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यात्रा (केरल) - 1

यात्रा-१( केरल)
कोच्चि में हैं। अच्छा खासा नाश्ता खाया। मुन्नार की ओर कार दौड़े जा रही है। ड्राइवर ने कहा ये "पेरियार" नदी है। पहले सुना था अब देख रहा हूँ। पानी नदी में कम है। कार एक ऊँचे झरने पर रूकी। वहाँ अन्नानास आदि फल मिल रहे हैं। पर्यटक फोटो लेने में तल्लीन हैं। रिमझिम बारिश थोड़ी देर हुयी फिर रूक गयी। कार आगे बढ़ी। दूसरा झरना दिखा। प्राकृतिक सौन्दर्य अपने चरम पर लग रहा है। सितंबर का महिना ऐसा ही होता है। कार ड्राइवर को एक फोन आया और उसने कार पीछे मोड़ी और कहा आयुर्वेदिक बगान छूट गया है। बगान में एक महिला ने पूरे बगीचे में घुमाया और अलग-अलग प्रकार के तीस से अधिक औषधीय पौधों से अवगत कराया। मैंने उनसे कहा स्वामी रामदेव ने आयुर्वेद का बहुत प्रचार किया है। उन्होंने कहा यहाँ उन्हें कोई नहीं जानता है। महिला अच्छी खासी हिन्दी और गुजराती जानती है। बोली," मेरे बच्चे सूरत,गुजरात में हैं"।
मुन्नार होटल पहुँच चुके हैं। मुन्नार
पुराना १९२४ की बाढ़ में ध्वस्त हो चुका था। फिर नया मुन्नार बसा। अंग्रेजों ने यहाँ चाय के बगीचे लगाये। चाय बगानों की छवि मन मोह लेती है।बगीचों में अधिकांश कामगर तमिलनाडु के हैं। १९४७ तक चाय कम्पनी में प्रशासक अंग्रेज ही थे। फिर टाटा ने इसे लिया। बाद में चाय कम्पनी में कामगरों,कर्मचारियों को लगभग ७५% शेयरस दे दिये गये। और टाटा इससे निकल गया।
मुन्नार(केरल) में सरकार ने यूकेलिप्टस( सफेदा) पर रोक लगायी है लेकिन पहले के विशाल जंगल इसके अभी भी मौजूद हैं। इसे अंग्रेजों ने आस्ट्रेलिया से लाकर लगाया था।
फूलों का बगीचा , फोटो पाइंट , कुंडाला बाँध,ईको पाइंट( अपनी ध्वनि की प्रतिध्वनि सुनायी देती है), एराविकुलम राष्ट्रीय उद्यान,जिसे राजामलाई वन्यजीव अभयारण्य के रूप में भी जाना जाता है आदि दर्शनीय स्थान हैं। अभयारण्य में "नीलगिरी तहर" यहाँ आसानी से देखे जा सकते हैं वैसे यह अब लुप्तप्राय प्रजाति बन चुकी है। जहाँ नाश्ता कर रहे थे, वहाँ अन्दर दुकान में आ गयी थी उस दिन एक। यह दक्षिण भारत की सबसे ऊँची चोटी अनामुडी के निकट है। कार ड्राइवर बोलता है यहाँ सुसाइड पाइंट भी है। अब इसका नाम बदल चुका है। वहाँ एक व्यक्ति बोला स्कैच बनाना है? मैंने कहा कितने में बनाते हो। वह बोला ३०० रुपये में। १५मिनट लगेंगे। मैंने कहा नहीं। फिर वह बोला," मैं जयपुर का रहने वाला हूँ।" मैंने पूछा क्या मोबाइल के जमाने में आपकी अच्छी आमदनी हो जाती है यहाँ? उत्तर हाँ में मिला। बोला ४-५ माह यहाँ रहता हूँ फिर जयपुर चला जाता हूँ।
मुन्नार में घूमते हुये मुझे काठगोदाम से भीमताल, भवाली, गरमपानी, अल्मोड़ा, रानीखेत, कौसानी,घर( चौखुटिया/ खजुरानी) आदि जगहों की यात्रा की स्मृति आ जाती है लेकिन यहाँ हिमालय नहीं है।

यात्रा-२(केरल)
यात्रा-२
मुन्नार से थेक्कडी को निकलते समय मुन्नार का विहंगम दृश्य फिर एकबार देखा। कार उतार पर थी। हरियाली चारों ओर बड़े-छोटे वृक्षों के साथ अपना लावण्यमय रूप दिखा रही थी।
थेक्कडी का क्षेत्र मसालों के लिए प्रसिद्ध है।थेक्कडी में हाथी पर बैठ सकते हैं जो मन्द-मन्द गति से घूमाता है। सिखाये हुये होते हैं। पहले के समय में हाथी पर बैठकर युद्ध लड़ा जाता था। अभी कुछ लोग केवल चढ़ने पर भयातुर थे। सवारी के बाद हाथी को लगभग सौ रुपये के फल खिलाते हैं। यह सब एक मोहक दृश्य लगता है।
सफारी जीप में साहसिक,रोमांचक यात्रा का प्रबन्ध भी है, ३० किलोमीटर का। (नाव से भी पेरियार अभयारण्य देख सकते हैं) इसमें तीन किलोमीटर का रास्ता रोंगटे खड़े कर देता है जो बहुत उबड़-खाबड़, भयंकर उतार भरा है। तीन किलोमीटर की यह दूरी जोखिम लिये होती है। जीप पलट भी सकती है या फंस भी सकती है। इसी राह पर एक दुकान भी है। जहाँ पर बन्दूक से निशाना लगा सकते हैं, गुब्बारों पर। जब ड्राइवर ने बोला अब अच्छी सड़क ही होगी पूरी, मन में चैन आ गया।---।
त्रिरुवनन्तपुरम को जाते समय
रास्ते में जटायु जी की भव्य मूर्ति दिखायी दी। वहाँ रोप वे( रज्जु मार्ग) से पहाड़ी पर गये। कहा जाता है रावण से लड़ते समय यहीं पर जटायु घायल होकर गिरे थे। उनका एक पंख कटा दिखाया गया है। भगवान राम के पदचिह्न भी हैं और उनकी मूर्ति भी मन्दिर में है। नाश्ते आदि का प्रबन्ध अच्छा है। मंबई से आया एक समूह भी वहाँ मिला। पूरा परिसर स्वच्छ है। जटायु जी की भव्य मूर्ति बनाने में दस साल लगे।
"वह पत्थर तो जिन्दा है
जिसे पूज कर आया हूँ,
वह नाम भी जीवित है
जिसे भजकर आया हूँ।"
त्रिरुवनन्तपुरम जाते समय रास्ते में रबर के वन मिले। रबर के पेड़ों पर प्लास्टिक बँधा था, रबर की गोंद( दुधिया रस,लेटेक्स) को बारिश के पानी से बचाने के लिए। कहीं-कहीं पर लोग अन्ननास भी लगा रहे थे ( यह ज्ञान हमें कार वाला दे रहा था)।
त्रिरुवनन्तपुरम पहुँच कर, कोवलम समुद्रतट देखने गये। वहाँ विदेशी पर्यटक भी दिख रहे थे। लोग कम थे शाम के समय। खाने-पीने रेस्टोरेंट बहुत हैं यहाँ। रहने के होटल/रिजोर्ट भी।
पद्मनाभस्वामी मन्दिर सुनहरा है। वहाँ पुरुषों को धोती पहन कर ही जाने की अनुमति है। कमीज की भी अनुमति नहीं है। लोग पंक्तिबद्ध हो दर्शन करते हैं और प्रसाद लेते हैं।
अजिमाला में शिवजी की मूर्ति है। साथ में सागर की उछलकूद।
बैक वाटर्स में नाव से घूम कर पूवार बीच (समुद्र तट) पहुँचते हैं। नाव चलाने वाला मुख्य-मुख्य बातें बताता जाता है। जैसे इस टापू में साँप हैं यहाँ लोग नहीं जाते हैं। इस पेड़ के फल बहुत जहरीले होते हैं। खाते ही मृत्यु हो जाती है। इसे मैंग्रोव कहते हैं।ये नमकीन पानी में होते हैं। यहाँ पर पानी की गहराई तीस फीट है। यह उथला क्षेत्र है। फिर इसी पानी में बड़ी नावों में रेस्टोरेंट दिखते हैं। वह एक सुनिश्चित रेस्टोरेंट( ढाबा) पर चाय-काफी-नाश्ते का आदेश देने का विकल्प देता है। आदेश देकर पूवार बीच पर नाव को ले जाता है। वहाँ समुद्र अटखेलियां खेलता मिलता है। पैरों को छूता वह आता-जाता है। मानों जीवन का संदेश दे रहा हो। दूर घने बादल छाने लगते हैं जो और घने होकर तट की ओर बढ़ते हैं। नारियल पानी पी कर हम नाव पर आ जाते हैं।संवाद और विचार विनिमय में कोई कठिनाई नहीं है। बूँदाबादी आरंभ हो चुकी है। पूर्व नियोजित रेस्टोरेंट( ढाबा) पर जाकर अपने नाश्ते की प्रतीक्षा कर रहे थे कि तेज तूफानी बर्षा शुरु हो गयी। तट की ओर दृष्टि घुमायी तो सबकुछ उड़ रहा था। हम भी तिरछी बौछारों से भीग गये। आधे घंटे यह सब चला। फिर सबकुछ शान्त हो गया। फिर नाव दूसरी ओर चल पड़ती है। नाव वाला कहता है उधर जो विस्तृत क्षेत्र दिख रहा है वह महेन्द्रा रिजार्ट है। एक जगह वह बोलता है वे जो कुटिया दिख रही हैं, वहाँ भी पर्यटक बुक कराके ठहरते हैं। उनका किराया बहुत अधिक है।
एक बार फिर केरल के आसमान में आ जाते हैं।

** महेश रौतेला

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