एपीसोड --2
मेरा सं 2018 में व्यंग संग्रह प्रकाशित हुआ था, ''महिला चटपटी बतकहियाँ '. मुझे नहीं पता गुजरात से हिंदी में किसी महिला का व्यंग संग्रह प्रकाशित हुआ है। हर्ष की बात एक और है कि गुजरात से नीलम कुलश्रेष्ठ, डॉ. प्रभा मुजुमदार व डॉ. नियति सप्रे के व्यंग्य लेख भारत की शीर्षस्थ पत्रिका 'व्यंग यात्रा 'में प्रकाशित हो चुके हैं।
अब मैं कुछ सम्पादित पुस्तकों की बात करने जा रहीं हूँ. डॉ. अंजना संधीर ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कहानी संग्रह व कविता संग्रह सम्पादित करके प्रवासी साहित्य में बहुत बड़ा योगदान दिया है। काश्मीर समस्या पर उन्होंने सबसे पहला काव्य संग्रह सम्पादित किया था।
शायद आपको पता न हो अस्मिता, महिला बहुभाषी साहित्यिक मंच जिन दो महिलाओं ने वड़ोदरा में सन 1990 में स्थापित किया था, उनमें से एक मैं हूँ। ये भारत का तीसरा व गुजरात का प्रथम साहित्यिक मंच है। बाद में जब सन 2009 में मैं अहमदाबाद आई तो डॉ. रंजना अरगड़े के साथ यहां इसकी स्थापना की थी। से गुजरात का ही नहीं भारत का एक इतिहास रचा गया था। अपने ही गुजरात में वड़ोदरा में अरविन्द आश्रम के लॉन में अस्मिता की गोष्ठियां होतीं थीं। इक्कीसवीं सदी के आरम्भ की बात करूँ तो इन गोष्ठियों में ऐसी विद्रोह भरी कवितायें सुनाई जातीं थीं --रानू मुखर्जी कहतीं 'मैं सीता बन सकतीं हूँ, नहीं बनूंगी 'या 'रेनू सक्सेना सचेत करतीं।
' मत रक्खो अपने बेटे का नाम राम
ये भी सीता को छोड़
सत्ता ही चाहेगा ''---
एक कविता में प्रश्न पूछा जाता कि गांधारी तुम्हारे पति अंधे थे तो तुमने आँखों पर क्यों पट्टी बाँध ली ?जिससे कौरव आतातायी हो गए। मैं 'रचयिता' लघुकथा पढ़ती जिसके अंत में लड़कियां समवेत स्वर में कहतीं हैं, 'हमें सीता, दौपदी जैसे रोल मॉडल स्वीलर नहीं हैं। 'मैं वरिष्ठ लेखिकाओं की ऐसी ही विद्रोही रचनाएं पत्रिकाओं में पढ़ रही थी। ये थी स्वंत्रता प्राप्ति के बाद की दूसरी शिक्षित पीढ़ी जो धर्म व मिथक स्त्री चरित्रों का विश्लेक्षण अपनी खुली आँखों से कर रही थी। ज़ाहिरा निगाह का बरसों पहले वक्तव्य पढ़ा था की स्त्रियों को एकजुट होकर धर्म के स्त्री शोषण के ख़िलाफ़ आवाज़ उठानी पड़ेगी। उससे पहले ही भारत में अपने गुजरात में मैं ये तीन पुस्तकें सम्पादित कर चुकी थी. प्रथम थी 'धर्म की बेड़ियाँ खोल रही है औरत' -खंड -1, दूसरी 'धर्म के आर पार औरत ', तृतीय 'धर्म की बेड़ियाँ खोल रही है औरत'-खंड -2. ये सन 2008, 2010, 2015 में क्रमशः किताबघर व शिल्पायन प्रकाशन, देल्ही से प्रकाशित हुईं हैं। इन तीनों पुस्तकों में हमारे भारत के कम से कम अस्सी, नब्बे प्रतिशत मिथक स्त्री चरित्रों पर आवाज़ उठाई गई है। लगभग सभी धर्मों के स्त्री शोषण पर आलेख हैं। आज हमारा देश जिस साम्प्रदायिकता में उलझ रहा है। बहुत सी घटनायें हमारा दिल दहलातीं हैं। मेरे ख़्याल से ऐसी पुस्तकों पर शोध हो, विचारों का प्रसार हो तो शायद देश इस आग से धर्म के आडम्बर से, कुछ तो निकल सके. धर्म के नाम पर स्त्री शोषण कुछ तो रुक सके।
यदि स्त्री रचित साहित्य की बाते करे तो हमें अक्सर, मछली की तड़प, पिंजरा, चिड़िया बनने की चाह या कटे पंख शब्द अक्सर मिलेंगे। वन्दना भट्ट ने बहुत अच्छी पंक्तियाँ लिखीं हैं ;
'प्लीज़ ! मेरे पंख लौटा दीजिये
जो आपकी जेब में पड़े हैं.
मैंने एक काव्य संग्रह 'घर की देहलीज़ लांघती स्त्री कलम '[वनिका पब्लिकेशंस ] 'सम्पादित किया था, हाँलाकि मैं कवयित्री नहीं हूँ. वडोदरा व अहमदाबाद में अस्मिता की गोष्ठियों में जो कवितायें सुनने को मिलती थी उनमे घर की बेहद मामूली सी चीज़ जैसे चिड़िया और पंख के साथ 'देहरी ', प्याज़ 'चटनी, आलू, इतवार, 'कोख ', बेटी कोख में होने के कारण स्त्री भ्रूण हत्या और भी वस्तुओं के के माध्यम से कवियित्रियाँ अपने दर्द कागज़ पर उकेर देती थी। डॉ रंजना अरगड़े की विशिष्ट कविता इसमें शामिल है 'जादूगरनी होतीं हैं औरत ' मंजू महिमा की कविता पढ़िए' टूटी चप्पल '.उन्होंने पुरुष अहम पर कितना ख़ूबसूरती से चप्पल को माध्यम बनाकर कटाक्ष किया है।
मालिनी गौतम भी इसी चिड़िया के पैरों में बंधनों की डोरी बांधे जाने से नाराज़ हैं. संतराम पुर की अंग्रेज़ी की व्याख्याता मालिनी गौतम गुजरात की सबसे पुरस्कृत कवयित्री हैं. जब मैं इसका सम्पादन कर रही थी तो मैंने देश की साहित्यिक संस्थाओं से सम्पर्क किया कि वे ऐसी कविताएँ भेजें जिनमें घर की किसी चीज़ के माध्यम से स्त्री ने अपना दुःख प्रगट किया हो। मुझे कोई भी कविता प्राप्त नहीं हुई। आपको जानकर ख़ुशी होगी कि हमारी गुजरात की कवयित्रियों ने घर की देहरी, ईंट. रोटी, दही बड़ा, अचार और भी बहुत चीज़ों से अपना दुःख व्यक्त किया है। सबसे अधिक ऐसी कवितायें मंजु जी ने लिखीं हैं जिनको मैंने नाम दिया था 'काव्य व्यंजन '.अब मंजु महिमा का काव्य संग्रह हिंदी व अंग्रेज़ी में उपलब्ध है। इस काव्य संग्रह में तीन खंड हैं -घर, घर और बाहर व साइबर फेमिनिज़्म. इसमें मल्लिका साराभाई की भी एक कविता शामिल है. और हाँ, मंजु महिमा विश्व की हाइकू लेखकों में स्थान पा चुकीं हैं।
अपने एक और सम्पादित कहानी संग्रह की बात करना चाहूंगी । सन 2016 में प्रकाशित ' रिले रेस ' की. रिले रेस यानि स्त्रियाँ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक स्त्री विमर्श का बैटन देते हुए चल रहीं हैं। इसमें शामिल थीं स्त्री अंगों जैसे कोख, बाल, गूंगी , कटे हाथ, लड़का पैदा न करना, स्त्री को जला देना आदि पर कहानियां। जब मैं इसे सम्पादित कर रही थी तो नमिता सिंह जी ने हैरानी से कहा था, ''तुम कैसे स्त्री के अलग अलग अंगों की कहानियाँ लेकर स्त्री विमर्श रचोगी ?'' सन २०१७ में मेरा एक और सम्पादित कहानी संग्रह आया 'आप ऊपर ही बिराजिये 'यानि कि कर्मठ व ईमानदार स्त्रियों को किस तरह से इस व्यवस्था से निष्कासित किया जाता है, जैसे कि धार्मिक देवियाँ पहाड़ों पर बसाई जातीं हैं. इस दोनों पुस्तकों में देश की दिग्वज लेखिकाएं शामिल हैं। 'रिले रेस 'की समीक्षा 'हंस 'व 'नया ज्ञानोदय 'में प्रकाशित हुई थी।
मेरे अन्य सम्पादित संग्रह 'आप ऊपर बिराजिये ' 'गुमशुदा क्रेडिट कार्डस ' भी प्रकाशित हो चुके हैं।
गुजरात में अहमदाबाद के डिजिटल हिंदी साहित्य ' प्रीति अज्ञात 'हस्ताक्षर 'ऑनलाइन पत्रिका प्रकाशित कर रहीं हैं। इससे देश विदेश के रचनाकारों को एक मंच मिल रहा है। प्रीति स्वयं भी एक अच्छी कवयित्री व व्यंगकार हैं।
आपको जानकार ख़ुशी होगी कि देश का द्वितीय डिजिटल साझा उपन्यास 'लाइफ़ @ट्विस्ट एन्ड टर्न कॉम मेरे निदेशन में लिखा गया था। ये उपन्यास अहमदाबाद की इस साइट के सी ई ओ श्री महेंद्र शर्मा जी की प्रेरणा से लिखा गया गुजरात का प्रथम डिजिटल साझा उपन्यास । इसको व्यवस्थित रूप से लिखने के लिए कुछ निदेशन दिये इसकी हिंदी अधिकारी देल्ही की नीलिमा शर्मा ने। भारत में प्रथम डिजिटल साझा उपन्यास लिखने की अवधारणा नीलिमा शर्मा की ही थी।इसकी कहानी रूपरेखा मैं ने तैयार की थी। हम छ :लेखिकाओं ने मिलकर लिखा था ये हैं डॉ.सुधा श्रीवास्तव, डॉ.प्रणव भारती, मधु सोसी, डॉ.मीरा रामनिवास निशा चंद्रा. कुछ विद्वानों को पता न हो अस्मिता की सलाहकार मीरा जी गुजरात की द्वितीय महिला आई पी एस हैं। कभी अहमदाबाद की पुलिस कमिश्नर थीं, अब अवकाश प्राप्त ए डी जी हैं जो कविता व कहानियां लिखतीं हैं। मैं स्वयं गुजरात की किसी भी भाषा की प्रथम राष्ट्रीय स्तर की पत्रकार हूँ। सुधा जी हिंदी विभागाध्यक्ष, प्रणव जी हिंदी व्याख्याता रहीं हैं, अस्मिता सचिव निशा चंद्रा अनेक संस्थाओं से जुड़ी हुईं हैं। मधु सोसी कर्नल की पत्नी हैं। इसलिए अपने अलग अलग अनुभवों को हमने इस उपन्यास में जोड़ा है। इस उपन्यास की लोकप्रियता देखकर वनिका पब्लिकेशन्स ने इसे प्रकाशित भी किया है।
साझा लेखन बहुत कम किया जाता है। ये आसान भी नहीं होता लेकिन इन वरिष्ठ महिलाओं द्वारा किया गया ये प्रयास चर्चा का विषय बन रहा है। इस उपन्यास की कहानी की रूपरेखा बनाते समय नीलम कुलश्रेष्ठ ने सहभागी लेखिकाओं से आग्रह किया था कि हम सब अपने जीवन के सच्चे अनुभव कुछ इस तरह लिखें कि नई पीढ़ी को कुछ सीखने को मिले, चाहे कहानी अपने हिसाब से चलती रहे. आज के माहौल में बच्चियों व लड़कियों में आत्मविश्वास ज़रूरी है. इस उपन्यास के लिए सबसे अधिक तत्परता दिखाई डॉ. प्रणव भारती व मधु सोसी गुप्ता ने। प्रणव जी ने नीलम के मुख्य पात्र दामिनी को बहुत आगे बढ़ाया व उसकी दुखी नवासी मीशा को प्यार के आँचल में बांधे रक्खा रक्खा। इन्होने दामिनी की दो सहेलियों के पात्र पर गढ़ डाले।
मधु सोसी ने तो कहानी सिंगापुर तक पहुंचा दी व फ़िलीपाइन्स की उन औरतों के दर्द को उकेरा जिनके पति अक्सर बच्चे पैदा करके भाग जाते हैं। इन्होंने दामिनी की बहिन यामिनी के बहुत अच्छे पति का भी चित्रण किया है। निशा चंद्रा ने विधवा होने के स्त्री के दुःख को सामने रक्खा है। बहुत सलीके से ये उपन्यास बिना किसी नारेबाज़ी के विधवा, बाँझ स्त्री, कामकाजी स्त्री के सम्मान की बात करता चलता है। यही इसकी ख़ूबसूरती है।
आज के माहौल में बच्चियों व लड़कियों में आत्मविश्वास ज़रूरी है.आज के खुले वातावरण में उनकी लड़कों से मित्रता होती ही है। जब छः लेखिकाएं जुटीं तो पता नहीं कैसे ये स्त्री विमर्श का लेखा जोखा बनता गया। बीस साल से लेकर सत्तर साल तक के स्त्री पात्र इसमें समाते गये। डॉ. मीरा राम निवास वर्मा, जो रिटायर्ड ए डी जी ऑफ़ पुलिस हैं ने एपीसोड -५ लिखा है। जब वे अहमदाबाद की पुलिस कमिश्नर थीं तो अक्सर स्कूल्स कॉलेजेज़ में लड़कियों को सुरक्षा सिखाने के लिये परिचर्चा या शिविर लगाया करतीं थीं. उन्होंने बाकायदा अपने एपीसोड में प्रक्षिशण दिया है कि लड़किया कैसे अपनी सुरक्षा करें या अपने प्रेमी की विश्वसनीयता को कैसे पहचानें ? केन्द्रीय पात्र उन्नीस बीस वर्ष की मीशा को कैसे जीवन की प्रेरणा दी जाती है ?
नीलम कुलश्रेष्ठ ने इसका संयोजन कुछ इस तरह किया है कि बहुत रोचक प्रसंगों से भरे इस उपन्यास ने साबित कर दिया है कि नेटयुग या ऑनलाइन लेखन सिर्फ सेक्स या रोमांस ही नहीं लोकप्रिय होता क्योंकि प्रकाशन के सिर्फ़ पाँच महीने में इसे साढ़े पाँच हज़ार पाठकों से अधिक ने डाउन लोड किया है, छः हज़ार से अधिक पाठकों ने इसे पढ़ा है। लगभग साठ पाठकों ने स्टार दिये हैं। इस बीच मातृभारती भारत की प्रथम साइट बन गई है जिसकी सभी रचनायें नए सॉफ़्टवेयर से ऑडियो हो गईं हैं। इससे इस को बहुत चाव से सुना जा रहा है। इसकी लोकप्रियता देखकर वनिका पब्लिकेशंस की डॉ नीरज शर्मा ने इसे सन 2021 में प्रकाशित कर दिया है।
महिलाओं के लिए खाली समय में साझा लेखन बहुत अच्छा माध्यम है जिससे इस पीढ़ी को पारिवारिक मूल्यों व आत्मसम्मान से जीने का सन्देश दिया जा सकता है।
देश का दूसरा चैट उपन्यास मल्लिका मुखर्जी ने लिखा है 'यू एंड मी -' गुजरात की लेखिकायें देश विदेश में ऑनलाइन प्रकाशित हो रहीं हैं। हम लोगों की कुछ ई -बुक्स व किंडल बुक्स भी प्रकाशित हुईं हैं। हम लोगों की कुछ ई -बुक्स व किंडल बुक्स भी प्रकाशित हुईं हैं।मेरी लॉस एंजेल्स की ई -कल्पना पत्रिका ने ऑडियो स्टोरी प्रकाशित की है -'उस महल की सरगोशियां '. गुजरात की रचनाकारों की कहानियों व कविता पर निरंतर कुछ लोग वीडियो बना कर अपने पटल पर या यू ट्यूब पर पोस्ट कर रहे हैं।
मंजु महिमा ने गुजरात की 35 हाइकू रचनाकारों के 675 हाइकू का संकलन सम्पादित किया है 'गुर्जरी पल्लव '.जिसमें वरिष्ठ लेखिका व कवयित्री डॉ मालती दुबे जी के भी हाइकू शामिल हैं।इसका प्रकाशन व गुजरात की पृष्ठभूमि पर आधारित नीलम कुलश्रेष्ठ का दूसरा कहानी संग्रह 'तर्णेतर ने रे अमे मेले ग्याता ' व उपन्यास 'हवा ! ज़रा थामकर बहो ' का प्रकाशन सन 2022 के उल्लेखनीय समाचार हैं।
जिसमें वरिष्ठ लेखिका, समीक्षक व कवयित्री डॉ.मालती दुबे जी के भी हाइकू शामिल हैं।
सन 2022 में नीलम कुलश्रेष्ठ का ऐतहासिक उपन्यास 'पारू के लिए काला गुलाब 'चर्चित हो रहा है। प्रणव भारती जी की चार उपन्यासिका का संग्रह सन 2023 में प्रकाशित हुआ है -'दर्द -ए दास्तान '
व समीक्षक सन 2023 में गुजरात की दो सम्भावनापूर्ण कहानीकारों का नाम लिया जा सकता है जिन्होंने अपने प्रथम कहानी संग्रह में नई ज़मीन को उकेरा है -वंदना भट्ट ने 'जड़ों से उखड़े हुए लोगों की संवेदनापूर्ण कहानियां हैं किस तरह से जलावतन से लोगों का जीवन तहस नहस हो जाता है। नीना अंदोत्रा पठानियां अपने संग्रह 'बिंदलू 'में जम्मू की गंध, वहां का परिवेश व संस्कृति रचने में सफल हुईं हैं. गत वर्षों में मधु सोसी गुप्ता का कहानी संग्रह 'बेतरतीब बांस के जंगल ', श्रद्धा आहूजा व कविता पंत के भी कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।
सुप्रसिद्ध डॉ. ख्याति पुरोहित एक गुजराती पत्रकार व हिंदी कथाकार हैं। इनकी गुजरात की तरफ से हिंदी साहित्य को एक अनुपम भेंट होगी। इन्होंने सीता राम के वनगमन के क्षेत्रों पर स्वयं यात्रा करके एक संस्मरण की पुस्तक लिखी है, जो शीघ्र प्रकाशाधीन है। इससे पहले मल्लिका मुखर्जी की भी बँगला देश यात्रा पर संस्मरण की पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है।
आजकल तो अनेक रचनाकारों के नाम उभरकर आ गए हैं - लीना खेरिया, वंदना पंचाल, श्रद्धा रमानी आहूजा, कुमुद शर्मा, तृप्ति अय्यर, दिव्या विधानी,, निकुंज जानी, डॉ.उमा शर्मा, ममता शर्मा भी उभरती कवयित्री हैं।
अनजाने ही कुछ नाम छूट गए हों, वे रचनाकार अन्यथा न लें । गुजरात में कुछ ऐसी नई कवयित्रियाँ उभरी हैं जो अपने यू ट्यूब चैनल्स से अर्थोपार्जन की कोशिश कर रहीं हैं, कुछ स्पॉटीफाई पर कार्यक्रम दे रहीं हैं। ये ऐसी पीढ़ी है जो फेस बुक लाइव से जन्मी है। भविष्य में से इनमें से कितना अपने को प्रमाणित करपातीं हैं, पता नहीं इसलिए इन नामों की लम्बी सूची देना उचित नहीं हैं।
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श्रीमती नीलम कुलश्रेष्ठ
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