1-विनय पत्रिका ----आदरणीय तुलसी दास जी द्वारा रचित विनय पत्रिका तुलसी दास जी के सम्पूर्ण भाव व्यक्तित्व से निकला यैसा रस है जो तुलसी दास जी के काल में तुलसी दास द्वारा मानव मानवता के मूल्यों को उसके मूल उद्धेश्यों के परिपेक्ष्य में बदलते वक्त और बिताते युग या यूँ कहें की सत्य और अनंत की सृष्टी में दृष्टी दृष्टिकोण का शसक्त सारगर्भित माध्यम है विनय पत्रिका तुलसी दास जी की भावना क्या लाज़बाब और युगों युगों तक प्रासंगिक है --- ::मेरी भी सुधि द्यावी कछु करुण कथा चलाईके::
2-मधुशाला-----आदरणीय हरिवंश बच्चन जी की कालजयी रचना समाज को सार्थक सन्देश देती है यह भी सत्य है की हरिबंश रॉय बच्चन स्वयम् मदिरा का सेवन नही करते थे वावजूद इसके उनके द्वारा मदिरापान का व्यक्ति व्यक्तित्व और समाज पर पड़ने वाले प्रभाव परिणाम का सार्थक और यथार्थ चित्रण और वर्णन किया है जो आज भी सही दीखता और युगों युगों तक इसकी सार्थकता रहेगी ।। साहित्य की यथार्थता यही है की वह जिस परिस्तिति परिवेश में रचित हो उसी परिस्थिति परिवेश से युगों युगों तक समाज को सार्थक सन्देश देती रहे मधुशाला इसी वास्तविकता का युगों यगों तक प्रवाह है----::दिन में होली रात दिवाली रोज मनाती मधुशाला।::
3--मैला अंचल ---फणीश्वर रेणु जी के विषय में यह कहा जाता है की उनकी कृतियों में उनके जन्म जीवन की पृष्ठ भूमि का प्रभाव दीखता है यह भी सत्य है की जिन परिस्थितों में फणीश्वर जी का जन्म हुआ और जीवन बिता लगभग पुरे भारत की स्तिति परिस्थिति वही थी जो फणीश्वर जी के इर्द गिर्द थी ।। फणीश्वर नाथ रेणू जी की लेखनी का एक एक शब्द भारत की पूर्णता सम्पूर्णता से ग्रामीण कस्बाई और शहरी संस्कृति का साक्षात्कार साकार शाहकार है ।। रेणू जी का जन्म गुलामी के उस काल में हुआ था जब प्रत्येक भारत वासी दासता के दंश उसके दुखों और त्रदासी से मुक्त होने के लिये संघर्ष कर रहा था आजादी के लगभग तीस वर्षो बाद उन्नीस सौ सतहत्तर में फणीश्वर जी ने शारीर त्याग दिया गुलामी से मुक्त भारत और आजादी के बाद समाज राष्ट्र में गुलामी और आजादी की प्रक्रिया और परम्पराओं के मध्य परिवर्तन के संघर्ष और आधुनिकता और विकास की चाहत के मध्य लिखा गया अविस्मरणीय कालजयी रचना है मैला अंचल ।।
4--सूर सागर-----आदरणीय सूरदास जी का अद्वितीय साहित्यिक अविष्कार है जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड को संस्कृति संस्कार के समाज राष्ट्र का आईना है ।। सूरदास जी स्वयम् तो अन्धे थे मगर उनके द्वारा रचित रचना सूरसागर में भगवान् कृष्णा के बाल चरित्र का वर्णन जिस प्रकार से किया है उस तरह का वर्णन दो आँख वाला भी नहीं कर सकता है ।।निश्चित तौर पर भक्ति के भाव के रस का समन्दर है सूरसागर ।। भक्ति भाव प्रेम की पराकाष्ठा और आत्मिक समर्पण के दर्पण का बहुआयामी और बैरागी संचार का सम्पूर्ण साहित्य है सुर सागर ----::मेरो मन अनत कहाँ सुख पायों जैसे उड़ी जहाज को पंछी पुनी जहाज को आवे:: सकारात्मक साकार ब्रह्म का क्या यथार्थ सुर दास जी ही के बस की बात सम्भव है।
5-कामायानी ---जयशंकर प्रसाद जी की कामायानी सृष्टी की दृष्टी की कल्पना की वास्तविकताओं का यथार्थ चरित्र चित्रण है ।।प्रसाद जी ने मूल्यों संस्कृतियों का धर्म कर्म कर्तव्य दायित्त्व बोध के आधार पर जीवन समाज में उसकी प्रसगिगता और प्रमाणिकता की दृष्टी के दृष्टीकोण का सार्थक सन्देश हर पीड़ी हर युव प्रत्येक काल के लिये आपनी अभूतपूर्व रचना कामयानी के माध्यम से देने की कोशिश की है जो सार्थक सत्य और अनिवार्य निरंतरता है।।
6-- मुन्सी प्रेम चंद्र जी हिंदी साहित्य के ऎसे विराटता का व्यक्तित्व है जिनकी प्रत्येक रचना सम्पूर्ण विश्व को सदैव पीड़ित मानवता के उत्कर्स उतथान लिये मानव समाज एवम् युग को आईना सर्वथा युगों युगों तक दिखाने की अमिट इबारत है चाहे गोदान हो गमन हो कफ़न हो आदि प्रेम चंद्र जी का उप नाम मुन्सी है लमही वाराणसी में जन्मे और पूर्वी उत्तरप्रदेश के गोरख पुर में कर्म क्षेत्र होना भी मुन्सी जी की कृतियों की पृष्ठ भूमि और कथानक के पात्र भारत की सम्पूर्णता को ओढे भारतवासी की संवेदना का प्रतिनिधित्व करते है जो सदैव प्रासंगिक है और प्रमाणिक है। जैसा की मने ऊपर लिखा है प्रेम चंद्र जी का एक नाम मुंशी जी भी है मुन्सी का कार्य होता है खाता वही लेखा जोखा रखना यानि हिसाब किताब रखना जो जब जरुरत हो देखा जा सकता है की हिसाब किताब तुरुस्त है या क़ोई घपला घोटाला है ।।।मुन्सी जी का साहित्य वैसा ही साहित्य है मुन्सी जी ने समाज का लेखा जोखा राश्ट्र के परिपेक्ष्य में अपनी लेखनी का माध्यम से रखने का सत्यार्थ प्रयास किया है जो हर युग प्रत्येक काल समय समाज को चुनौती देता है की आप अपनी संस्कृति संस्कार विकास उदभव उत्कर्ष का मिलान प्रेम चंद्र जी के सरभौमिक साहित्य से कर लो वास्तविकताओं से रूबरू हो जाएंगे।।
[12/17, 12:01 AM] Bul Bul Tripathi: 6--रामधारी सिंह जी दिनकर जी के साहित्य में ओजस्वी तेजश्वी विजयी पुरुषार्थ पराक्रम परमार्थ के श्रृंगार का मानव मूल्य दीखता है निरुद्धेश्य निर्मूल और निष्कंटक निष्कर्ष के जीवन मूल्य का जन्म और जीवन व्यर्थ मानते है दिनकर जी जैसा की स्पष्ठ है की दिनकर का अर्थ शौर्य सूर्य है दिनकर जी अपनी कृतियों में मानव मानवता को ललकारते हुये त्याग तपश्या बलिदान की अर्थ पूर्ण जन्म जीवन मूल्यों का आवाज अंदाज़ और परिस्कृत परिणांनाम का पुराण है दिनकर जी का साहित्य जीवन मूल्यों को चुनौती देता उद्धेश्य पूर्ण जीवन की वैधता को स्वीकारता दिनकर जी का साहित्य ।।युगों युगों तक समाज को संस्कारिक पराक्रम पुरुषार्थ की चुनौती देता पल प्रहर सुबह शाम दिन रात महीना साल युगों युगों तक दिनकर के शौर्य के साहित्य का सूर्योदय नित्य निरंतर होता रहेगा----:: चारु चंद्र की चंचल किरणे खेल रही थी जल थल में स्वच्छ चांदनी बिछी हुई है अवनि औरअम्बर तल में:: साकेत