द वेक्सिन वॉर फिल्म रिव्यू Mahendra Sharma द्वारा फिल्म समीक्षा में हिंदी पीडीएफ

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द वेक्सिन वॉर फिल्म रिव्यू

कोरोना समय पर व्यक्तिगत और पारिवारिक स्वास्थ्य से जूझते हुए हमें यह जानने का अवसर नहीं मिला की कुछ लोग हमें जीवनदान देने के लिए खुद कितना कठोर परिश्रम और बलिदान दे रहे थे। ये बात उन वैज्ञानिकों की है जिन्होंने करोड़ों लोगों को बचाने के लिए दिन रात एक कर दिया और विश्व की सबसे असरकारक वेक्सिन बहुत ही कम समय में बना कर के कीर्तिमान स्थापित कर दिया।

वेक्सिन वॉर जैसी फिल्में सीनेमाघरों में प्रेक्षकों की उपस्थिति नहीं जुटा पातीं क्योंकि आज सिनेमा के प्रेक्षक को आंखें चका चौंध कर दे ऐसे स्पेशल इफेक्ट, हीरो की अतिशयोक्ति, नाचगाना और छिछोरापन अधिक पसंद है, इस स्पर्धा में वेक्सिन वॉर बिलकुल विपरीत दिशा में है, इस फिल्म में है तो सिर्फ सच्चाई, ईमानदारी और कठोर परिश्रम करने वाले वैज्ञानिक, भला इन्हें कौन देखने जाएगा सिनेमाघर।

डॉ बलराम भार्गव इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के डायरेक्टर और मेडिकल वैज्ञानिक हैं। उन्होंने कोवेक्सीन बनाने की प्रक्रिया , चुनौतियां और परिणाम पर एक किताब लिखी जिसका नाम है गोइंग वायरल। इस किताब में डॉ बलराम ने उन्हीं की देखरेख में बनी वेक्सिन के अनुभव लिखे हैं। इस किताब पर बनी है द वेक्सिन वॉर। यह फिल्म अब हॉटस्टार ओटीटी पर उपलब्ध है।

इस फिल्म में वेक्सिन बनाने की वैज्ञानिक प्रक्रिया को बहुत बारीकी और नज़दीकी से दिखाया गया है। किस तरह से कोरोना वायरस की पहले पहचान की गई, उसकी शक्तियों को समझा गया, उसे आइसोलेट करके उसे पहले चूहे पर टेस्ट किया गया और फिर उसे ठीक करने के लिए संभव दवाई का प्रयोग किया गया।

जब भारत में कोरोना का प्रवेश हुआ तब भारत के पास टेस्ट करने के लिए किट उपलब्ध नहीं थी, उस किट का संशोधन और निर्माण भी इतना सरल नहीं था। पर किट का निर्माण करना और फिर संचार पूरे देश में करवाना यह कार्य सरकार के प्रयत्नों से संभव हुआ। ईरान हमले में भारतीय लोगों को भारत लाना और वह भी कोरोना टेस्ट करवाके लाना यह भी एक खतरनाक और देश भक्ति पूर्ण कार्य कैसे पूर्ण हुआ वह इस फिल्म में देख सकते हैं।

सरकार का सहयोग और वैज्ञानिकों का दिन रात का परिश्रम वेक्सिन बनाने में लगा हुआ था और अंतर्राष्ट्रीय समूह भारत के इस आत्मनिर्भर प्रयास को निष्फल बनाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे थे। पर सरकार ने वैज्ञानिकों को प्रेस मीडिया से दूर रहकर केवल विज्ञान से इस जंग को जीतने के लिए सूचना दी थी।

फिल्म में मानवीय भावनाओं को उत्कृष्ठ तरीके से दर्शाया गया है, वेक्सिन बनाने की प्रक्रिया में 70 प्रतिशत महिला वैज्ञानिक जुड़ी थीं जिन्हें अपने घर भी जाने के लिए समय नहीं मिलता था, किसी के घर में मरीज थे तो कोई खुद काम करके बीमार हो रहीं थीं, पर किसी ने न हिम्मत हारी और न काम छोड़ा। एक बार तो वेक्सिन ट्रायल के लिए बंदरों को ढूंढना पड़ा और वैज्ञानिक यह काम भी कर के आए।

नाना पाटेकर को डॉ बलराम का किरदार दिया गया है जो एक निष्ठावान और प्रामाणिक व्यक्ति हैं, उन्हें केवल परिणाम पर ध्यान केंद्रित करने आता है, अन्य मानवीय भावनाओं को वे नकारते हैं, पल्लवी जोशी उनके साथ अन्य टीम में हैं और उन्हें डॉ बलराम से इसलिए परेशानी है क्योंकि वे कभी किसी को बधाई नहीं देते, न ही किसी की प्रशंसा करते हैं। राइमा सेन बड़े सालों के पश्चात फिल्मों में दिखीं, उनका किरदार एक नकारात्मक पत्रकार का है, जिसे उन्होंने बड़ी प्रमाणिकता से निभाया है।

विवेक रंजन अग्निहोत्री फिल्म के लेखक और निर्देशक हैं। द कश्मीर फाइल्स के निर्माण से उनको एक बहुत बड़ी पहचान और अभूतपूर्व सफलता मिली है। वह फिल्म भी सच्चाई को देश के सामने पहली बार लाई और वेक्सिन वॉर भी उसी कक्षा की फिल्म है।

इस प्रकार की फिल्में हमेशा पठान, जवान और टाइगर जैसी फिल्मों के सामने फीकी पढ़ जाति हैं क्योंकि यहां सच्चाई को नग्न स्वरूप में दिखाया जाता है और अन्य फिल्मों में मिर्च मसाले के साथ कहानी प्रस्तुत की जाती है। यह फिल्म मसाला फिल्म के चाहक बिलकुल न देखें, यह उन्हें फीकी लग सकती है।

ओटीटी का वरदान समझ लीजिए की हमें फिल्में अपने समय और सुविधा से देखने का अवसर प्राप्त होता है, तो अगर आप भी कोरोना काल के समय इस अद्भुत वेक्सिन बनने की प्रक्रिया , परिस्थिति और चुनौतियों को देखना चाहते हैं तो वेक्सिन वॉर अवश्य देखें, हॉटस्टार पर उपलब्ध है।

फिल्म का रिव्यू कैसा लगा, अवश्य अपनी बहुमूल्य टिप्पणी दें।

– महेंद्र शर्मा