कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(६९) Saroj Verma द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(६९)

कालवाची बनी कर्बला शान्त होकर कक्ष में खड़ी ये सोच रही थी कि गिरिराज ने उसे अपने कक्ष में ठहरने को क्यों कहा,कहीं उसे संदेह तो नहीं हो गया मुझ पर और तभी गिरिराज उसके समीप आकर बोला....
"तुम वैशाली की बहन हो ना!"
"जी! महाराज!",कर्बला बनी कालवाची बोली...
"तुम तो बहुत ही अच्छा नृत्य करती हो",गिरिराज बोला...
"बहुत बहुत धन्यवाद महाराज!",कर्बला बनी कालवाची बोली....
"तुम अत्यधिक रुपवती और गुणवती भी हो,किन्तु मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि तुम्हें तुम्हारी योग्यता के अनुसार वो स्थान नहीं मिला जो मिलना चाहिए था",गिरिराज बोला....
"आपके कहने का तात्पर्य क्या है महाराज?",कर्बला बनी कालवाची ने पूछा....
"इसका तात्पर्य मैं तुम्हें कल बताऊँगा,अभी तुम यहाँ से जा सकती हो,किन्तु कल इसी समय मेरे कक्ष में अवश्य आ जाना,मुझे तुमसे कुछ आवश्यक बात करनी है" गिरिराज बोला....
"जी! महाराज! तो क्या मैं अब जा सकती हूंँ",कर्बला बनी कालवाची ने पूछा....
"हाँ! जाओ" गिरिराज बोला....
और गिरिराज के आदेश पर कर्बला बनी कालवाची उसके कक्ष से वापस आ गई,किन्तु अब उसके मन में विशेष प्रकार की दुविधा उत्पन्न हो चुकी थी और वो अपनी दुविधा को शीघ्रता से अचलराज और वत्सला के संग साँझा करना चाहती थी,इसलिए अर्द्धरात्रि के समय वो अचलराज के कक्ष में पहुँची,उसने वत्सला से अपनी दुविधा कही थी एवं उससे अर्द्धरात्रि के समय अचलराज के कक्ष में आने के लिए कहा था, कालवाची तो अचलराज के कक्ष में पहले ही पहुँच चुकी थी और वे दोनों वत्सला की प्रतीक्षा कर रहे थे और कुछ समय पश्चात वत्सला भी वहाँ आ पहुँची,अभी अचलराज वैशाली के रुप में नहीं था ,कालवाची उसे उसका पुरुष वाला रुप दे चुकी थी,वत्सला जैसे ही कक्ष में पहुँची तो वो अधीरतावश कक्ष के किवाड़ बंद करना भूल गई,उसने किवाड़ों को आपस में अटकाया इसके पश्चात वो कालवाची और अचलराज के समीप पहुँचकर उनसे बोली...
"क्या हुआ कालवाची? कोई दुविधा है जो तुमने मुझे अचलराज के कक्ष में आने को कहा था"
"हाँ! मैं कुछ समय पूर्व अचलराज से भी यही कह रही थी कि ऐसा प्रतीत होता है कि गिरिराज को हम पर संदेह हो गया है",कालवाची बोली....
"ये तो सच में अत्यधिक चिन्ता वाली बात है",वत्सला बोली....
"हाँ! वही तो मैं भी सोच रहा था कि ना जाने अब क्या होगा"?,अचलराज बोला....
उन सभी के मध्य अभी वार्तालाप प्रारम्भ ही हुआ था कि तभी किसी ने बाहर से कक्ष के किवाड़ों को बलपूर्वक धकेला और कक्ष के किवाड़ खुल गए,कक्ष के बाहर का दृश्य देखकर वत्सला,अचलराज और कालवाची भयभीत हो उठे क्योंकि वहाँ अपने बहुत सारे सैनिकों के संग गिरिराज खड़ा था,वे तीनों अब शान्त थे और अभी वहाँ की स्थिति को समझने का प्रयास ही कर रहे थे कि गिरिराज ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि इन तीनों को बंदी बना लिया जाएंँ.....
और सैनिकों ने यही किया अचलराज और वत्सला को तो उन सैनिकों ने साधारण बंदी की भाँति ही बंदी बनाया किन्तु कालवाची को उन्होंने एक बड़े से लकड़ी के संदूक में डाला और उस संदूक में चारों और कुछ छिद्र थे जिससे कालवाची श्वास ले सकती थी .....
ये देखकर अचलराज से रहा ना गया और उसने गिरिराज से कहा....
"तुम कर्बला को संदूक में बंदी नहीं बना सकते,उसे भी हम दोनों की भाँति ही बंदी बनाओ"
तब गिरिराज बोला....
"नवयुवक अचलराज! मुझे अब ज्ञात हो चुका है कि ये कोई साधारण स्त्री नहीं है ये कोई प्रेतनी है,इसका नाम कालवाची है और ये अपना रुप भी बदल सकती है इसलिए किसी भी प्रकार का कोई भी संकट उठाने के लिए मैं तत्पर नहीं हूँ",
"क्या कह रहे हो तुम?ये सत्य नहीं है" अचलराज ने गिरिराज की बात का खण्डन करते हुए कहा.....
"ओहो...पुत्र!अचलराज! अब मुझे मूर्ख बनाना बंद करो,मुझे उसी दिन ही सबकुछ ज्ञात हो चुका था,जिस दिन कुशाग्रसेन ने मुझे मोहिनी नामक युवती के विषय में बताकर अपनी बात को सत्य सिद्ध करना चाहा था, उसी समय मेरे मस्तिष्क में कोलाहल उत्पन्न हुआ और मैंने उन सभी सदस्यों के पीछे अपने गुप्तचर लगा दिए जो राजमहल में नए नए आए थें और उन सदस्यों में तुमलोगों का नाम भी उपस्थित था",
"जब तुझे हमारी सच्चाई ज्ञात हो चुकी थी तो इतने दिनों तक हम तीनों के संग कुछ भी ना ज्ञात होने का झूठा अभिनय क्यों करता रहा?",अचलराज ने पूछा....
"अपने आनन्द के लिए",गिरिराज हँसते हुए बोला....
"तू कुछ भी कर ले गिरिराज! किन्तु सत्य कदापि पराजित नहीं हो सकता",अचलराज बोला....
"वो तो दिख ही रहा है वैशाली! तुम ही वैशाली बने थे ना! इतना बड़ा षणयन्त्र रचा जा रहा था मेरे राजमहल में मेरे लिए और मुझे कुछ ज्ञात ही नहीं हुआ", गिरिराज बोला....
तभी वत्सला चीखी....
"मैं तुझसे अपना प्रतिशोध लेकर ही रहूँगी गिरिराज! मेरे परिवार का नाश करने वाले तुझे में सरलता से क्षमा नहीं करूँगी,तुझे अपने कर्मों का दण्ड भुगतना ही होगा"
"कौन देगा मुझे दण्ड? तू देगी,मुझे ज्ञात होता कि तू मेरे शत्रुओं के संग मिलकर इतना बड़ा षणयन्त्र रचेगी तो मैं उसी दिन तेरी हत्या कर देता जिस दिन मैंने तेरे कुटुम्ब का नाश किया था",गिरिराज बोला....
"तू कितना भी प्रयास कर ले गिरिराज! परन्तु अब तू नहीं बचने वाला,तेरा सर्वनाश निश्चित है",अचलराज बोला....
तब गिरिराज बोला....
"कहीं तू इस भूल में तो नहीं है कि कुशाग्रसेन यहाँ आकर तुझे आकर बचा लेगा,मैंने उसे और उसके भूतपूर्व सेनापति व्योमकेश जो कि तेरा पिता है दोनों को ही बंदी बनाकर रखा है,किन्तु एक बहुत बड़ी भूल हो गई मुझसे,उसके साथ जो उसके साथी थे वें भाग निकले,उनमें से कुछ स्त्रियाँ भी थीं,बस उनकी खोज हो रही है,जब वें सभी मिल जाऐगें तो मैं तुम सभी को एक साथ जीवित ही अग्नि के सुपुर्द कर दूँगा,जब तक तुम दोनों भी उन दोनों के संग ही रहो और कालवाची कहीं और रहेगी, इस बार मैं तुम लोगों को यहाँ के राजमहल के बंदीगृह में नहीं रखूँगा,कहीं तुम लोगों को खोजते हुए वे सभी यहाँ आ पहुँचे तो इसलिए तुम्हें मैं अपने पुराने राज्य के राजमहल में बंदी बनाकर रखूँगा ताकि वें सभी तुम लोगों को खोज ना पाएँ"
"ये तेरी भूल है गिरिराज! तू कभी भी अपने लक्ष्य में सफल नहीं होगा,तूने जो पाप किए हैं उनका दण्ड मिलने का समय अब आ चुका है,तुझे अभी ज्ञात नहीं है कि तेरे साथ क्या होने वाला है,इतना सरल नहीं होता अपने पापों से पीछा छुड़ाना" अचलराज बोला....
"कितना बोलता है तू! तनिक कम बोला कर,ऐसा ना हो कि तेरे पिता व्योमकेश के अश्रु कम पड़ जाएं तेरे शव पर रोने के लिए",गिरिराज बोला....
"वो तो समय ही बताऐगा कि कौन कितना रोने वाला है",अचलराज बोला....
"सैनिकों! इन सभी को शीघ्र ही यहाँ से ले जाओ,अत्यधिक बोल चुके ये सभी",
गिरिराज ने अपने सैनिकों को आदेश देते हुए कहा और सैंनिक उन तीनों को वहाँ से लेकर चले गए....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....