रक अदद औरत - 1 Kishanlal Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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रक अदद औरत - 1

बन्द कमरे में कमला खाट पर लेटी थी।वह लेटी लेटी ही बुदबुदाई
दुख
किस बात का
कुछ देर बाद फिर बुदबुदाई
पश्चाताप
किस बात का
उसके निर्णय पर सवाल ही नही उठता।उसने निर्णय लेने में कोई जल्दबाजी नही की थी।उसने निर्णय लेने से पहले हर तरह से सोच कर देख लिया था।हर बात पर विचार करके वह सन्तुष्ठ हो ली थी।आखिर उसने ऐसा निर्णय क्यो लिया?इसकी दोषी वह नही थी।इस निर्णय का दोषी भी तारा ही था।
उसने अगर ऐसा रुख न अपनाया होता।उस पर प्रतिबंध न लगाया होता।उस पर बंदिश लगाने से पहले अपने दम खम पर विचार कर लिया होता।अपनी गलती या कमी को उसने मां लिया होता तो शायद कमला को ऐसा कठोर कदम उठाने की जरूरत नही पड़ती।तारा अपनी कमजोरी जानता था लेकिन उसे स्वीकार करने की जगह उसे बंधन में रखना चाहता था।उस पर प्रतिबंध लगाना चाहता था।
प्रतिबंध लगाने से पहले अगर उसने अपनी तरफ झाँकह लिया होता तो सही रहता पर उसने ऐसा नही किया।अगर किया होता तो उसे भी यह कदम नही उठाना पड़ता।
पर तारा को अपनी कमजोरी मंजूर नही थी।कमजोरी के बावजूद वह उसे बांधना चाहता था।
छत में लगा पंखा अचानक बन्द हो गया।शायद लाइट चली गयी थी।पंखा बन्द होते ही उसे गर्मी सताने लगी।फिर भी वह पड़ी रही।काफी देर तक।जब उसे गर्मी सहन नही हुई।और बन्द कमरे में बिना पंखे के उसका दम घुटने लगा तो वश कमरे से बाहर आ गयी।कुछ देर तक वह दरवाजे पर खड़ी रही और फिर छत पर आ गयी।
जून के महीने का स्वक्ष और खुला आकाश।सूरज कब का कहीं दूर पहाड़ियों की ओट में चुप चुका था।शाम ने पृथ्वी को अपने आगोश में ले रखा था।शीतल हवा मंद मंद चल रही थी।ऊपर छत पर आकर उसे सुकून महसूस हुआ।कुछ देर वह छत पर चक्कर काटकर चारो तरफ देखती रही।फिर छत कि मुद्गली पर बैठ गयी थी।लेकिन यहाँ आने पर भी तारा ने उसका पीछा नही छोड़ा था।
"नामर्द साला,"उसने घृणा से मुंह बिचकाया था,"उसे पतिव्रता देखना चाहता था
1जब वह छोटी थी तब शादी ब्याह को गुड्डे गुड़ियों का खेल समझती थी।पर जब सयानी हुई तब वह सब समझने लगी थी।जब भी किसी की शादी होती तो उसके दिल मे भी उमंग उगने लगती।कुंवारे मन मे वह भी अपने भविष्य के सपने सजोने लगती।उसे भी एक दिन ब्याहने के लिए आएगा कोई सपनो का राजकुमार जो उसे अपनी बनाकर डोली में बैठाकर लस जाएगा।उसे अपने दिल की रानी बनाएगा।उसका अपना घर होगा,बच्चे होंगे।उसका अपना घर संसार होगा।हंसी,किलकारियां और सुख ही सुख
पर उसके कुंवारे मन की साध पूरी न हो सकी।जो सपना उसने देखा था,वह सपना ही रह गया।वह दुल्हन तो बनी पर और लड़कियों की तरह नही
वह भाग्यहीन थी।इसलिए बचपन मे ही अनाथ हो गयी थी।जब वह छोटी थी तभी एक दुर्घटना में उसने अपने माता पिता को खो दिया था।माता पिता की । मौत के बाद दूर रिश्ते के चाचा उसेअपने साथ ले गए थे।उन्होंने ही उसे पाला पोसा था।उसके चाचा रमेश की पहली पत्नी का देहांत हो चुका था। उन्होंने दूसरी शादी की थी।चाचा तो रहमदिल,नेक इंसान थे लेकिन चाची।बेरहम औरत थी।कमला चाची को बोझ लगती थी