Wo Shyam Saloni - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

वो श्याम सलोनी - 1

वो एकटक बगीचे के फूलों को निहार रही थी रंग रूप पर उसने कभी खुद से ध्यान ही नहीं दिया था क्योंकि उसने हमेशा अपने पापा से यही सुना था की बच्चे इंसान का मन साफ होना चाहिए रंग और खुबसूरती तो एक उम्र के बाद खत्म हो जाती है रह जाती है तो बस की सुंदरता! यही वजह थी की उसने लोगों की बातों को हमेशा इग्नोर किया था लेकिन आज उसे दर्द हो रहा था और साथ ही शिकायत भी उस ईश्वर से ! क्योंकी आज अपने सावले रंग की ही वजह से उसने उसे खो दिया था जो तब से उसके दिल में बसता था जब वो दसवीं में थी प्यार का मतलब भी नहीं सही से पता था लेकिन तब से वो आज तक उसके दिल में था और आज उसकी सगाई थी उसके प्यार की ! जिसकी खबर उसे गांव आते ही मिली और वो अब खुद को तैयार कर रही थी की कैसे उससे मिलेगी हिम्मत ही साथ नहीं दे रही थी दिल तो जैसे फटा जा रहा था लेकिन वो किसी से बोल भी तो नहीं पा रही थी और न ही कोई ऐसा था जिसके कंधे पर सिर रखकर वो रो सके इसलिए उसने अपने आंसुवो को पलकों में ही जब्त कर लिया ।और भरी आंखों से उस चांदनी के फूल पर हाथ फेरने लगी जिनमें अक्सर ही उसे कृष का अक्स नज़र आता था क्योंकी कृष को ये फूल बहुत पसंद थे! वो उन सबमें खोई ही थी की उसे आवाज सुनाई पड़ी आंगन से जो दिवाकर जी उसके पापा आवाज दे रहे थे।


शालनी, शालनी बेटा वहां क्या कर रही हो ? उन्होंने आवाज दी जो सुन उसने झट से अपनी आंखो को साफ़ किया और चेहरे पर मुस्कान लाते हुए बोली __ आई पापा ।
ये रहे तुम्हारे कपडे,आज ये ही पहनना,,, शारदा जी ने उसे एक बैग थमाते हुए कहा तो उसने सिर हिलाया ।

और थोड़ी जल्दी करना बेटा वरना, सुमेश नाराज हो जायेगा की उसके बेटे की सगाई में हम सबसे लास्ट में पहुंचे,,, दिवाकर जी ने हस्ते हुए कहा तो शालनी हल्का सा मुस्कुराई और रूम में आकर वो बैग खोलकर देखा तो उसमे एक व्हाइट कलर का लॉन्ग अनारकली फ्रॉक और रेड दुपट्टा था वो अब तैयार होने लगी वो अपने बालों को सवार रही थी की शारदा जी अंदर आ गई ।

वाह आज मेरी शालनी तो बहुत प्यारी लग रही है इस ड्रेस में,, उन्होनें उसके गाल पर हाथ रखकर कहा लेकिन साथ ही वो बहुत हैरान भी थी क्योंकी आज पहली बार शालनी ने अपने फेस पर मेकअप किया था उसे कभी अपने रंग रूप से कोई फर्क नहीं पड़ा न ही उसने कभी उसने अपने चेहरे पर कुछ लगाया था वो कहती की जैसी हूं वैसी भगवान ने बनाया तो इसमें कुछ करने की क्या जरूरत।और यही बात शारदा जी को हैरान कर रही थी अपनी मां की आंखे देख वो समझ गई की उनके मन में क्या प्रश्न है ।

आप ही तो बोलती हो की कभी अच्छे से तैयार हो जाया कर इसलिए लगा लिया,वैसे भी वहां सब इतने सुन्दर सुन्दर लोग होंगे अब सबसे बुरी दिखने से अच्छा थोडा ठीक ठाक ही दिखू,,उसने अपने दर्द को मुस्कान के पीछे छुपाते हुए कहा ।बहुत सुंदर लग रही है लेकीन आज ऐसी बातें क्यों? उन्होंने अपने मन के विचारो को विराम देते हुए पूछा ।

अरे अब ज्यादा मत सोचिए, जल्दी चलिए वरना पापा भी गुस्सा करेंगे,,वो उनका हाथ पकड़ते हुए बोली और अपनी आलमारी से एक गिफ्ट 🎁 बॉक्स निकाला। वो लोग कुछ देर बाद एक बड़ी सी हवेली के सामने आकर रुके जो आज फूलों और रंगीन लाइट्स से जगमगा रहा था।
दिवाकर जी और शारदा जी तो अंदर बढ़ गए थे लेकिन अब उसके कदम आगे नहीं बढ़ रहे थे उसने जितना खुद को मजबूत किया था वो उतना ही बिखर रही थी उससे नहीं हो रहा था । "शालू"ये प्यारी सी आवाज उसके कानों में पड़ी तो उसने नजरे उठा कर देखा सामने कृष था गोल्डन शेरवानी में वो और भी हैंडसम लग रहा था उसे देख शालनी की आंखो की कोर गीली हो गई वो अब उसके करीब आ चुका था ।

यहां क्यों रुकी हो अंदर चलो? वैसे भी मैं तुमसे नाराज हूं इतनी देर से भी कोई आता है क्या अजनबी जैसे , पीहू को भी तुमसे मिलाना था मुझे ,,,उसने अपनी नाराज़गी जताई तो शालनी ने खुद को संभालते हुए कहा___ हम्मम,सॉरी चलो । पीहू बहुत ही सुन्दर थी और कृष उससे ही आज सगाई कर रहा था दिवाकर जी और सुमेश जी अच्छे मित्र थे जिस वजह से शालनी और कृष का भी एक दूसरे के घर आना जाना लगा रहता था शालनी कब मन ही मन कृष को पसन्द करने लगी थी उसे पता ही न चला ।और जब कहनी चाही उससे तो देर हो चुकी थी ।


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