डेली मेड saurabh dixit manas द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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डेली मेड

दिल्ली जैसे बड़े शहरों की चमक धमक के पीछे भी एक ऐसी दुनिया है जिसे अभी भी बहुत से लोग अनजान हैं। यह एक लघु कथा सच्ची घटना पर आधारित है जो सन 2006 के आस पास हुई थी। हो सकता है बहुत से लोग इस कहानी के पीछे की दुनिया को जानते भी हों।

ये कहानी कैसी लगी आप सब पाठक कॉमेंट करके जरूर बताइएगा क्योंकि आप लोगों की प्रतिक्रिया हमें आगे लिखने को प्रेरित करती है।

टिंग टोंग !दरवाजे की घण्टी बजी, रीमा ने दरवाजा खोला क्योंकि वो किटी पार्टी के दिन सभी नौकरों को छुट्टी दे देती है।

अरे श्यामू तू आ गया, चल देख, मेरे कमरे की लाइट क्यों नहीं जल रही। सविता को छोड़कर सभी औरतें रीमा को बड़े उत्साह से देख रही थीं। श्यामू भी रीमा के पीछे पीछे कमरे में चला गया।लगभग 30 मिनट बाद रीमा और श्यामू कमरे से बाहर निकले। बाहर आते ही मिसेज राव ने सविता को कहा ये है रीमा का डेलीमेड.....फिर अचानक रीमा श्यामू को डॉटने लगी, चल भाग यहां से ज्यादा दिमाग खराब हो गया है तेरा। दोबारा यहां दिखा तो हसबैन्ड को बोलकर जेल भिजवा दूगीं। साला आज मज़ा नहीं आया.… डरे सहमे श्यामू के घर से बाहर निकलते ही रीमा ने कहा।

तो क्या हुआ ? कल परसों बहला-फुसलाकर फिर बुला लेना और अपना काम चला लेना, नहीं तो और भी तो हैं फेरी वाले डेलीमेड...ये नहीं तो दूसरा सही...मिसेज राव ने कहा और एक बार फिर सारा हाल हँसी ठहाकों से गूँजने लगा।

सविता जी तो कुछ बोल ही नहीं रही हैं, क्या बात है सविता जी, मिया जी की याद आ रही है ? शीला जी ने फिर से कहा।क्या करें इनके पतिदेव 2-4 दिन के लिये आते हैं फिर महिना भर के लिये टूर पर, तो बिचारी क्या करे ? मिसेज टंडन ने सविता जी को छेड़ते हुये अपना पत्ता फेका और बोलीं। सभी के चेहरों पर एक अजब सी मुस्कान बिखर गयी।

तो इसमें क्या दिक्कत है ? अपना डेली मेड है ना, उससे काम क्यों नहीं चलाती ? मिसेज राखी ने कहा। ये डेलीमेड क्या है ? सविताजी ने फिर अपना पत्ता फेंकते हुए पूछा।

ये लो दिल्ली की हाईक्लास सोसाइटी वाली, पुसिल अधिकारी की बीवी, सविता को डेलीमेड नहीं पता... हा हा हा ... मिसेज टंडन जोर से हँसी। सविता सभी का चेहरा देखने लगी जिसे दूसरे शहर से दिल्ली में शिफ्ट हुये बामुश्किल एक महिना ही हुआ था।

देख सविता हम ठहरी दिल्ली वाली हाईक्लास लेडीज शिखा बोली। हमारे पास इतना पैसा है कि इसे कहाँ खर्च करें समझ में भी नहीं आता। सभी के पति या तो बाहर रहते है या तो कभी कभी आ जाते हैं मन बहलाने। उनको तो पैसा कमाने से ही फुर्सत नहीं। पर हमारी पैसे के अलावा भी तो कोई शारीरिक जरूरत है, उसका क्या ? वो लोग तो मजे़ करते रहते हैं । कोई अपनी सेक्रेटरी से तो कोई पेड वाली से अपनी जरूरतें पूरी करते रहते हैं और हम साला यहां पत्ते हिला रहे हैं.......सारा हॉल एक बार फिर हंसी ठहाकों से गूंजने लगा

सौरभ दीक्षित ”मानस“