"उन्नीस बरस की ज़िन्दगी --- घुप्प अँधेरे का उजाला "
[नीलम कुलश्रेष्ठ ]
ईरान की रेहाना ज़ब्बारी !मैं तुम्हें भूल नहीं पा रही, कभी भूल पाऊँगी भी नहीं। तुम्हारी याद का ज़ख़्म और भी गहरा हो गया है। सारी दुनियाँ इस सन 2023 का विश्व महिला दिवस मना रही है और ईरान में स्कूल कॉलेजेज़ की अनगिनत लड़कियां एसिड फेंककर जलाई जा रहीं हैं। तब मैं तुम्हें कहाँ जानती थी ? इतने बड़े पृथ्वी के भूखंड के एक कोने में मैं और दक्षिणी पश्चिमी एशिया के देश ईरान के किसी गली के मध्यमवर्गीय घर में तुम --कहीं कोई पहचान होने की बात भी नहीं उठ सकती थी। देखो न अपने छब्बीसवें बरस में 25 अक्टूबर सन 2014 को तुम्हें करज जेल में फांसी दे दी गई थी. मैं क्या दुनियां के बहुत से लोग इस ख़ौफ़नाक ख़बर से रूबरू हो तुम्हें पहचानने लगे थे।
तुमने जो जेल से अपनी माँ शोले पकरवन को पत्र लिखा था --वह करोड़ों ज़ेरॉक्स की शक्ल में सारी दुनियाँ में बिखर गया था। उसे अपने देश के अख़बार में पढ़कर मेरी भी रूह किर्च किर्च हुई थी और इस रूह में वह हमेशा के लिए दफ़न हो गया था। समय समय पर वह एक ज़ख़्म बन कराहता रहता, मेरी रूह चीत्कार कर उठती। जानती हो क्यों ? दुनियां की सारी सरकारें, सत्ता एक जैसी हैं, अपनी अस्मत के लिए या अस्तित्व के लिये न्याय मांगती लड़की को कुचलती हुई, मिटाती हुई।
एक मामले में मेरा देश तुम्हारे ईरान से अलग है। दिखाने के लिए आदर्शवादिता का मुखौटा पहने मेरे मेरे देश में स्त्री अधिकार के कानून एक से एक बढ़ चढ़कर हैं लेकिन उनको लागू करने वाले पुरुष ही हैं। शिकायत करने वाली स्त्री को चक्रघिन्नी बनाकर रख देते हैं। हाँ, कभी कभी उसे न्याय मिल भी जाता है।
तुमने जेल से लिखी अपनी अंतिम चिठ्ठी में अपने शरीर के लिए वसीयत की थी .इतनी ख़ुद्दार तुम तब सोच कहाँ पाई होगी कि ये पत्र कम्पयूटर, लैपटॉप, मोबाइल के पंखों से उड़ता दुनियां के कोने कोने में पहुंच जाएगा उससे प्रेरित होंगी तुम्हारे देश की माहसा आमिनी, अरे नहीं उससे भी पहले वीवा मोवेहेड, उससे भी पहले --सॉरी, तुम्हारे देश की जांबाज़ महिलायों के बहुत से नाम याद नहीं हैं, न उनके बारे में पता जो स्त्री अस्तित्व के लिए सरकार या समाज से भिड़तीं रहीं थीं या जेल गईं थीं या मर गईं थीं ।
मेरी तो ये सोचकर रूह काँप जाती है कि जब रजाई शहर की ऐसी कड़क जेल जिसमें ईरान में सिर्फ़, पत्रकार, राजनीतिक या मीडिया के लोग [मतलब जो व्यवस्था के लिए बेहद ख़तरनाक हों ] कैद किये जातें हैं, उसमें तुम्हें सिर्फ़ उन्नीस बरस की कमनीय उम्र में कैद करके रक्खा था तब भी तुम्हारा पत्र सरहदें पार करता कहाँ से कहाँ पहुँच गया था । तुम मृत हो तो क्या ?होगी तो तुम कहीं इस ब्रह्माण्ड के किसी दूर दराज़ के कोने में ही. मैं मन ही मन तुम्हें सम्बोधित कर रहीं हूँ, तुम्हारे देश की ऐसी दुखद घटनाओं को जोड़कर, उनमें कुछ अपनी कल्पना के रंग भर कर । मेरे मन की तड़प तुम तक पहुँच रही होगी ? नहीं भी पहुंच रही हो तो भी मैं इस तरह अपना दुःख हल्का करना चाह रहीं हूँ.
तुम्हारे फांसी पर लटकाये जाने के लगभग तीन बरस बाद यानी 27 दिसंबर 2017 को ईरान के तेहरान में एंगलेब [फ़ारसी में जिसका अर्थ इंकलाब है ] स्ट्रीट में क्रोधित भीड़ जमा थी.लोग नारे लगा लगा रहे थे शाह के खिलाफ़, सामंतशाही के ख़िलाफ़। उनकी माँग थी कि ईरान में प्रजातांत्रिक सरकार हो। तभी एक लड़की वीडा मोवेहेड ने अपने सफ़ेद स्कार्फ़ अर्थात अपने हिजाब को एक डंडी से बांधा और कूदकर मूर्ति के सामने बनी एलेक्ट्रिक पोस्ट पर चढ़ गई। उस डंडी को लहराया, सफेद स्कार्फ़ हवा में मुक्त लहराने लगा। वह ज़ोर से चीखी, "हमें देश में लोकतंत्र के साथ सन 1979 में हम पर लादे हिजाब को अनिवार्य रूप से पहनने के कानून से भी मुक्ति चाहिए ."
वहां उपस्थित भीड़ एकदम एक मिनट के लिये सकते की हालत में हैरान हो मौन रह गई, लगा हज़ारों की भीड़ में सुई भी गिरेगी तो आवाज़ सुन ली जाएगी। ऐसा लग रहा था उसके पीछे की मूर्ति भी दोनों हाथ फैलाये हिजाब से मुक्ति की मांग कर रही थी। कुछ क्षण बाद जब महिलाओं को ये बात समझ में आई तो वे ख़ुशी से चीख चीखकर ताली बजाकर समर्थन करने लगीं।अधिकतर पुरुष चुप थे लेकिन कुछ ताली बजाकर अपना समर्थन देने लगे।
भीड़ में खड़ा एक भारतीय छात्र जो पर्शियन संस्कृति पर शोध करने ईरान आया हुआ था, हॉस्टल के अपने ईरानी मित्र के साथ ये आंदोलन देखने चला आया था, वह अपने साथी के कान में फुसफुसा उठा, " हमारे यहां के शायर मजाज़ लखनवी ने गीत लिखा था कि 'अपने आँचल को तू परचम बना लेती तो अच्छा था', मैं तो उस गीत को सामने लाइव पहली बार देख रहा हूँ। "
उसका साथी फुसफुसाया, "तुम्हारे भारत में भी तो स्त्रियां घूँघट डालतीं हैं। "
"अब सब नहीं, धीरे धीरे वह भी ख़त्म होता जा रहा है। सरकार ने इसे कम्पलसरी थोड़े ही किया हुआ है। "
ज़ाहिर है वीडा को ये कानून तोड़ने के कारण मॉरेलिटी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। वीडा के बाद तो जैसे ऐसी मांग करती लड़कियों की फ़ौज खड़ी हो गई थी। ये विद्रोही लड़कियां जब सड़क से गुज़रतीं तो लोग आपस में इशारा कर मुस्कराते, फुसफुसाते, "देखो 'गर्ल्स ऑफ़ एंगलेब स्ट्रीट 'जा रहीं हैं। "
कोई ज़ोर से फब्ती कसता, "'गर्ल्स ऑफ़ रिवोल्यूशनरी स्ट्रीट' व्हेयर आर यू गोइंग ?"
दूसरा लड़की की आवाज़ निकालकर नज़ाकत से बोलता, "वी आर गोइंग डाइरेक्टली टु प्रिज़न। "
तीसरा सीने पर हाथ मारता हँसता, " हाय !हमें भी साथ ले चलो। तुम्हारे साथ के लिए जेल में भी रह लेंगे। "समवेत ठाहके को अनदेखा कर लड़कियां अपना हिजाब हवा में लहरातीं निकल जातीं।
इसके बाद तो अन्य शहरों मशहाद, इस्फ़हान व शीराज़ में जैसे आंदोलन आग की तरह फ़ैलने लगा। अपने सिर का हिजाब या स्कार्फ़ हवा में उड़ाकर लड़कियां गिरफ़्तारीं देने लगी। वहां के अखबार, मीडिया सब इस आंदोलन की ख़बरों से भरे रहते थे। लड़कियों के ट्विटर व फ़ेसबुक अकाउंट्स हिजाब लहराते फोटोज़ से भर गये थे ।
तुम्हें शायद ये बात पता न हो कि ये विद्रोह का बवंडर था सादाम हुसैन के उस कानून के विरुद्ध जो उन्होंने स्त्रियों पर सन 1979 से लाद दिया था। मार्शल सादाम हुसैन ने सं 1979 में इस्लामिक रिपब्लिक का प्रधान मंत्री बनते ही अनिवार्य हिजाब कानून बना दिया था। मुझे आशा है, सारी दुनियां को आशा है जिस तरह सदाम हुसैन का ईरान से सफ़ाया हुआ था एक दिन ये कानून भी हुजूम के इस बवंडर की बारूद से उड़ा दिया जाएगा --लेकिन चिंता है वह दिन कब आएगा ? उनके शासन के दस साल बाद आये अली ख़ुमैनी, देश के प्रेसीडेंट इब्राहिम रईसी भी कठमुल्लाओं की तरह स्त्रियों को हिजाब में ही कैद देखना चाहते हैं, जिससे उन्हें उनकी औकात याद रहे।
लेकिन सुनो ये बात तुम्हें बताना ज़रूरी है हालाँकि मेरी आँखें आँसुओं से भरी हुईं हैं - इस बरस माहसा आमिनी, जिसे प्यार से सब ज़ीना बुलाते थे, के साथ जो हुआ वह भी तुम्हारे पत्र की तरह हवाओं में फ़िज़ाओं में उड़ता हुआ सारे जहां पर छा गया है या कहना चाहिये ये जिन नन्ही लड़कियों ने वह पत्र पढ़ा होगा, गुना होगा, वे तुमसे कितनी प्रेरित हुई होंगी की सही तरह जीने का अन्दाज़ क्या है ?उनमें से माहसा आमिनी भी एक होगी जिसने युवा होने पर अपनी अम्मीजान से तुम्हारे बारे में, तुम्हारे पत्र के बारे में सुना होगा - स्त्री स्वतंत्रता की वेदी पर रक्खा एक नन्हा दिया। वह अपने माता पिता के साथ राजधनी घूमने आई थी लेकिन हिजाब कानून न मानने के कारण पुलिस की मॉरेलिटी पुलिस जो हिजाब कानून को न मानने वालियों पर नज़र रखती है, द्वारा जेल में डाल दी गई।
---और आमिनी पर जेल में इतने अत्याचार किये, उसे मारा पीटा कि वह पहले कोमा में चली गई, फिर मर गई ---जानती हो इस प्यारी सी युवा लड़की ने २० सितंबर सन 2000 को जन्म लिया था ओर 16 सितंबर सन 2022 में जेल में मार दी गई --सिर्फ 22 वर्ष की नाज़ुक मासूम सी उम्र में.आश्चर्य ये है कि तुम कैसी विकट जिजीविषा से उन्नीसवें साल में कैद होकर रजाई शहर की जेल में अलग अलग तरह के ज़ुल्मों को झेलती छब्बीसवें वर्ष तक कैसे जी पाईं थीं, जब तक तुम्हें फांसी नहीं लगा दी गई ?
आमिनी की कब्र पर लिखा गया --' ज़ीना डीयर !तुम मरोगी नहीं -तुम्हारा नाम एक प्रतीक बनकर रहेगा ."
तुम सोच रही होगी कि हिजाब पहनने के विरुद्ध ये आंदोलन व तुम्हारा ख़ुद ही न्याय जुटा लेने वाला कदम या हमारे देश में जो रात में खेतों में, सड़क पर, बनती हुई बिल्डिंग्स में या पुराने खंडहरों में विवस्त्र लड़कियों के मृत या अर्धमृत शरीर मिल रहे हैं या गाँवों में स्त्री को विवस्त्र कर गधे पर बिठाकर घुमाने की घटनाएं अलग बातें हैं। --ज़रा ग़ौर से सोचो ये अलग बातें कहाँ हैं ?है तो पाशविकता चाहे शरीर पर की गई हो या सिर को ज़बरदस्ती कपड़े में कैद करने का तालिबानी फ़रमान हो। माहसा आमिनी की मौत ने जैसे इस आन्दोलन में आग लगाकर रख दी है.
तुम ये जानकर हंस पड़ोगी कि माहसा आमिनी के शहीद बरस के फ़रवरी माह में हमारे मुल्क़ के कर्नाटक प्रदेश की मुस्कान ख़ान नारे लगाकर उल्टी दिशा में चलकर हिजाब में अपने को कैद रखना चाहती है। कठमुल्लाओं की क्या हमारे यहां कमी है ?इन्हीं के कहने से उसके समर्थन में कितनी स्त्रियां व लड़कियाँ हिजाब पहने सड़क पर निकल आईं हैं । हैरानी की बात ये है कि ये हिजाब पहनकर स्कूल कॉलेज आना चाहतीं हैं. गेट पर इन्हें रोक दिया जाता है तो बवंडर मचातीं हैं।
---लेकिन देखो-- देखो -- तुम्हारे ईरान में सन 2022 में कैसी आंधी आई है हिजाब के विरोध में आंदोलन में उस रिवोल्यूशनरी स्ट्रीट पर जुटी भीड़ से भी कई गुना पुरुष आज ईरान में स्त्रियों के हिजाब कानून को हटाने के आंदोलन को समर्थन दे रहे हैं। वे मॉरेलिटी पुलिस के डंडे खा रहे हैं, गोली खा रहे हैं लेकिन पीछे नहीं हट रहे। जबकि 27 दिसंबर 2017 को वीडा मोवेहेड के समर्थन में कुछ पुरुष ही बमुश्किल ताली बजा पाए थे
मोबाइल पर, लैपटॉप पर या टीवी में ये इंकलाबी दृश्य आम हो गये हैं-----अनाहिता -जिसे तुम्हारा देश जल व संतान पैदा करने की देवी मानता है -अनाहिता नाम की लड़की चौराहे पर अपनी बाल काटकर फेंक रही है .
-------उसके पास ही ये तीन लड़किया अपने नाम सार्थक कर रहीं हैं - दरिया [समुद्र ], अवा -[आवाज़] अपने स्कार्फ़ जलाकर अज़ादेह [आज़ादी ] मांग रहीं हैं। ----------फ़राह जिसका मतलब ही ख़ुशी है, वह ज़ोर ज़ोर से ताली बजा रही है, बीच बीच में सपना सिर धुन लेती है । लैला, जिसे रात की बेटी कहा जाता है, वह सच ही रात में एरियाना, नुशीन, सारा के साथ हिजाब को डंडी मे बाँध हवा में लहराती सड़क पर घूम रहीं हैं। अब उस जुर्म-ए -संगीन को लड़कियां खुले आम कर रहीं हैं . लड़कियों को न गोली की परवाह है, न कोड़ों की।
तुम्हारे देश के ये फोटोज़ व वीडियोज़ दिल दहलातें हैं कि पुलिस लोगों को घेर घारकर गिरफ़्तार कर वैन में ठूंस कर ले जा रही है। बाकी बची भीड़ पर अंधाधुंध गोली चलाने लगतीत है । नीचे गिरने वालों में स्त्रियां ही नहीं पुरुष भी हैं। पहली बार जब ये वीडियो देखा तो मुझे लगा ये आंदोलन दम तोड़ देगा लेकिन कहाँ रुक पाया ? हर दिन लोग गिरफ़्तारी दे रहे हैं, मर रहें हैं .मरने वालों के सरकार आंकड़े बता तो रही हैं लेकिन मैं तुम्हें नहीं बताती क्योंकि किसे पता है दमन के अंधड़ में कितने लोग मर रहे हैं, कितनों को फांसी दी गई।
इस हैवानियत को देख ऑस्कर पुरस्कार प्राप्त फ़िल्म 'द सेल्समैन' में काम करने वाली अड़तीस वर्ष उम्र की प्रसिद्द अभिनेत्री तरानेह अलीदुस्ती ने सभी देशों को झकझोरते हुए सोशल मीडिया में लिखा था, "आपकी चुप्पी का मतलब है अत्याचार व अत्याचारी का समर्थन। हर अंतर्राष्ट्रीय संगठन जो इस रक्तपात पर कार्यवाही नहीं कर रहा है वह मानवता के लिए कलंक है। "
और सुनो 18 दिसंबर 2022 को तरानेह अलीदुस्ती को ये आरोप लगाकर गिरफ्तार कर लिया है कि विरोधियों के नारे के साथ उन्होंने अपनी फ़ोटो पोस्ट कर दी है और हिजाब विरोधी प्रदर्शन के बारे में अफ़वाह उड़ा रही हैं. तुम भी शायद औरों की तरह इनकी फ़ैन रही होगी?
अच्छी ख़बर ये है तरानेह अलीदुस्ती की गिरफ़्तारी की बावजूद भी हिजाब के विरोध में फ़ुटबॉलर, तीरन्दाज़, पर्वतारोही भी मैदान में उतर आये हैं। तुम्हारे देश के प्रसिद्ध फ़ुटबॉलर अली देई के परिवार को ईरान से बाहर जाने की इजाज़त नहीं है क्योंकि वे तो हमेशा हिजाब का विरोध करते रहे हैं।
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नीलम कुलश्रेष्ठ
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