क्यों Diksha Raghuwanshi द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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क्यों

ये कहानी है उन दिनों की जब नीरू दसवीं कक्षा में पढ़ती थी। सुबह का समय था और आज स्कूल का पहला दिन था। “मां जल्दी करो मेरी बस आती ही होगी”, नीरू ने कहा। मां अपना दुप्पटा संभालती हुई जल्दी जल्दी नीरू का लंच पैक कर ले आई। नीरू को लंच थमाते हुए मां ने कहा ‘मन लगा कर पढ़ाई करना और हां वो कूकिंग की एक्सट्रा क्लासीज भी जोइन कर लियो’, बस मां का इतना कहना बाकी ही था कि नीरू की खुशी उदासी में बदल गई। वो सोच ही रही थी की मां बार बार ऐसा क्यों कहती है कि तब तक उसकी स्कूल बस आ गई और नीरू बस में बैठ गई। हां ये बात अलग थी की वो अपने दोस्तों को देखते ही अपनी मां की कही बातों को भूल गई, लेकिन ये सवाल उसके जहन में अब भी था।

देखते ही देखते नीरू का सारा दिन खेल कूद और पढ़ाई में निकल गया। लास्ट पीरीयड खत्म होते ही उसे कूकिंग की एक्सट्रा क्लास जोइन करनी थी। ‘जाने का मन तो नहीं है पर मां नाराज हो जाएंगी, पता नहीं क्यों...’ वो ये सब सोच ही रही थी की तभी नीरू की सहेली उसे खींच कर कूकिंग क्लास में ले गई।

“नीरू क्या कर रही हो मेरा ऑफिस जाने का टाइम हो रहा है”, अपने पति की आवाज सुनते ही नीरू अपने स्कूल के दिनों से वापस लौट आई। पति को लंच थमा कर वापस किचन साफ करने लग गई। अब नीरू की यही पहचान थी की वो एक कूकिंग क्लास चलाती थी, हां ये अलग बात थी की ये सब असकी मर्जी का नहीं था।

नीरू की शादी को चार साल हो चुके थे, सास-ससुर, पति और एक बेटी, बस इतना सा था उसका सुखी परिवार।

शाम हो गई थी, नीरू का पति भी ऑफिस से लौट आया था। डाइनिंग टेबल पर पूरा परिवार एक साथ बैठ कर खाना खा रहा था। ‘नीरू खाना बहुत अच्छा बना है, कल लंच में सब्जी थोड़ी ज्यादा डाल देना मेरे दोस्त भी खाना शेयर करते हैं।’

अपनी पती की बातों को अनसुना करते हुए नीरू ने कहा ‘नीरज, मैने स्कूल टीचर के लिए एक इंटरव्यू दिया था और मुझे जॉइनिंग लेटर भी मिल गया है।’ नीरू का इतना कहना ही था कि नीरज गुस्से से बोल पड़ा ‘कूकिंग क्लास चलाने की इजाजत दी है न तुम्हें।’ नीरू ने ना चाहते हुए भी जवाब में कह दिया ‘इजाजत नहीं, हुकुम मिला था मुझे...पहले मां का और फिर तुम्हारा, आखिर क्यों?’

इतना कहते ही वो चुप हो गई और कमरे में टेबल पर पड़े उस जॉइनिंग लेटर को निहारती रही। इस 'क्यों' का जवाब उसे कभी नहीं मिला, ये नीरू की जिंदगी का सबसे बड़ा सवाल बन कर रह गया कि आखिर क्यों एक लड़की की पहचान सिर्फ किचन से होती है?

इस सवाल का जवाब देने वाला कोई नहीं था....नीरू रोज की तरह सुबह जल्दी उठ कर सारे परिवार के लिए खाना बनाती और फिर दिन में घर पर ही पड़ोस की कुछ औरतों को नई डिश बनाना सिखाती। और फिर ये सफर ऐसे ही बढ़ता गया, शायद किसी ने सही कहा है कुछ सवालों के जवाब नहीं होते।