अन्धायुग और नारी - भाग(४५) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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अन्धायुग और नारी - भाग(४५)

शमा अब वहाँ से जा चुकी थी,शमा की ऐसी हरकत पर हमें बहुत गुस्सा आया और हमने शबाब से कहा...
"आप इसे इतना बरदाश्त क्यों करतीं हैं,ये तो बड़ी बतमीज है"
"हाँ! कुछ लोगों को ना चाहते हुए भी बरदाश्त करना पड़ता है",शबाब बोलीं...
"आखिर! ऐसा क्या है जो वो आपको धमका रही थी और आप उससे कुछ कह भी ना पाईं", हमने शबाब से पूछा...
"उसे हमारा कोई राज पता है इसलिए वो हमारे साथ ऐसा करती है,वो राज छुपाने के एवज़ में हमें उसे हर महीने कुछ रकम चुकानी पड़ती है",शबाब बोली....
"आखिर वो राज क्या है?",हमने पूछा...
"आप ना ही पूछे तो अच्छा है छोटी बेग़म,हम शर्मसार हो जाऐगे़",शबाब बोली...
"अब जब हमने आपको सब बता दिया है तो फिर आपको भी अपना राज बताने में परहेज़ नहीं करना चाहिए",हमने कहा....
"सुनना चाहतीं हैं तो सुनिए,आज हम भी आपसे कुछ नहीं छुपाऐगें",
और ऐसा कहकर शबाब ने अपना फसाना कहना शुरू कर दिया....
"हमारे अम्मी और अब्बूजान ने नवाब साहब को इसलिए अपना दमाद बनाया था कि वो हमसे उम्र में कुछ बड़े थे उन्होंने समझा कि नवाब साहब बड़े होने के नाते हमारी नादानियों को दरकिनार कर दिया करेगें ,उस पर वे निहायत नेक और शरीफ़ थे,नवाब होते हुए भी लोगों को कभी भी उनकी हवेली में कोई बाजारु औरत नज़र नहीं आई,रही फौजिया बेग़म की बात तो अम्मी अब्बू ने सोचा कि फौजिया बेग़म शायद माँ नहीं बन सकतीं थीं इसलिए नवाब साहब वारिस की चाहत में दूसरा निकाह कर रहे हैं,उस पर नवाब साहब बहुत से लोगों को अपने खर्चे पर हज करवा चुके थे,उनके कोई अजीब-ओ-गरीब शौक भी नहीं थे,जैसे कि कबूतर पालना,मुर्गाबाजी करना,बटेर पालना,इस किस्म के वाहियात खेलों से उन्हें नफरत थी,उनके यहाँ तो बस तालिब-ए-इल्म रहते थे,नौजवान लड़के पतली पतली कमर वाले,जिनका खर्च नवाब साहब ही उठाया करते थे,वे लड़के नवाब साहब को खुश करके उनसे मुँहमाँगी कीमत पाया करते थे"
ये कहते कहते शबाब चुप हो गईं तो हमने उनसे पूछा....
"लेकिन आपने तो कहा कि नवाब साहब नाकाबिले मर्द हैं",
"तो वो तो औरतों के लिए ऐसे थे ना! क्योंकि उन्हें औरतें पसन्द नहीं थीं और उनका नौजवान लड़को वाला शौक तब खतम हो गया,जब उन्हें कोढ़ हो गया,कोढ़ हो जाने के बाद कोई भी नौजवान लड़का उनके नजदीक नहीं जाना चाहता था और तबसे नवाब साहब तनहा हैं",शबाब बोली...
"ये सुनकर तो हमारा सिर चकरा रहा है,भला ऐसा भी होता है",हमने कहा....
"अभी शायद आपने दुनिया देखी नहीं कि यहाँ क्या क्या होता है", शबाब बोली....
"जी! शायद सच कहा आपने",हमने कहा....
और फिर उन्होंने अपना फसाना दोबारा शुरू करते हुए कहा...
हमसे निकाह करके उन्होंने हमें साज-ओ-सामान की तरह घर में सजाकर रख दिया,जैसा हमने आपसे पहले बताया था कि ये सब हमें समझ नहीं आता था लेकिन जब हमें सब समझ में आया तो हम नाजुक सी दुबली पतली सी लड़की तनहाई में घुलने लगे, हमें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि हमारी जिन्दगी शुरु हुई है या खतम हो चुकी है या फिर अल्लाह ने हमें पैदा करके कोई बहुत बड़ी गलती कर दी है,हम बेग़म क्या बने हमारी जिन्दगी नर्क बनकर रह गई,नवाब साहब के दीवानखाने में लड़को का जोर बँधता और हम यहाँ दिल ही दिल में कुढ़ते रहते,उस समय हमारी सारी मिन्नतें और मुरादें हार चुकीं थीं,सारे टोने टोटके और वज़ीफ़ा ख्वानी भी चित्त हो गई और नवाब साहब टस से मस ना हुए ,फिर बुरी तरह से हमारा दिल टूट गया,इश्किया नाँवेल और जज्बाती अशआर पढ़कर हमें और भी खुमारी छाने लगी,लेकिन नवाब साहब को फुर्सत ही नहीं थी कि अपनी शबनमी करतूतों को छोड़कर जरा हमें भी तवज्जो दे देते,
खुदा कर करके अब जवानी का बुखार पूरी तरह से हमारे ऊपर चढ़ना शुरू हो गया था,रग रग में बहती आग का दरिया उमड़ रहा था और भी कुछ ऐसीं बातें थीं जो अकेले में रह रहकर हमें सतातीं रहतीं थीं फिर उसी दौरान हमारे यहाँ एक नई मुलाजिमा आई जिसका नाम हुस्ना था,कुछ ही दिनों में वो हमारी बहुत करीबी बन गई,जब भी हम उदास होते तो वो हमारा दिल बहलाती,जब हमें कुछ खाने का मन नहीं होता तो वो हमारे कुछ ना कुछ खाने को बना लाती,कभी हमारे सिर पर तेल की मालिश करती थी तो कभी गीत गाकर हमारे दिल को खुश करने की कोशिश करती और उसके अपनेपन ने हमारे अकेलेपन पर काबू पा लिया, हमें उसके करीब बहुत करीब ला दिया,जिस रिश्ते को ये जमाना हराम मानता है तो हम दोनों वैसा ही रिश्ता बना बैठे,उसने हमारी सूनी रातों को खुशनुमा बना दिया,हमारी बेरंग जिन्दगी में रंग भर दिए और जब वो हमारे ज्यादा करीब रहने लगी तो और मुलाजिमाओं में खुसर पुसर होने लगी,वे सभी मुलाजिमा हुस्ना से नफरत करने लगी और उन्होंने अपने अपने घरों में हमारे और हुस्ना के रिश्ते को लेकर बातें करनी शुरू कर दी,जो भी हम दोनों के बारें में सुनता तो दाँतों तले उँगलियाँ दबा लेता और कहता कि.....
याह... अल्लाह क्या जमाना आ गया है ,बस यही देखना बाकी रह गया था,क्या शबाब बेग़म के लिए दुनिया जहान के लड़के मर गए थे जो वे एक कनीज़ से दिल लगा बैठीं,लेकिन उन सभी को कौन समझाता कि दिल की लगी क्या होती है,जिस्म की आग और उसकी तपन क्या होती है,हमारा रिश्ता बेमेल था,जमाने के खिलाफ और तो और कुदरत के भी खिलाफ था,ये जमाना औरत और मर्द के रिश्ते को तो अपना लेता है,लेकिन मर्द का मर्द से रिश्ता और औरत का औरत से रिश्ता किसी भी हालत में नहीं अपना सकता, लेकिन जमाना ये क्यों नहीं समझता कि मौहब्बत तो किसी के साथ भी हो सकती है,
हमें हुस्ना की शक्ल बे-इन्तेहा पसन्द थी,हरदम हमारा जी चाहता था कि घण्टों बिल्कुल पास से उसकी सूरत निहारा करें,उनकी रंगत बिल्कुल सफ़ेद थी,गालों पर कुदरतन सुर्ख़ी ,मासूम सी आँखें और उसके स्याह(काले) बाल जो हमेशा तेल में डूबे रहते थे,हमने कभी भी उसकी मांँग ही बिगड़ी ना देखी थी,उसके बाल हरदम बने रहते थे,मजाल है जो एक बाल इधर का उधर हो जाए,भौंहें हमेशा कमान सी खिचीं रहतीं थीं,उसकी आँखें हमेशा प्यार से भरी हुई रहती थीं,उसके चेहरे पर जो हैरतअंगेज़ जाज़बियत नज़र चीज़ थी वो थे उसके गुलाब से होंठ,जो कि कुदतरन सुर्ख़ी से रंगे हुए थे, छरहरा जिस्म,उसके बदन का हर कटाव गजब का था,इतनी मुलाजिमाऐं थीं हमारे घर में लेकिन इससे पहले हमारे दिल और दिमाग़ ने किसी औरत को इस तरह से नहीं चाहा था, उसकी पल भर की दूरी भी हमसे बरदाश्त नहीं थी,इसलिए हमने उसकी तनख्वाह बढ़ा दी और उसे अपने घर में रहने के लिए एक कमरा भी दे दिया....
और जब वो हमारे पास रहने लगी तो उसके भाईजान और भाभी को एतराज़ होने लगा,उस पर से हमारे फँसाने भी जमाने भर में मशहूर होने लगे थे,इसलिए हुस्ना की भाभीजान एक दिन हमसे मिलने हमारे पास आई....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....