नागमणि का अद्भुत रहस्य - अंतिम भाग सिद्धार्थ रंजन श्रीवास्तव द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

नागमणि का अद्भुत रहस्य - अंतिम भाग

रंजीत की आँखे एक दम से बड़ी हो गयी, उसने देखा जंगल की तरफ से जलाशय तक बहुत से साँप चलते चले आ रहे है। सभी साँपो ने आकर जलाशय को घेर लिया, रंजीत ने अपने कदम वापस खींच लिए।

रंजीत ने देखा जलाशय के चारों तरफ अनेक प्रकार के साँप एकत्र हो चुके थे, कुछ तो ऐसी प्रजाति के साँप थे जिनके बारे में ना तो आज तक रंजीत ने कभी देखा और ना कभी सुना था।

कहाँ से आ गए इतने साँप?
क्या मणि वाले नाग ने उन्हें अपनी मदद के लिए उन्हें बुलाया था?
क्या नाग ने जो आवाज़ की थी वो मदद के लिए थी और उसे सुन के इतने साँप एकत्र हुए थे?

अब आगे.....

रंजीत का सोचना बिलकुल सही था, ये सभी साँप मणि वाले नाग की पुकार सुनकर ही वहाँ एकत्र हुए थे। रंजीत की तो मानो जान हलक में आ गयी हो एक साथ इतने साँपो को देख कर और अब उसके दिमाग़ में कई सारे प्रश्न जन्म लेने लगे।

"अगर मैं ये नागमणि नाग की तरफ वापस फेंक दू तो शायद ये सब यहाँ से वापस चले जाएँ, लेकिन नागमणि पाने के बाद भी अगर ये सब यहाँ से नहीं गए? आर इनमे से कोई एक भी पानी के अंदर आ गया तो मेरे लिए न तो पानी में बचने का कोई रास्ता होगा न पानी के बाहर।" रंजीत के मन में ऐसे और भी कई सवाल कौधने लगे

इन सब सवालों और आशंकाओ के बीच रंजीत के लिए एक अच्छी बात यह थी की अभी तक इतने साँपो में से कोई भी पानी में घुसने की हिम्मत नहीं कर रहा था। सभी अपने अपने जगह और तरीके से रंजीत को डराने की भरपूर कोशिश में लगे हुए थे।

रंजीत की जान में जान यह देख कर आयी की कोई भी साँप अभिमंत्रित जल को पार नहीं कर सकता। सभी साँप लगातार फुफकार रहे थे और मणि वाला नाग तो अपने सिर को ऐसे पटक रहा था जैसे ज़मीन में गहरा गड्ढा करना चाहता हो।

साँपो के द्वारा लगातार किये जा रहे फुफकार से आस पास के पौधे झूलसने लगे। रंजीत अभी भी इस सोच में था कि मणि का क्या किया जाये? हाथ आयी इतनी महंगी और दुर्लभ चीज जिसके लिए इतना खतरा भी उठा लिया यूँही जाने देना भी नहीं चाहता था और अगर अपने पास रखे तो इनसे बच के जाने का रास्ता भी नहीं दिख रहा था।

अब तक रंजीत को जलाशय में खड़े कई घंटे बीत गए थे और रात को तापमान गिरने कि वजह से जलाशय का पानी भी ठंडा हो चूका था जिससे रंजीत के शरीर में कुछ शिहरन सी उत्पन्न होने लगी थी। अँधेरी रात और जंगल की वजह से सही सही अनुमान लगा पाना तो कठिन था पर फिर भी रंजीत के अनुमान से अब तक लगभग 3 बजे का समय हो चूका था।

अब बस रंजीत किसी तरह सुबह की पहली किरण के उगने का इंतज़ार कर रहा था ताकि रौशनी होने पर उसे कोई रास्ता दिख सके। रंजीत को एक आशा थी की शायद रौशनी होने पर उसे कोई रास्ता दिखे या कोई तरकीब सूझे क्यूंकि अँधेरे में आस पास के अलावा ज्यादा कुछ भी दिखना मुमकिन नहीं हो रहा था। बहुत देर तक जल में खड़े होने की वजह से न सिर्फ रंजीत काँपने लगा था बल्कि उसका शरीर अब बहुत थका हुआ भी महसूस करने लगा था।

किसी तरह से कुछ समय और बीता पर साँपो की हिम्मत अभी भी वैसी की वैसी ही थी, उनमें से कोई भी अपनी जगह से हिलने को तैयार नहीं था। रंजीत की बोझिल आँखों को थोड़ी राहत तब मिली जब उसने आसमान पे पौ फटते देखा। हल्की रौशनी जब जलाशय पर पड़नी शुरू हुई तब रंजीत ने वहाँ का असली नज़ारा देखा और उसे देख कर उसके तो मानो प्राण निकलने को तैयार हो गए हो।

जलाशय के आस पास कई मीटर तक साँप इस तरह छाए हुए थे जैसे रंजीत किसी जलाशय में नहीं बल्कि साँपो की बाम्बी में घुस आया हो। अगर रंजीत मौत के मुहाने पर ना खड़ा होता तो इतने अद्भुत दिखने वाले साँपो का आनंद जरूर उठाता। कुछ साँप तो दिखने में वाकई बहुत खूबसूरत थे लेकिन इस समय उन सभी का सिर्फ एक ही मकसद था, मणि को वापस प्राप्त करना।

कुछ समय में आकाश में भरपूर रौशनी हो चुकी थी और साथ ही रौशनी से जगमगा चूका था जलाशय। जिन जानवरों के लिए जलाशय नित पानी पीने का स्थान था वो दूर से जलाशय का दर्शन मात्र करके वापस लौट जा रहे थे क्यूंकि इतनी भारी मात्र में साँपो से घिरे जलाशय से पानी पीने की हिम्मत स्वम् वनराजा भी नहीं कर सके। अब तक कुछ तापमान भी सामान्य होने लगा था और इसीके साथ रंजीत के शरीर का तापमान भी सही होने लगा।

कुछ समय बीतने के बाद जलाशय पर प्रयाप्त रौशनी हो चुकी थी। रंजीत अपने दिमाग़ के सारे घोड़े खोल चूका था लेकिन उसे कोई भी उपाय अभी तक नहीं सुझा था। अचानक जंगल की तरफ से एक तेज़ बदबू आना शुरू हो जाती है और वो पल पल बढ़ती ही जाती है।

रंजीत को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, तभी उसने ध्यान दिया कि मणि वाले नाग को छोड़ कर बाकी सभी साँप जलाशय से दूर हो रहे है जैसे किसी के लिए रास्ता बना रहे हों। अब पत्तों के बीच से तेज़ सरसराहट कि आवाज़ आनी शुरू हो गयी, रंजीत बड़ी ध्यान से उस आवाज़ की तरफ ही देख रहा था। रंजीत को लगा की शायद कोई ऐसा जानवर हो जिससे डर कर साँपो ने रास्ता खाली कर दिया है और अगर ऐसा है तो शायद इस मुसीबत से वही रंजीत को निकलने में सहायता भी करे।

रंजीत की किस्मत जितनी अच्छी होनी थी वो शायद कल रात तक ही थी। नया दिन और नया खेल, किस्मत को तो इसमें ही मज़ा आता है ना। उस भीड़ के हटने और रास्ता बनाने के पीछे कोई और जानवर नहीं बल्कि एक विशालकाय साँप ही था जिसके सामने आते ही रंजीत को लगभग ह्रदय आघात होते होते बचा।

देखने में बड़ा ही खूबसूरत लेकिन उसकी काया बड़ी विशाल थी। जलाशय के पास आकर वह भीमकाय और अद्भुत सा दिखने वाला साँप कुछ समय जलाशय के आस पास मंडराता रहा फिर कुछ समय बाद वह मणि वाले नाग के समीप कुंडली मार कर बैठ गया।

ऐसा लग रहा था जैसे वो यह कहना चाह रहा हो कि भाई तू चिंता ना कर मैं आ गया हूँ अब सब ठीक कर दूंगा। रंजीत को यह समझ नहीं आ रहा था कि आखिर इतने सारे साँप आये कहाँ से? और मात्र एक बार मणि वाले नाग की पुकार पर सब एकत्र हो गए, ऐसा पहली बार देखा और सुना है।
और ये साँप? ये क्या इनका राजा है? जो इसके आने पर सबने रास्ता छोड़ दिया? अब यह क्या करेगा? ऐसे बहुत से प्रश्न रंजीत में मन में उठ रहे थे।

रंजीत यह सोच सोच कर परेशान था कि आखिर ये खूबसूरत सा दिखने वाला साँप कौन सा कदम उठाने वाला है मणि को दुबारा हासिल करने में नाग की मदद करने को। लेकिन वो साँप सिर्फ मणि वाले नाग के साथ बैठा अपलक बस रंजीत को देखें जा रहा था।

कुछ समय यूँही बीत जाने के बाद अचानक वो साँप मणि वाले नाग के पास से हट कर किनारे जा कर खड़ा हो गया और सिर को ज़मीन की सतह से लगा दिया। देखते ही देखते सभी साँपो ने उसका अनुकरण किया और ख़ुद को ज़मीन की सतह से जोड़ लिया (ज़मीन पर लेट गए)। रंजीत के लिए यह बड़ी ही असंजस की स्थिति थी, उसे समझ नहीं आ रहा था की यह सब ऐसा क्यूँ कर रहे है? क्या वो यहाँ से एक साथ जाने की तैयारी में थे? या फिर वो कुछ और करना चाह रहे थे।

अब तक मणि वाले नाग ने भी अपना सिर झुका कर ज़मीन पर रख दिया। जिस रास्ते से अभी विशालकाय साँप आया था एक बार फिर उसी रास्ते पर हलचल होनी शुरू हो गयी थी। लेकिन इस बार जो नज़ारा रंजीत की आँखों के सामने आया उससे रंजीत की हिम्मत और टूट गयी।

रंजीत ने देखा एक पाँच मुख वाला साँप अपने फन को फैलाये जलाशय की तरफ बढ़ा चला आ रहा है और उसके सिर पर एक छोटा साँप बैठा हुआ है। पहले रंजीत को कुछ भी समझ नहीं आया की ये सब सपना हैं या सच में ऐसा कुछ हो भी रहा है। रंजीत को अब समझते देर ना लगी यह सिर पे बैठा नीला साँप इनका राजा है और ये पाँच मुँह का साँप उस राजा की सवारी। जो पहले विशालकाय खूबसूरत साँप आया था वो शायद राजा के आने से पहले सबको सावधान करने के आया था।

जलाशय के करीब पहुँच कर वो पाँच मुँह वाला साँप रुक गया। कुछ समय वहाँ सब अपनी अपनी जगह पर खड़े रहे उसके बाद सब वापस फन उठा कर खड़े हो गए।
अब उन सब का साँपो का राजा उस पाँच मुँह वाले साँप के फन से निचे उतरा और धीरे धीरे जलाशय की तरफ बढ़ा। रंजीत या सब नज़ारा उत्सुकता और भय दोनों से देख रहा था।

जलाशय के जल में समीप पहुँच कर उसने रंजीत की ओर फन उठा कर देखा और फिर पूरी ताकत के साथ उसने जलाशय के जल में अपना फन दे मारा और उसके ही साथ जल में अपना विष उगल दिया। रंजीत को कुछ भी समझ नहीं आया कि क्या हुआ, क्यूँ इस साँप को अभिमंत्रित जल से झटका नहीं लगा।

अब वाह साँप वापस जाकर पाँच मुँह वाले साँप पर बैठ गया और फिर वो वापस जहाँ से आये थे उसी ओर चले गए साथ ही विशालकाय खूबसूरत साँप भी वापस चला गया। बाकी के साँप अभी भी अपनी जगह पर खड़े रंजीत कि तरफ ही देखें जा रहे थे। रंजीत को अभी भी कुछ समझ नहीं आया कि आखिर उस साँप (राजा) ने जल में ऐसा क्या किया।

कुछ समय ही बीता होगा कि रंजीत को पानी के तापमान में वृद्धि प्रतीत होने लगी। रंजीत को पैरों में झंझनाहट महसूस होने लगी थी और उसने यह भी महसूस किया कि पानी में उसका जितना शरीर था वो धीरे धीरे सुन्न सा पड़ता जा रहा है। अब रंजीत कि नज़र जल पर पड़ी और उसने देखा कल तक जो जल शीशे कि तरह साफ था अब यही जल काला पड़ता जा रहा है। रंजीत के शरीर के निचले हिस्से में दर्द बढ़ने लगा, रंजीत ने देखा उसके कमर से निचे का हिस्सा धीरे धीरे काला पड़ता जा रहा था। अब रंजीत की जान पर बन आयी और रंजीत को यह महसूस होने लगा की उसने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती कर दी है।

रंजीत के शरीर से अब तो दर्द भी गायब होने लगा था क्यूंकि उसका शरीर धीरे धीरे सुन्न जो पड़ने लगा था। अब रंजीत के सामने दो ही रास्ते बचे थे मणि या जान, वैसे भी अगर रंजीत ज्यादा देर तक अब जलाशय में रुका तो उसकी मौत निश्चित थी। रंजीत ने बिना और समय गवाएं अपनी जेब से "मणि" निकाली और उसे नाग की तरफ फेंक दिया।

नाग के पास मणि गिरते ही नाग में जैसे दुबारा से जान आ गयी हो, उसने मणि को तुरंत ही अपने मुँह में दबा लिया और बिना विलम्ब किये मणि को अंदर निगल लिया। मणि निगलने के बाद नाग वहाँ एक पल को ना रुका और जंगल की तरफ सरपट भाग चला साथ ही वहाँ मौजूद सभी साँप जंगल की तरफ चेक गए। कुछ ही समय में पूरा जलाशय खाली हो गया, जैसे वहाँ पर कुछ हुआ ही ना हो।

कुछ समय बीतने के पश्चात रंजीत भी हिम्मत करके जलाशय से बाहर आ गया, अब वहाँ एक भी साँप नहीं थे। रंजीत जलाशय से बाहर निकल कर मैदान की तरफ बढ़ा और वही पास में घास के मैदान में लेट गया। अब रंजीत से एक भी कदम चला नहीं जा रहा था, जाने उस साँप में कितना ज़हर था जो उसके द्वारा पानी में जरा सा विष घोलने के बाद ना सिर्फ पानी जहरीला हो गया बल्कि उस ज़हर का असर उसके शरीर पर भी बहुत भयानक रहा।

रंजीत को अब असहनीय पीड़ा होने लगी थी और उस पीड़ा में कब वो अचेत हो गया उसे पता नहीं चला। जब उसकी आँख खुली तो ख़ुद को आर्मी के हॉस्पिटल में पाया। डॉक्टर से बात करने पर पता चला कि आर्मी के कुछ जवानों को आस पास भीषण विस्फोट कि आवाज़ सुनाई दी थी, सत्यता की जाँच के लिए एक दल उस ओर भेजा गया जिसे रास्ते में तुम अचेत अवस्था में मिले। रंजीत से मिलने आये ऑफिसर को उसने नक्सलियों की सारे बातें बताई लेकिन नागमणि का किस्सा सिर्फ ख़ुद तक सीमित रखा।

रंजीत ने जानना चाहा की उसके शरीर को क्या हुआ तो पता चला की उसका कमर से निचे का पूरा शरीर किसी ज़हर की प्रतिक्रिया के कारण पूरी तरह निष्क्रिय हो चूका है और उसे अब शायद पूरा जीवन व्हीलचेयर के सहारे ही गुजारना पड़े।

हॉस्पिटल में कुछ दिन बीतने के बाद रंजीत जब बेहतर महसूस करने लगा तो उसने दिल्ली में स्तिथि अपने घर पर आगे के इलाज कराने की अनुमति मांगी और साथ ही साथ VRS की माँग भी की। सरकार ने उसकी बहादुरी और परिस्थिति को देखते हुए दोनों चीजे मंज़ूर कर ली।

अब रंजीत अपने दिल्ली के मकान में रहता है और बिना व्हीलचेयर के उसके लिए कहीं भी जाना मुमकिन नहीं रह गया। रंजीत आज भी उस पल को याद करके ख़ुद को कोसता है, अगर उस दिन उसने लालच ना किया होता तो आज वो इस स्तिथि में कभी ना होता।

उसने "नागमणि का अद्भुत रहस्य" सिर्फ अपने तक रखा, किसी के सामने उसने उस रात की कहानी जाहिर नहीं होने दी।

"जीवन जिसका त्याग और बलिदान था,
नागमणि के लालच में वो हो चूका बेज़ान सा।।"
"उर्वी"🖋️


समाप्त 🙏🏻

"अदम्य"❤