अनिता Ramesh Desai द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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अनिता



अनिता
- रंजन कुमार /रमेश देसाई

मेकर भवन के सामने की गली अभी तो आधी ही पार की थी उसी वक़्त बोस की कडूई તે बात कानो में गूंजने लगी उस से
शेखर के दिल से आह निकल आई. उस को एक गीत याद आ गया.
दर्द हमारा कोई न जाने
अपनी गरज के सभी हैं दिवाने
गीत आगे बढे उस के पहले की किसी दर्दनाक आक्रोश शेखर के कानो को छू गया.
" कुछ खिलाओ भूखे को. दो दिनों से कुछ भी नहीं खाया.
एक बेसहारा नारी का विलाप उस को व्यथित कर गया.. सोच की कड़ी टूट गई. सिनारियो देखकर उसे झटका लग गया.
लगरवघर नारी हाथ फैलाकर आते जाते लोगों को बिनती कर रही थी. जगत की यह विकृति देखकर शेखर का दिल पसीज
गया.
पेट की भूख उसे रुला रही थी.
छोटा बच्चा मा की छाती फमफोसकर दूध तलाश रहा था.
उस की खुली छाती को आते जाते लोग लोलुप होकर घूर रहे थे.
उस की दयनीय हालत देखकर शेखर का हाथ अपनी जेब मे गया. जो कुछ छूटे पैसे हाथ आये उस ने उस नारी के थामो थमा
दिया.
उसी वक़्त चार आंखो का सामना हुआ.
उस का चेहरा देखकर शेखर को अचरज हुआ. उस को अपनी आंखो पर विश्वास नहीं हुआ.
क्या यह कोई भ्रम था?
क्या यह कोई समान चेहरे की गूट्ठी थी जो शेखर समज नहीं पाया.
पैसे अब भी उस के हाथों में थे.
उस ने उलझन सुलझाने के लिये सवाल किया.
" कौन अनिता? "
शेखर का सवाल सुनकर उस ने मुंह उठाकर उस की ओर देखा.
और दूसरे ही पल वह मुंह छिपाकर बिलख बिलख कर रोने लग गई.
अब वह अनिता ही थी उस में शक की कोई गुंजाईश नहीं बची थी.
उस की ऐसी हालत देखकर शेखर के दिल में भूचाल सा आ गया.
एक सीधी शादी नारी का विलाप शेखर को विचलित कर रहा था.
उस ने अनिता को शांत करने की कोशिश की.
उस वक़्त दो तीन अनजान शख्स आसपास खड़े रह गये.
शेखर उस की उपस्थिति में कुछ कह नहीं पाया.
कुछ देर बाद वह लोग चले गये.
और शेखर ने उसे इशारा कर के उस के पीछे चलने का आदेश दिया.
और वह चर्च गेट स्टेशन की ओर बढ़ गया.
शेखर अनिता से बातें करना चाहता था. उस को मदद करना चाहता था.
अतीत के दृश्य उस की आंखो के सामने नर्तन कर रहे थे.
वह अनिता को पहली बार कमाटी पूरा की चेम्बर नंबर 36 में मिला था. वह एक पत्रकार था, समाज सुधारक था.
वह इंटर व्यू के लिये वहाँ गया था.
वह एक देह जीविका थी. देह का ब्योपार करती थी. उस में कोई विशेष बात थी, जिस ने शेखर का दिल जीत लिया था.
उस के दिल में प्यार की भावना उमट पड़ी थी. उस के दिल में एक स्त्री साप्ताहिक में कहीं बात जीवंत हो गई थी.
नारी सृष्टि की अनुपम सौगात हैं. उस के पवित्र देह में संस्कारी आत्मा बसता हैं. उस की कोख में सपनो से सजे बच्चे का पिंड
आकार लेता हैं.
उस को मिलकर शेखर को ऐसा लगा था. मानो साप्ताहिक में लिखी बात मानो जीवंत हो गई हो.



पहली मुलाक़ात में ही उस ने भरोसा कर के शेखर के हाथ में एक खत थमाते हुआ कहां था :
" जरा पढ़िये न इस खतमे क्या लिखा हैं? "
शेखर ने खत हाथ में लेकर सवाल किया था.
" यह अमर कौन हैं? "
" मेरा आशिक है. मुझे बहुत प्यार करने का दावा करता हैं. "
उस का यह खुलासा सुनकर शेखर ने और कुछ पूछना जरूरी नहीं समजा था. उस ने चुपचाप खत पढ़कर अनिता को सुना
दिया.
सुनकर एक खानदानी परिवार की बेटी की तरह वह शरमा गई थी.
पहली बार में शेखर उस से ज्यादा बात नहीं कर पाया था.
अनिता में एक अच्छी दोस्त बनने की लायकी थी. शेखर उसे बाहर कोई होटल में ले जाकर उस का इंटरव्यू लेना चाहता था.
इस लिये अनिता से गुजारिश की थी :
" मैं तुम्हे इस माहौल से बाहर से बाहर मिलना चाहता हूं. तुम्हारे बारे में बहुत कुछ जानना चाहता हूं. "
" ठीक हैं कल ग्यारह बजे मराठा मंदिर थियेटर के पास मिलूंगी. "
वह बाहर मिलने को राजी हो गई थी. इस बात से शेखर अति उत्साहित बन गया था. ऐसी स्थिति में वह पूछना भूल गया था.
" सुबह या रात को? "
शेखर उस को मिलकर सब कुछ जानना चाहता था.
उस ने घंटे भर अनिता का इंतजार किया था, लेकिन वह नहीं आई थी.
हो सकता हैं उस ने रात के ग्यारह बजे बुलाया होगा.
यह सोचकर रात को दोबारा ग्यारह बजे वह मराठा मंदिर पहुंच गया था. उसे फिर नाकामी हाथ लगी थी!
और वह हतोत्साह हो गया था.
क्या अनिता बीमार हो गई होगी?
एक स्वजन की भ्रान्ति वह अनिता के लिये चिंतित हो रहा था.
वह एक धंधे वाली थी जिसे बिना पैसे मिला जा नहीं सकता था.
फिर भी वह उसे मिलने गया था.
उस का नसीब कुछ सही था. वह सीढ़ी पर ही मिल गई थी.
शेखर को देखकर उस के चेहरे के भाव बदल गये. उस ने बड़े अफ़सोस के साथ शेखर को सवाल किया.
" मैं नहीं आई इस से आप नाराज तो नहीं? "
" बिल्कुल नहीं. अगर ऐसा होता मैं आता ही नहीं था. "
यह सुनकर अनिता ने अपना हाथ शेखर के हाथों में रखकर सच्चाई बयान कर दी :
" बाबूजी! आप तो जानते हो. अमर मुझे प्यार करता है. मुझसे शादी करने को तैयार हैं. उसी की बारे में मैं उस के घर गई थी
तो उस के घर वालों ने मुझे रोक लिया . "
उस की बातों में सच्चाई झलक रही थी.
एक पल के बाद उस ने शेखर को वादा किया था.
" मैं आप को परसो रात ग्यारह बजे मिलूंगी. "
" ठीक हैं!, "
और शेखर वादे के मुताबिक नियत समय, नियत जगह पहुंच गया था.
लेकिन अनिता नहीं आई थी.
और शेखर को फिर एक बार हताशा हाथ आई थी.
इस आलम के लिये कुछ जानकारी बाकी थी जो वह अनिता से लेना चाहता था.
संचालक खुले आम लड़कियो का यौन शोषण करवाते हैं. उन्हें कोई आज़ादी प्राप्य नहीं हैं.
हो सकता है उन को कोई संशय पैदा हुआ होगा. कोई ग्राहक आ गया होगा.
क्या अमर ने मना किया होगा?
वह चित्र विचित्र तर्को की जाल में उलझ रहा था.
वह एक बार फिर अनिता के आवास में गया था.
लेकिन वह कहीं नजर नहीं आई थी.
शेखर ने संचालक को पूछा था :
" अनिता कहां है? "
सुनकर शेखर को मन हुआ था. उस को मिलू, उस के हालचाल पूछू.
लेकिन ऐसे माहौल में ऐसी औपचारिकता कोई मायना रखती नहीं थी.
वह बेचारी क्या सोचेंगी? शेखर उसे मिले बिना ही चला गया!
संचालक ने दूसरी लड़की ओफर करते हुए कहां था :
" अनिता तो फालतू लड़की हैं, मैं तुम्हे बढ़िया लड़की दूंगा. "
क्या करू? शेखर कुछ तय नहीं कर पा रहा था.
उस ने दूसरी लड़की से बात की तो उस ने जानकारी दी :
" अनिता की शादी होने वाली हैं. "
यह जानकर शेखर को ख़ुशी हुई थी. साथ में अफ़सोस भी था.
वह उसे मिल नहीं सकता था.
इस बात को छ महिने बीत गये थे.
बच्चे के रोने की आवाज से शेखर वर्तमान में आ गया.
शेखर ने बच्चे के लिये दूध मंगवाया.
दूध पीकर बच्चा मा की गोद में सो गया.
और शेखर ने बातें शुरू की.
" तुम्हारी तो शादी हो गई थी. फिर यह सब कैसे और क्यों हो गया?
सुनकर उस की आँखे छलक उठी.
शेखर ने उसे सांत्वन दिया.
अनिता ने स्वस्थता प्राप्त करते हुए कहां..
" बाबूजी! मेरी शादी को कुछ ही दिन बचे थे. बड़ी रकम देकर मेरे ससुराल वालों ने मुझे उस नर्क से छुड़वाया था.
तब मैं अपने अच्छे नसीब की दुवा दे रही थी.
लेकिन मेरी खुशी अल्प जीवी साबित हुई थी.
अमर के साथ संबंध से मैं गर्भवती बनी थी. मुझे इस बात से कोई समस्या नहीं थी.
मैं अपने ससुराल में सलामत थी.
लेकिन कुछ ही दिनों में मेरी तबियत ख़राब हो गई थी. मेरे परिवार ने डॉक्टरो का झुंड खड़ा कर दिया था. संपूर्ण चेकिंग के बाद
निदान हुआ था.
मैं HIV ऐड्स का शिकार हो गई हूं.
बीमारी का नाम सुनकर परिवार के प्यार का विभाजन हो गया.
मुझे सरकारी दवाखाने में भर्ती कर दिया. उन दिनों में मेरी प्रसूति कभी भी हो सकती थी. फिर भी घर वालों मुझे ऐसा ही छोड़
दिया था.
कुछ ही दिनों में मेरी प्रसूति हुई थी. लेकिन सब लोग बिल्कुल पराये हो गये थे. कोई भी एक बार भी मिलने नहीं आया था.
बीमारी की बात सुनकर परिवार के प्यार का विभाजन हो गया. उन लोगों ने मुझे अपने हाल पर छोड़ दिया. मुझे अस्पताल में
छोड़ दिया.
कुछ ही दिनों में प्रसूति होने वाली थी. फिर भी वह लोग एक बार भी मिलने अस्पताल नहीं आये थे.
मेरी प्रसूति हो गई. और मेरे पास बच्चे के सिवा कोई नहीं था.
दोनो का गुजारा करना था.
अस्पताल में कितने दिन ऐसे रह सकती थी. इस लिये मैं बच्चे को लेकर अस्पताल से बाहर आ गई थी.
जेब बिल्कुल खाली थी.
मेरे लिये ऊपर गगन नीचे धरती ही बचे थे.
मेरा मार्ग कांटो से भरा हुआ था.
इतनी बड़ी दुनिया में मेरा बच्चा ही मेरा सहारा था.
उस के लिये भी ज़िंदा रहना आवश्यक था.
इन हालत में मैं पुरानी दुनिया में लौट जाने के ख्याल से कमाटी पूरा गई थी. वहाँ से मुझे जाकारा मिला तो एक घर में खाना
पकाने का कपड़े, बर्तन धोने का झाड़ू पोते करने के काम शुरू किये.
लेकिन तबियत की वजह से मैं ज्यादा टीक नहीं पाई. घर की मालकिन को मेरी बीमारी का पता लग गया और मेरा काम छूट
गया. मेरे पास भीख मांगने के सिवा कोई चारा नहीं था.
उस की बातें सुनकर शेखर का दिल पसीज गया.
एक पल अनिता को घर ले जाने का ख्याल आया. लेकिन उस की बीमारी और बीवी दोनों आड़े आ गये.
ज़ब कोई रास्ता नहीं बचा तो शेखर ने उसे कलकत्ता लौट जाने का मशवरा दिया.
उस पर अनिता ने जवाब दिया.
" क्या मुंह लेकर जाऊ? मुझे नर्क का रास्ता दिखाकर अपने घर का दरवाजा बंद कर दिया.
" बस मेरे बच्चे का कोई प्रबंध हो जाये तो मैं मौत की नींद सो जाऊ. वैसे भी मेरी जिंदगी का कोई भरोसा नहीं. "
" ऐसा मत सोचो. भगवान सब का हैं. कुछ न कुछ रास्ता निकल आयेगा. "
" भगवान को भला गरीबों की कौन सी चिंता हैं? "
" एक रास्ता हैं. तुम अस्पताल में भर्ती हो जाओ. ऐसी कई जगह हैं जहाँ इस का इलाज होता हैं. मैं कई लोगों को पहचानता हूं.
तुम कल मुझे इस जगह मिलो मैं तुम्हे ले चलूंगा. "
" बाबूजी! आप का यह एहसान कभी नहीं भूलूंगी. "
" उस में एहसान की कोई बात नहीं हैं. यह तो इंसानियत का तकाजा हैं. "
इस के बाद दोनो होटल से बाहर आये.
अनिता ने भावुक होकर बिदा किया.
दूसरे दिन वादे के मुताबिक शेखर चर्च गेट पहुंचा.
उस जगह लोगों की भीड़ लगी हुई थी.
यह देखकर उसे कोई संशय हुआ.
वह भीड़ को चिरकर भीतर दाखिल हुआ.
अनिता वाकई में मौत की नींद सो गई थी. और उस का बच्चा बगल में चैन सोया हुआ था.
पुलिस अब तक पहुंची नहीं थी. शेखर बिना कुछ सोचे उसे उठाकर टेक्सी में लेकर अपने घर पहुंच गया.