उलझन - भाग - 5 Ratna Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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उलझन - भाग - 5

बुलबुल और प्रतीक के बीच बढ़ती नज़दीकियों को देखकर कुछ लोगों ने बुलबुल के कानों तक यह बात पहुँचा ही दी कि प्रतीक शादीशुदा है। प्रतीक के विषय में यह जानने के बाद भी बुलबुल के लिए उसके बढ़े हुए कदमों को रोकना अब आसान नहीं था। अब तक वह प्रतीक को अपने दिल में जगह दे चुकी थी।

बुलबुल यह सच प्रतीक के मुँह से सुनना चाहती थी। कैंटीन में चाय पीते समय एक दिन उसने प्रतीक से पूछा, "प्रतीक क्या तुम्हारा विवाह हो चुका है?"

"हाँ हो चुका है लेकिन जबरदस्ती मेरी मर्जी के खिलाफ़। मैं उसके साथ कभी ख़ुश नहीं रह सकता।"

"आख़िर क्यों प्रतीक?"

"क्योंकि वह सिर्फ़ आठवीं तक ही पढ़ी है। मेरा और उसका कोई मेल नहीं है।"

बुलबुल यह सुनकर हैरान थी कि एक आठवीं पास लड़की से माँ-बाप ने कैसे और क्यों प्रतीक का विवाह कर दिया।

उसने प्रतीक से कहा, "तुम्हारे पेरेंट्स को ऐसा नहीं करना चाहिए था। लेकिन अब हम क्या करेंगे?"

"बुलबुल तुम बिल्कुल चिंता मत करो। मैं उसे छोड़ दूंगा, तलाक दे दूंगा।"

उधर निर्मला बेचारी प्रतीक को अपना बनाने की हर कोशिश कर रही थी। बाहर क्या चल रहा है यह तो वह नहीं जानती थी पर इतने दिनों में प्रतीक के मन के अंदर क्या चल रहा है वह जान चुकी थी। उसे पता था कि प्रतीक उसे पसंद नहीं करता है। उसका मुख्य कारण उसकी आठवीं तक की पढ़ाई और उसका सादगी भरा व्यक्तित्व है। निर्मला को सास ससुर का भरपूर साथ और प्यार मिल रहा था पर जिसका उसे चाहिए था उसका तो कहीं भटक गया था। वह हर रोज़ उस प्यार को प्रतीक में ढूँढती लेकिन उसे बेरुखी ही मिलती।

अब तो जब से बुलबुल उसके जीवन में आई है तब से प्रतीक की बेरुखी इतनी बढ़ गई कि उसके माँ बाबूजी तक भी उसकी हवा आने लगी। उन्होंने बहुत कोशिश की उसे समझाने की किंतु प्रतीक का मन नहीं बदला।

एक दिन तो उसने गुस्से में अपनी माँ से कह दिया, "तुम्हें ही बड़ा शौक था ना गाँव की लड़की लाने का, मेरी मर्जी के ख़िलाफ, जबरदस्ती ..."

"प्रतीक ...," कमला ज़ोर से गुस्से में चिल्लाई।

गोपी उठकर खड़े हो गए और उन्होंने प्रतीक के पास आकर कहा, "प्रतीक तू पागल हो चुका है। तुझे शर्म आनी चाहिए। तुझे होश भी है कि तू क्या कह रहा है? निर्मला तेरी पत्नी है, सात फेरे लिए हैं तूने उसके साथ।"

"हाँ लिए हैं सात फेरे पर वह आप लोगों की ज़िद के कारण।"

"धीरे बोल निर्मला सुन लेगी तो उस पर क्या गुजरेगी?"

"सुन लेने दो बाबूजी, अच्छा है सुन ही ले; कम से कम मेरा पीछा तो छूटे। वैसे भी मैं तलाक के काग़ज़ भेजने ही वाला हूँ।"

इतना सुनते ही गोपी का हाथ उठकर प्रतीक के गाल से जा लगा। कमरे के अंदर से यह सब सुनकर निर्मला बदहवास-सी हो गई थी लेकिन उस थप्पड़ की आवाज़ से वह भी बाहर आ गई।

साड़ी के पल्लू से अपने आँसुओं को पोछते हुए उसने कहा, "रहने दो बाबूजी इसमें इनकी कोई गलती नहीं है। काश मुझे पहले ही इन्होंने बता दिया होता कि मैं इन्हें पसंद नहीं हूँ तो मैं हरगिज़ उनके जीवन में नहीं आती। हाँ प्रतीक तुम्हें तलाक के काग़ज़ भेजने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम आज़ाद हो, जिससे प्यार करते हो, उसके पास जा सकते हो।"

गोपी और कमला आश्चर्यचकित होकर एक साथ बोले, "प्यार ...?"

"हाँ बाबूजी यह किसी से प्यार करते हैं। मैं जानती हूँ मुझे इनके पास से किसी और के बदन की ..."

"चुप हो जा बेटा, इसके आगे हम सुन ना पाएंगे।"

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः