अन्धायुग और नारी - भाग(४३) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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अन्धायुग और नारी - भाग(४३)

और फिर उस दिन नवाब साहब से हमारी मुलाकात बस इतनी ही रही ,वे कुछ देर हमारे साथ रुके और कुछ बातें की,उन्होंने हमसे कहा....
"सुना है,आप आलिम हैं,शेर कह लेतीं हैं और अंग्रेजी भी जानतीं हैं",
"अंग्रेजी तो हमने तोते की तरह रट ली थी और शेर कह लेते हैं वो भी ऐसे ही थोड़ा बहुत,ज्यादा तजुर्बा नहीं है हमें" हमने नवाब साहब से कहा....
"ओह...ये तो हमारी खुशकिस्मती है कि आप हमारी बेग़म हैं,इतनी ज़हीन और खूबसूरत बेग़म खुदा नसीब वालों को ही बख्शता है",नवाब साहब बोले....
"जी! बहुत बहुत शुक्रिया,वैसे आपकी तारीफ़ के काबिल नहीं हैं हम",हमने उनसे कहा....
"काबिलियत तो आपके चेहरे से झलकती है",नवाब साहब बोले...
"ये तो आपके देखने का नजरिया है",हमने कहा....
"नजर हमेशा अच्छी चींजो पर ही जाती है जो कि आप हैं",नवाब साहब बोले...
तब हमने उनसे कहा...
"वो सब तो ठीक है ,हम आपसे ये कहना चाह रहे थे कि अगर आपकी इजाजत हो तो हम आपकी सभी बेग़मों की ज़ियारत कर आएँ,सोचते हैं कि कल ही सबसे मिलने चले जाएँ",
"हाँ...हाँ...क्यों नहीं,लेकिन उन सभी से मिलकर आपको खुशी नहीं मिलेगी",नवाब साहब बोले...
"वो भला क्यों"?,हमने उनसे पूछा....
तो वे बोलें....
"सबकी सब बड़ी बतमीज,मगरुर और कुढ़मग्ज हैं,आप अपने लिए परेशानी खड़ी करने जा रहीं हैं",नवाब साहब बोले...
"जी! कोई बात नहीं,इतना तो बरदाश्त कर ही सकते हैं,आखिरकार वे हमसे बड़ीं जो हैं",हमने कहा...
"जैसी आपकी मर्जी",नवाब साहब बोले....
और फिर उसके बाद नवाब साहब ने शराब पीनी शुरु कर दी,हमने खाने के लिए कहा तो उन्होंने मना कर दिया,बोले हाजमा दुरुस्त नहीं रहता हमारा,बदहजमी हो जाएगी,अगर आपको खाना खिलाने का इतना ही शौक है तो आप हमारे लिए खिचड़ी बनवा दीजिए और फिर हमने नवाब साहब के लिए खिचड़ी बनवाई और उनकी बेतुकी सी बिना सिर पैर की बातें झेलते रहे और कुछ वक्त के बाद वें हमारे पास से चले गए,वो हम दोनों की पहली मुलाकात थी,हमें ऐसा लगा कि वे अपनी नई दुल्हन से मिलने नहीं आए थे किसी सौदागर से सौदा करने आए थे और अपनी शर्ते बताकर चले गए,तब उस दिन हमने ठण्डी साँस लेते हुए अपने मन में सोचा कि अब तो तमाम उम्र इसी जाहिल,खब्ती इन्सान के साथ बितानी है,जब ये इन्सान साथ होगा तो अपनी हिमाकत और बेवकूफियों से परेशान करेगा और जब हम अकेले होगें तो पुरानी यादें आ आकर हमें सताऐगीं,ना जाने मेरा लाल कैसा होगा और उसके बारें में सोचकर हमारी आँखों में आँसू आ गए...
और फिर दूसरे दिन हम उनकी बीवियों से मिलने गए,पहले हम फौजिया के घर पहुँचे तो उनकी मुलाजिमा हमें उनके पास ले गई तब फौजिया बोली....
"बहूबेग़म! इधर मत आया करो,मैं बीमार हूँ,मुझे तपैदिक है,ना जाने कब खुदा का बुलावा आ जाएँ, इसलिए मुझसे दूर रहने में ही तुम्हारी भलाई है,देखो नवाब साहब भी नहीं आते मेरे पास,मुझे उनसे कोई शिकवा शिकायत नहीं है लेकिन वे मेरे शौहर हैं,क्या कोई फर्ज नहीं बैठता उनका कि जरा यहाँ जियारत कर जाएँ,मैं तो चंद दिनों की मेहमान हूँ बहूबेग़म!,सच कहूँ तो अब जीने की ख्वाहिश भी नहीं रह गई है,जो दर्द मैंने झेला है,खुदा करें वो दर्द तुम कभी ना झेलो,तुम्हारी मुँह दिखाई के नाम पर मेरे पास ये अँगूठी है,जो पहली रात को नवाब साहब ने मुझे दी थी,अब ये तुम रख लो,मैं तो नवाब साहब का घर आबाद ना कर सकी,क्या पता तुम ये काम कर दो",
"ऐसा ना कहें बड़ी बेग़म! देखना अब आप जल्द ही सेहदमंद हो जाऐगीं,हम आपके लिए दुआ करेगें" हमने फौजिया से कहा...
"अब किसी की कोई भी दुआ मुझ पर असर करने वाली नहीं ,अब मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं बचा है", फौजिया बोली...
और फिर उस दिन हम फौजिया बेग़म के पास कुछ देर और ठहरे उनसे बातें की और फिर हम पहुँचे शबाब के यहाँ,वो हमें जरा मगरुर लगी लेकिन उसने हमसे कायदे से बात की,हम दोनों में कुछ ही देर में खूब मेल हो गया और हम दोनों दिल खोलकर बातें करने लगे और शबाब ने हमसे पूछा....
"और बहूबेग़म! ये बताएँ,पसन्द आए दूल्हे मियाँ"?
"भला उन्हें कौन नहीं पसंद करेगा,उनमें तो इतने गुण हैं कि उन्हें पसंद करने के सिवाय कोई रास्ता ही नहीं बचता, हमने शबाब से कहा....
"तो बहूबेग़म! आपने एक ही दिन में समझ लिया कि वे कितने सनकी हैं" शबाब बोली...
"सनकी कह लें या उम्र का तकाजा कह लें,हमें तो कुछ समझ नहीं आया,उनका सलूक कुछ अजीब सा था",हमने कहा...
और इस तरह से शबाब ये जान गई कि हमारे मन में क्या चल रहा है,वो हमारे मन का दर्द फौरन भाँप गई और उसने हमसे पूछा....
"कितनी देर रहे वे आपके पास"?
"ज्यादा देर नहीं रहे",
और हमारा जवाब सुनकर शबाब मुस्कुराई,हमें ऐसा लगा कि उसके मन में कोई राज छुपा है और वो हमसे बोली....
"ये दर्द तो आपको अब ताउम्र झेलना पड़ेगा छोटी बेग़म!",
तब हमने उनसे कहा....
"शबाब आपा! अब आप ही कहें कि क्या राज है,हमें तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा,वे रात को हमारे पास रुके ही नहीं,हमारे पास जितनी देर बैठे रहे तो हमें लगा कि वे गैर हैं,उन्होंने शौहर जैसा बर्ताव ही नहीं किया हमारे साथ"
तब शबाब बोली....
"वे नवाब हैं,रईस हैं,कोई ऐसे वैसे गैर मियाँ नहीं हैं,क्या आप नहीं जानती कि नवाबों के ठाट बाट निराले होते हैं"
"लेकिन हमारा मन कहता है कि कोई राज जरूर है और आप भी हमसे कुछ तो छुपा रहीं हैं",हमने शबाब से कहा....
"जो भी राज होगा तो आज नहीं तो कल खुल ही जाएगा आपके सामने,कभी ना कभी आपके सामने सारी सच्चाई आ ही जाएगी,आप घबरातीं क्यों हैं मेरी जान!",शबाब बोली...
"अगर आज ही वो राज खुल जाए तो क्या हर्ज है",हमने शबाब से कहा....
"सौदा तो पहले ही कर ही चुकीं हैं आप! अब तो उसे बदलवा भी नहीं सकतीं आप,मालूम होता है इस सौदे में घाटा खा गईं आप"शबाब बोली...
"बदलवा तो नहीं सकते लेकिन पता हो जाता तो अच्छा रहता",हमने कहा....
"आपका सिक्का तो खोटा निकल गया मेरी जान! और मुसीबत ये है कि अब आप उसे फेंक भी नहीं सकतीं",शबाब बोली...
"आपने भी तो नहीं फेंका उस खोटे सिक्के को,सम्भालकर तो आपने भी रखा है",हमने शबाब से कहा....
"हम तो उस समय नादान थे,हमारे बाप ने तो दौलतमंद नवाब देखकर निकाह कर दिया था हमारा उनके साथ,लेकिन माशाल्लाह आप तो खूबसूरत हैं,ज़हीन हैं,पढ़ी लिखीं हैं,आपकी अक्ल क्या घास चरने चली गई थी जो उस बुढ़ऊ को ताज बनाकर अपने माथे से लगा लिया",शबाब बोली....
"वो हम आपको बाद में बताऐगें कि हमारी क्या मजबूरी थी",हमने शबाब से कहा...
"कुछ भी हो मर्सिया बेग़म! लेकिन ऐसा फैसला तो सोच समझकर लेना चाहिए था,कोई जानते बूझते मक्खी नहीं निगलता",शबाब बोली...
"वो सब छोड़िए,वो बातें बाद में होगीं,अब आप ही बता दीजिए कि क्या बात है",हमने शबाब से कहा...
तब शबाब बोली...
"सच्चाई सुनकर आपका दिल पाश पाश हो जाएगा",
"अब बता भी दीजिए,हमारे पास दिल है ही कहाँ वो तो हम किसी और के पास छोड़कर आएँ हैं इसलिए हमारे दिल टूटने का सवाल ही नहीं उठता",हमने कहा....
"मतलब! आपकी जिन्दगी के भी कुछ राज हैं",शबाब बोली....
"ऐसा ही कुछ समझ लीजिए",हमने उनसे कहा....
और ये सुनकर शबाब कुछ सोचने लगी.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....