शक्ति अछूत राजनीति के बन चुके थे मुख्यधारा के महत्वपूर्ण राजनीतिक दलों कि जाती व्यवस्था के उन्मूलन के प्रति उदासीनता कि घोर निदा एव आलोचना किया ।आंबेडकर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता महात्मा गांधी कि आलोचना की उन्होंने अछूत समुदाय को करुणा कि वस्तु के रूप में प्रस्तुत करने का आरोप लगाया साथ ही साथ ब्रिटिश शासन कि विफलताओं से असंतुष्ट थे उन्होंने अछूत समुदाय के लिये ऐसे राजनीतिक पहचान कि वकालत किया जिसमे कांग्रेस एव ब्रिटिश का कोई दखल ना हो लंदन 8 अगस्त 1930 शोषित वर्ग सम्मेलन यानी प्रथम गोलमेज सम्मेलन में आम्बेडकर ने अपनी राजनीतिक दृष्टि को दुनियां के सामने रखा जिसके अनुसार शोषित वर्ग कि सुरक्षा सरकार एव कांग्रेस दोनों से अलग ही सम्भव है। कांग्रेस में महात्मा गांधी द्वारा चलाये गए नमक सत्याग्रह कि आलोचना की अछूत समुदाय में बढ़ती लोकप्रियता जन समर्थन के चलते 1931 में लंदन के दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भी आमंत्रित किया गया जहां उनकी अछूतों को पृथक निर्वाचिका देने के लिए महात्मा गांधी जी से तीखी झड़प हुई आम्बेडकर के विचारों से सहमत ब्रिटिश धर्म एव जाती के आधार पर पृथक निर्वाचिका देने के प्रबल विरोधी महात्मा ने आशंका जताई कि
अछूतों को दी जाने वाली पृथक निर्वाचिका से हिन्दू समाज के विखंडित होने का खतरा था महात्मा को लगता था कि सवर्णों को छुआ छूत भुलाने के लिए हृदयपरिवर्तन के लिए समय कि आवश्यकता होगी किंतु यह धारणा गलत सावित हुई जब पूना पैक्ट के दशकों बाद भी सवर्ण हिंदुओ द्वारा छुआछूत के नियमो का पालन नही किया गया ।1932 में ब्रिटिश ने आम्बेडकर के विचारों से सहमति व्यक्त करते हुए पृथक निर्वाचिका देने कि घोषणा की कम्युनल एवार्ड कि घोषणा गोल मेज सम्मेलन का परिणाम था इस घोषणा के अंतर्गत आंबेडकर द्वारा उठाए गए राजनीतिक प्रतिनितव की मांग को मानते हुए दलित वर्ग को दो वोटो का अधिकार प्रधान किया गया जिसके अंतर्गत एक वोट से दलित अपने वर्ग का प्रतिनिधि एव दुसर्व वोट से सामान्य वर्ग का प्रतिनिधि चुन सकते थे ऐसी स्थिति में दलित चयनित उम्मीदवार दलितों की समस्याएं बेहतर तरीको से प्रस्तुत कर सकता था किंतु गैर दलित उमीदवार के लिए यह आवश्यक नही था।महात्मा गांधी इस समय पूना के येरवड़ा जेल में थे कम्युनल अवार्ड की घोषणा के बाद महात्मा ने पत्र लिखकर प्रधानमंत्री से विरोध किया जब उनको लगा कि उनके मांग पर विचार नही किया जा रहा है तब उन्होंने आमरण अनशन शुरू कर दिया तब आम्बेडकर ने गांधी जी का विरोध किया जबकि भारतीय ईसाईयों मुसलमानों सीखो को प्राप्त पृथक निर्वाचिका का विरोध नही किया तब आम्बेडकर ने कहा था महात्मा गांधी जान बचाने के लिए दलितों के हितों का त्याग नही कर सकते है।आमरण अनशन से महात्मा गांधी जी की तबियत बिगड़ती गयी और पूरा हिन्दू समाज आम्बेडकर का विरोधी बन गया।देश मे बढ़ते दबाव के कारण 24 सितंबर 1932 को शाम आम्बेडकर येरवड़ा जेल पहुंचे जहां महात्मा गांधी और आम्बेडकर के बीच समझौता हुआ जो पूना पैक्ट के नाम से जाना जाता है जिसके अंतर्गत दलितों के पृथक निर्वाचिका मांग को आम्बेडकर ने छोड़ने की घोषणा की साथ ही साथ कम्युनल अवार्ड से मिली 78 सीटों को 148 सीट करवाने में सफल रहे इसके साथ ही अछूत वर्ग के लिए प्रत्येक प्रान्त में शिक्षा अनुदान राशि नियत कराई नौकरियों में बिना किसी भेद भाव के दलित वर्ग के लांगो की भर्ती सुनिश्चित कराई इस तरह से आम्बेडकर ने माध्यम मार्ग अपना कर महात्मा गांधी के आमरण अनशन को समाप्त करवाया एव दलितों के हितों कि अनदेखी का आरोप महात्मा गांधी पर लगाया ।1942 में आम्बेडकर ने इस समझते का धिक्कार किया भारतीय रिपब्लिकन पार्टी द्वारा धिक्कार सभाएं कि गयी।
4- राजजनीति जीवन एव विचार -
आम्बेडकर के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1926 से 1956 तक है सर्व प्रथम 1926 में गवर्नर ने बॉम्बे विधान परिषद के लिए उन्हें गर्वनर नियुक्त किया आम्बेडकर ने अपने कर्तव्यों का बहुत गम्भीरता से पालन किया 1936 में बॉम्बे लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य बने 13 अक्टूबर 1935 को सरकारी ला कालेज के प्रधानाचार्य नियुक्त हुए दिल्ली विश्वद्यालय के रामजस राय कॉलेज के गवर्निंग बॉडी के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया एव बम्बई में बस गए 1935 में लम्बी बीमारी के बाद पत्नी रमाबाई की मृत्यु हो गयी 1936 में स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना किया और केंद्रीय विधान सभा मे 13 सीटे जीती 1942 तक विधान सभा के सदस्य रहे बॉम्बे विधान सभा मे बिपक्ष के नेता के रूप में कार्य किया 15 मई 1936 को अपनी पुस्तक एनिहिलेशन ऑफ कास्ट प्रकाशित किया जो न्यूयार्क के शोधपत्र पर आधारित थी जिसमे हिन्दू धार्मिक नेताओं एव जाती प्रथा की निदा की एव गांधी जी द्वारा रचित हरिजन पुकारने के कांग्रेस फैसले की कड़ी निंदा की 1955 में उन्होंने महात्मा गांधी जी पर गुजराती भाषा पत्रों में जाति व्यवस्था के समर्थन तथा अंग्रेजी भाषा पत्रों में जाति व्यवस्था का विरोध करने का आरोप बी बी सी साक्षात्कार में लगाया 1942 में ऑल इंडिया शेड्यूल कॉस्ट फेडरेशन की स्थापना किया 1942 से 1946 तक वायसराय कि कार्यकारी परिषद में श्रम मंत्री रहे ।पाकिस्तान की मांग कर रहे मुस्लिम लीग के लाहौर रिजोल्यूशन 1940 के बाद आम्बेडकर ने थॉट्स ऑफ पाकिस्तान नामक पुस्तक लिखी जिसमे अपने विचार पाकिस्तान कि अवधारणा को प्रस्तुत किया जिसमें मुस्लिम लीग के अलग देश की मांग की आलोचना कि साथ ही साथ तर्क प्रस्तुत किया कि हिंदुओं को मुसलमानों के पाकिस्तान को स्वीकार करना चाहिए उन्होंने प्रस्तावित किया मुस्लिम एव गैर मुस्लिम बहुमत वाले हिस्से को अलग करने के लिए पंजाब और बंगाल की प्रांतीय सीमाओं को पुनः निर्धारित करना चाहिये ।विद्वब वेंकट ढालिपाल थॉट्स आन पाकिस्तान ने एक दशक तक भारतीय रसजनीति को रोका और मुस्लिम लीग एव भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संवाद को निर्धारित किया जो भारत के विभाजन के लिए रास्ते का निर्धारण कर रहा था मोहम्मद अली जिन्ना के विरोधी होने के वावजूद उन्होंने हिन्दू मुसलमानों को पृथक करने की वकालत की उनका तर्क था एक ही देश का नेतृत्व करने के लिए राष्ट्रवाद के चलते देश के अंदर हिंसा भड़केगी एव हिन्दू एव मुसलमान के साम्प्रदायिक विभाजन के विषय मे ऑटोमोन साम्राज्य और चेकोस्लोवाकिया के विघटन जैसे ऐतिहासिक तथ्यों को प्रस्तुत किया उन्होंने स्प्ष्ट किया कि हिन्दू और मुसलमानों के मध्य मतभेद कम कठोर कदम से ही मिटना संम्भवः है ।व्हाट कांग्रेस एंड गांधी हैव डन टू द अनटचेम्बलस किताब के माध्यम से महात्मा गांधी और कांगेस दोनों कि आलोचना की आम्बेडकर ने अपनी पार्टी को अखिलभारतीय अनुसूचित जाति फेडरेशन में बदलते देखा 1946क में आयोजित भारत के संविधान सभा के लिए खराब प्रदर्शन किया बाद में वह बंगाल जहां मुस्लिम लीग सत्ता में थी से चुने गए आम्बेडकर 1952 में बॉम्बे उत्तर से लोकसभा के लिए चुनांव लड़ा लेकिन अपने ही पूर्व सहायक और कॉंग्रेस नेता नारायण काजोलकर से हार गए बाद में इसी वर्ष राज्य सभा के लिये चुने गए 1954 में भंडारा से लोकसभा में उपचुनाव में तीसरे स्थान पर रहे ।आम्बेडकर दो बार भारत के उच्च सदन राज्य सभा के सदस्य रहे ।30 सितंबर 1956 को अनुसूचित जाति महासंघ को खारिज करके रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया कि स्थापना किया ।आम्बेडकर ने अपनी पुस्तक हू वर द शुद्राज शुद्र कौन थे नीची जाति यानी शूद्रों के आने की व्यख्या कि है उन्होंने इस तथ्य की भी व्यख्या कि की अतिशूद्र शूद्रों से किस प्रकार अलग है 1948 में शुद्राज की उत्तरकथा द अंनटचेबलस ए थीसिस ऑन द ओरिजिनल ऑफ अन ट चेबिलिटी में हिंदुओं को लताड़ा आम्बेडक दक्षिण एशिया के इस्लाम रीतियों के भी बड़े आलोचक थे उन्होंने भारत विभाजन का समर्थन तो किया किंतु बाल विवाह महिलाओं की दशा हेतु मुस्लिम समाज की निदा किया।
5- भारतीय संविधान एव बाबा साहब -
महात्मा गांधी कि कटु आलोचना के वावजूद आम्बेडकर कि प्रतिष्ठा विद्वान एव अद्वितीय विधिवेत्ता कि थी जिसके कारण 15 अगस्त 1947 को भारत की स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस नेतृत्व कि सरकार अस्तित्व में आई और आम्बेडकर को देश के प्रथम कानून मंत्री के रूप में नियुक्त किया 29 अगस्त 1947 को आम्बेडकर को संविधान निर्माण के लिए संविधान मसौदा समिति का अध्यक्ष बनाया गया संविधान निर्माण के कार्य मे आम्बेडकर का शुरुआती बौद्ध संघ रीतियों और अन्य बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन भी काम आया।आम्बेडकर ने स्वयं भी 60 से अधिक देशों के संविधान का अध्ययन किया था आम्बेडकर को भारत संविधान के पिता के रूप में मान्यता प्राप्त है ।ग्रेनविले आस्टिन ने सबसे महत्वपूर्ण सांमजिक दस्तावेज के रूप में आम्बेडकर द्वारा तैयार भारतीय संविधान का वर्णन किया है भारत के अधिकांश संवैधानिक प्राविधान या तो सामाजिक क्रांति के उद्देश्य को आगे बढाने या उसकी उपलब्धि के लिए जरूरी स्थितियों कि स्थापना करके इस क्रांति को आगे बढाने के प्रायास में सीधे पहुंचे है आम्बेडकर द्वारा तैयार किये गए संविधान के पाठ में व्यक्तिगत नागरिकों के लिए स्वतंत्रता के लिए एक लंबी श्रृंखला के लिए संवैधानिक गारण्टी और सुरक्षा प्रदान की गई है जिसमे धर्म कि आजादी छुआछूत खत्म करना एव भेद भाव के सभी स्वरुपों का उलंघन करना शामिल है साथ ही साथ महिलाओं क्लिय व्यपाक आर्थिक एव सामाजिक अधिकारों के लिए तर्क दिया है एव अनुसूचित जाति अनुसूचित जन जाति पिछड़ा वर्ग के सदस्यों के लिए नागरिक सेवाओ, स्कूलों ,कॉलेजों एव नौकरियों में आरक्षण कि व्यवस्था शुरू करने के लिए असेंबली का समर्थन जीता जो सकारात्मक कदम था भारत के सांसदों ने इन उपायों के माध्यम से भारत की निराशा जनक कक्षाओं के लिए सामाजिक आर्थिक असमानताओं एव अवसरों कि कमी को खत्म की आशा जगाई संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को संविधान अपनाया गया।आम्बेडकर ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 का विरोध किया जिसे उनकी इच्छा के विरुद्ध संविधान में सम्मिलित किया गया बलराज मधोक ने कहा था कि आम्वेदकर ने कश्मीरी नेता शेख अब्दुल्ला से बहुत स्पष्ठ रूप से बताया है ।आप चाहते है कि भारत को आपकी सीमाओं कि रक्षा करनी चाहिए उंसे आपके क्षेत्र में निर्माण एव खाद्यान्न की आपूर्ति करनी चाहिए और कश्मीर को भारत के समान दर्जा देना चाहिए और भारत सरकार के पास सीमित शक्तियां ही होनी चाहिये और भारतीयों का कश्मीर में कोई अधिकार नही होना चाहिए इस प्रस्ताव को सहमति देने के लिए मैं भारत के कानून मंत्री के रूप में भारत के हितों के खिलाफ विश्वासघात नही कर सकता बाद में नेहरू जी के व्यक्तिगत प्रयास से गोपाल शंकर आयंगार ने पटेल जी से संपर्क किया पटेल जी द्वारा अनुच्छेद पारित किया गया जिस दिन इस विषय पर चर्चा होनी थी उस दिन नेहरू जी विदेश यात्रा पर थे आम्बेडकर जी ने कुछ नही बोला गोपाल शंकर आयंकर ने सारे कार्यवाहियों का जबाब दिया समान नागरिक संघीता आम्बेडकर जी समान नागरिक संघीता के पक्षधर थे एव धरा 370 के विरोधी आम्बेडकर का भारत आधुनिक वैज्ञानिक सोच एव तर्क संगत विचारों का भारत होता जिसमे व्यक्तिगत कानून कि आवश्यकता ही नही थी आम्बेडकर जी ने समान नागरिक संघीता कि सिपारिश करके भारतीय समाज मे सुधार के अपने संकल्प को व्यक्त किया 1951 में अपने हिन्दू कोड बिल मसौदे को रोके जाने के बाद आम्बेडकर ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया हिन्दू कोड बल द्वारा महिलाओं को कई अधिकार प्रदान करने कि बात कही गयी थी इस मसौदे में उत्तराधिकार विवाह एव अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता की मांग की गई थी नेहरू कैबिनेट एव कांग्रेसी कुछ नेताओं ने इसका समर्थन किया डॉ राजेन्द्र प्रसाद सरदार वल्लभ भाई पटेल समेत बड़ी संख्या संसद सदस्य इसके खिलाफ थे
6-बाबा साहब का आर्थिक दृष्टिकोण --
भीम राव आम्बेडकर जी अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट कि डिग्री लेने वाले प्रथम भारतिय थे उनके विचार से उद्योगीकरण एव कृषि विकास से भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत होगी उन्होंने भारत के प्राथमिक उद्योग के रूप में कृषि पर जोर दिया राष्ट्रीय आर्थिक सामाजिक विकास कि वकालत किया शिक्षा सर्वाजनिक स्वच्छता समुदाय स्वास्थ एव आवासीय सुविधा को बुनियादी सुविधाओं के रूप में प्रस्तुत किया साथ ही साथ ब्रिटिश शासन के कारण हुई हानि की गणाना किया ।भारतीय रिजर्व बैंक -भरतीय रिजर्व बैंक आम्बेडकर के विचारों पर आधारित था जो उन्होंने हिल्टन यंग कमीशन को प्रस्तुत किया ।
7-धर्मांतरण कि अवधारण का जन्म-
अनेक वर्षों तक हिन्दू समाज में समानता के लिए संघर्ष करने के बाद कोई परिवर्तन दृष्टिगत नही हुआ उल्टे ही उन्हें अपमानित होना पड़ा तब उन्होंने कहा था -हमने हिन्दू समाज मे समानता का स्तर प्राप्त करने के लिए हर तरह के प्रायास किये किंतु निरर्थक सावित हुये हिन्दू समाज मे समानता के लिए कोई स्थान नही है हिन्दू समाज कहता है कि मनुष्य धर्म के लिए है जबकि आम्बेडकर का मानना था की धर्म मनुष्य के लिए है ।वैसे भी आम्बेडकर जी कि पृष्ठभूमि लालन पालन परिवेश परिस्थिति हिन्दू धर्म मे नही हुई थी उनका परिवार कबीर पंथी अवधारणा के संस्कृति को धर्म के रूप में स्वीकार करता था जिसके कारण बाल्यकाल से ही आम्बेडकर के मन मस्तिष्क पर मूर्तिपूजा आडंबर मंदिर आदि के प्रति कोई निष्ठा नही थी मनुष्यता ही उनके लिए धर्म का मूल सिद्धांत था 13 अट्यूबेर 1935 मे आम्बेडकर ने धर्म परिवर्तन की घोषणा कि #हालांकि मैं एक अछूत हिंदू के रूप में पैदा हुआ हूँ लेकिन मैं हिन्दू के रूप में हरगिज नही मरूंगा# उन्होंने अपने अनुयायियों से हिन्दू धर्म त्याग कर किसी भी अन्य धर्म को अपनाने का आवाहन किया ईसाई मिशनरियों ने उन्हें करोड़ो रूपये का प्रलोभन दिया जिसे उन्होंने ठुकरा दिया निश्चित रूप से ईसाई भी चाहते थे कि दलितों के स्थिति में सुधार हो लेकिन पराए धन पर आश्रित रहते हुए 21 मार्च 1936 में हरिजन में महात्मा गांधी ने लिखा कि जबसे धर्म परिवर्तन कि धमकी का बामगोला धमकी के रूप में डॉ आंबेडकर ने हिन्दू समाज मे फेंका है उन्हें अपने निश्चय डिगाने की हर चंद कोशीश की है आगे गांधी लिखते है ऐसे समय मे सवर्ण सुधारकों को अपना हृदय टटोलना आवश्यक है उंसे सोचना एव विचार करना चाहिये ।एक तथ्य विल्कुल स्प्ष्ट है कि बचपन से ही डॉ आम्बेडकर की परिवेश परिस्थितियों ने भी अछूत समाज कि तात्कालिक परिस्थितियों एव हिन्दू समाज के अतिरिक्त भी गम्भीर प्रभाव धर्मपरिवर्तन के विचार अवधारणा के जन्म एव क्रियान्वयन में डाला।।
8- धर्मांतरण -
1950 में आम्बेडकर बौद्ध धर्म से प्रभावित हुए बौद्ध भिक्षु एव विद्वानों के सम्मेलन में भाग लेने सीलोन लंका गए ।1954 में दो बार म्यांहमार गए 1955 में भारतीय बौद्ध सभा कि स्थापना किया उन्होंने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ द बुद्ध एंड हिज धम्म पूर्ण धुयी 14 अक्टूबर 1956 को अपने समर्थकों नागपुर शहर में औपचारिक सार्वजनिक धर्माव
आम्बेडकर ने स्वंय एव सामर्थको के साथ सार्वजनिक धर्मांतरण सभा का आयोजन किया पहले डॉ आम्बेडकर पत्नी सविता के साथ भिक्षमहस्थबिर चंद्र मणि द्वारा पारंपरिक तरीके से त्रिरत्न और पंच शील को अपनाते हुए बौद्ध धर्म ग्रहण किया साथ ही साथ उनके पांच लाख अनुयायियों ने भी बौद्ध धर्म स्वीकार किया ।डॉ भीमराव के पिता कबीर पंथ से प्रभावित थे एव संत कबीर के सिंद्धान्तों को ही आधार बनाकर चलते थे संत कबीर पाखंड सांमजिक बुराईयों जातिवाद गलत धार्मिक मान्यताएं जीव हिंसा नशाखोरी आदि को समाप्त किया देवताओं के जंजाल को तोड़कर ऐसे मुक्त मानव कि कल्पना करते है धार्मिक है लेकिन असमानता एव गैर बराबरी जीवन मूल्य को नही मानता है हिन्दू धर्म के बंधनों से पूरी तरह से पृथक किया जा सकें जिसके लिए आम्बेडकर ने बाईस प्रतिज्ञाओं का स्वंय निर्धारण किया जो बौद्ध धर्म दर्शन का ही सार है ।नवयान से लेकर आम्बेडकर एव उनके समर्थक बिश्मतावादी हिन्दू धर्म एव हिन्दू दर्शन कि स्पष्ट निदा की एव त्याग किया आम्बेडकर ने पुनः 15 अक्टूबर को पुनः नागपुर में अपने तीन लाख अनुयायियों को बौद्ध धम्म कि दीक्षा दी यह वह अनुयायी थे जो 14 अट्यूबर के सार्वजनिक धर्मांतरण समारोह में समिलित नही थे आम्बेडकर ने करीब आठ लाख लोंगो को बौद्ध धर्म कि दीक्षा दी इसी कारण यह भूमि दीक्षा भूमि के नाम से मशहूर है तीसरे दिन आम्बेडकर चंद्र पुर गए और वहां तीन लाख समर्थकों को बौद्ध दीक्षा दिया सिर्फ तीन दिन में ही दीक्षा देकर बौद्ध मतावलंबी की संख्या 11 लाख बड़ा दिया और भारत मे बौद्ध धर्म को पुनर्जीवित किया नेपाल में चौथे विश्व बौद्ध सम्मेलन में काठमांडू गए जहां शहर कि दलित बस्तियों में गए नेपाल का आंबेडकर वादी आंदोलन दलित नेताओ द्वारा संचालित किया जाता है क्योंकि नेपाल के अधिकांश दलित नेता मानते है आम्बेडकर का दर्शन ही जातिगत भेदभाव को मिटाने में सकक्षम है।
9- व्यक्तिगत जीवन -
आम्बेडकर के दादा का नाम मालो जी सकपाल था पिता का नाम राम जी सकपाल था माता का नाम भीमा बाई सकपका था 1896 में आम्बेडकर जब 5 वर्ष के थे तब उनकी माँ की मृत्यु हो गयी तब बुआ मीरा बाई ने पाला जो पिता राम जी सकपाल कि बड़ी बहन थी मीराबाई के कहने पर राम जी ने जीजाबाई से पुनर्विवाह किया जिससे बालक भीमराव को माँ का प्यार मिल सके भीमराव जब पांचवी कक्षा में पढ़ रहे थे तब उनका विवाह रमाबाई से हुआ रमाबाई एव भीम राव के पांच संताने थी यशवंत ,रमेश,गंगाधर, राजरत्न ,एक पुत्री इंदु थी यशवंत को छोड़ सभी संतानों की बचपन मे ही मृत्यु हो गयी ।आम्बेडकर ने कहा था जीवन तीन गुरुओं एव तीन उपास्यों से सफल बना है उन्होंने तीन महान व्यक्तियों को अपना गुरु माना है जिसमे प्रथम गौतम बुद्ध ,दूसरे संत कबीर, तीसरे गुरु महात्मा ज्योतिराव फुले उनके तीन उपास्य देवता थे ज्ञान स्वाभिमान एव शील।
10-दूसरा विवाह -आम्बेडकर की पहली पत्नी रमाबाई लम्बी बीमारी के बाद 1940 में वह नीद के अभाव से पीड़ित थे उनके पैरों में न्यूरोपैथिक दर्द था इंसुलिन एव होमियोपैथी दवाओ का सेवन कर रहे थे वह उपचार के लिए मुंबई गए और वहां वह शारदा कबीर से मिले जिनके साथ उन्होंने 15 अप्रैल 1948 को अपने घर पर विवाह कर लिया डॉक्टरों ने भी एक ऐसे जीवन साथी की सिफारिस किया था जो पाकशास्त्र में निपुण एव चिकित्सा ज्ञान रखती हो डॉ शारदा कबीर ने विवाह के बाद नाम सविता आम्वेदकर अपनाया उन्होंने आम्बेडकर कि मृत्यपर्यन्त बहुत सेवा किया एव देखभाल कि ।
11-आंबेडकरवाद -आम्बेडकर वाद विचारधारा एव दर्शन है स्वतंत्रता समानता भाई चारा बौद्ध धर्म ,विज्ञानवाद ,मानवता वाद,सत्य अहिंशा आदि आम्वेदकर वाद के महत्वपूर्ण विषय है छुआछूत समाप्त करना दलितों में सांमजिक सुधार भारत मे बौद्ध धर्म का प्रचार भारतीय संविधान में निहित अधिकारों कि रक्षा नैतिक मर्यादित जाति मुक्त समाज राष्ट्र प्रगति सांमजिक राजनीतिक तथा धार्मिक विचार धारा है।
12-महा निर्वाण -1948 से ही मधुमेह से पीड़ित थे आम्बेडकर जून से अट्यूबेर 1954 वह बहुत बीमार पड़े राजनीतिक मुद्दों से परेशान आम्बेडकर का स्वस्थ बदतर होता गया 1955 में लागातार काम ने उन्हें तोड़ कर रख दिया अंतिम पांडुलिपि भगवान बुद्ध एव उनका धम्म पूरा करने के तीन दिन बाद 6 दिसम्बर 1956 को आम्बेडकर महानिर्माण कि निद्रा में चले गए ।
नन्द लाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।
जीवन परिचय
नाम:-नन्दलाल मणि त्रिपाठी
साहित्यिक नाम:-पीताम्बर
जन्मतिथि:-10/01/1962
जन्मस्थान:- रतनपुरा देवरिया उत्तर प्रदेश
माता का नाम:-स्वर्गीय सरस्वती त्रिपाठी यशोदा
पिता का नाम:-स्वर्गीय वसुदेव मणि त्रिपाठी
शिक्षा:-स्नातकोत्तर
वर्तमान में कार्य:-सेवा निबृत्त प्राचार्य
वर्तमान पता-C-159 दिव्य नगर कॉलोनी पोस्ट-खोराबार जनपद-गोरखपुर पिन-273010
मोबाइल न.-9889621993
मेल id:-KAVYKUSUMSAHITYA@gmail.com nandlalmanitripathi@gmail.com
रुचि- लिखना पढ़ना ज्योतिष धर्म शास्त्र
उपलब्धियां:-
आपके द्वारा लिखी गयी पुस्तक के नाम-100 पुस्तको का लेखन पूर्ण प्रकाशित एहसास रिश्तो का ,नायक ,कहानी संग्रह ,शुभा का सच,मगरू का चुनाव,अधूरा इंसान प्रकाशन स्तर पर
आपके द्वारा लिखी गयी कुछ विशेष रचनाओं के नाम:-नशा,छोटी सी चिड़िया ,वक्त,बहारों की बरखा ,हंसी मुस्कान,युवा,समंदर की हंसी लहरे, आदि
कवि सम्मेलन जिसमें आपने भाग लिया हो:-1-काव्य कलश द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन पटियाला पंजाब 2-काव्य रंगोली द्वारा आयोजित ख़िरी लखिमपुर उत्तर प्रदेश 3- के बी फाउंडेशन विसौली बदायूं 4- वीरांगना फाउंडेशन नेपाल 5-मधुशाला प्रकाशन द्वारा आयोजित भरतपुर राजस्थान।आदि
रजिस्टर्ड प्रकाशन के नाम जहां आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुईं हों:-
महत्वपूर्ण कार्य -
समाजिक गतिविधि--1-युवा संवर्धन संरक्षण 2-बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ 3-महिला सशक्तिककर्ण 4--विकलांग अक्षम लोंगो के लिये प्रभावी परिणाम परक सहयोग
शोधपत्र--दस
अध्ययन एव अतिरिक्त ज्ञान--आधुनिक ज्योतिष विज्ञानं योग्यता ---वक्ता एवम् प्रेरक
साझा संकलन --पचहत्तर
सम्मान --- पांच अंतरराष्ट्रीय सम्मान
दो सौ राष्ट्रीय सम्मान बिभिन्न स्तरों पर सांमजिक क्षेत्र में बीस हज़ार से अधिक हताश निराश नवयुवकों को को आत्म निर्भर बनाने का कार्य एव ऐतिहासिक उपलब्धि। भारतीय बैंकिग उद्योग में अनुकम्पा आधारित नियुक्ति अधिनियम बहाली का संकल्प पूर्ण बहाल अविस्मरणीय उपलब्धि।