प्रतीक के माता पिता को भी निर्मला और उसका परिवार पसंद आ गया था। वह ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर वापस लौटे।
प्रतीक को भी निर्मला का फोटो दिखा कर कमला ने पूछा, "कैसी लगी लड़की की तस्वीर?"
"अच्छी है माँ, कितनी पढ़ी लिखी है?"
कमला ने झूठ कह दिया, "11वीं तक पढ़ी है इसके आगे गाँव में स्कूल नहीं है।"
"क्या ...? इतनी कम पढ़ी लिखी लड़की से शादी?"
"चुप कर प्रतीक, हमारे घर में कहाँ कोई कमी है कि हमें उसे नौकरी करवानी पड़े।"
"माँ बात सिर्फ़ नौकरी की ही नहीं होती, पढ़ाई से ..."
"हाँ-हाँ सब जानती हूँ मैं। पढ़ाई-पढ़ाई का बिगुल मत बजा। कोई कमी नहीं है उसमें। सुंदर, सुशील और समझदार है। अपने साथ संस्कारों का पिटारा लेकर आएगी।"
प्रतीक ने पास बैठे अपने पिता की तरफ़ उम्मीद भरी नज़रों से देखा तो उन्होंने नज़र फेर ली। दरअसल उनके घर में कमला का निर्णय ही अंतिम निर्णय होता था। प्रतीक को भी झुकना ही पड़ा और यह रिश्ता तय हो गया।
अपने सपनों के सुंदर महल में जहाँ उसके सपनों की राजकुमारी मॉडर्न कपड़े पहने, अंग्रेज़ी में बातें करती उसे दिखाई देती थी। जिसकी सुंदरता और स्मार्टनेस प्रतीक को मोह लेती थी; वही सपनों का महल पल-पल, तिल-तिल टूटता बिखरता उसे नज़र आ रहा था। फिर भी वह गाँव में निर्मला से मिलने गया। निर्मला को देखकर उसके अंदर उसे अपने सपनों की राजकुमारी तो बिल्कुल नहीं दिखाई दी लेकिन हाँ निर्मला उसे सुंदर ज़रूर लगी। उसने निर्मला से ज़्यादा कुछ बात नहीं की ना ही कुछ पूछताछ की।
कमला और गोपी भी प्रतीक के साथ में गए थे। तो बस प्रतीक को लड़की दिखा कर फिर शुभ मुहूर्त निकाल लिया गया। प्रतीक अपने सपनों की काल्पनिक राजकुमारी को मन से निकाल नहीं पाया। धीरे-धीरे वह शुभ दिन भी आ गया जब निर्मला और प्रतीक विवाह के बंधन में बंध गए।
आज उनकी सुहाग रात थी। ऊपर से नीचे तक सजी संवरी निर्मला सुहाग की सेज पर बैठकर प्रतीक का इंतज़ार कर रही थी। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। निर्मला बहुत ख़ुश थी मन में यह चाह लिए कि उसका पति प्रतीक इतना पढ़ा लिखा है तो अब उसे भी अपनी इच्छा पूरी करने का अवसर ज़रूर मिलेगा। वह सोच रही थी कि थोड़ा समय बीत जाए, तब फिर वह प्रतीक से इस विषय में बात करेगी। लंबे इंतज़ार के बाद प्रतीक कमरे में आया। उसने अपने मन को बहुत समझाया कि अब जो हो गया उसे निभाना तो पड़ेगा ही। उसने कुछ देर निर्मला से बात की।
उसने पूछा, "क्या हुआ निर्मला इस तरह से घूँघट में चेहरा छुपा कर क्यों बैठी हो?"
ऐसा कहते हुए उसने निर्मला का घूँघट उठाते हुए पूछा, "अच्छा एक बात बताओ तुमने मुझसे विवाह के लिए क्या सोचकर हाँ कहा था?"
निर्मला ने अचरज भरी नजरों से उसकी तरफ़ देखते हुए कहा, "आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं?"
"बस ऐसे ही जानना चाहता हूँ कि तुम्हें मुझ में क्या इतना अच्छा लगा?"
निर्मला ने कहा, "मैंने ज़्यादा कुछ सोचा नहीं। अम्मा बाबूजी ..."
ज़्यादा कुछ सोचा नहीं? यह कैसा जवाब है जिसके साथ पूरी उम्र गुज़ारना है उसके बारे में ख़ुद ने कुछ नहीं सोचा।
"अच्छा तुम ग्यारहवीं तक पढ़ी हो ना?"
"यह किसने कहा आपसे? मैं पढ़ना चाहती थी लेकिन आठवीं के बाद हमारे गाँव में स्कूल ही नहीं है।"
"क्या सिर्फ़ आठवीं पास हो तुम?"
निर्मला घबरा गई और डरते हुए उसने पूछा, "क्या आपको यह नहीं मालूम था?"
प्रतीक ने उसकी इस बात को नज़र अंदाज़ करते हुए उसे कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि यह झूठ तो उसकी अपनी माँ का कहा हुआ था। उसने सोचा, खैर छोड़ो 11वीं पास भी होती तो क्या ही हो जाता।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः