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जादू कि जंग



जादू की दुनियां तिलस्म की दुनियां ऐसी दुनियां जहां सच्चाई को कल्पना लोग के आईने में जांचा परखा जाता है जहाँ स्वार्थ अहंकार और धर्म मर्यादा के बीच जंग निरंतर होती रहती है जो युगों से सतत चलती आ रही है और चलती रहेगी।।
बंगाल का काला जादू मशहूर है तो साहित्य में कहानियां उपन्यास अय्यरी और जादू की दुनियां की कल्पना सच के द्वंद के बीच लिखे गए है डॉ देवकी नंदन खत्री जी की चंद्रकांता संतति अय्यारी जादू की दुनिया पर लिखी गयी एक कालजयी साहित्यिक विरासत है तो समय समय पर जादू को विज्ञान,धर्म एव ज्ञान की कसौटी पर परखा परिभाषित किया जाता है।।
जादू पर आधारित ना जाने किंतनी कहानियां और साहित्यिक रचनात्मक विरासत है जो जादू की दुनियां के रहस्यों को समयानुसार परिभाषित करते समाज के दृष्टिकोण को स्प्ष्ट करते है ।।
सुदर्शन सिंह चक्रधरनगर रियासत के प्रजाप्रिय राजा थे उनके राज्य में प्रजा चहुओर से सुरक्षित और सुखी प्रसन्न थी कहावत मशहूर थी कि राजा सुदर्शन सिंह साक्षात नारायण के चक्र सुदर्शन के अवतार है कारण अपराजेय और धर्म भीरू और मर्यादित है जिसके कारण राज्य और प्रजा की प्रगति और प्रतिष्ठा म बढ़ोत्तरी हो रही थी राजा सुदर्शन सिंह की शक्ति प्रतिष्ठा शौर्य के समक्ष तत्कालीन रियासतों ने उनकी सरपरस्ती स्वीकार कर लिया था राजा कीर्ति वर्धन जिसने सुदर्शन की सरपरस्ती स्वीकार नही की उंसे सुदर्शन ने बुरी तरह से पराजित करके जीवन दान देकर छोड़ दिया ।अपमानित आहत राज कीर्तिवर्धन आने जंगलों में मारा मारा फिरता इधर उधर भटक रहा था एक दिन उसकी मुलाकात अपने कुल पुरोहित पण्डित पृथ्वी से हुई पण्डिन्त पृथ्वी को मालूम था कि उसके यजमान राजा की युद्ध मे दुर्गति दुर्दशा कर अपमानित करते हुये अपमान के जहर का घूंट पी कर पल प्रहर जीने मरने के लिये छोड़ दिया है यदि कीर्तिवर्धन युद्धभूमि में वीरगति को प्राप्त हो गया होता तब भी इसके बाप दादो की प्रतिष्ठा कायम रहती राजा कीर्ति वर्धन ना तो वर्तमान रहा ना ही भविष्य वह तो अंधकार की अनन्त दुनियां में ऐसा खो गया है कि इसके पुरखो की कीर्तिया भी धूल धुषित हो अंधकार में कालिख बन राजा कीर्तिवर्धन के चेहरे पर अपमान बेबसी लाचारी और तिरस्कार बन कर स्प्ष्ट परिलक्षित है पण्डिन्त पृथ्वी को राजा कीर्तिवर्धन का चेहरा लज्जा और
पराजय की कालिख में लिपटा प्रतीत हो रहा था पण्डित पृथ्वी ने राजा कीर्तिवर्धन को देखते बोला आईए अन्नदाता आप आप बहुत दिनों अपमान के विष का पान करते रहने के बाद हमारे पास तक पहुंचे मेरे पुरखे आपके राज्य के सदियों से पुरोहित रहे है और आपके ही नमक की देन मैं हूँ कि आपके समक्ष खड़ा हूँ यजमान की हर पारिवारिक सामाजिक बिपत्ति में पुरोहित की नैतिक जिम्म्मेदार है कि यजमान की समस्याओं का उचित निराकरण करे।।
आज मैं भी उसी नैतिक जिम्मेदारी के निर्भहन के लिये आपसे जानना चाहता हूँ कि क्या करूँ की आपका सम्मान अक्षय अभय अक्षुण होकर आपको प्राप्त हो सके राजा कीर्तिवर्धन बोला कि हमारे पास ना तो सेना है ना ही क्षमता है ना ही कोई ऐसा सहयोगी है कि हमे पुनः सैनिक क्षमता हासिल इस प्रकार की करे कि राजा सुदर्शन को पराजित कर सके साथ ही साथ राज राजाओं द्वारा राजा सुदर्शन की सरपरस्ती स्वीकार की जा चुकी थी अतः कोई राजा इतनी हिम्मत नही जुटा सकता है की सुदर्शन के विरुद्ध मेरी मदद कर सके महाराज पृथ्वी मेरे समक्ष दो ही रास्ते शेष बचते है एक तो मै आत्म हत्या कर लूं या चोरी छिपे मुहँ छुपाता फिरू क्योकि महारानी प्रेयसी और राज कुमार प्रमंग को सुरक्षित रखना भी असंभव होता जा रहा है पृथ्वी ने बड़े शांत भाव से राजा कीर्तिवर्धन की बात सुनकर बोला महाराज नीति कहती है की यदि शक्ति से विजय सम्भव ना हो तो राजनीतिक शातिर चतुराई और छल कपट का सहारा लेना भी धर्म ही है यदि ऐसा नही होता तो कैरव पांडव को छल की द्रुत क्रीड़ा में पराजित करने का षड्यंत्र नही करते लक्षा गृह का निर्माण नही करते विजय सिर्फ विजय है चाहे जिस तरह से हासिल हो कूटनीति शाम दाम दंड भेद से सभी जायज राजनीति के मैदान में मानी जाती है राजा कीर्तिवर्धन ने कहा कि कैसे संभव है मेरे पास तो प्रियांक और प्रेयसी को छोड़कर कुछ भी शेष नही बचा मैं क्या कर सकता हूँ पुरोहित पृथ्वी बोला चिंता मत करो यजमान मेरी अय्यारी जादू की शक्ति आपकी ताकत है और मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं आपका राज्य सम्मान वापस करवाऊंगा यह एक ब्रह्मण की प्रतिज्ञा है जिसके पूर्ण न होने पर ब्रह्मांड कम्पित कुपित हो जाएगा अपना राज्य वापस लौटने तक आप मेरा आतिथ्य स्वीकार करे एव इंतज़ार करें।।कुछ दिन बीतने के बाद पृथ्वी ने स्वय कहा महाराज कीर्ति वर्धन जी महारानी प्रेयसी को कुछ दिन यहाँ बिल्ली के रूप में रहना पड़ेगा और आपको उसके पति के रूप में कीर्तिवर्धन ने आश्चर्य से कहा ये कैसे सम्भव होगा तुरंत पृथ्वी ने कहा महाराज आप अब भी हमारे पालक राजा की तरह है अतः मैं कोई भी कार्य आपकी अनुमति के बिना नही कर सकता हूँ अतः आप मुझे आदेश दे कि मैं अपने अय्यारी जादू की शक्तियों का उपयोग आपकी सत्ता सम्मान को वापस दिलाने के लिये प्रारम्भ करूँ लेकिन शर्त यह होगी कि आप कोई इस संदर्भ में कोई प्रश्न नही करेंगे पराजित अपमानित किरिटिवर्धन के पास कोई विकल्प नही था उसने अपने वफादार राज पुरोहित को सहमति का आदेश देते हुये बोले मैं आपसे कोई प्रश्न कभी तब तक नही करूँगा जब तक कि मेरी खोई सत्ता और प्रतिष्ठा वापस नही मिल जाती ।किरिटिवर्धन की सहमति आदेश पाते ही पृथ्वी ने महारानी को बिल्ली बना दिया प्रेयसी बिल्ली बनते ही उछल कर किरिटिवर्धन की गोद मे बैठ गयी और फिर एक बेहद ख़ूबसुरत सुंदरी सामने खड़ी हुई जिसे देखते ही पृथ्वी बोला तू मेरी जादू अय्यारी की बेहद सुंदर रचना है तुझमे सारी अय्यारी की शक्तियां है जब जो रूप धारण करना चाहो जरूरत के मुताबिक धारण कर सकती हो अब तुम जाओ मेरा आदेश है कि तुम महाराज सुदर्शन को अपने प्यार के मोह माया जाल में फसाकर उंसे घुटने के बल चलने को मजबूर कर दो तुम पृथ्वी की कल्पनाओं की पृथा हो अब तुम्हारा कार्य शुरू होता है पृथा पृथ्वी का आशीर्वाद लेकर जाने कहाँ गायब हो गयी किरिटिवर्धन देखता ही रह गया।कुछ दिन बात राजा सुदर्शन शिकार खेलने के लिये निकला और जंगलों में शिकार खेलता हुआ दूर निकल गया था वह एक शेर के शिकार का शिकार का पीछा करता करता हुआ भीषण जंगलों में निकल गया उसका घोड़ा इतना तेज दौड़ रहा था कि उसके साथ के सैनिक पीछे छूट गए जब सुदर्शन भीषण जंगलों में शेर का पीछा करते हुये पहुंचा तो देखा कि एक बेहद खुबशुरत बाला जो ऐसा लगता है कि इंद्र की सभा की अप्सरा हो शेरो के झुंड के बीच बैठी है और सारे शेर उसके इशारे पर जो भी कहती वो करते राजा सुदर्शन भी जिस शेर का पीछा कर रहा था वह उसी झुंड में जा खड़ा हुआ जहाँ शेरो का झुंड खड़ा था और पृथा उनके मध्य खड़ी थी उसने उस शेर से पूछा बीरा तुम क्यो इतना डरे हुए हो और भागते हुये आ रहे हो तब बीरा नामक शेर ने राजा सुदर्शन की तरफ इशारा करते हुये पृथा का ध्यान आकृष्ट किया पृथा ने सुदर्शन को करीब आने का इंतजार किया जब सुदर्शन बहुत पास पहुंच गया तब पृथा उसके सामने खड़ी हो गयी और शेरो का झुंड उसके पीछे पीछे पृथा को देखते ही सुदर्शन के होश उड़ गए उसको संमझ में नही आ रहा था कि सामने खड़ी देवी दुर्गा कि ख़ूबहसुरत रूप है या कोई वह पृथा को निहारता ही गया जैसे कोई व्यक्ति मदहोश हो या किसी ख़ूबहसुरत ख्वाब का दीदार कर खुद में खो गया हो पृथा को स्पष्ठ दिख रहा था सुदर्शन पर खूबसूरती के जादू का असर वह बोली आप कहाँ खो गए सुदर्शन को लगा जैसे उसके कानों में शहद सी मिठास घोलती आवाज उसके हृदय को स्पंदित कर गयी सुदर्शन ने स्वय को सयमित करता बोला कि नही नही मैं तो यह सोच रहा था कि इतनी ख़ूबहसुरत बाला जो देव सभा की अप्सराओं से भी अधिक ख़ूबहसुरत है इस भयानक जंगल में खूंखार जीवो के बीच ऐसे है जैसे ये खूंखार शेर उसके मित्र है पृथा बोली प्रेम महोदय प्रेम के बस में भगवान भी रहता है फिर इन खूंखार शेरो की क्या विसात इन्हें भी प्रेम की जरूरत है ये भी संवेदनशील है और संवेदना को भाव भाषा को समझते है अतः इन्हें मारने की कोशिश मत करे और इन्हें प्रेम करे इन्ही के करण ये वन जीवंत है सुदर्शन को समझ मे नही आ रहा था कि दूर दूर तक किसी भी ऋषि की कुटी भी नज़र नही आ रही है जिससे कि इसके किसी ऋषि की पुत्री माना जाय सुदर्शन के मन मे कई प्रश्न एक साथ जबाब जानने को उत्सुक हो गए
उसने पृथा स सवाल किया सुंदरी आपका नाम क्या है आप इस भयंकर जंगल मे कैसे क्यो रहती है पृथा ने अपना नाम बताता और बोली मेरे साथी यही जंगली जीव है जो मेरे लिये मेरा परिवार है और इससे अधिक ना तो आप कोई प्रश्न करे ना ही मैं जबाव देने को वाध्य हूँ पृथा को विश्वास हो चुका था कि सुदर्शन उसके ख़ूबहसुरत जिस्म के मोह जाल में फंस चुका है अतः वह अपनी तरफ से कुछ भी कोई भी पहल करने से बेहतर सुदर्शन के आमंत्रण का इंतजार करने लगी सुदर्शन ने कहा पृथा तुम जैसी सुंदरियों का स्थान राज महल में है ना कि जंगलों में खूंखार जीवो के मध्य पृथा बोली मुझ वन कन्या से कौन राजा विवाह करेगा सुदर्शन को जौसे आमंत्रण ही मिल गया वह बोला कि मैं तुमसे विवाह का प्रस्ताव करता हूँ मैं राजा भी हूँ।।पृथा ने कहा कि राजा तो एक ही चक्रधरपुर स्टेट के राजा सुदर्शन उनके अतिरिक्त कोई भी राजा नही है जो मेरा वरण कर सके अतः मैं सुदर्शन के अलावा किसी से भी विवाह नही कर सकती तब आतुरता की पराकाष्ठा में सुदर्शन बोला तो लो तुम्हारे सामने चक्रधर पुर का राजा सुदर्शन तुमसे विवाह का प्रस्ताव रखता है पृथा बोली मैं कैसे मान लूं की आप चक्रधरपुर पुर के नरेश राजा सुदर्शन ही है कोई छल कपटी भी तो हो सकते है सुदर्शन कुछ बोलता तब तक उसकी पीछे छुटी सेना आ धमकी और चक्रधर पुर नरेश की जय हो कहती राजा सुदर्शन के पीछे खड़ी हो गयी पृथा बोली महाराज मैं आपसे विवाह कर भी लू तो क्या आवश्यक की आप मुझे रानी जैसा मान सम्मान दोगे राजा सुदर्शन बोला एक क्षत्रिय का वचन है जो मरने के बाद भी व्यर्थ नही जाएगा पृथा ने विवाह की सहमति दी और साथ चलने को तैयार हो गयी और साथ खड़े शेरो से बोली कि आप आप सभी प्रेम से रहे मैं चक्रधर पुर की महारानी की हैसियत से निरीह जानवरों की हत्या शिकार जैसे राजसी शौक के मुक्त करती हूँ अब राज परिवार या राज्य से कोई भी जंगल में शिकार करने नही आएगा बल्कि वन की सुंदरता को देखने निखारने के लिये प्रेम संदेश लेकर आएगा सारे शेर चले गए और स्वय सुदर्शन के साथ राजधानी के लिये रवाना हो गयी चक्रधर पुर की महारानी पद्मजा को जब पता चला कि राजा शिकार से लौट आये है तो वह आरती लेकर स्वय राजा के स्वागत के लिये आयी और पति का गर्म जोशी से स्वागत किया और जब उनके साथ पृथा को देखा तो उसके मन मे आशंका के बादल छा गए क्योकि पृथा के हाव भाव ना तो किसी ऋषिकुल कन्या की तरह थे ना ही किसी राज कन्या के तो कौन हो सकती है पृथा उसका उद्देश्य राज महल में दाखिल होने का क्या हो सकता है पद्मजा सोच ही रही थी तब तक सुदर्शन बोला यह है पृथा वन कन्या जिसे जो तुम्हारी छोटी बहन की तरह रहेगी तभी पृथा बोली महाराज छोटी बहन नही सौत जैसी पृथा का यह व्यवहार ना तो राजा सुदर्शन को अच्छा लगा ना ही पद्मजा को फिर भी पद्मजा ने पति के नीर्णय एव खुशी को स्वीकार किया और पृथा अब चक्रधरपुर की दूसरी महारानी बन गयी और बहुत जल्दी उसने अपना अधिकार राज्य के सभी शक्तिशाली केंद्रों पर जमाना शुरू कर दिया सेना सेना पति खजाना मंत्री आदि को लालच और धूर्तता के छल कपट प्रपंच की जाल में लपेट कर अपने पक्ष में कर लिया और राजा सुदर्शन को अपने खूबसूरती के मोह जाल में इस कदर जकड़ लिया जिसके कारण
सुदर्शन की राज्य राज्यनीति में पकड़ ढीली होती गयी जिसके कारण राज्य में चारो तरफ असंतोष फैलने लगा जिसके कारण महारानी पद्मजा बहुत चिंतित रहने लगी पद्मजा ने एक दिन अपने पुरोहित पन्डित भूषण को बुलाया भूषण जी को राज्य में फैलते असंतोष की जानकारी तो थी वह यह भी जानते थे कि सुदर्शन वनकन्या पृथा से विवाह किया है पहले तो उनको लगा कि राजा के महल में एक से अधिक रानियों के रखने की परंपरा है अतः इस विषय को बहुत गम्भीर नही थे मगर पद्मजा के आने के बाद उन्होंने गम्भीरता से सभी घटनाक्रमों पर गैर किया तो चूंकि पण्डित भूषण स्वयं ख्याति लब्ध अय्यारी एव जादू के विशेषज्ञ थे उन्होंने अपनी अय्यारी विद्या से देखा कि पृथा कोई नारी नही है और वह अय्यारी जादू की माया कन्या है और यह भी पता लगा लिया कि जो सुदर्शन राज महल में है वह जंगल मे शिकार खेलने गए या वास्तविक सुदर्शन नही है राजा सुदर्शन को तो पृथा ने साल बृक्ष में अपने जादू से परिवर्तित कर जंगल मे छोड़ दिया है और जो सुदर्शन राज महल में है वह जादू माया का सुदर्शन है अब भूषण ने यह भी जान लिया कि
इन सब कारगुजारियों का सरगना है कीर्तिवर्धन के पुरोहित पृथ्वी भूषण ने सारी सच्चाई रानी पद्मजा को बताई और उन्होंने पृथ्वी को ससम्मान आमन्त्रित करने के लिये निवेदन किया जिसे पद्मजा ने स्वीकार कर बिना किसी सूचना के पृथ्वी को आमंत्रित करने अपने सबसे विश्वास पात्र को भेजा दूत तीर्थ महारानी पद्मजा के निमंत्रण लेकर पहुंचा पृथ्वी ने जब महारानी के निमंत्रण को पढ़ा तो उसने पद्मजा के निमंत्रण को स्वीकार किया।।पृथ्वी ने शर्त रखी कि वह कौवा और कीर्तिवर्धन काला कबूतर बनकर सुदर्शन की राज्य सभा मे आएंगे इस बात पर ना तो रानी पद्मजा को कोई आपत्ति हुई ना ही पुरोहित भूषण को निर्धारित समय पर कीर्तिवर्धन कबूतर एव पृथ्वी कौवे के वेष में सुदर्शन की राज्य सभा मे उपस्थित हुये सुदर्शन के पुरोहित भूषण ने बहुत आदर सत्कार के साथ कबूतर भेषधारी राजा कीर्तिवर्धन एव कौवे वेश उनके पुरोहित पृथ्वी का स्वागत करते हुये राज्य सभा मे उपस्थित राज्य अधिकारियों को सम्बोधित करते हुए बोले आप सबको आज सच्चाई जानने का हक है कबूतर वेश में राजा सुदर्शन के हाथों पराजित राजा कीर्तिवर्धन है और कौवे के वेश में उनके पुरोहित पृथ्वी है दोनों ने अपने पराजय का बदला लेने के लिये जादू यानी अय्यारी का हथियार चुना है जिसकी काट सिर्फ अय्यारी या जादू ही है इन्होंने शिकार पर गए राजा सुदर्शन को जंगल मे ही साल बृक्ष में तब्दील कर दिया है जो राजा सुदर्शन के वेश में एव पृथा के प्रेम जाल में है वह भी अय्यारी जादू की माया है अतः आज महारानी पद्मजा की आज्ञा से दोनों राज्यों के पुरोहित यानी मैं भूषण एव कौवे के वेश में पृथ्वी एक राजनीतिक समझौता करने जा रहे है जिसके अनुसार हमे कीर्तिवर्धन का राज्य ससम्मान वापस करना होगा और राजा सुदर्शन को मुक्त कराना होगा कीर्तिवर्धन और पृथ्वी कौवे और कबूतर के वेश में उपस्थित है कि जब आप लोग सच्चाई जानकर क्रोधित हो आक्रमण करे और इन्हें मारने की कोशिश करे तो ये अपनी अय्यारी से उत्पात मचाये आज यह लड़ाई युद्ध मैदान के योद्धाओं के बीच नही बल्कि दो जादू माया अय्यारी के योद्धाओं के बीच है क्या आप लोग मेरे संधि प्रस्ताव से सहमत है यदि नही तो जादू माया की लड़ाई में कुछ भी हासिल नही होता सिर्फ दुःख और बर्बादी के या तो आप संधि करे या फिर दो राज घरानों के पुरोहितों की घृणित माया जादू युद्ध के साक्षी बने सभी राज दरबारियों ने एक मत से संधि के पक्ष में आवाज बुलंद की भूषण ने तुरंत ही पृथा और माया के राजा सुदर्शन को राज दरबार मे पद्मजा के समक्ष उपस्थित होने का आदेश दिया कुछ ही देर में दोनों राज दरबार मे उपस्थित हो गए भूषण ने उन्हें तुरंत ही उनके असली रूप में दरबार मे खडा कर दिया पृथा पिचासनी थी और छद्म सुदर्शन दैत्य फिर भूषण ने कौवे रूप में पृथ्वी से कहा आप इनको आदेश दे कि बिना बिलम्ब राजा सुदर्शन को यहां ससम्मन साल बृक्ष से मुक्त कर ले आवे पृथ्वी ने बिना बिलम्ब पृथा को आदेश दिया क्योकि उसको किरतवर्धन की पराजय से शर्मनाक पराजय की उम्मीद दिखने लगी थी पृथा ने मैके की नजाकत को समझते हुये वास्तविक राजा सुदर्शन को राज दरबार मे उपस्थित कर दिया पुरोहित भूषण ने सारी वास्तविकता से अपने प्रिय राजा को अवगत कराकर किरतवर्धन को क्षमादान के साथ उनका राज्य वापस करने का निवेदन किया जिसे रानी पद्मजा के इशारे पर राजा सुदर्शन ने स्वीकार करते हुये किरतवर्धन को उसका राज्य वापस कर दिया इस शर्त के साथ कि वह उसके राज्य का एक रियासत होगा भूषण ने फिर पृथ्वी और किरतवर्धन को वास्तविक स्वरूप में ला राजा सुदर्शन के सामने खड़ा कर दिया राजा सुदर्शन ने किरतवर्धन और पृथ्वी को आदर के साथ विदा किया राज धनी में बिल्ली बनी प्रेयसी भी वास्तविकता स्वरूप में किरतवर्धन का स्वागत किया और दो जादूगरो की सूझ बूझ से दोनों राज्यो में फिर अमन चैन कायम हुआ।।

कहानीकार--नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश ।।

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