Sukh Ki Khoj - Part - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

सुख की खोज - भाग - 5

कल्पना के मुँह से स्वर्णा की अजीबोगरीब मांग सुनकर रौनक भड़क उठा। आवेश में आकर उसने कहा, "ये क्या कह रही हो कल्पना? तुम पागल हो गई हो क्या? हम क्या मुँह दिखाएंगे माँ और पापा को? ...और क्या तुम अपनी कोख से पैसा कमाना चाहती हो?"

"नहीं रौनक तुम ग़लत सोच रहे हो। यह कोई सौदा नहीं है। मैं जानती हूँ कि मैं कितना भी मना करूं; वह इसके बदले ना जाने क्या-क्या हमें देगी। लेकिन मैंने कभी ऐसा नहीं सोचा। पैसे की बात मेरे दिमाग़ में नहीं आई। मैं केवल उसकी मदद करना चाहती हूँ। आज उसे मेरी ज़रूरत है।"

"कल्पना मैं समझ सकता हूँ, हम मध्यम वर्ग के लोग हैं। यह उनकी दौलत और हमारी मजबूरी का एक अलग ही अंदाज़ है। वह अपना शरीर सुंदर रखना चाहती है। अपना भविष्य और भी अधिक चमकाना चाहती है। वह करोड़ पति है इसलिए वह यह कर भी सकती है। सोचो उसके मन में तुम्हारा ही ख़्याल क्यों आया? हम उतने अमीर नहीं हैं, इसीलिए ना?"

"नहीं रौनक तुम उसे ग़लत समझ रहे हो।"

"क्यों तुम ही कह रही थीं ना कि तुम कितना भी मना करोगी पर वह तुम्हें ना जाने क्या-क्या देगी।"

"रौनक वह ऐसी ही है, बचपन में तो उसका कोई स्वार्थ नहीं था ना फिर भी उसने हमेशा मेरी मदद की है। मैं उसे जानती हूँ रौनक ...! आख़िर इसमें बुराई ही क्या है? क्या तुम मेरी इतनी-सी बात नहीं मान सकते?"

"इतनी-सी बात कल्पना ...?"

"ठीक है बड़ी ही सही पर मेरे लिए प्लीज रौनक।"

"ठीक है कल्पना पर मुझे डर लगता है कहीं तुम्हें ..."

"क्यों रौनक दुनिया में हर स्त्री माँ बनती है फिर डरने की क्या बात है।"

"तुमसे जीतना मुश्किल है कल्पना। ठीक है, मैं माँ और पापा को मनाने की और समझाने की कोशिश ज़रूर करूंगा।"

उधर स्वर्णा ने जब अपने मम्मी पापा से यह बात की तो वह स्वर्णा के इन विचारों को, उसकी ऐसी इच्छा को सुनकर हैरान हो गए। उसके माता-पिता अमीर होते हुए भी ज़मीन से जुड़े हुए लोग थे। अपनी प्राचीन परंपराओं और संस्कारों के साथ अपना जीवन यापन करने वाले उसके परिवार में सभी को स्वर्णा का फ़िल्मों की तरफ़ जाना भी कहाँ अच्छा लगा था। परंतु बचपन से अपनी बेटी की हर ख़्वाहिश पूरी करने वाले वे दोनों ही उसके कदमों को रोक नहीं पाए थे। लेकिन आज जब यह प्रश्न उनके सामने आया तो उनका कलेजा कांप गया।

उन्होंने स्वर्णा को समझाने की बहुत कोशिश की। उसकी मम्मी ने कहा, "स्वर्णा यह तो तुम अतिशयोक्ति कर रही हो। भला ऐसा भी कोई करता है क्या?"

"हाँ मम्मी करते हैं। आजकल बहुत लोग ऐसा करते हैं और इसमें कोई डर की बात भी नहीं होती।"

"स्वर्णा भगवान ने नारी ही क्या, हर प्राणी की संरचना इस तरह से की है कि वह अपनी कोख से किसी और को दुनिया में ला सके। किसी को जन्म देकर अपने आँचल में उसे स्तन पान करा सके। यह सब हमारे शरीर के सौंदर्य से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है बेटा।"

"मम्मी आप लोग बहुत पुराने ख़्यालों से जुड़े हुए हो। आप के हिसाब से आप जो कह रही हो सच है लेकिन अब ज़माना बहुत बदल गया है। मम्मी भगवान ने ही तो मेरे लिए इतना सुंदर भविष्य मुझे उपहार स्वरूप दिया है ना, उसे क्यों जाने दूँ? बच्चा तो मुझे मेरे और राहुल के खून से बना मिल ही जाएगा ना।"

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः

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