डरावनी रात
जाड़े के महीने की उस भयंकर रात को भी मेरे सिर के ललाट पर पसीने की मोती जैसी बूँदें बरस रही थी। नहीं! वह पसीने की बूंदें गर्मी की वजह से नहीं बल्कि डर की वजह से था। मेरा नाम धरमा है, दिसंबर माह था, मैं केवल 11 - 12 साल का था जब मेरे माता - पिता कुछ पारिवारिक जरूरी काम से दूसरे गाँव गये हुए थे और घर पर ( मुझ को, मेरे बड़े भाई, मेरे मझले भाई और मेरी बड़ी दीदी को ) छोड़कर गए थे ताकि हम लोग हमारे घर की और पालतू जानवरों की अच्छी प्रकार से देखभाल कर सकें ।
हम भाई - बहनों को इस बात का बिलकुल भी अंदाजा नहीं था कि वो हमें कीमती सामानों व जानवरों की रक्षा करने के लिए कह रहे थे । उनके जाने की भनक किसी शातिर व्यक्ति को लग गई और उसने पहले दिन ही शातिर व्यक्ति ने अपना रंग दिखा दिया ।
उस रात घना अंधेरा हो रहा था और उस व्यक्ति ने जानबूझकर सभी कमरों की रोशनी बंद कर दी । मुझे पता भी नहीं था कि क्या हो रहा है ? मेरी तरफ एक हाथ आ रहा है, कौन है, और वह क्या कर रहा है ? ( वह मेरे लिए सभी डरावनी कहानियों से ज्यादा ही डरावनी रात थी क्योंकि वह पल किसी भी भूत से कहीं ज्यादा भयानक था । )
मैं जमीं पर धराशायी होकर कुछ समय तक सुध - बुध खोए पूरी रात सोचता रहा कि वह कौन था ? इसी बीच हमारा कुत्ता (शेरू) आया और दरवाजे पर दस्तक हुई । उसने कुछ गंध ली (यह पता लगाने के लिए कि वह कौन था ? ) शायद उसे भी भी किसी वारदात का आभास हो गया था ।
बाहर बहुत ठिठुरन थी, मैंने सोचा कि उसे ठंड लग सकती है । इसलिए मैंने उसे अपनी बाँहों में ले लिया और फिर फूट - फूटकर रोना शुरू कर दिया ।
वह शांति से मेरी गोद में बैठा था और मेरी आँखों में देख रहा था । हम दोनों उस रात भर सो नहीं सके और रात भर हमने पलंग के नीचे जमीं पर बितायी ।
कुल तीन दिन तक हर रात हम पलंग के नीचे छुपे रहे क्योंकि यह सबसे सुरक्षित जगह थी । अगली रात जब वह आया, दरवाजा खटखटाया और उसे खोलने की कोशिश की तो मैं बहुत डरा हुआ था लेकिन जब शेरू ने भौंकना शुरू किया तो वह चिल्लाया और वहाँ से वापस चला गया । आखिरी और पाच वें दिन जब मैंने अपनी उम्मीद खो दी और मुझे यह डर भी था कि मेरे भाईयों को पता चल जाएगा तो क्या होगा ? कुल चार दिनों तक यही चलता रहा और पाँचवें दिन मैंने कुछ साहस इकट्ठा किया और कहा, "नहीं, ऐसा मत करो ।
उन्होंने पूछा, "क्या कहा ?"
और कहा, "बच्चे तुम चुप हो जा, चुपचाप सो जा और आखिरी बार कह रहा हूँ ।"
कमरे की रोशनी चालू थी इसलिए मुझमें अधिक आत्मविश्वास हुआ । मैंने चोर को देखा लेकिन बाद में एहसास हुआ कि यह और भी बदतर हो सकता है इसलिए मैंने भाई और बहन को आवाज देना जरूरी नहीं समझा और फिर उसे जाने दिया ।
अगली सुबह मेरे लिए एक सुकून वाली सुबह थी क्योंकि मेरी माँ वापस आ गईं थी और वह मुझे संभालने के लिए वह काफी थी ।
अगली सुबह हम ( मैं और शेरू ) पलंग के नीचे जमीं पर गये तो मेरी माँ मुझ पर हँसने लगी । उन्हें लगा शायद फिर मैंने कोई डरावनी मूवी देखी है और खुद को पलंग के नीचे छिपा रहा हूँ ।
उस रात मैंने अपनी मां को रात में अपने कमरे में ही रहने के लिए कहा ।
वो मुझसे पूछती रही कि कुछ हुआ था, "मैंने कहा नहीं, कुछ भी नहीं हुआ ।"
मैं उन्हें शायद कभी नहीं बताऊँगा कि मैंने कुछ रातों में क्या महसूस किया है ।
मैंने माँ से कहा, "आप बात करते रहो और मैं सो जाता हूँ ।"
थोड़ी देर बाद मैंने सोने का नाटक किया क्योंकि माँ बहुत ही थकी हुई थी ।
यह वारदात अभी भी मुझे परेशान करती है, जब रोशनी बंद होती है, लगता है कि वह अंदर आ रहा है । हर रात मुझे पलंग के नीचे सोना क्यों पसंद है क्योंकि यह मेरी सबसे सुरक्षित और शांतिपूर्ण जगह है।
सबसे दुखःद बात यह थी जब हमारा शेरू मर गया । मैंने एक सप्ताह तक कुछ भी नहीं खाया और बस रोता ही रहता था ।
शेरू के जाने का दुःख सभी को था पर मेरी आत्मा ही जानती थी । कि मैं शेरू को कभी नहीं भूल सकता क्योंकि उसने सब कुछ देखा था । हर रात मेरे साथ मेरे डर को महसूस किया था । सिर्फ हम दोनों ही उस घटना के बारे में जानते थे और उसका साथ मेरे लिए हौसला बढ़ाने जैसा ही था । शेरू मेरे जिंदगी का सबसे बेहतरीन दोस्त था और आज भी वो मेरे दिल में और मेरी यादों में जिंदा है ।
इस घटना के बाद मैं प्रखर से एक औसत छात्र बन गया ।
मैं अक्सर रातों में जागता रहता था और मेरा ध्यान पढ़ते समय आस - पास की तरफ बढ़ता रहता था । हर वक़्त डर लगता था जैसे कोई मेरी ओर तो नहीं आ रहा हैं, या फिर कोई मुझे देख तो नहीं रहा है ।
मेरे मन में आज भी एक डर है । अब मैंने पहले जैसे हँसना भी छोड़ दिया, लोगों से ज्यादा बातचीत भी नहीं रही । अब ना वो हँसी रही और ना ही वो धरमा रहा ।
केवल उन चार रातों ने मेरी हर एक रात को डरावना बना दिया ।