Sukh Ki Khoj - Part - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

सुख की खोज - भाग - 1

स्वर्णा एक बहुत धनाढ्य परिवार में जन्मी बेहद खूबसूरत काया की धनी थी। भगवान भी किसी-किसी पर अपने आशीर्वाद की बारिश कुछ ज़्यादा ही कर देते हैं। सुंदरता ऐसी कि किसी की भी नज़र पड़ जाए तो जहाँ वह हो वहीं क़ैद हो जाए। परिवार भी उतना ही संपन्न जहाँ कोई कमी नहीं थी। घर में भरपूर लाड़ प्यार से पली स्वर्णा पढ़ाई के लिए शहर से दूर होस्टल भेज दी गई, जहाँ बड़े-बड़े रईस घर के बच्चे पढ़ने जाते हैं। बच्चों को वहाँ भेज कर पढ़ाना मध्यम वर्ग के परिवार के लिए तो शक्ति से बाहर की बात थी। फिर भी एक लड़की थी कल्पना, जो मध्यम वर्ग के परिवार से वहाँ आई थी।

कल्पना के माता-पिता जयंती और विद्या ने खून पसीना एक करके अपनी बेटी को हर अवसर देने का निश्चय किया था। वह चाहते थे कि उनकी बेटी भी जीवन में ख़ूब तरक्क़ी करे। उसे भी बड़े रईस लोगों के बीच उठने बैठने का अवसर मिले। वह कभी किसी से पीछे ना रहे लेकिन कल्पना उस माहौल में स्वयं को ढाल न सकी। वह तो वैसी ही रही जैसे वह पहले थी, वही सादगी, वही विचार, वही नम्रता। बिल्कुल वैसे ही संस्कार जो उसे अपने परिवार से मिले थे।

स्वर्णा को कल्पना की यही सब खूबियाँ भा गईं, जो दूसरों से उसे बिल्कुल अलग व्यक्तित्व देती थीं। धीरे-धीरे वह दोनों एकदम पक्की सहेली बन गईं। दोनों के विचार अलग, स्वभाव अलग, आदतें भी अलग-अलग लेकिन फिर भी दोनों एक दूसरे को समझती थीं। कोई किसी पर किसी भी तरह की पाबंदी नहीं लगाती। स्कूल में फीस और ज़रूरत की वस्तुओं के अलावा कल्पना कभी अपने पापा से अतिरिक्त पैसों की मांग नहीं करती थी। स्वर्णा भी यह बात जानती थी और वह हमेशा अपने साथ कल्पना के लिए भी कभी कपड़े, कभी कॉस्मेटिक, कुछ ना कुछ उसके मना करने के बाद भी ले ही आती थी।

दोनों एक ही कमरे में रहती थीं और एक दूसरे का बहुत ख़्याल भी रखती थीं। स्वर्णा जो किताबें खरीदती दोनों उन्हीं किताबों से पढ़ाई कर लेतीं। कल्पना के जन्मदिन पर भी स्वर्णा उसे काफ़ी कीमती उपहार दिया करती थी। धीरे-धीरे कल्पना महसूस करने लगी थी कि वह स्वर्णा के एहसानों के बोझ तले दबती ही जा रही है और वह कभी भी यह कर्ज़ उतार नहीं सकेगी।

समय इसी तरह आगे बढ़ता गया। आठवीं से लेकर बारहवीं तक पाँच साल कैसे बीत गए पता ही नहीं चला और फिर स्कूल के जीवन की समाप्ति का समय भी नज़दीक आ गया। जवान होते-होते स्वर्णा का झुकाव फ़िल्मी दुनिया की तरफ़ होता जा रहा था। बॉलीवुड की चकाचौंध उसे अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। उसे अपनी सुंदरता का एहसास भी था। वह जानती थी कि वह एक अच्छी सफल अभिनेत्री बन सकती है। कल्पना और स्वर्णा की राहें अब अलग हो रही थीं लेकिन दोस्ती तो उतनी ही थी।

स्वर्णा ने अपनी इच्छा को पूरा करने के लिए अभिनय सीखने के कोर्स में प्रवेश ले लिया। कल्पना ने आगे इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना पसंद किया। स्वर्णा की हीरोइन बनने की चाह ने उसके कदमों को बॉलीवुड की गलियों की तरफ़ मोड़ दिया था। इन गलियों से अपनी मंज़िल तक पहुँचना उसके लिए इतना भी मुश्किल नहीं था। उसकी खूबसूरती ने उसकी राह को बहुत आसान बना दिया। इस तरह से उसे फ़िल्में मिलने लगीं और चलने भी लगीं।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः

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