इंस्टालमेंट - 2 Bharat(ભારત) Molker द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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इंस्टालमेंट - 2

इन्सान की ख्वाइशे कभी कम नहीं होती l ग़ालिब फरमा गए है ना, "बहुत निकले मेरे अरमां फिर भी कम निकले", वगेरा वगेरा...l तभी तो इन्सान हर किसम का जोर लगाकर सपने या जरुरत पूरी करने का तरीका ढूंडता रहता है l खुद से बन पड़े वह सारी कोशिश करता है l चाहे जेब में फूटी कोडी हो या ना हो, दिमाग के परदे पर अगर कार खरीदने की फिल्म चल रही होती है l इन्सान की हर ख्वाइश-जरुरत जिसे पूरा करने में रुपया पैसा लगता है, उसके लिए लोन नामक एक सहूलियत मौजूद है अभी के वक्त में l सोना गिरवी रखो लोन ले लो, घर गिरवी रखो लोन ले लो, जमीन गिरवी रखो लोन मिल जायेगा, और पूरी करलो अपने दिल की हसरते l सच कहे तो यह जो सारे सपने या हसरते जो भी कह लो, दरअसल वह देखा-देखि का असर है l अरे उसके पास मोटरसायकल है तो मेरे पास क्यों नहीं? बाइक लेनी पड़ेगी! सोसायटी में अपना भी रॉब दिखना चाहिए! इस चक्कर में शुरू होता है लोन का चक्कर l लोन मिल जाने के बाद इंस्टालमेंट का चक्कर l और अगर एक भी इंस्टालमेंट भरना चुक गए तो फिर लोन की वसूली करने वाले आप के घर पर चक्कर लगाना शुरू कर देते है l इस तरह की “बैंक लोन” की वसूली, अगर प्रोफेशनल भाषा का प्रयोग करे वह भी अंगरेजी में तो “रिकवरी ऑफ़ देब्ट” (Recovery of Debt) का काम करने वाली एक फर्म में मैं बतौर रिलेशनशिप मनेजर काम किया करता था l ना ना....इस शब्द रिलेशनशिप को सिर्फ एक दायरे में मत देखिये, यहाँ में कंपनी और क्लायंट के बिच जो रिलेशनशिप होता है उसे सभाल ने की जिमेदारी थी मेरी l और हमारी फर्म वसूली भाई की तरह वसूली नहीं करती, सभी काम कानून के दायरे में रहते हुए किया जाता l समय पर इंस्टालमेंट ना भर पाने पर और लगातार लोन का इंस्टालमेंट भरने की चुक और अनियमितता की वजह से बैंक उस खाते को “ऍन पी ऐ” (NPA-Non Performing Assets) घोषित कर उस खाते धारक को ६० दिनों में रूपए जमा करवाने का नोटिस देता है l अगर ६० दिनों के अंदर भी खाता धारक रूपए जमा नहीं करवाता तो बैंक उसे ३० दिन की महोलत देती है l अगर ३० दिन बाद भी खाता धारक ने रुपए जमा नहीं करवाए और ना ही अगर बैंक का कोई संपर्क किया तो फिर मजिस्ट्रेट से ऑर्डर लेकर गिरवी रखी हुई चीज पर बैंक का कब्ज़ा, फिर उसकी नीलामी और बैंक का पैसा वसूल! दरअसल बैंक ही इस तरह की फर्म को वसूली करने का काम सोपा करती है l अगर बैंक के कर्मचारी खुद वसूली करना शुरू करे तो बैंक का काम कौन करेगा? और उसके लिए दूसरा स्टाफ नियुक करना पड़ेगा l उस से बहतर है, इस तरह की किसी रिकवरी फर्म को काम सोप दो l

मेरा बहुत सा काम ऑफिस में ही रहता, और किसी ऑफिसर के साथ मीटिंग हो तो उसने मिलने जाना l बैंक की तरफ से हमारी फर्म जिस भी प्रोपर्टी या चीज पर कब्ज़ा करती थी उसके लिए हमारी फर्म में अलग स्टाफ था l जो सिर्फ और सिर्फ पज़ेशन- कब्ज़ा लेने का काम करता था l एक रोज पज़ेशन लेने वाला स्टाफ दुसरे शहर गया था एक प्रॉपर्टी का पज़ेशन लेने के लिए l और उसी रोज ओर एक शहर में पज़ेशन लेना तैय हो रखा था l स्टाफ की कमी की वजह सारा बोज आ गिरा हम पर l मैं, मेरा एक सहकर्मी और हमारे से उच्च पद पर नियुक्त सहकर्मी के साथ हमें उस शहर जाना था जहाँ हमें बैंक की तरफ से एक माकन पर कब्ज़ा लेना था l फर्म की तरफ से गाडी और ड्राईवर का इंतेजाम कर दिया जाता जब कभी शहर से बहार कब्ज़ा लेने जाना पड़ता था l तो हम सब गाडी में निकल पड़े l पहले हमें बैंक के रीजनल ऑफिसर को उनके घर से साथ लेना था, उसके बाद हमारी गाडी जाकर रुकी सीधा उस शहर के बैंक की शाखा पर l वहां से उस शाखा का ब्रांच मेनेजर और उसका एक सहायक साथ जुड़ता है l अब इन दो लोगो के लिए गाडी में जगह तो थी नहीं, तो मुझे और मेरे सहकर्मी को ऑटो करना पड़ा l हम ऑटो में बैठे गाडी के पीछे चल रहे थे l शहर के रास्तो और छोटी-छोटी गलियों से गुज़र कर हम पहुचे वहां जहाँ वह माकन था l जिस सोसायटी में वह माकन था ऊधर बीचो बिच खुली जगह थी l वहां जब गाडी रुकी और सारे लोग बहार निकले, पीछे ऑटो में से हम दो लोग ओर जुड़े तब वहां के सारे निवासी जो उस वक्त घर पर हाजिर थे सब के सब घरो से बहार आकर देखने लगे की कौन है लोग और कहाँ से आये है? और किस के यहाँ आए है? हम ने ऑटो वाले को किराया चुकाकर तुरंत रवाना किये, क्योकि वह कब का तरह-तरह के सवाल पूछ कर हमारा दिमाग खाए जा रहा था l लोग जिस उत्सुकता से हमे देख रहे थे मैं समझ नहीं पा रहा था की उनको एसा अलग कुछ क्या दिख रहा था हम में? उस सोसायटी के सारे माकन रो हाउस प्रकार के थे l ज़मीन की सतह से लगभग तीन फीट ऊपर बरामदा और फिर घर के अंदर प्रवेश के लिए मुख्य द्वार l एक-एक माकन नंबर देखते हुए हम जा पहुचे उस माकन के सामने जिस पर कब्ज़ा लेना था l मेरे सहकर्मी ने माकन मालिक का नाम लेकर आवाज लगाई तो घर के अंदर से एक बच्चा ५-६ साल का बच्चा, दौड़ते हुआ बरमदे तक आया और बोला, “किस का काम है?” जब उस बच्चे को नाम बोला गया तब वह उसी तरह से दौड़ते हुए अंदर भगा जिस तरह बहार आया था, लेकिन इस बार वह “पापा पापा” चिल्ला रहा था दौड़ते हुए l बच्चा घर के अंदर गया लेकिन काफी देर तक कोई अंदर से बाहर नहीं आया l हमे देखा, घर के अंदर से एक आदमी खिड़की में से झाक रहा है l वह फिर बाहर बरमदे में आ कर कहने लगा, “मैं बैंक आकर आपसे से मिलने ही वाला था” l तब मेरे सीनियर ने उसे कहा की अब बात-चित का समय समाप्त हो गया है l अब तो रुपए जमा करो वर्ना कब्ज़ा होकर रहगा आज तो l “अरे नहीं नहीं मैं रुपए जमा कर देता हूँ “, माकन मालिक बोला l “कब?” बैंक वालो ने उसे पूछा l तो वह बोला, “मुझे एक घन्टे का समय दो, मैं रुपए लेकर आता हूँ” l तुरंत बैंक मेनेजर ताना मरते हुए बोला, “१२० दिन का समय दिया था फिर भी रुपए जमा नहीं करवाए और अब एक घंटे एक अंदर जमा करदोगे?” l तो मकान मालिक मासूम चेहरा बनाकर बोला, “साहब इस तरह अगर घर पर कब्ज़ा हो जाये तो फिर क्या इज्ज़त रहेगी मेर? कुछ जुगाड़ करना ही पड़ेगा” l “बड़े साहब अगर परमिशन देंगे तो ही हम तुम्हे एक घंटे का समय देंगे” इतना बोल कर बैंक मनेजेर ने रीजनल ऑफिसर के सामने दखा, उसने आँखों के इशारे से बैंक मैनेजर को उस मकान मालिक को एक घंटे की ओर मोहलत देने के लिए हामी दी l “ठीक है हम तुझे एक घंटे का समय देते है, अगर एक घंटे के अंदर तुमने रुपए जमा नहीं करवाए तो बैंक तुम्हारे घर को सील लगकर अपने कब्जे में ले लेगा” चेतावनी देते हुए बैंक मनेजेर बोला l मकान मालिक झट से घर के अंदर गया, कुछ कागज लेकर बाहर आया l उन सारे कागजो को उसने अपने स्कूटर की डिक्की में रखा, फिर स्कूटर पर बैठ वह से निकल ही रहा था, बैंक मेनेजर ने फिर से उसे याद दिलवाया, “अभी ११ बजे है ठीक १२ तक अगर तुम वापस नहीं आए तो सील लग जाएगा” l मकान मालिक कुछ भी बोले बिना वहां से निकल गया l मेरी नजर जब उस मकान के तरफ गयी तो उस आदमी के बच्चे खिड़की से झाक रहे थे, दो लड़कियां और एक लड़का  l एक लड़की कुछ १५-१६ साल की लग रही थी, दूसरी उस से छोटी शायद १० या १२ साल l वे लोग हमे जिस तरह देख रहे थे उनके चहेरो से हमारे प्रति घृणा साफ-साफ दिख रही थी l घर के अंदर बच्चे और घर के बाहर हम इंतजार में थे l देखते-देखते एक घंटा कब बीत गया पता भी चला l सब ने सोचा चलो कुछ देर ओर राह देखे, इस कुछ देर में पुरे दो घंटे निकल गए! लेकिन मकान मालिक वापस लौटा नही था l इस बीच हम सभी उसके मोबइल पर फोन लगा रहे थे और जिस बात की आशंका थी वही परिणाम मिला, मोबाईल स्विच ऑफ! रीजनल ऑफिसर का अब धीरज ख़तम हो चूका था, शायद उसे एसा भी प्रतीत हुआ हो की वह मकान मालिक उसे और बाकी सब को मुरख बना रहा है, जैस उसके वापस ना लौटने से यह लोग इंतजार कर वापस चले जाएंगे l रीजनल ऑफिसर ने तुरंत कहा, “चलो सील लगा दो!” l मेरा सहकर्मी और मैं घर की सीढियाँ चढ़ बरामदे तक गए और उन बच्चो को कहा की “चलो मकान खली करो” l हमारी बात सुनकर वह बच्चा और छोटी लड़की घर से बाहर आ गए लेकिन वह बड़ी लड़की बाहर नहीं आई l उसे कई बार बोला गया बाहर आने के लिए लेकिन वह टस से मस ना हुई l अब एक नई मुसीबत खड़ी हो गयी l नियम अनुसार जाने अंजाने अगर एक भी व्यक्ति मकान के अंदर है तो हम उसे सील नहीं कर सकते l उस लड़की को यह भी बोला गया की एसा करना कानूनन अपराध है, लेकिन जैसे उसे कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था l सब के बार बार बोलने पर वह सिर्फ एक बार बोली थी, “नहीं मैं बाहर नहीं आउंगी” l हमने पडोस की महिलाओ से कहा की उस लड़की को समझाए, उन्होंने भी प्रयत्न किया, पर लड़की भी अपनी जिद पकड़े हुई थी l रीजनल ऑफिसर परेशानी भरी नजरो से मेरे सेनियर को देख रहा था l मेरा उपरी सहकर्मी रीजनल ऑफिसर को बोला, “सर अगर कोई पुरुष होता तो हम अभी उसको खीच कर मकान से बाहर निकलते, उस लकड़ी के साथ वेसा नहीं कर सकते, उल्टा हम गुनाह में आ जाएँगे” l रीजनल ऑफिसर कुछ देर चुप रहा और फिर तुरंत बैंक मेनेजर को बोला, “ब्रांच पर कोई लेडीज़ स्टाफ है?” “हां है, एक महिला कर्मचारी है” बैंक मेनेजर बोला l “तो उसको अभी के अभी यहाँ लेकर आओ और इस लड़की को पकड़ कर मकान से बाहर निकलो” l हमारा ड्रायवर, बैंक के कर्मचारी के साथ उस महिला कर्मचारी को लेने गया l वे लोग आधे घंटे बाद वापस आते है उस महिला कर्मचारी को लेकर, इस बिच चार घंटे होने आये है, लेकिन मकान मालिक अब तक गायब था l वह महिला कर्मचारी एक मोटी सी गोल मटोल स्त्री, जिस ने हरे रंग की साड़ी पहनी थी उस दिन, संयोग से वह किसी महिला पुलिस कांस्टेबल से कम नहीं लग रही थी l जैसे ही मकान के अंदर जो लड़की थी उस ने महिला कर्मचारी को सीढियाँ चढ़ कर अपने घर के अंदर आते हुए दखा, तो वह खिड़की से अंदर की तरफ भागी l जब तक वह महिला कर्मचारी मकान के अंदर पहुची, उस लड़की ने खुद को बाथरूम के अंदर बंद कर लिया था l महिला कर्मचारीने कई बार बाथरूम का दरवाजा खटखटाया और उस लड़की को बाहर आने के लिए कहा l महिला ने लड़की को प्यार से भी समझाया और चेतावनी देते हुए भी कहा की बाहर निकल वर्ना परिणाम अच्छा नहीं होगा l लेकिन लकड़ी भी गुरु घंटाल थी उस पर किसी भी धाक धमकी का कोई असर ही नहीं हो रहा था l चार घंटे से ऊपर खड़े खड़े सब की हवा निकल गइ थी l रीजनल ऑफिसर परेशान, थक कर बोला, “चलो, वापस चलते है” l “मैंने पहले ही बोला था पुलिस प्रोटेक्शन ले लो, अगर पुलिस होती तो खीच खीच कर बाहर निकलती”, गाडी में बैठते हुए मेरा सीनियर बोला, और हमे – मुझे और मेरे सहकर्मी को इशारा किया की बैंक पर पहोचो l

जिस काम से गए थे वह काम तो पूरा हुआ नहीं l भूके प्यासे खड़े खड़े कमजोरी सा शारीर में लग रहा था l जब एक होटल पर भोजन कर रहे थे, तब एसा लगा रहा था जैसे हम कई दिनों से भूखे है, और उस पर एक ओर अवरोध का सामना l समय हो चूका था इस लिए होटले में जो थोडा कुछ बचा था वही हमे परोसा गया l सोचा चलो अभी इसी से काम चला लेते है, फिर बाहर निकल कर कुछ खा लेंगे l उस दिन के अनुभव ने सिखया की दुनिया में एक से बढ़ कर एक प्रकार के लोग होते है l और उन सभी से किसी एक प्रकार की योजना से नहीं निपटा जा सकता, हर एक के लिए एक से ज्यादा प्लान तैयार रखना चाहिए, एक ना चला तो दुरसा, दुरसा नहीं तो तीसरा, और तीसरा ना चला तो चोथा तो चल ही जायेगा l और अगर कोई भी प्लान काम नहीं करता मतलब तुम्हारे सारे के सारे प्लान ही गलत थे l खैर, जिस तरह का व्यवहार हमे उन बच्चो के साथ करना पड़ा, वह मुझे एक अपराध भाव की प्रतीति करवा रहा था l मैंने जब मेरे सहकर्मी को पूछा, “क्या कभी उसे एसा महसूस हुआ?” तो वह बोला, “यही तो हमारा काम है, अगर लोगो के भावनाओं की, उनके साथ कैसे व्यवहार करना है उसकी चिंता करते रहेंगे तो अपना काम कैसे चेलगा? और हम उनके साथ एसा क्यों कर रहे है? उन्हों ने समय पर रुपए नहीं भरे इस लिए, वर्ना हम क्यों एसा करे? और अगर उनको किसी बात कर डर ही नही रहेगा तो कोई बैंक से लोन लिया हुआ रुपया वापस देगा ही नहीं!” मेरा सहकर्मी हनुमानजी का परम भक्त, वह बोला, “भाई, भय बिन होय ना प्रीति” l मेरे मन में दूसरा सवाल उठा की लोन तो उस आदमी ने लिया था उस में बच्चो का क्या दोष? लेकिन मैंने उस प्रश्न या विचार को मन में ही रहने दिया l

इस घटना को कई वर्ष हो चुके है l कुछ वर्षो पहले जब बड़े-बड़े उधोगपति अरबो-खरबों का कर्जा लेकर उन्हें बिना चुकाए विदेश फरार हो गए, तब मुझे लगा की क्यों बैंक वालो ने उन उधोगपतिओ को भय की प्रतीति नहीं करवाई? क्यों वे सारे आज भी खुले घूम रहे है? जब की एक साधारण नागरिक को कुछ लाख रुपयों के लिए हर तरह से परेशान किया जाता है l