शिक्षा प्रणाली में एक रूपता लाने के लिए मेरे विचार से पाँच वर्ष से पंद्रह वर्ष की उम्र तक बच्चों पर पढ़ाई का बोझ न डालकर भाषा और गणित का हो ज्ञान कराया जाए। भाषा के माध्यम से उसको अपने देश की भिन्न - भिन्न विशेषताओं से अवगत कराया जाए । गणित के माध्यम से कठिन एवं दुरूह समस्याओं का हल निकालने की विधि सिखायी जाए ।
इसके लिए एक क्रमवार , सुसंगठित ढांचे को सम्पूर्ण देश में लागू किया जाए । एक भी बच्चा पाँच से पंद्रह वर्ष के बीच का अशिक्षित व अनपढ़ न रहने दिया जाए ।
इसके लिए आवश्यकता पड़ने पर विशेषज्ञ प्रोत्साहन योजनाएँ भी चलानी जाएँ । जैसे कि आसाम के " जीरो टाउन " में मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि वहाँ इंग्लिश निशनिरियों ने बच्चों के संरक्षकों को मासिक भत्ता देती थी तथा बच्चों को निःशुल्क भोजन , शिक्षा तथा निवास अलग से देती थी ।
बच्चों को कक्षा अ से लेकर कक्षा ८ वीं तक क्रमवार नैतिकता , कर्त्तव्यपरायणता का ज्ञान कराया जाए साथ ही क्रमवार शिक्षा की व्यवस्था भी की जाए जो कि निम्न प्रकार सम्भव है -
1- कक्षा अ में बच्चों को जवानी अक्षर ज्ञान तथा गिनती पहाड़ा आदि सिखायी जाए ।
2- कक्षा व से इसी भाषक्षा अक्षर ज्ञान गणित को लिखना सिखाया जाए ।
3- कक्षा एक में भाषा और गणित के माध्यम से अपने गाँव के इतिहास भूगोल तथा विशेषताओं से परिचित कराया जाए ।
4- कक्षा दो में अदालत , पंचायत डाकखाना विकासखण्ड तथा थाने के इतिहास भूगोल से परिचित कराया जाए ।
5- कक्षा तीन में तहसील तथा उसकी प्राकृतिक सम्पदा , पूर्वजों की धरोहर तथा खनिज और उद्योग धन्धों से परिचित कराया जाए ।
6- कक्षा चार इसी तरह जिले के संभागों के इतिहास , भूगोल तथा विशेषताओं ज्ञान कराया जाए ।
7- कक्षा पाँच कमिश्नरी से सम्बन्धित अपरोक्त बातों का ज्ञान कराया जाए ।
8- कक्षा छः में प्रान्तीय ज्ञान की विशेषताओं की शिक्षा दी जाए ।
9- कक्षा सात में देश को उत्तरी तथा दक्षिणी भाग की शिक्षा दी जाए ।
10 - कक्षा आठ में पूर्वी व पश्चिमी भाग के बारे में सम्पूर्ण ज्ञान कराया जाए । इतिहास भूगोल एवं विशेषताओं से मेरा अर्थ वहाँ के निलवासियों , पूर्वजों , खनिज पदार्थों , उपज , उद्योग धन्धे , खान पान , रहन सहन , शासन व्यवस्था इत्यादि का समावेश होना चाहिए ।
गणित के विषय में भी इसी तरह से गिनती जोड़ , घटाना , भाग , गुणा , साधारण ब्याज , चक्रवृद्धि ब्याज , मूलधन , तथा ज्यामितीय गणित अन्य प्रकार के ले जा जोसा की पद्धतियों से अवगत कराना है ।
यह सब उपरोक्त ज्ञान पंद्रह साल की उम्र तक दी जाए जब बच्चा जवान होने की उम्र तक पहुंचता है तब उसकी रूचि के अनुसार स्वावलम्बी , स्वरोजगार इत्यादि की शिक्षा इस तरह से दी जाए कि वह अपनी शिक्षा तथा व्यावहारिक ज्ञान के द्वारा बीस वर्ष की आयु के बाद अपने सरक्षको का बोस न होकर उनका सहायक सिद्ध हो सके ।
इन्हीं बच्चों में से अपने मनोवैज्ञानिक विश्लेषण से तथा बच्चों की अभिरूचि को देखते हुए उच्चशिक्षा के लिए उत्साहित किया जाए इसके लिए वह तमाम उच्चडिग्रीयाँ प्राप्त करना चाहे प्राप्त करें ( योग्यतानुसार ) अपने देश तथा विश्व की टोवा करे इसमें वह राष्ट्रिय सम्पत्ति के अभियोदय में योगदान करें राष्ट्र भी उसके लिए अन्य तमाम तरह की सेवाएँ सुलभ कराए ।
जैसे डॉक्टर , इन्जीनियर , सिविल सर्विसेज , वैज्ञानिक , आदि परन्तु उच्च शिक्षा कुल शिक्षित युवकों को ३० प्रतिशत तक ही हो ।
स्वतन्त्रता के पश्चात हमारे यहाँ आर्थिक नियोजन का सिद्धान्त देश की विकास के लिए अपनाया गया लेकिन शिक्षा में नियोजन की आज तक लागू नहीं किया गया और हम अपने पंचवर्षीय योजनाओं में शिक्षा के प्रति अन्धेरों में भटकते रहे जिसके कारण हम रोजगारी को विभिषिका से जूझ रहे है ।
आज के कम्प्यूटर समय में भी शिक्षा के नियोजन के सिद्धान्त को हम लागू नहीं कर सके जिसके माध्यम से यह कार्य सरल एवं सुलभ है ।
शिक्षा का नियोजन कहने का अर्थ प्राइमरी से लेकर उच्चशिक्षा तक कितने और किस विषय के अध्यापको की आवश्यकता होगी , कितने लिपिकों की आवश्यकता होगी कितने तकनीशियनों की आवश्यकता होगी , कितने डाक्टर , इन्जीनियरों , वैज्ञानिको तथा व्यवसायिको इत्यादि की आवश्यकता होगी ।
उसी के अनुसार शिक्षण संस्थाएँ तथा इन्फ्रा स्ट्रक्चर ( मूल ढाँचा ) की व्यवस्था की जाए ।
क्रमशः.......
अगला भाग मे......