"उन्नीस बरस की ज़िन्दगी --- घुप्प अँधेरे का उजाला "
[नीलम कुलश्रेष्ठ ]
रेहाना ज़ब्बारी ! इन समाचारों के बीच घूम फिरकर मैं तुम तक फिर अटक गईं हूँ। अरे !तुम्हारी उम्र ही क्या थी उन्नीस बरस जब तुम्हें जेल में डाला गया था। ? मैं कल्पना ही कर सकतीं हूँ की जब तुम दस बारह वर्ष की हुई होगी तभी इस कम उम्र से अपने घर को इस तरह से सुंदरता से सजाती होगी कि तुम्हारे अब्बा हुज़ूर फेरेदून ज़ब्बारी दंग रह जाते होंगे। उन्होंने ही तुम्हें इंटीरियर डेकोरेशन के डिग्री कोर्स में दाखिल करवाया होगा। शायद उनके भी अब्बा हुज़ूर, मोहल्ले के बुज़र्गों की भौंहें तनी हों कि रेहाना लौंडों के साथ पढ़ने जायेगी। अब्बा हुज़ूर के विश्वास पर तुम्हें अपने हुनूर से मुहर लगा दी थी। अपने कोर्स के दूसरे वर्ष में ही पर तुम फ़्री लांसर की तरह काम करने लगीं थीं। न कोई अखबारों में विज्ञापन, न शोरबाज़ी तुम्हारी तारीफ़ एक दूसरे सुनकर लोग तुम्हें अपने घर के इंटीरियर डेकोरेशन का काम देने लगे थे। तुम्हारे हुनूर की ख़ासियत ये थी कि तुम पहले किसी क्लाइंट की हैसियत के अनुसार, कमरे के आकार के अनुसार उसमें हस्तकला की चीज़ें ख़ुद बाज़ार जाकर पसंद करतीं थीं। तुम्हारे ऑर्डर पर पर्शियन कालीन के कारीगर तुम्हारे दिये डिज़ाइन के अनुसार उसकी डिज़ाइन बनाते। इन सब चीज़ों से मिलते जुलते रंग तुम दीवारों के लिए चुनतीं। कभी एक ही रंग सभी दीवारों पर या चारों दीवारों पर अलग अलग रंग और इन दीवारों पर लगे कलात्मक आईने। इन आइनों से कमरा बहुत बड़ा दिखाई देता।
तुम अपनी सफ़लता पर मुस्कराती अपनी आय से घर भर को सुंदर कपड़े उपहार में देतीं, ख़ुद ब्रैंडेड कपड़े पहनने लगीं थीं । अपनी दोस्तों को पार्टी देती रहतीं। यानी तुम्हें उन्नीस वर्ष तक ख़ूब प्यार दुलार, भरपूर सफ़लता भरा जीवन जीया था।
ख़ुफ़िया विभाग के एक अधिकारी मुर्तज़ा अब्दुल अली सरबंदी अपने ऑफ़िस को रिनोवेट करवाना चाहते थे। उन्होंने तुम्हें तुम्हारे चचरे भाई से ख़बर भिजवाई थी कि तुम नीलोफ़र कैफ़े में उनसे मिलो। जब तुम उनसे मिलने निकली होगी तो ख़ुशी से तुम्हारे पैर उड़े जा रहे होंगे, इतने बड़े अधिकारी तक तुम्हारी तारीफ़ पहुँच गई हैं। गर्व से इठलाती कोने की टेबल पर उनका इंज़ार करती रही होगी। वे जब कैफ़े में आये होंगे तो तुम उनकी वर्दी से उन्हें पहचान कर, अपना हिजाब सिर पर ठीक कर, अपने एक नाज़ुक हाथ को उठाकर, गर्दन झुकाकर `अस्सलाम अलैकुम ."करती कुर्सी से उठ गई होगी।
सरबंदी ने सिर हिलाकर तुम्हारा अभिवादन स्वीकार किया होगा। उन्होंने सोचा नहीं होगा कि इतनी कम उम्र की लड़की कोई इंटीरियर डेकोरेटर हो सकती है। उन्होंने अपनी बेध देती आँखों से तुम्हें ऊपर से नीचे तक घूरा होगा और बोले होंगे, "तशरीफ़ रखिये। "
वे ऐसे तो अपने ऑफ़िस नक्शा साथ लाये होंगे जिससे वे अपनी पसंद बता दें कि वे अपना ऑफ़िस किस तरह डेकोरेट करवाना चाहते हैं जिससे जब वे ऑफिस में न हों तो उनका कोई मातहत काम करवाता रहे। लेकिन तुम्हारी नम्र सी ख़ूबसूरती देखकर इरादा बदल दिया होगा, "आप जुम्मे को मेरे ऑफ़िस आ जाइये। तब बता दूंगा कि मुझे कैसा बदलाव चाहिए। उस दिन कहीं मशरूफ़ तो नहीं हैं ? "
तुम कुछ सोचते हुए बोली होगी, " उस दिन मेरा क्लास है बट आई विल मैनेज। " तुम इतने रसूख वाले कस्टमर को नाराज़ नहीं करना चाहती होगी।
जुम्मे को तुम उनके ऑफ़िस की शान-ओ शौकत देखकर समझ गई होगी कि साहब मुर्गों को फँसाकर ख़ूब रकम ऐंठते होंगे। तुम अचरज से पूछने लगी होगी, "आपका ऑफ़िस तो वैसे ही इतना शानदार है। "
"थैंक यू, ऑफ़िस हो या घर एक सा माहौल, एक से लोग देखकर दिल ऊब जाता है।हमारी बीवी ख़ासी ख़ूबसूरत है लेकिन दिल को हमेशा कुछ नया ही चाहिए होता है। "कहकर एक भद्दी हंसी हंस गए होंगे।
उनकी आँखों में चमकते बाज को देखकर तुम सहम गई होगी। वो अकड़ते से उठे होंगे, अपने मातहत को चाय लेने भेज दिया होगा और तुमसे बोले होंगे "चलिए, आपको अपने ऑफ़िस का छोटा कमरा दिखाता हूँ। आज हमारी स्टेनो छुट्टी पर है । "
इस बात से तुम और सहमी सी उनके पीछे चलती गई होगी।
उस छोटे कमरे की पीछे की दीवार के पास जाकर उन्होंने कहा होगा, "इस दीवार पर मुझे दौड़ते हुए घोड़ों की तस्वीर चाहिए। बाज़ार से पेंटिंग ख़रीदना, उसके मुताबिक़ दीवार पर रंग कैसा हो ये बताना आपका काम है। आप फ़्री लांसिंग के साथ कुछ और भी ख़ास काम करतीं हैं ?"
उस ज़हरीली अश्लील मुस्कराहट से तुम्हारा रोम रोम झनझना गया होगा। इससे पहले तुम कोई कड़वी सी बात कहो उन्होंने तुम्हें अपने मज़बूत बाँहों में घेर लिया होगा व तुम्हारे होठों को वे गिरफ़्त में ले पाते इससे पहले तुम्हें छूटकर भागने की कोशिश की होगी। तुम दोबारा गिरफ़्त में आ गई होगी, फिर छूटी होगी, शायद तुम्हें उनके हाथ को खूब ज़ोर से काटने का मौका मिल गया होगा।वो बिलबिलाते अपना वो हाथ झटकारने में लगे होंगे और तुम्हें मौका मिल गया होगा पर्स में रक्खे अपने छोटे चाकू को निकालने का। उसके बाद जो हुआ वो सारी दुनियां जानती है.तुम बित्ते भर की छोटी लड़की ने उस मज़बूत काठी वाले अफ़सर को वो छोटा चाकू गोद गोद कर मार डाला होगा।फिर सकते की हालत में बेइंतिहा दर्द से तड़पते दम तोड़ते सरबंदी व फ़र्श पर बहते ख़ून को देखकर डरती थर थर काँपती रही होगी। इससे पहले कि तुम वहाँ से भाग जातीं मातहत चाय लेकर आ गया होगा।
तुम लाख कहती रह गईं अपने बचाव के लिए तुम्हें सरबंदी को मारना पड़ा लेकिन सुनता कौन ?एक ख़वातून की इतनी ज़ुर्रत कि उसने बिस्तर बनने से इंकार कर दिया ?
तुम्हारी फांसी रोकने के लिये ईरान में ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गुहार लगाईं होगी कि केस का ट्रायल दोबारा हो लेकिन जो सरकार एक कपड़े के टुकड़े हिजाब को लेकर इतना अड़ी हुई है, वह कैसे अपने आला अधिकारी की मौत का बदला नहीं लेती ?
मैं गूगल पर तुम्हें ढूढ़तीं हूँ रेहाना ज़ब्बारी !पता है क्या लिखा है -`ये रेहाना की सोची समझी साज़िश थी। उसने मान लिया है कि हत्या से दो दिन पहले ही उसने ये चाकू ख़रीदा था। ` तुम्हारी बहिन के जीवन को दोज़ख में ढकेलने की धमकी दी गई थी कि तुम अपना अपराध कबूल कर लो कि ये सोची समझी साज़िश थी। इसलिए ही तुमने दो दिन पहले ही ये चाकू को ख़रीदा था।पता नहीं तुमने ये झूठ बात क़ुबूल की थी भी या नहीं या ये ईरान सरकार का प्रोपेगंडा था ?
तुम अपने पर्स में चाकू लेकर चलतीं थीं, ये इस बात को दर्शाता है कि मेरे देश ही नहीं दुनियां के किसी देश में भी औरत सुरक्षित नहीं है। मेरे देश में भी बहुत सी लड़कियां पैपर स्प्रे [काली मिर्च का पाऊडर ], छोटे चाकू, सुइयां लेकर चलतीं हैं। मैं अपने देश की एक और घटना बताऊँ? एक सैन्य प्रशिक्षण केन्द्र की डाइरेक्टर ने छेड़छाड़ के लिए अपने सीनियर की शिकायत कर दी। उसे मानव तस्करी के अपराध में जेल में बंद कर दिया था। तुमसे भी पहले मैं उसे खोज रही थी। जिस पर गूगल में इलज़ाम लिख दिया है कि वह झगड़ालू थी, अपने पड़ौसियों से झगड़ती रहती थी। हा---हा---हा--मेरी तरह तुम भी हंस रही होगी कि एक सैन्य प्रशिक्षण केन्द्र की डाइरेक्टर को इतनी फ़ुर्सत होती है कि वह अपने पड़ौसियों से लड़ने के लिए समय निकाले?
तुम्हें याद करते करते मैं अपना लैपटॉप खोल लेतीं हूँ, वह फ़ाइल खोलतीं हूँ जिसमें तुम्हारा अपनी माँ को लिखा पत्र सेव किया हुआ है। मैं स्क्रीन पर इसे देखते ही सोचने लगतीं हूँ तुम्हारी तरह वीडा मेनहेड, महसा आमिनी की तरह जांबाज़ लड़कियां बनें। सुनो, तुम्हारे देश का हिजाब आंदोलन एक प्रतीक है, स्त्री की सभी समस्यायों के विरोध का। हमारे देश के कोजीकोडे में कुछ लड़कियों ने तुम्हारे देश की लड़कियों के समर्थन में हिजाब को जलाया है। मेरे सहित दुनियाँ के बहुत से लोग इस आंदोलन को अपना समर्थन दे रहे हैं।
चलो हम प्रार्थना करें कि तुम्हारे देश की तरह हर देश में ऐसे ही उन पुरुषों की संख्या बढ़ती जाए जो स्त्रियों के अधिकारों के लिए उनके साथ लाठी, गोली खाने को तैयार हों --फिर कोई रेहाना फांसी पर न चढ़ाई जाए, न ही कोई आमिनी जेल में मरे।
अनेक बार पढ़े इस पत्र को फिर हिपनोटाईज़ होकर पढ़ने लगतीं हूँ।
मेरी प्रिय अम्मीजान,
आज मुझे पता चला कि मुझे किस्सास (ईरानी विधि व्यवस्था में प्रतिकार का कानून) का सामना करना पड़ेगा। मुझे यह जानकर बहुत बुरा लग रहा है कि आखिर तुम क्यों नहीं अपने आपको यह समझा पा रही हो कि मैं अपनी जिंदगी के आखिरी पन्ने तक पहुंच चुकी हूं। तुम जानती हो कि तुम्हारी उदासी मुझे कितना शर्मिंदा करती है? तुम क्यों नहीं मुझे तुम्हारे और पापा के हाथों को चूमने का एक मौका देती हो?
अम्मीजान ! इस दुनियाँ ने मुझे 19 साल जीने का मौका दिया। उस मनहूस रात को मेरी हत्या हो जानी चाहिए थी। मेरा शव शहर के किसी कोने में फेंक दिया गया होता और फिर पुलिस तुम्हें मेरे शव को पहचानने के लिए लाती और तुम्हें पता चलता कि हत्या से पहले मेरा रेप भी हुआ था। मेरा हत्यारा कभी भी पकड़ में नहीं आता क्योंकि हमारे पास उसके जैसी ना ही दौलत है, ना ही ताकत । उसके बाद तुम कुछ साल इसी पीड़ा और शर्मिंदगी में गुजार लेती और फिर इसी पीड़ा में सूख सूखकर तुम मर भी जाती। लेकिन, किसी श्राप की वजह से ऐसा नहीं हुआ। मेरा शव तब फेंका नहीं गया। लेकिन इविन जेल के सिंगल वॉर्ड स्थित कब्र और अब कब्रनुमा शहर की जेल में यही हो रहा है। इसे ही मेरी किस्मत समझो और इसका दोष किसी पर मत मढ़ो। तुम बहुत अच्छी तरह जानती हो कि मृत्यु जीवन का अंत नहीं होती।
तुमने ही कहा था कि आदमी को मरते दम तक अपने मूल्यों की रक्षा करनी चाहिए। अम्मीजान ! जब मुझे एक हत्यारिन के रूप में कोर्ट में पेश किया गया तब भी मैंने एक आंसू नहीं बहाया। मैंने अपनी जिंदगी की भीख नहीं मांगी। मैं चिल्लाना चाहती थी लेकिन ऐसा नहीं किया क्योंकि मुझे कानून पर पूरा भरोसा था।'
अम्मीजान ! तुम जानती हो कि मैंने कभी एक मच्छर भी नहीं मारा। मैं कॉकरोच को मारने की जगह उसकी मूंछ पकड़कर उसे बाहर फेंक आया करती थी। लेकिन अब मुझे सोच-समझकर हत्या किए जाने का अपराधी बताया जा रहा है। वे लोग कितने आशावादी हैं जिन्होंने जजों से न्याय की उम्मीद की थी! तुम जो सुन रही हो कृपया उसके लिए मत रोओ। जेल में पहले ही दिन से मुझे पुलिस ऑफ़िस में एक बुज़ुर्ग अविवाहित एजेंट नेमेरे स्टाइलिश नाखून के लिए मुझे मारा पीटा था। मुझे पता है कि अभी सुंदरता की कद्र नहीं है। चेहरे की सुंदरता, विचारों और आरज़ुओं की सुंदरता, सुंदर लिखावट, आंखों और नज़रिए की सुंदरता और यहां तक कि मीठी आवाज की सुंदरता।
मेरी प्रिय अम्मीजान ! मेरी विचारधारा बदल गई है लेकिन तुम इसकी ज़िम्मेदार नहीं हो। मेरे शब्दों का अंत नहीं और मैंने किसी को सब कुछ लिखकर दे दिया है ताकि अगर तुम्हारी जानकारी के बिना और तुम्हारी गैर-मौजूदगी में मुझे फांसी दे दी जाए, तो यह तुम्हें दे दिया जाए। मैंने अपनी विरासत के तौर पर तुम्हारे लिए कई हस्तलिखित दस्तावेज छोड़ रखे हैं।
मैं अपनी मौत से पहले तुमसे कुछ कहना चाहती हूं अम्मीजान ! मैं मिट्टी के अंदर सड़ना नहीं चाहती। मैं अपनी आंखों और जवान दिल को मिट्टी बनने देना नहीं चाहती। इसलिए, प्रार्थना करती हूं कि फांसी के बाद जल्द से जल्द मेरा दिल, मेरी किडनी, मेरी आंखें, हड्डियां और वह सब कुछ जिसका ट्रांसप्लांट हो सकता है, उसे मेरे शरीर से निकाल लिया जाए और इन्हें जरूरतमंद व्यक्ति को गिफ्ट के रूप में दे दिया जाए। मैं नहीं चाहती कि जिसे मेरे अंग दिए जाएं उसे मेरा नाम बताया जाए और वह मुझ पर तरस खाये व मेरे लिए प्रार्थना करे।`
तुम्हारा पत्र समाप्त हो गया है लेकिन एक एक शब्द हवाओं में --ब्रह्माण्ड में गूँज रहा है . मुझे पूरा विश्वास है कि तुम्हारे जेल में लिखे, किसी को सुरक्षित सौंपे दस्तावेज कभी न कभी कोई और पढ़ेगा, उन्हें प्रकाशित करवायेगा, तुम्हारी बात पूरी दुनियां तक पहुंचाएगा [या मुझे मालुम न हो वे प्रकाशित भी हो गये हों ]। फिलहाल तो मैं तुम्हारा पत्र पुन : प्रकाशित होने के लिये मेल कर रहीं हूँ, वो भी ऐसे में जबकि तुम्हारे देश में कितनी लड़कियां एसिड के फफोले से घायल अस्पतालों के बिस्तर पर बुरी तरह तड़प रहीं हैं .किसी लड़की के माँ बाप सड़क पर पड़ी तड़पती एसिड से घायल लड़की को अस्पताल पहुंचाने की ख़ातिर गाड़ी वालों से रुकने की गुहार लगाते रो रहे हैं, बिलख, तड़प रहे हैं।
मेरे मन में एक तड़प उठ रही है - क्यों नहीं कोई औरत को हिजाब में बंद रखने वाले विचारों को ओसमा बिन लादेन की तरह उन्हें बारूद से उड़ा देता।
--------------------------------------------------
नीलम कुलश्रेष्ठ
e-mail –kneeli@rediffmail.com