अन्धायुग और नारी - भाग(३७) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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अन्धायुग और नारी - भाग(३७)

वे वहाँ से अपने दिल में मेरे लिए गलतफहमी लेकर चले गए और फिर मैंने कभी भी उनसे मिलने की कोशिश नहीं की,वे अपने गाँव में रहने लगे और मैंने नाच गाना छोड़कर शराफत की जिन्दगी गुजारने का फैसला लिया और वो बच्ची भ्रमर ही है....
ये कहते कहते चाँदतारा बाई की आँखों में आँसू आ गए और मैं उनके पैरों में गिरकर बोला....
"तो आप ही मेरी माँ हैं"
"हाँ! बेटा! लेकिन पालने वाली माँ जन्म देने वाली माँ से ज्यादा बड़ी होती है",वे बोलीं....
"लेकिन उन्होंने तो मुझे आपसे धोखे से छीना था",मैंने कहा....
"लेकिन त्रिलोक बेटा! उन्होंने तुम्हें सगे बेटे की तरह ही पाला,उन्हें कभी भी ये एहसास नहीं होने दिया कि वो तुम्हारी सगी माँ नहीं हैं",चाँदतारा बाई बोलीं...
"हाँ! ये बात तो है",मैंने कहा...
"तो भलाई इसी में है कि तुम भ्रमर की सच्चाई अपने घरवालों से बता दो और उनकी रजामंदी के बाद ही उन्हें अपनाना"चाँदतारा बाईं बोलीं...
"ठीक है माँ"मैंने उनसे कहा....
और फिर जब मैंने चाँदतारा माँ की सच्चाई अपने घर जाकर सबसे बताई तो फिर मेरे पिताजी की गलतफहमी दूर है गई और उन्होंने खुशी खुशी भ्रमर को अपनी बहू बनाने का फैसला कर लिया,लेकिन मेरी माँ स्नेहलता इस बात के लिए हरगिज़ राज़ी नहीं थीं और जब माँ राजी नहीं थीं तो घर में कोई भी उनकी बात का खण्डन नहीं कर पाया,लेकिन फिर मैंने किसी की परवाह ना करते हुए भ्रमर से मंदिर में शादी कर ली और शहर में एक किराए का मकान लेकर रहने लगा,मुझे मिसेज थाँमस ने एक स्कूल में लगवा दिया,जहाँ मैं बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाने लगा और अब भ्रमर के साथ सुचारू रुप से मेरी गृहस्थी चल रही थी....
लेकिन भ्रमर से शादी के बाद मुझे समाज ने बहिष्कृत कर दिया,जब समाज ने नहीं अपनाया तो भला घरवाले क्यों अपनाने लगें,इसलिए भ्रमर से शादी के बाद मैं फिर कभी अपने घर नहीं गया,मैं और भ्रमर अपने संसार में बहुत खुश थे और तभी मुझे पता चला कि भ्रमर माँ बनने वाली है,तो अब लगने लगा था कि मेरा संसार अब पूरा हो गया,इसी दौरान दीवाली का त्यौहार आया और एक बड़े ही आश्चर्य की बात हुई,दीवाली के कुछ दिनों पहले ही मेरी माँ मेरे घर आईं और मुझसे बोलीं....
"बेटा! मेरा कहा सुना माँफ करो,मैं तुम दोनों को लेने आईं हूँ,मैं चाहती हूंँ कि इस बार हम सभी एक साथ दीवाली का त्यौहार मनाएँ",
"लेकिन माँ! अगर भ्रमर गाँव जाऐगी तो गाँव के लोग सौ तरह की बातें बनाऐगें" मैंने स्नेहलता माँ से कहा...
"मुझे अब किसी की परवाह नहीं है बेटा! समाज की परवाह करते करते मैं तुम लोगों से बहुत दिनों से दूर रह रही हूँ,लेकिन तुमलोगों से अब मैं और दूर नहीं रहना चाहती,अब मैं चाहती हूँ कि मेरी बहू मेरे घर आ जाए बस",स्नेहलता माँ बोलीं....
"लेकिन माँ! घर जाने के लिए तो मुझे स्कूल से छुट्टी लेनी पड़ेगी",मैंने उनसे कहा....
"ऐसा कर तू छुट्टी लेकर बाद में घर आ जाना,मैं बहू को आज ही गाँव लेकर जा रही हूँ",स्नेहलता माँ बोली....
मुझे तब लगा कि माँ का हृदय परिवर्तन हो गया है और उन्होंने सच में भ्रमर को दिल से अपना लिया है,इसलिए मैंने भ्रमर को उनके साथ भेज दिया और भ्रमर भी खुशी खुशी उनके साथ चली गई,फिर दीवाली में मैं घर पहुँचा तो देखा कि भ्रमर बहुत खुश है,माँ ने उसका बहुत ख्याल रखा और उसे बहुत प्यार दिया,ये सुनकर अब मेरी दुविधाएंँ भी दूर हो गईं और ये विश्वास हो गया कि माँ ने सच में भ्रमर को अपना लिया है,हम सभी ने दीवाली खुशी खुशी मनाई और दीवाली के बाद मैं जब भ्रमर को लेकर गाँव से वापस आने लगा तो स्नेहलता माँ बोली....
"बेटा! अभी मेरा जी नहीं भरा,अगर तुझे बुरा ना लगे तो क्या मैं भ्रमर को और कुछ दिन अपने साथ रख सकती हूँ"
"माँ! भला मुझे क्यों बुरा लगेगा उसके यहाँ रहने से,वो तुम्हारी बहू है और तुम्हारा उस पर पूरा अधिकार है,जब तक जी चाहे तब तक अपने पास रख लो",मैंने स्नेहलता माँ से कहा....
"हाँ! बेटा! वैसे भी वो उम्मीद से है,यहाँ रहेगी तो मैं उसे सारी बातें भी समझा दूँगी कि कैसें रहना है,क्या खाना है और क्या नहीं खाना है",स्नेहलता माँ बोली....
"ठीक है माँ! जब तक तुम्हारा जी चाहे तो रख लो उसे,लेकिन मुझे तो जाना ही होगा,क्योंकि मेरी छुट्टी तो खतम हो गई है",मैंने माँ से कहा....
"ठीक है तो तू चला जा! अगले इतवार तक मैं उसे तेरे पास खुद ले आऊँगीं",स्नेहलता माँ बोली....
और इस बात से भ्रमर भी खुश थी और वो भी गाँव में रहना चाहती थी,उसके चेहरे की खुशी देखकर मैंने भी उसे अपने साथ आने को नहीं कहा, फिर मैं वापस शहर चला आया और ये खुशखबरी मैंने चाँदतारा माँ को भी सुना दी कि उन्होंने तुम्हारी बेटी को दिल से अपना लिया है और मैं फिर कुछ दिनों तक शहर में रहा,इतवार निकल गया लेकिन स्नेहलता माँ भ्रमर को लेकर मेरे पास नहीं आई,तब मैंने सोचा शायद भ्रमर और कुछ दिन उनके साथ रहना चाहती होगी इसलिए नहीं आई,लेकिन फिर एक और इतवार निकल गया वो नहीं आई तो उसके बाद वाले इतवार को मैं ही गाँव चला गया और वहाँ जाकर मुझे पता चला गया,नदी में डूबकर भ्रमर की मौत हो चुकी है,ये सुनकर मुझे बहुत बड़ा आघात पहुँचा और मैंने उन सबसे कहा कि ...
"अगर ऐसी बात थी तो आप लोगों ने मुझे खबर क्यों नहीं की"
"बेटा! लाश को ढूढ़ते ढूढ़ते लाश की हालत बहुत खराब हो चुकी थी,लाश गल चुकी थी ,इसलिए हमने जल्दी से उसका अग्निदाह करना ही उचित समझा",स्नेहलता माँ बोली....
"लेकिन बाद में तो खबर पहुँचा सकते ना आपलोग",मैंने कहा....
"जब सबकुछ हो ही चुका था तो ऐसी मनहूस खबर देकर तुम्हें तकलीफ़ नहीं देना चाहते थे",बड़े भइया बोले....
"ये आपलोगों ने बहुत गलत किया",मैंने कहा....
"हाँ! गलती तो हो गई हमसे,अब जो हुआ सो उसे बुरा स्वप्न समझकर भूल जाओ",भाभी बोली....
और फिर मैं गाँव में और ना रुक सका और मैंने अपना सामान उठाया और पक्की सड़क का रास्ता पकड़कर गाँव की पगडण्डियों से वापस आने लगा और अभी मैंने आधा रास्ता ही पार किया था कि मेरे पीछे मुलिया कहारिन(वो हमारे घर में बर्तन धोने और पानी भरने का काम करती थी) आकर बोली....
"छोटे बाबू! तनिक ठहरो,हमें कुछू बताना है तुमका"
मैं पीछे मुड़ा तो मुलिया कहारिन को देखकर पूछा....
"मुलिया! तुम! बोलो क्या बात है"?
"छोटे बाबू! बात ऊँ है कि तुम्हार बहू डूब के नाहीं मरी है",वो बोली...
"तो कैसें मरी है?",मैंने पूछा....
तब मुलिया कहारिन बोली...
"ऊँ रात हम देखे रहिन,हम रात का पानी भरके आपन घरे जा रहे थे तो हमका भूसा रखें वाली कुठरिया से कुछु आवाज़ आई,ऐहसे हम भाग के उहाँ गए और हम कुठरिया की दरौंदा(छोटी सी खिड़की) से देखें कि तुम्हार बड़े भइया,तुम्हार भौजी और तुम्हार अम्मा, नई बहू के हाथ पैर बाँध रहीं थीं और तुम्हार भौजी उहके मुँह में कपड़ा ठूँस दीस,फिर तुम्हार भइया उहके घुटकी(गर्दन) दबा दीस और ऊँ बेचारी कुछ देर मा छटपटा के आपन प्राण त्याग दीस,उहके बाद हम डर के मारे बाहर चले गए और एक पेड़ के पीछे छुप गए,तब हम देखें तुम्हार बड़े भइया बहू का बोरा में भरकर कहूँ जा रहे थे,हम उहकर पीछा करे लाग तो हम देखें कि ऊँ बहू का बोरा से निकार के नदी मा छोड़ दिए और बोरा का नदी किनारे जला दिए"
इतना कहते कहते मुलिया कहारिन की आँखें भर आईं....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....