राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा - 2 Kishanlal Sharma द्वारा पौराणिक कथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

श्रेणी
शेयर करे

राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा - 2

"कहां है राम?
सारथी को देखकर व्यग्रता से दसरथ ने पूछा था
सारथी राजा दशरथ की बात सुनकर चुप रहा तब वह फिर बोले,"तुम बोलते क्यो नही।कहां है मेरे राम
जब सारथी सुमन्त फिर भी नही बोला तो राजा दशरथ बाहर गए थे और रथ को खाली देखकर बोले मैने कहा था,राम को लौटकर लाना
"महाराज राम ने मना कर दिया।उन्होंने कहा है वह पिता को दिया वचन झूठा नही पड़ने देगे।वह14 वर्ष का वनवास पूरा करके ही वापस लौटेंगे
"कहा छोड़कर आये हो मेरे राम को
"चित्रकूट दंडकारण्य वन
में
"मुझे ले चलो ।मैं वापस लाऊंगा राम को
"महाराज कोई फायदा नही है"सारथी बोला"राम ने कहा है वह14 वर्ष बाद ही अयोध्या लौटेंगे
और राजा दशरथ को राम के वियोग में बड़ा धक्का लगा।वह राम को बहुत प्यार करते थे और बीमार पड़ गए।और राम के वियोग में प्राण त्याग दिये।राम तब भी वापस नही लौटे थे जबकि उन्हें पिता के गुजर जाने के समाचार मिल चुके थे।
राम के वन में आने पर ऋषि मुनियों को सबसे ज्यादाखुशी हुई थी।ऋषि मुनि यज्ञ,तपस्या और अनुष्ठान करते रहते थे।राक्षसी प्रवर्ती के लोग इसमें बाधा डालते थे।राम ने उन सभी को जड़मूल से नष्ट कर दिया था।ऋषियों से राम को तरह तरह के अस्त्र शस्त्र भी मिले थे।
जिस समय राम को वनवास जाने की आज्ञा मिली भरत और शत्रुघ्न अयोध्या में नही थे।उन्हें बुलाया गया।जब उन्हें राजपाट मिलने के बारे में पता चला तब उन्होंने अपनी माँ को धिक्कारा और गद्दी पर बैठने से इनकार कर दिया
कैकयी को उम्मीद थी।भरत राजगद्दी मिलने पर खुश होगा लेकिन ऐसा नही हुआ।
भरत, भाई शत्रुघ्न के साथ राम को वापस अयोध्या लाने के लिए वन में गये थे।चित्रकूट के पास भारतपुर गांव में चारो भाइयो की मुलाकात हुई थी।भरत बोले,"भैया मुझे गद्दी नही चाहिए।आप वापस चले
"नही भरत।गद्दी तो तुम्हे ही समलनी है
"नही भैया
और तब राम ने उन्हें अपनी खड़ाऊ दे दी थी।भरत को भारी दुःखीमन से वापस अयोध्या लौटना पड़ा था।भरत एक कुटिया में रहने लगे।राम की खड़ाऊ उन्होंने राजगद्दी पर रखा दी और राम के सेवक बनकर राम के नाम से राज्य चलाने लगे।
तुलसी रामायण के अनुसार मन्थरा के बहकाने पर कैकयी ने राम के लिए वनवास मांगा था।लेकिन वाल्मीकि व अन्य रामायण में ऐसा भी उल्लेख है कि वन स्वयं राम जाना चाहते थे।
इसके पीछे कुछ कारण थे।सबसे पहला अनेक ऋषि वन में तपस्या ही भगवान के दर्शन प्राप्त करने के ।लिए कर रहे थे।ये बात राम जानते थे।दूसरे श्रवण कुमार के माता पिता का श्राप था कि दसरथ की मृत्यु पुत्र वियोग में होगी।
और सबसे बड़ा कारण था रावण।रावण के अत्याचार दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे थे।उससे सब त्रस्त थे।वह महाज्ञानी के साथ महापापी भी था।उसने ब्रह्माजी से वरदान ले रखा था कि मेरी मृत्यु मनुष्य के हाथों से हो।और त्रेता युग मे ऐसा बलशाली कोई आदमी नही था जो रावण को मार सके।
और इसीलिए भगवान को मानव के रूप में अवतार लेकर पृथ्वी पर आना पड़ा।अब वह जिस काम के लिए पृथ्वी पर आए थे वो कार्य अयोध्या में रहकर नहीं हो सकता था।इसके लिए निर्वासन जरूरी था।और राम ने ही वनवास के लिए माता कैकयी को समझाया था।राम के कहने पर ही केकई ने राम के लिए वनवास मांगा था