शिवा का सच नंदलाल मणि त्रिपाठी द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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शिवा का सच



मनुष्य जीवन भर अनंत इच्छाओं के मकड़जाल में फंस उनकी चाहत में रेगिस्तान के मृग की प्यास की तरह जिंदगी के रेगिस्तान में भागता रहता है जीवन के अंतिम घड़ी तक उसकी उम्मीद अपनी अनंत इच्छाओं की प्राप्ति के लिये प्रायास करती रहती है और पता नही कब जिसके लिये तमाम प्रायास करती हैं उसे छोड़कर चल देती है सारी दुनियादारी एव दुनियां यही रह जाती है यही सच्चाई है जिंदगी की व्यक्ति जीवन की अन्यन्य चाहतों को यही छोड़ जाता है और वर्तमान से भूत हो जाता है इसिलिये कहा जाता है कि अतृप्त जीवन त्यग भूत होती है ।।
मसहूर सेठ सागर मल्ल टीकम गढ़ के मशहूर व्यपारी थे या यूं कहें कि टीकम गढ़ रियासत में उनसे बड़ा व्यापारी और पैसे वाला कोई नही था किसी को सिर्फ रियायत को छोड़कर कोई ऐसा नही था कि सरोकार सेठ सागर मल्ल से न पड़ा हो और किसी न किसी समय मौके पर सेठ जी ने उनकी मदद न कि हो।सेठ जी धर्म भीरू और मानवीय संवेदना में विश्वास रखने वाले थे सेठ जी के चार बेटे शिखर प्रखर निखर और निर्मल सेठ जी की पत्नी विनीता पति ब्रता धर्मनिष्ठ और सांस्कारिक गृहणी थी सेठ जी पर लक्ष्मी की कृपा थी तो भगवान विष्णु का आशीर्वाद सेठ जी एक बार पुष्कर दर्शन करने गए थे तो उन्हें लौटते समय रास्ते मे चार साल का एक बालक मिला जो सम्भवतः अपने माँ बाप से बिछड़ गया था या सम्भव हैं जान बूझ कर छोड़ कर चले गए हो किसी विवसता में सेठ सागर मल उंसे साथ ले आये और कोशिश किया कि बालक को उसके माता पिता मिल जाये पर सम्भव नही हुआ और वह बालक जिसे सेठ जी कमल नाम से पुकारते थे उसको भी अपनी ही पांचवी संतान की तरह पाला था खास बात यह थी कि कमल भी सेठ सागर मल की सेवा के लिये सदैव आगे खड़ा रहता धीरे धीरे शिखर ,प्रखर,निखर,निर्मल जवान हो गए और सेठ जी ने उनका विवाह भी कर दिया और उनको व्यवसाय में उनकी रुचि के अनुसार लगा दिया शिखर कोयले का व्यपार करता प्रखर गल्ले का शिखर कपड़े का तो निर्मल आभूषण का लोग कहते कि यदि कोई मांगलिक कार्य हो तो पूरा बाजार सेठ सागर के घर ही है कुनबे में बरक्कत हो रही थी और सागर मल्ल पत्नी विनीता बच्चो बहुओं के साथ ख़ुश थे कहते है कि जब ईश्वर की भृकुटि टेढ़ी होती है तब बड़ा से बड़ा साम्राज्य पलक झपकते ही तहस नहस हो जाता है राजा को रंक और रंक को राजा बनने में बहुत समय नही लगता है सागर मल अपने बचपन और जवानी के दिनों को अक्सर याद कर अपने बच्चों को नसीहत देते सेठ सागर मल जब चार वर्ष के थे तब दांकुओ ने उनके पिता चिरौंजी मल की एव माँ देवायनी की ह्त्या कर दी और सागर मल को भी मारने के लिये खोजने लगे दहसत में सागर मल घर की देहरी में घुस गए और जब देहरी को तोड़ने के लिये डांकुओ ने कोशिश की तब वहां एक विषधर नाग की फुंकार से किसी तरह जान बचाकर भागे पहले तो विषधर को ही मारने के लिये गोली और अन्य हथियारों का प्रयोग किया और अंत मे भाग गए डांकुओ को विश्वास नही था कि मैं उस देहरी में हूँ केवल शंका के कारण वो बार बार डेहरी तोड़ने पर आमादा थे रात भर डांकुओ का आतंक जारी रहा मगर कोई भी आस पास का व्यक्ति हिम्मत शोर तक मचाने के लिये नही कर पाया सुबह हुई तो आस पास के लोग एकत्रित हुये और मेरी सागर मल के रोने की आवाज सुनकर बाहर निकाला चार वर्ष की आयु में सागर मल की दुनियां उझड चुकी थी उनके पिता का दोष मात्र इतना ही था कि उन्होंने दांकुओ के सरदार दुर्दान्त सिंह के खिलाफ गवाही दी थी और दुर्दान्त सिंह को फांसी की सजा हो चुकी थी डांकुओ ने इसी का बदला चुकाया था सागर मल अनाथ छिपते हुए किसी तरह टीकम गढ़ पहुँच गए जहाँ मन्दिर के पुजारी ने उनका पालन पोषण किया डांकुओ को जब पता चला कि सागर मल टीकम गढ़ रियासत के कुल देवता के मंदिर के पुजारी के यहां पल रहे है तो इन्होंने पुजारी की ह्त्या कर दी वहाँ भी सागर मल भगवान की मूर्ति के गर्भ गृह में छिप कर किसी तरह जान बचाई जब इसकी खबर टीकमगढ़ के राजा को लगी तो वो सागर को अपने रियासत में ही कार्य पर रख लिया धीरे धीरे सागर ने अपनी ईमानदारी मेहनत से राज का मन जीत लिया राजा साहब ने एक दिन सागर से पूछा कि तुम्हे क्या चाहिए जिससे तुम्हे खुशी मीले सागर ने कहा मालिक मुझे अपने रियासत में व्यपार की अनुमति देने की कृपा करें राजा साहब ने सागर को व्यपार की अनुमति दे दी और मेहनत ईमानदारी से सागर ने जल्दी ही एक प्रतिष्ठित व्यवसायी का ओहदा टीकम गढ़ में हासिल कर लिया और उन्होंने जो भी पाने की कोशिश किया उंसे हासिल किया बेटो की परिवश भी उन्होंने बहुत जिम्मेदारी से किया कमल में सेठ सागर मल कही न कही अपना बचपन देखते जिसके कारण उसे अपनी संतान जैसा ही सम्मान प्यार देते सागर मल की उम्र जीवन के चौथे पड़ाव में प्रवेश कर चुकी थी उन्हें अपने पिता चिरौंजी मल की बात सदैव याद रहती उनके पिता अक्सर कहा करते बेटे दुनिया मे परोपकार और ईमानदारी से बड़ा कुछ भी नही है तुम इन दो सिद्धान्त पर जीवन पर्यन्त अडिग रहना और जीवन को ईश्वर की कृपा प्रसाद मानकर जीना सागर मल ने जीवन मे सदैव पिता की शिक्षा का पालन किया पत्नी विनीता भी उनके जीवन मे सहयोगी की तरह जीवन भर पति के मार्ग का अनुशरण करती रही ।
नियति का खेल ही बड़ा निराला होता है विनीता की अचानक बीमारी से मृत्यु हो सागर मल के जीवन से उनकी संगिनी सहयोगी और सुख दुख की साथी ने साथ छोड़ दिया था अब सेठ के जीवन मे अकेलापन और खालीपन आ गया जिसे भरपाना संभव ही नही था अब सागर मल के लिये कमल ही एक ऐसा विश्वनीय सहारा बच गया जो उनका ख्याल रखता बेटे भी बेटो वाले हो चुके थे अतः उनको अपने व्यवसास परिवार से फुर्सत नही मिलती की घड़ी दो घड़ी के लिये भी पिता के पास बैठकर उनके लालन पालन का सत्कार करते और ऊपर से उनके और कमल के लिये भोजन बनाने के लिये शिखर प्रखर निखर निर्मल की पत्नियों में तकरार होती हालांकि सेठ सागर मल का व्यवसाय जो स्वय करते कमल के सहयोग से बहुत अच्छा चल रहा था आर्थिक अभाव नही था फिर भी सेठ और कमल के भोजन की व्यवस्था एक ऐसी समस्या बन गयी कि चारो बेटो की पत्नियां आये दिन लड़ती झगड़ती और अंत मे चारो ने ही आपस मे फैसला किया कि एक एक सप्ताह सागर मल और कमल का भोजन सभी बेटो के यहाँ क्रमशः बनेगा सागर मल बेटो के द्वारा अपने बटवारे से बहुत दुखी हुये मगर कर ही क्या सकते थे उन्होंने नए जमाने के बेटे बहुओं के बटवारे को स्वीकार कर लिया लेकिन यह भी बटवारा बहुत दिनों तक नही चला और बेटो ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया यह कहकर की आप तो बाप हो कमल कौन है जिसे हम नौकरों की तरह खाना बनाकर खिलाये चारो बेटे बहुओं ने इतना बड़ा बखेड़ा खड़ा किया कि सागर मल टूट कर विखर चुके थे अंत मे बेटे बहुओं ने शर्त रखी कि कमल को घर से निकाल दे सेठ सागर मल ने अपना व्यवसाय कमल को देने की पेशकश की तो बेटे भड़क उठे उन्होंने सम्मिलित स्वर में कहा कि आप कैसे कमल को कोई भी हिस्सा अपनी दौलत से दे सकते है पहले कमल के बारे मे जानने की कोशिश तो करिए जिसे आप राह चलते उठा लाये थे कही आपकी बर्बादी के लिये उन्ही डांकुओ की नई चाल तो नही जिन्होंने दादा चिरौंजी मल को नेस्त नाबूद करने के कर दिया और आपको सड़क पर दर दर की ठोकर खा कर मरने के लिये अब डांकुओ का साम्राज्य तो समाप्त हो चुका है बस उनके तरीके अवश्य बदल चुके है सागर मल के सामने विल्कुल अंधेरा छा गया जैसे वह बचपन मे अपनी जान बचाने के लिये डेहरी में बैठे हो उन्होंने बेटो से सवाल किया क्या चाहते हो तुम लोग चारो बेटो बहुओं ने एक स्वर में कहा बटवारा आप अपनी आना पाई हम चारो भाईयों में बांट दे और कमल को कोई हिस्सा नही मिलेगा उंसे घर से बाहर जाना पड़ेगा तभी हम लोग आपकी उम्र के इस आख़िर पड़ाव में सेवा कर सकने में सक्षम होंगे सागर मल ने अपना भविष्य जान लिया उन्होंने दूसरे दिन वकील को बुलाकर चारो बेटे बहुओं के समक्ष कानूनी बटवारा कर दिया और स्वय एव कमल के लिये कुछ भी नही छोड़ा बेटे बहुये बहुत खुश हुई उन्होंने कहा बाबूजी आप एक सफल पिता और महान इंसान हो सेठ सागर मल्ल ने कहा तुम सब खुश हो इससे ज्यादा हमे क्या चाहिये अब मैं तुम लांगो के किसी उत्तदायित्व से आजाद हूँ और इतना कहते हुये अपनी पत्नी विनीता के तस्वीर के सामने खड़े हुये और बोले विनीता देख लिया अपने लाडलो का प्यार परिवरिश और तस्बीर को हाथ मे लेकर बोले चल बेटे कमल अब तू ही तो एक बेटा रह गया है और इतना कहतें ही कमल उनका हाथ पकड़ लिया और उनको घर के बाहर लाया सेठ सागर मल ने एक बार अपने सपने के महल को देखा उनको लगा कि यह तो सिर्फ ईंट सीमेंट के दीवार का खंडहर है घर तो तिनकों तिनको में बिखर चुका है और फिर चल पड़े टीकमगढ़ की उसी कुल देवता के मंदिर में जहाँ पुजारी ने उनकी परवरिश किया था और उनके लिये स्वय मृत्यु को गले लगाया था अब रजवाड़े खत्म हो चुके थे और केवल प्रतीकात्मक राज ऐतिहासिक धरोहरों के नाम पर बच गए थे अधिकतर राजा लोकतंत्र की राजनीति में व्यस्त हो चुके थे नही बदला था तो मन्दिर और वहाँ का परिवश वहाँ जब सागर मल पहुंच कमल के साथ तो बुजुर्ग लगभग पुजारी ने आदर भाव से उन्हें बैठाया और जब सागर ने मन्दिर से अपने पुराने रिश्ते को बताया तो पुजारी नरोत्तम और भी अधिक संवेदनशील हो गए सेठ सागर के लिये रात्रिं को कमल और सेठ सागर ने विश्राम किया सुबह ब्रह्म मुहूर्त में एक तेजस्वी महिला जो देखने से किसी सम्भ्रांत परिवार से संबंधित दिखती थी मन्दिर की साफ सफाई करने लगी कमल भी उठा और बोला माई अगर आप आदेश दे तो मैं भी भगवान के मन्दिर में सेवा दान करू सुभद्रा ने बड़े प्यार से कहा क्यो नही भगवान की सेवा में अनुमति की क्या आवश्यकता सूरज निकला तब कमल और सागर मल से उस महिला के विषय मे जानकारी जाननी चाही पुजारी नरोत्तम ने बताया कि यह बहुत बड़े घर की बेटी है और बहुत बड़े घराने की इकलौती बहु मगर किस्मत की मारी यह ना ससुराल वालों को रास आयी ना ही पीहर वालो को कारण की व्याह के सातवें महीने ही इसने एक पुत्र को जन्म दिया इसके पति को कोई संदेह तो नही था ना ही ससुराल में किसी को क्योकि सात माह पर संतान कमजोर पैदा होती है संदेह जैसी कोई बात नही मगर बाद में इसका पति एक नर्तकी मैना के प्रेम जाल में फंस गया वह इसके पति कौशिक के कान दिन रात विष भरती की तुम्हारी पत्नी नाजायज़ औलाद की माँ है और तुम हो कि उसे पतिव्रता समझते हो कौशिक सुभद्रा को तरह तरह से प्रताड़ित करता और बच्चे को कही भी बाहर छोड़ने को कहता एक दिन उसने क्रोध में उस मासूम को जमीन पर पटक दिया जिससे उसका सर बुरी तरह से फट गया किसी तरह से उसकी जान बची सुभद्रा ने कलेजे पर पत्थर रख अपने चार वर्ष के बेटे को पुष्कर से अजमेर जाने वाले रास्ते पर भगवान के भरोसे छोड़ कर इस विश्वास से आई कि उसका पति कौशिक उंसे मान सम्मना देगा मामला और भी उल्टा हो गया वह कहने लगा कि यह डायन नाज़ायज़ औलाद को चार वर्ष पालने के बाद छोड़ आए जनते छोड़ आती तो शायद बात किसी को पता नही चलती अब कौशिक बिना किसी रोक टोक के मैना को घर पर ही बुलाता कुछ दिन रखता और वह लौट जाती जब कौशिक ने विवाह का प्रस्ताव रखा तो मैना ने सुभद्रा को घर से बाहर निकलने का प्रस्ताव रखा और कौशिक ने सुभद्रा के पीहर वालो को बुलाकर कर नमक मिर्च लगाकर उसमें कमियां निकाली और घर से बाहर निकाल दिया पीहर वालो ने कहा कि बेटी की टोली मायके से उठती है और ससुराल से अब सुभद्रा के लिये ससुराल ही सब कुछ है चाहे जैसे रखो मालिकिन या नौकरानी पीहर वालो की राय और पति का आदेश मानकर सुभद्रा ने घर छोड़ दिया तबसे यह इसी मन्दिर सेवा करती है और भजन पूजन दूसरे दिन सागर सेठ कमल के साथ स्वय सुबह मन्दिर में सेवा दान हेतु वही सुभद्रा से उनकी मुलाकात हुई दोनो ने एक दूसरे को आप बीती सुनाई और बोले हम एक ही कश्ती के मुसाफिर है आपको पति ने घर से बाहर नाज़ायज़ औलाद के जनने के आरोप में बाहर कर दिया और हमे एक अजनवी की औलाद की
परिवरिश प्यार के कारण मेरे बेटो ने फर्क इतना है कि आपकों ना तो आपकी औलाद मिली ना पति का घर हमे तो घर छोड़ना पडा लेकिन वह औलाद जिसके लिये घर छोड़ा है वह मेरे साथ है कमल अब यही मेरे जीवन की आखिरी कमाई और पुण्य प्रताप है अब सुभद्रा कमल और सेठ सागर एक साथ रहने को सहमत मंदिर प्रांगण में ही हो गए पुजारी नरोत्तम को इस त्रिगुट मिलन में ईश्वर की मनसा स्पष्ठ दिख रही थी कुंछ दिनों बाद सेठ सागर ने पुजारी नरोत्तम से भगवान श्री कृष्ण की मिट्टी की मूर्ति बनाकर परिसर में बेचने की अनुमति मांगी पुजारी जी को कोई आपत्ति नही हुए अब कमल और सेठ सागर भगवान की मूर्ति बनाते और इतनी सुंदर बनाते की देखने वालों को लगता कि भगवान श्री कृष्ण अभी बोल देंगे या उनके अधरों की बांसुरी बज उठेगी जो भी आता मूर्ति अवश्य खरीदकर ले जाता जब मन्दिर में सेठ कमल के साथ आये थे तब उनकी आयु सत्तर वर्ष थी कमल पच्चीस वर्ष का अब सेठ सागर की आयु पचहत्तर वर्ष की थी मगर उनकी सक्रियता किसी भी नौजवान से कम नही थी उनका मूर्ति व्यवसास बहुत ख्याति अर्जित कर चुका था उनके बेटे बहुत दूर नही रहते थे उनसे मगर उनको सागर सेठ की यानी पिता की सुधि तब आयी जब उनकी ख्याति और यश पुनः एक बार शिखर पर था सागर सेठ ने बहुत आलीशान घर मंदिर से कुछ दूरी पर बना लिया था जिसमें उनके साथ सुभद्रा और कमल रहते थे एक दिन सागर सेठ ने मंदिर पुजारी के समक्ष कमल और सुभद्रा को बुलाया और बोले सुभद्रा जी यही वह आपकी औलाद है जिसे आप चार वर्ष की अवस्था मे पुष्कर अजमेर मार्ग पर रोता विलखता छोड़ आयी थी आप तस्दीक कर लीजिये यह वही आपका बेटा है या नही सुभद्रा ने बचपन की तमाम यादों से कमल को सत्यपित किया और आंख में खुशियों की अश्रुधारा के साथ बोली सागर जी अपने मेरे बेटे के लिये अपने बेटों को छोड़ दिया और इसके बाप ने इसे नाजायज करार दे दिया ईश्वर का न्याय सच्चा है उंसे अपनी दुनिया मे अन्याय को अधिक दिनों तक बर्दाश्त नही करता पुजारी जी और सभी भगवान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने लगे सेठ सागर बोले सुभद्रा जी बिनीता मेरी पत्नी ने कमल को ठीक माँ की तरह ही पाला प्यार दिया जिस तरह से आप पलती उससे कही कमी कमल के लालन पालन में नही हुई है अब आपको आपकी अमानत सौंपता हूँ सिर्फ एक अधिकार के साथ कि कमल मुझे मुखाग्नि देगा सुभद्रा बोली क्या बोलते है सागर जी आप शतायु हो कमल आपकी सेवा में पुत्रवत रहेगा कमल की शादी बड़े धूम धाम से सागर एव सुभद्रा ने किया कमल की पत्नी नैन ने सभी का दिल सपने सौंम्य व्यवहार और सेवा से जीत लिया एक एक एक दिन सेठ सागर के चारो बेटे शिखर, प्रखर ,निखर ,निर्मल सपनी पत्नियों के साथ आये और अपने भूल के लिये क्षमा मांगने लगे तब सागर सेठ ने कहा बेटे तुम लोगो ने बाप को बोझ समझ लिया था और स्वय को ताकतवर अब तुम भी उम्र के उसी दहलीज पर पहुचने वाले हो जिस समय तुम लांगो ने मुझे मेरी दौलत और अपनी आकांक्षा की बलि वेदी पर एक बाप आकांक्षा को अहंकार के पैरों तले रौंद दिया था ईश्वर ना करे वही पुनरावृत्ति तुम्हारी औलादे तुम्हारे साथ करे जो तुमने मेरे साथ किया मैं तुम लांगो के साथ चैन से जी तो नही सका अब चैन से मरने दो मेरा एक ही बेटा कमल है जो मेरे उम्र के आखिरी पड़ाव में मरे जीवन की पूंजी अब आप सभी को भविष्य के लिये ईश्वर सद्बुद्धि प्रदान करे।।

कहानीकार --नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश