सत्याग्रह और उग्रता नंदलाल मणि त्रिपाठी द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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सत्याग्रह और उग्रता

सत्याग्रह और उग्रता----

भारत ने ब्रिटिश औपनिवेश से मुक्ति के लिए पूरे नब्बे वर्षो तक संघर्ष किया इस दौर में नए नए विचार धाराएं एव आंदोलन के बिभिन्न सिद्धांतो ने अवधारणा कि वास्तविकता के धरातल पर वास्तविक अस्तित्व को प्राप्त किया ।

मोहन दास कर्म चन्द्र गांधी जी ने भारत कि आजादी कि लड़ाई हेतु भारतीय जन मानस को एकत्र किया और नेतृत्व प्रदान किया साथ ही साथ महात्मा बापू आदि भूषण विभूषण से राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय स्तर तक प्रतिस्थापित हूए उन्हें बापूऔर महात्मा बनाने में सबसे महत्वपूर्ण योगदान उनके द्वारा संघर्ष के नए सिंद्धान्त सत्याग्रह को ही जाता है।

सत्य का आग्रह अहिंसा के मार्ग से बापू का यह सिंद्धान्त कितना कारगर रहा आज भी विचारणीय विषय है ।

लेकिन भारत कि आजादी के बाद भारत मे आंदोलनों ने महात्मा गांधी जी के सिंद्धान्त को आत्म साथ किया अंगीकार कर लिया विशेष कर संस्थाओं के मजदूर संगठनों ने आजादी के बाद महात्मा के सत्याग्रह एव अहिंसा के सिंद्धान्त पर अनेको आंदोलन किए जिसमे महात्मा के मूल अवधरणा सत्य एव अहिंसा ही आंदोलन कि आत्मा हुआ करती थी लेकिन कानपुर के एक मजदूर आंदोलन ने पूरे भारत मे महात्मा के सत्य अहिंसा के सत्याग्रह सिंद्धान्त का अर्थ ही बदल दिया आंदोलनकारियों एव शासन प्रशासन दोनों के लिए ।

कानपुर को उत्तर प्रदेश के मैनचेस्टर का दर्जा प्राप्त था कानपुर का कपड़ा उद्योग एव चमड़ा उद्योग देश प्रदेश कि अर्थ व्यवस्था में बहुत महत्वपूर्ण योगदान करता था कानपुर मजदूरों का शहर था एव राजनीति में भी मजदूर समर्थकों का ही वर्चस्व रहता था कम्युनिस्ट पार्टी के एस एम बनर्जी बीस वर्षों तक कानपुर का संसद में प्रतिनिधित्व करते रहे लेकिन एक सत्याग्रह के हिंसा में बदलने के कारण कानपुर कि राजनीतिक आर्थिक व्यवस्था को बहुत शांत तरीके से बदल कर रख दिया जिसका परिणाम वर्तमान पीढ़ी भुगत रही है जिसकी कल्पना आज भी शायद ही कोई कर सकता है ।

कानपुर में बहुत बड़ी कपड़े कि मिल थी स्वदेशी कॉटन मिल जिसमे हज़ारों मजदूर कर्मचारी अधिकारी काम करते थे लाखो लोगो की रोजी रोटी का माध्यम हुआ करती थी स्वदेशी कॉटन मिल ।

मिल मजदूरों में कम्युनिस्ट विचारधारा के संगठनों का वर्चस्व हुआ करता था ।

मजदूर अक्सर अपनी मांगों को कम्युनिस्ट नेतृत्व में एकत्र होकर उठाते मजदूरों कि राजनीति में बहुत से दुखद सुखद पड़ाव आये गए लेकिन जिस एक घटना ने महात्मा गांधी सत्य अहिंसा एव सत्यग्रह का अर्थ ही बदल कर रख दिया ।

स्वदेशी कॉटन मिल के मजदूर अपनी मांगों को लेकर आंदोलित होते रहते थे और आंदोलन के माध्यम से मिल मॉलिक से अपनी मांगों को मनवाने के लिए दृढ़ रहते थे आंदोलन होते और समाप्त होते ।

एक आंदोलन ऐसा भी हुआ जिसने समय एव इतिहास के समक्ष अनेको प्रश्न खड़े कर दिए स्वदेशी कॉटन मिल के मजदूर अपनी मांगों के लिए आंदोलन करते इतने उग्र हो गए कि उन्होंने दो अधिकारी आयंकर एव शर्मा जी को सुजा घोंप घोंप कर मारने कि कोशिश की और जब इस पर भी दोनों नही मरे तब दोनों अधिकारियों को जिंदा ब्यालर में झोंक दिया ।

इस घटना ने महात्मा गांधी के सत्याग्रह के अहिंशावादी सिंद्धान्त को ही धूल धुसित कर दिया जिसका प्रभाव बाद में बहुत गंभीर पड़ा बाद में होने वाले आंदोलनों से निपटने के लिए प्रशासन ने भी कठोर रुख अख्तियार करना शुरू कर दिया परिणाम स्वरूप अनेको आद्योगिक मजदूर आंदोलनों में प्रसाशनिक एव मजदूर झड़पो में जन हानि एव सरकारी संपत्ति कि हानि हुई पूर्वांचल के चीनी उद्योग पर भी इस घटना का प्रभाव दिखा बस्ती मुंडेरवा आदि इसी नई आंदोलन उग्रता के शिकार हुए।

उससे पूर्व जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रांति के युवा आंदोलन में उग्रता नही सत्याग्रह अहिंसा महात्मा का सिंद्धान्त ही कारगर हुआ।

समय कभी कभी ऐसे शांत परिवर्तन का आवाहन कर देता है जिसके परिणाम भी उस मूल परिवर्तन कारी घटना को स्मरण नही करते है।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीतांबर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।