सम्राट् ललितादित्य मुक्तपीड कश्मीर के कर्कोटा नागवंशी कायस्थ वंश के हिंदू सम्राट् थे। उनका राज्य काल 724-761 ई. माना जाता है। उनके काल में कश्मीर का विस्तार मध्य एशिया और बंगाल तक पहुँच गया था, उन्होंने अरब के मुसलमान आक्रांताओं का सफलतापूर्वक दमन किया। तिब्बती सेना को भी पीछे हटाया। उन्होंने हर्ष के उत्तराधिकारी राजा यशोवर्मन को पराजित किया, उनका राज्य पूर्व में बंगाल, तो पश्चिम में तुर्किस्तान, दक्षिण में कोंकण तथा उत्तर-पूर्व में तिब्बत तक फैला हुआ था। कर्कोटा क्षत्रिय राजवंश की स्थापना दुर्लभवर्मन ने की थी। वे गोंदडिया वंश के अंतिम शासक राजा बालादित्य के राज्य में अधिकारी थे, बालादित्य ने अपनी पुत्री अनंगलेखा का विवाह कायस्थ जाति के एक सुंदर, लेकिन गैर शाही व्यक्ति दुर्लभवर्मन के साथ किया था। कार्कोटा एक नाग का नाम है। ये नागवंशी कार्कोटा क्षत्रिय थे। प्रसिद्ध इतिहासकार आर.सी. मजूमदार के अनुसार ललितादित्य मुक्तपीड ने दक्षिण की विजयों के पश्चात् अपना ध्यान उत्तर की ओर केंद्रित किया, जिससे उनका साम्राज्य कराकोरम पर्वत श्रृंखला के सुदूरवर्ती कोने तक जा पहुँचा। साहस और पराक्रम की प्रति मूर्ति सम्राट् ललितादित्य मुक्तपीड का नाम कश्मीर के इतिहास में सर्वोच्च स्थान पर है। उनका 33 वर्ष का शासनकाल उनके सफल सैनिक अभियानों, उनके अद्भुत कला-कौशल प्रेम और विश्व-विजेता बनने की उनकी चाह से पहचाना जाता है। लगातार बिना थके युद्धों में व्यस्त रहना और रणक्षेत्र में अपने अनूठे सैन्य-कौशल से विजय प्राप्त करना उनका स्वभाव बना गया था। ललितादित्य मुक्तपीड ने
पीकिंग को भी जीता और 12 वर्ष की विजय-यात्रा के पश्चात् कश्मीर लौट गए।
कश्मीर उस समय सबसे शक्तिशाली राज्य था। उत्तर में तिब्बत से लेकर द्वारिका और उड़ीसा के सागर तट तक, पूर्व में बंगाल, पश्चिम में विदिशा और मध्य एशिया तक कश्मीर का राज्य फैला हुआ था, जिसकी राजधानी प्रखर सेन नगर थी। सम्राट् ललितादित्य मुक्तपीड के सेना की पदचाप् अरण्यक (ईरान) तक पहुँच गई थी। सम्राट् ललितादित्य मुक्तपीड ने अपने शासन भव्य भवनों व मंदिरों का निर्माण करवाया, इनमें मार्तण्ड सूर्य मंदिर का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। इस मंदिर का निर्माण इस प्रकार किया गया है कि इसकी संपूर्ण प्रतिमा पर सूर्य का प्रकाश पड़ता है। यह मंदिर जम्मू कश्मीर के अनंतनाग से पाँच मील की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 725 ई. से 756 ई. के बीच किया गया। इसका प्रांगण 220 फीट x 142 फीट है। यह मंदिर 60 फीट लंबा और 38 फीट चौड़ा है, इसके चतुर्दिक लगभग 80 प्रकोष्ठों के अवशेष वर्तमान में हैं। इसके पूर्वी किनारे पर मुख्य प्रवेश द्वार का मंडप है, जिसके द्वारों पर त्रिपार्श्विक चाप (मेहराब) थे, जो इस मंदिर के वास्तुकला की विशेषता है। द्वार मंडप तथा मंदिर के स्तंभों की वास्तुशैली रोम की डोरिक शैली से मिलती जुलती है। यह मंदिर अपनी वास्तुकला के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है। मार्तंड मंदिर कश्मीरी हिंदू राजाओं की स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसके स्तंभों में ग्रीक संरचना के भी दर्शन होते हैं। इस मंदिर को केंद्रीय स्मारकों की
संरक्षित सूची में सम्मिलित किया गया है। 15वीं शताब्दी में इसलामिक शासक सिकंदर बुतशिकन के आदेश पर इस मंदिर का विध्वंस किया गया।