तिराहा Lakhan Nagar द्वारा मनोविज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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तिराहा

बरसात का दिन था हल्की-हल्की बौछारे बालकनी से अन्दर आ रही थी। अचानक सीमा कंधे पर हाथ रखती है ; रानू के साथ घुमने जा रही हूँ , तुम भी साथ चल रहे हो ?या हम ही। अभी बारिश ही कहा रुकी है जो घूमने जाओगी , मैंने बोलते बोलते देखा बारिश कब की रुक चुकी थी। कहाँ खोये रहते हो ? तुम्हे हमारा ख्याल भी है ? शायद नही , कहकर सीमा चली जाती है । मेरे इस खोयेपन से वो तब से वाकिफ है जब रानू उसके गर्भ में आया ही था ; कैसे भूल सकता हूँ वो दिन , कितनी जबरदस्त टक्कर हुई थी सीमा और मेरे बीच ; खैर शुरुवाती दिन थे सीमा नयी नयी थी तो उसने उम्मीदे जोड़ रखी थी पर धीरे-धीरे उसने उम्मीदे करना कम कर दिया और मैं उस खोयेपन के अन्दर धंसता ही चला गया । सीमा ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की थी और शायद आज भी कर ही रही है । रानू ही है शायद जिसकी वजह से हम साथ है ; हमारी बात भी एक-दुसरे से रानू को लेके ही होती है। अचानक याद आया सीमा कल बता रही थी कि रानू ने आईआईटी की परीक्षा पास कर ली है अगले महीने ही जा रहा है। मैंने उसपे कभी ध्यान ही नही दिया ; हाँ बस उसे पैसे की कमी कभी महसूस नही होने दी इसके आलावा उसके जीवन में मेरी उसकी तरफ से कोई भूमिका नही है ।
खेर आज रानू बोम्बे जाने वाला है। सीमा की आँखों में आंसू भरे हुए है और मैं हमेशा की तरह बालकनी में बैठा हुआ हूँ , अचानक मुंह से आवाज़ निकलती है , बेटा ! आवाज़ थोड़ी धीमी थी इसलिए शायद सुन नही पाया , मैंने दुबारा पुकारा बेटा रानू ! ...पापा ! कहता हुआ रानू लिपट जाता है । इतने में सीमा की आवाज़ आती है जाने का समय हो गया है , रानू चला जाता है।
पता नही जब से रानू गया है न मैंने अपने खोयेपन से बाहर निकलने की कोशिश की न ही सीमा ने मुझे बाहर निकालने की।सीमा भी अकेलेपन से परेशान होकर नोकरी की तलाश कर रही है । उसने बताया की अन्त्ततया उसे नोकरी मिल गयी है , नोयडा में ; शादी के बाद से हम देहली ही रह रहे है । आज सीमा जा रही थी।मन कर रहा था बोल दूँ सीमा मत जाओ पर किस हक से की वो मेरी पत्नी है , शायद हाँ , पर क्या सच में वो मेरी पत्नी है ?क्या मैंने उसे रोकने का अधिकार उसी दिन नही खो दिया था जिस दिन मैंने उससे कहा था कि वो सिर्फ नाम के पति पत्नी है? और रानू केवल मानवीय उत्तेजना या कहे तो दाम्पत्य जीवन की अनिवार्यता का परिणाम हैं। खेर मैं उसे रोकने के लिए कुछ कह पाता वो जा चुकी थी।
4 साल हो गये है न सीमा ने बात करने की कोशिश की और न ही मैंने उसे याद करने के बारे में सोचा। आज शादी का एल्बम देख रहा हूँ ; सीमा कितनी खुश लग रही है ; ठीक वैसे ही जैसे की ट्रेनिंग के समय रहती थी। लहंगे में अप्सरा से भी सुन्दर लग रही थी। उसका गोर वर्ण और काली भोली आँखे उसके रूप सौन्दर्य को और बढ़ा रहे थे। शादी के बाद मैं गन्नू में इतना खो गया कि इन सब बातो पर ध्यान ही नही दिया। शुरू-शुरू में सीमा जब पूछती थी - कैसी लग रही हूँ ? "तो" औरते अच्छी ही लगती है ,कहके मानों टाल देता था । जैसे -जैसे डायरी के पन्ने पलट रहा था , लग रहा था जैसे सारा जीवन निकल गया और पता ही नही चला ।बहुत से चित्रों में मेरे होते हुए भी मैं उनके बारे में कुछ याद नही कर पा रहा था ।मैं यथार्थ को जी ही नही पाया था । मेरी आँखे बस सीमा को देख रही थी ; मेरी आँखों से निकलने वाली धराये इस बात को बया कर रही है कि इतने सालो में मैंने क्या कुछ खोया है। सीमा के दुःख की गहराइयो को मैं शायद थोडा छू पा रहा हूँ ।गिला था मन में इतना सब खोने का और ललक की वापस ये सब पाने की जो मैंने खोया है , सीमा ने खोया है। ऐसे मैं सीमा से दूर भागता रहता हूँ पर आज उससे दुरी बहुत चुभ रही है ; दिल में जो कुछ भी है आज सीमा से कहना चाहता हूँ - कि सीमा अब मैं समझ गया हूँ कि , प्रेम में खोकर जीवन को ऐसे नहीं निकाला जाता हैं। तुम सही थी सीमा मेरा बीता हुआ कल तुम्हारे प्यार के आगे कुछ भी नही है । आज अगर तुम मेरे सामने होती तो तुम्हारे पैरो में गिरकर तुमसे माफ़ी मांगता और तुम मुझे माफ़ कर देती , कर देती न ? मैं अब जान चुका हूँ कि तुम ही मेरा प्यार हो गन्नू केवल मेरा भ्रम है ; कहते हुए मैं फ़ोन की तरफ बढ़ता हूँ ,अचानक कोई आता है , डाकिया है , पत्र देंने आया है , मुझे कौन पत्र भेज सकता हैं ?सीमा का पत्र था ; साथ में तलाक के पेपर थे ; लिखा था - "तुमसे अलग रहकर अहसास हुआ कि हम अलग ही ठीक है , शायद हमे ये बहुत पहले कर लेना चाइये था। मैं अपना नया जीवन शुरू करना चाहती हूँ। आशा है आपको कोई आपत्ति नही होगी ; रानू को मैं अपने पास रखना चाहती हूँ।" मैं स्तब्ध था , आँखों से आंसू बहे जा रहे थे और मैं खुद को रोक नही पा रहा था। धीरे-धीरे मैं उसी खोयेपन में जाने की कोशिश कर रहा हूँ जिससे मैं आज ही निकला हूँ ।
4 महीने बीत जाने पर भी मैं उसी में खोया हुआ हूँ पर गौरतलब है कि पहले जो खोयापन गन्नू के लिए था अब वो सीमा की लिए हैं । क्या? सीमा के लिए ; ये कैसे हो सकता है ? जो सीमा इतने वर्षो से मेरे साथ थी और उस पर मैंने कभी ध्यान नही दिया उसके लिए यह कैसे हो सकता है ? बहुत कोशिशो के बाद भी मैं इससे बाहर नही निकल पा रहा था क्यूंकि इस बार इससे बाहर निकालने के लिए सीमा नही थी क्यूंकि वो मेरे अंतरतम में चली गयी थी । पर मैं अब सीमा के बारे में क्यों सोच रहा हूँ , वो भी तब जब हमारा तलाक हो चुका है । क्या इंसान किसी चीज़ की अहमियत तभी समझ पाता है जब वो उसे खो देता है । शायद सही भी है -: " दुनिया जिसे कहती है जादू का खिलौना है , मिल गया जो मिट्टी है न मिले वो सोना है। " ये कथ्य बार-बार मेरे मस्तिष्क को झंझोर रहा था , और सीमा के साथ मेरे संबंधो की ग्लानी को उभारकर मेरे मन को कुरेद रहा था। सीमा , मैंने तुम्हे रोक क्यों नही लिया था ? क्या सच में सीमा इतनी दूर जा चुकी है की वह वापस नही आ सकती ? क्या मैं उसे वापस नही ला सकता ? हाँ मैं उसे वापस ला सकता हूँ। क्यों नहीं ? कल ही नोयडा जाकर उसे सब बता दूंगा;बता दूंगा उसे की वह क्यों गन्नू के पीछे अपनी जिन्दगी ख़राब करेगा जिसे शायद उसका ख्याल तक नही है। हाँ मैं कल जरुर सीमा के पास जाऊंगा।
सुबह जल्दी से नॉएडा के लिए रवाना हुआ । कई बार वहां गया पर इस बार सफ़र बहुत लम्बा लग रहा था । रास्ते भर सोच रहा था की सीमा को कैसे मनाऊँगा अन्ततया अपने मन से एक मूल वाक्य का प्रतिपादन किया । शायद थोडा विश्वास था की सीमा का 20 साल पुराना प्यार अभी भी कही न कही जीवित हैं वो मर भी कैसे सकता हैं? ट्रेनिंग के दौरान हमने कितने दिन साथ बिताये है , वही से तो सीमा में मेरे लिए प्यार पनपा था और और मुझमे गन्नू के लिए ,सोचा था सीमा से शादी के बाद गन्नू को भूल जाऊंगा पर 20 साल निकल गये ; खैर सीमा के साथ सब वही से शुरू करूंगा । सोचते-सोचते नॉएडा आ गया जैसे-जैसे बस स्टेशन से सीमा के घर की तरफ बढ़ रहा थी वैसे-वैसे मेरी रगों में खून की रफ़्तार और सीमा को देखने का उत्साह चरम की और बढ़ रहा था । ऐसे लग रहा था जैसे हमें मिले एक अरसा हो गया हो और मुझे सिर्फ वोही चाइये हो सिर्फ सीमा और कुछ नही ।
घर के दरवाज़े पर पहुंचा । सीमा ने दरवाज़ा खोला..सीमा एक नयी नवेली दुल्हन की तरह लग रही थी...पता नही क्यों उसने हाथो में मेहंदी लगा रखी थी उसकी आँखों में अजनबीपन था....शायद वो दरवाज़े पर किसी और की कल्पना कर रही थी । बेठिये , आज अचानक यहाँ कैसे कहकर सीमा किचन में चली गयी । दरवाज़े पर आवाज़ आती है ' सिम ! ' सीमा भागकर जाती है और गले से लगा लेती हैं । मेरे सामने उसका चेहरा जाना पहचाना-सा था पर कुछ याद नही आ रहा था। सीमा ने मेरी और देखकर मुस्कुराते हुए पूछा ,पहचाना नही ? मैंने ना में सिर हिलाया , निशीथ है ,याद है ट्रेनिंग में साथ थे ,हम दोनों ने शादी कर ली है 3 महीने पहले । सुनते ही मैं स्तब्ध रह गया और मेरे अन्दर शून्यता छा गयी ; पता नही सीमा कुछ कहे जा रही थी ।मेरा मन एक गहरे शोक में डूब गया ;दूसरी बार किसी ने मुझसे मेरा प्यार छीन लिया।क्या मुझे 20 साल बाद भी अपने खोयेपन से बाहर नही निकलना चाइये था? मैं मन ही मन खुद को कोस रहा था।
चाय लीजिये, सीमा ने कहा , मैं जागृत हुआ निशीथ को देखा ,वही निशीथ जो सीमा को ट्रेनिंग के दौरान प्रेम पत्र भेजा करता था । कितनी ही बार सीमा ने उसे मना किया पर वह नही माना । और अब सीमा ने इससे शादी कर ली क्यों ? सीमा तो मुझसे प्यार करती थी , क्या सच में ? या इन 20 सालो के अनुभव ने सीमा के मनोविज्ञान को विपरीत कर दिया । मन में बहुत सारे प्रश्न थे पर पूछने का साहस मेरे अन्दर मर चुका था। मुंह से एक-एक शब्द निकलना दुश्वार हो रहा था । रानू भी पिछले महीने से यही है , पता नही जब से आया है तुम्हारी तरह ही खोया खोया सा रहता है ,अभी भी कमरे में ही बेठा है - : सीमा ने कहा। सुनते ही मैं दौड़ता-सा कमरे में गया । रानू बैठा था , ठीक उसी प्रकार जिस तरह से मैं 20 सालो से बालकनी में बैठा रहता था । मुझे देखते ही रानू लिपटकर रोने लगा ; पता नही आज ऐसे क्यों लग रहा था कि रानू अन्दर से बहुत दुखी है । मैंने कुछ दिनों के लिए रानू को अपने साथ देहली ले जाना उचित समझा सीमा ने भी हाँ कर दी । शायद ये नॉएडा का मेरा अंतिम सफ़र हैं ।
नॉएडा से आये 3 दिन हो गये अभी तक रानू ने कोई विशेष प्रतिक्रिया नही की बस खोया रहता है ।मैं आज समझ पा रहा था कि सीमा ने मुझे इतने साल कैसे झेला होगा। बहुत पूछने पर भी रानू ने कुछ नहीं बताया । कितना खिला-खिला रहता था रानू सीमा के साथ पता नही आईआईटी में कौनसा भूत लग गया। शायद दोस्तों से कुछ पता लग जाये उनसे क्या छुपा हो सकता है। सोचकर रानू के कुछ दोस्तों से संपर्क किया तो पता चला आईआईटी के दौरान किसी नेहा नाम की लड़की से प्यार में पड़ गया था ; धीरे-धीरे प्यार गहरा होता गया अन्त्ततया पूछने पर नेहा ने मना कर दिया। बाद में पता चला की वो पहले से किसी के साथ प्रेम सम्बन्ध में है । तब से रानू खोया-सा ही रहता है । पता नही क्यों ऐसे लग रहा है मानो इतिहास खुद को दोहरा रहा हो ; क्या गन्नू और हमारा भी इसी तरह का सम्बन्ध नही था जैसे नेहा और रानू का है ? क्या रानू भी अभी उसी परिस्थिति में नही है जिसमे मैंने अपने 20 साल निकाल दिए । नहीं ! मैं मेरे बेटे का जीवन खुद की तरह व्यर्थ और अवसादपूर्ण नही होने दे सकता। मुझे कुछ करना चाइये। सोचते-सोचते मेरे मुंह से चीख निकली " नहीं ऐसा कुछ नही हो सकता।" क्या हुआ पापा ? रानू बोला । बेटा मैं तुम्हे वो सब नही सहने दूंगा जो मैंने 20 साल सहा है , रानू से लिपटकर मैंने कहा । रानू शायद कुछ समझ नही पा रहा था । तुम्हे किसी लड़की से प्रेम है ? पूछने पर रानू ने कोई उत्तर नही दिया । पर मैं समझ गया था ; नेहा से शादी की बात चलवाऊ? सुनते ही रानू ने अधीरता से पूछा : - क्या आप ऐसे कर सकते है पापा? हाँ क्यों नही। सुनते ही रानू का चेहरा खिल गया ठीक वैसे ही जैसा देखने के लिए मैं तरस गया था ।
लड़की के पापा क्या करते है? पूछने पर रानू ने बताया कि नेहा के माता-पिता का तलाक हो गया है और वो अपनी माँ के साथ नॉएडा में ही रहती है। दोस्तों से सुना है कि उसके पिता के किसी अन्य स्त्री के साथ अवैध सम्बन्ध थे । जब नेहा 2 वर्ष की थी तभी दोनों का तलाक हो गया था । माँ स्कूल में अध्यापिका है ।
निश्चित हुआ की परसों ही जाके रानू की शादी की बात करूंगा । दोनों नॉएडा जा रहे है ; वहाँ से सीमा को भी साथ ले लिया। नेहा के घर पर जाकर पहुंचे जैसे ही घर का दरवाज़ा खुला , मेरी 20 वर्षो की कपोल कल्पनाये इस सच्चाई का एक तिनका मात्र सी प्रतीत हुई ; क्या मैं स्वप्न देख रहा हूँ ? क्या ये वही है ?क्या सच में वही है जिसकी याद में मैंने 20 साल निकाल दिए ? हाँ वही है । सामने गन्नू थी ।ठीक वैसी ही जैसी 20 वर्ष पूर्व थी ; वही गोर चमकीला वर्ण , काली-सी बड़ी-बड़ी आँखे , बंधा हुआ शरीर , आँखों में वही तेज और हमेशा की तरह ही चेहेरे पर हल्की मुस्कान ; फर्क था तो बस इतना कि पहले जो मेरी कपोल काल्पनिक पत्नी थी यथार्थ में वह आज एक तलाकशुदा औरत है । गन्नू ने अन्दर आने का अग्राह किया संभवतः हम दोनों को पहचान गयी थी। पहचानती कैसे नही ट्रेनिंग में कितना वक़्त साथ गुज़ारा था । कैसे हो ? कहकर रसोई में चली गयी । सीमा से तलाक का दुःख गन्नू को देखते ही कहा भाग गया पता नही चला । मन में उत्साह था और ढेर सारी बाते पर शायद समय उपयुक्त नही था ; या दशाये अनुकूल नही थी ; या शायद जिंदगी इतनी पीछे छूट गयी है कि इनका कोई महत्व ही नही रहा है । तीनो ट्रेनिंग के पलो को याद करते है परिस्थितिनुकुलता में "हमारे बेटे को आपकी बेटी नेहा पसंद है ; हम अपने बेटे का रिश्ता लेकर आये है" सीमा कहती है। शायद गन्नू के लिए ये अकल्पनीय था । बिना किसी निश्चित निष्कर्ष के गन्नू ने इस बारे में सोचने के लिए थोडा समय माँगा है।
गन्नू -: बेटा तुम्हारे लिए रिश्ता आया है, बता रहे थे तुम्हारे साथ आईआईटी में था । रानू नाम है उसका ।
नेहा -: (टालते हुए ) हाँ मम्मा पर अभी मेरी उम्र ही क्या है मुझे आपके साथ ही रहना है ।
गन्नू -: बेटा शादी कभी न कभी तो करनी ही है , रानू मेरी दोस्त का ही बेटा है ,लड़का और परिवार दोनों बड़े भले लोग है और हमसे परिचित भी है , ऐसे लोग अभी कहाँ मिलते है?
नेहा -: हाँ मम्मा पर मैं ये शादी नही कर सकती कभी भी नही क्यूंकि......
गन्नू -: क्या क्यूंकि बेटा........?
नेहा -: आप कुछ नही कहोगे मुझसे और मेरी बात समझने की कोशिश करोगे प्रॉमिस कीजिये ।
(गन्नू हाँ में सिर हिलाती हैं )
दरअसल मम्मा , बात यह है कि जब मैं आईआईटी में थी तब से मैं एक लड़के के साथ प्रेम सम्बन्ध में हूँ । मैं उसके बिना नहीं जी सकती। माँ मैं मर जाउंगी पर उसके अलावा किसी और से शादी नही करूंगी । मुझे पता है रानू मुझसे प्यार करता है और हमेशा मुझे खुश रखेगा , पर मेरे प्यार का क्या मम्मा ? मैं जिससे प्यार करती हूँ उसका क्या ? रानू ने मुझे प्रस्ताव दिया था पर मैंने तभी मना कर दिया था वो मुझसे प्यार करता है, फिलहाल मैं तो नही करती हूँ न ; क्या प्यार करना गुनाह है माँ ? क्या मेरा अपने जीवन पर इतना-सा भी अधिकार नही है ?
(गन्नू नेहा में खुद को पा रही थी । जो अपने प्यार को पाने की जिद नेहा में वो देख रही थी वही 20 साल पहले उसमे थी । गन्नू के सामने ये सब दृश्य वैसे ही थे जैसे उसने खुद ने अनुभव किये थे । क्या वह किसी से प्यार नही करती थी जैसे आज नेहा करती है ? क्या रानू की तरह ही उसके पापा ने गन्नू को प्रस्ताव नही दिए थे ? क्या उसने मनमानी करके अपने प्यार से शादी नही की थी जैसे आज नेहा कर रही थी ? शादी के 3 साल बाद ही दूसरी औरत के साथ फरार हो गया था; मुझ पर क्या गुजरी ये मैं ही जानती हूँ। कैसे पाला है मैंने नेहा को। दुनिया में सबको अपना-अपना प्यार ही चाइये होता है ,पर हम खुद के प्यार के प्रति इतने आक्रामक हो जाते है की दुसरे का प्यार देख ही नही पाते ।जो आपसे प्यार करता है उसके साथ अगर आप चाहे तो बेहतर जिंदगी जी सकते है पर जिससे हम प्यार करते है उसमे हमेशा छोड़ कर जाने का डर बना रहता है ।
नेहा अभी इतनी सक्षम नही है कि वो उसका सही और गलत समझ सके। जो दुःख दर्द भरा जीवन मैंने जिया है मैं वैसा नेहा को नही जीने दे सकती । अभी अगर इन सब से उसे दुःख होता है तो होने दो पर इस छोटे से दुःख के चक्कर में मैं उसका पूरा जीवन दुःख में धकेल दूँ कभी नही , कभी भी नहीं । )
गन्नू -: बेटा, तुम्हे नही पता की तुम्हारे पिता भी मेरा प्यार ही थे ।
नेहा -: (थोड़ी देर सोचकर ) सब एक से नही होते हैं माँ ।
गन्नू-: बेटा तुम्हे रानू से ही शादी करनी है तुम्हे थोडा समय चाइये हो तो ले लो ।
(अन्त्ततया गन्नू की तार्किक बातो और अनुभव की बदोलत नेहा शादी के लिए मान जाती है । गन्नू पत्र लिखती है "बधाई हो ! हमे ये रिश्ता मंजूर है ।"रानू और नेहा की शादी हो चुकी है दोनों अभी बोम्बे में ही रहते है । सीमा निशीथ के साथ खुश है मैंने भी उनसे पर्याप्त दूरी बना ली है । )
अपनी बोरीयत को दूर करने के लिए लिखना शुरू कर दिया है । खेर उम्र के साथ इंसान के पास कुछ होता नही है करने के लिए शायद इसी लिए लोगो ने सम्बन्ध बनाने की प्रथा बनाई है। एक दिन बालकनी में बैठा कुछ लिख रहा था अचानक पीछे मुड़कर देखता हूँ तो गन्नू खडी होती है । बैठिये न..मैंने कहा । बैठकर सीमा के बारे में पूछती है ,हमारा तलाक हो गया है। वजह पूछने पर मैंने कुछ कहकर टाल दी ,क्या बताता उसकी वजह से ; बिचारी उसकी इसमें क्या गलती है । परसों ही नेहा का पत्र आया दोनों बहुत खुश है आप दादा और मैं नानी बनने वाली हूँ -: गन्नू ने कहा । गन्नू रानू की शादी के निर्णय से बहुत खुश है और मैं अपने निर्णय से । दोनों बालकनी में बैठकर चाय पीते-पीते देख रहे है मैं उसे ,वो मुझे, दोनों एक-दुसरे को....दोनों की आँखों में एक ही सवाल है क्या दोनों के पास अभी भी समय है ! परन्तु दोनों में सहमति हैं कि शायद नहीं ।
लेखक - : लखन नागर